पंडित जवाहरलाल नेहरू ( Part-02)-Pandit Jawaharlal Nehru
पंडित जवाहरलाल नेहरू ( Part-02)
Pandit Jawaharlal Nehru
पंडित जवाहरलाल नेहरू का स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान
यह समझौता बहुत जल्द ही रद्द हो गया और पंडित जवाहरलाल नेहरु को बंदी बना लिया गया कांग्रेस पार्टी को गैरकानूनी पार्टी घोषित किया गया समाजवादी विचारधारा होने के बाद भी पंडित जवाहरलाल नेहरू कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के सदस्य नहीं बने उन्हें यह स्पष्ट ताकि लोकतांत्रिक समाजवाद भारत में सफल हो सकता है पंडित जवाहरलाल नेहरू ने कहा था मैं इस नतीजे पर पहुंच गया हूं कि दुनिया की समस्या और भारत की समस्या का समाधान समाजवाद में ही नहीं थे और जब मैं इस शब्द समाजवाद का इस्तेमाल करता हूं तो अस्पष्ट मानवता वादी अर्थ में नहीं बल्कि एक वैज्ञानिक ,आर्थिक क्षेत्र में यह जीवन का एक दर्शन है पंडित जवाहरलाल नेहरू ने अपने देश के लिए अपने परिवार के मोह को भी त्याग दिया था पत्नी कमला का विदेश में इलाज चलता रहता था और वह यहां आजादी की लड़ाई में लगे रहते थे कभी जेल में तो कभी जेल के बाहर फरवरी 1936 को कमला नेहरू का तपेदिक की बीमारी से स्विट्जरलैंड में निधन हो गया पत्नी की मृत्यु ने भी पंडित नेहरू को आजादी के मार्ग से विमुख नहीं किया था दिसंबर 1931 से लेकर दिसंबर 1935 तक जवाहरलाल नेहरु को अंग्रेजो के द्वारा 1170 दिन तक जेल में बंदी बनाकर रखा गया था 14 फरवरी 1935 को अल्मोड़ा जेल में अपनी आत्मकथा का लेखन कार्य पूर्ण किया पंडित जवाहरलाल नेहरू ने जुलाई 1938 में स्पेन का भी दौरा किया ।उस समय वहा ग्रह युद्ध चल रहा था द्वितीय विश्व युद्ध शुरू होने से कुछ समय पहले भी चीन के दौरे पर भी गए थे पंडित जवाहरलाल नेहरू ने भारत को युद्ध में भाग लेने के लिए मजबूर करने का विरोध करते हुए व्यक्तिगत सत्याग्रह किया जिसके कारण 31 अक्टूबर 1940 को उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया उन्हें दिसंबर 1941 में अन्य नेताओं के साथ जेल से मुक्त कर दिया गया 7 अगस्त 1942 को मुंबई में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की बैठक में पंडित जवाहरलाल नेहरू ने ऐतिहासिक संकल्प भारत छोड़ो को कार्यान्वित करने का लक्ष्य निर्धारित किया (आजादी के पहले पंडित जवाहरलाल नेहरू 1929 ,1939 ,1946 में कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर रहे) 8अगस्त 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन आरंभ किया गया सरकार ने पंडित जवाहरलाल नेहरू सहित कई नेताओं को बंदी बना लिया था पंडित जवाहरलाल नेहरु को गिरफ्तार करके अहमदनगर कीले ले जाया गया यह अंतिम मौका था जब उन्हें जेल जाना पड़ा इसी बार उन्हें सबसे लंबे समय तक जेल में समय बिताना पड़ा
पंडित जवाहरलाल नेहरु अपने जीवन में 9 बार जेल गए जनवरी 1945 में अपनी रिहाई के बाद उन्होंने राजद्रोह का आरोप झेल रहे आई एन ए के अधिकारियों और व्यक्तियों का कानूनी बचाव किया लॉर्ड बेवल द्वारा शिमला में बुलाई गई कॉन्फ्रेंस में भाग लेने के लिए जवाहर को आजाद किया गया 1946 के कैबिनेट मिशन, 1947 लार्ड माउंटबेटन के साथ जवाहर ने देश के प्रतिनिधि के रूप में अपनी आजादी का पक्ष मजबूती के साथ रखा था पंडित जवाहरलाल नेहरू ने सभी महत्वपूर्ण वार्ताओं में भाग लिया था वायसराय के निमंत्रण पर 2 सितंबर 1946 को अंतरिम सरकार का गठन किया लेकिन मुस्लिम लीग के विरोध के कारण सरकार काम नहीं कर सके अतः इस देश को बचाए रखने और खून खराबा रोकने के लिए लार्ड माउंटबेटन की भारत और पाकिस्तान को अलग अलग सत्ता सौंपने के प्रस्ताव को स्वीकार कर सांप्रदायिक हिंसा को फैलने से रोक लिया और आजादी के बाद 1947 में ही भारत का विभाजन किया गया ?मार्च 1946 में पंडित जवाहरलाल नेहरू ने दक्षिण पूर्व एशिया का दौरा किया 6 जुलाई 1946 को ही चौथी बार कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए और फिर 1951 से 1954 तक तीन और बार इस पद के लिए चुने गए थे
पंडित जवाहरलाल नेहरु का भारत का प्रथम प्रधानमंत्री बनना पंडित जवाहरलाल नेहरू स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री थे और वह मृत्यु तक इस पद पर कार्य करते रहे पंडित जवाहरलाल नेहरू चार बार भारत के प्रधानमंत्री बने पंडित जवाहरलाल नेहरू के प्रधानमंत्री बनने की शुरुआत गांधीजी के प्रभाव से हुई महात्मा गांधी जी पंडित जवाहरलाल नेहरु की विश्व की जानकारी से अत्यधिक प्रभावित थे और वह प्रधानमंत्री पद पर पंडित जवाहरलाल नेहरू को देखना चाहते थे जब पहली बार प्रधानमंत्री पद के लिए वोट हुए तो सर्वाधिक वोट सरदार वल्लभ भाई पटेल को और उसके बाद आचार्य कृपलानी को मिले थे लेकिन गांधीजी का नेहरू के प्रति अत्यधिक लगाव होने के कारण सरदार वल्लभ भाई पटेल गांधी जी का सम्मान करते हुए प्रधानमंत्री पद से अपने को हटा लिया और पंडित जवाहरलाल नेहरु देश के प्रथम प्रधानमंत्री बने थे भारत में पहला आम चुनाव 1952 में हुआ था पहला आम चुनाव ब्रिटिश संसदीय प्रणाली को आधार मानकर बनाए गए भारतीय संविधान के तहत हुआ था इस चुनाव में कांग्रेस पार्टी भारी बहुमत से सत्ता में आए और पंडित जवाहरलाल नेहरु भारत के पहले प्रधानमंत्री बने इससे पहले वह 1947 में आजादी मिलने के बाद से अंतरिम प्रधानमंत्री थे भारत के प्रधानमंत्री के रूप में उनके चुनाव के बाद उन्होंने अपनी निगरानी में कई प्रकार से देश की प्रगति के रास्ते उत्पन्न की डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने एक बार उनके बारे में कहा था कि पंडित जी के नेतृत्व में देश प्रगति के रास्ते पर आगे बढ़ रहा है पंडित जवाहरलाल नेहरु गांधी जी के संरक्षण में वे भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के सर्वोच्च नेता के रूप में उभरकर सामने आए और उन्होंने 1947 में भारत के एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में स्थापना से लेकर 1964 तक अपने निधन तक भारत का शासन किया वह आधुनिक भारतीय राष्ट्र राज्य एक संप्रभु, समाजवादी ,धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक गणतंत्र के वास्तुकार माने जाते हैं स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री का पद संभालने के लिए कांग्रेस द्वारा पंडित जवाहरलाल नेहरू निर्वाचित हुए यद्यपि नेतृत्व का प्रश्न बहुत पहले ही 1941 में गांधी जी द्वारा सुलझा दिया जा चुका था जब गांधी जी ने नेहरू को उनके राजनीतिक वारिश और उत्तराधिकारी के रूप अभी स्वीकार किया था प्रधानमंत्री के रूप में वे भारत के सपने को साकार करने के लिए चल पड़े भारत का संविधान 1950 में अधिनियमित हुआ जिसके बाद उन्होंने आर्थिक सामाजिक और राजनीतिक सुधारों के एक महत्वकांक्षी योजना की शुरुआत की मुख्यत: एक बहुवचनी ,बहुदलीय, लोकतंत्र को पोषित करते हुए उन्होंने भारत के एक उपनिवेश राज्य में परिवर्तन होने का पर्यवेक्षण किया विदेश नीति में भारत को दक्षिण एशिया में एक क्षेत्रीय नायक के रूप में प्रदर्शित करते हुए उन्होंने गैर निरपेक्ष आंदोलन में एक अग्रणी भूमिका निभाई भारत की आजादी के समय अंग्रेजों ने लगभग 500 देसी रियासतों को एक साथ स्वतंत्र किया था और उस समय सबसे बड़ी चुनौती थी सभी को एक झंडे के नीचे लाना उन्होंने भारत के पुनर्गठन के रास्ते में ऊपरी हर चुनौती का समझदारी पूर्वक सामना किया पंडित जवाहरलाल नेहरू ने आधुनिक भारत के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की उन्होंने योजना आयोग का गठन किया विज्ञान और प्रौद्योगिकी के विकास को प्रोत्साहित किया और तीन लगातार पंचवर्षीय योजनाओं का शुभारंभ किया उनकी नीतियों के कारण देश में कृषि और उद्योग का एक नया युग शुरू हुआ नेहरू ने भारत की विदेश नीति के विकास में एक प्रमुख भूमिका निभाएं पंडित जवाहरलाल नेहरू ने एशिया और अफ्रीका में उपनिवेशवाद के खात्मे के लिए एक गुट निरपेक्ष आंदोलन की रचना की थी पंडित जवाहरलाल नेहरू कोरियाई युद्ध का अंत करने स्वेज नहर विवाद सुलझाने और कांगो समझौते को मूर्त रुप देने जैसे अन्य अंतरराष्ट्रीय समस्याओं के समाधान में मध्यस्थ की भूमिका में रहे उन्हें वर्ष 1955 में भारत रत्न से सम्मानित किया
लोकतंत्र पर नेहरू जी के विचार पंडित जवाहरलाल नेहरू का विचार था कि लोकतंत्र की केवल एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें व्यक्ति का व्यक्तित्व सही ढंग से विकसित हो सकता है पंडित जवाहरलाल नेहरु के लोकतंत्र पर विचार नवीन नहीं तेल लेकिन पंडित जवाहरलाल नेहरु ने लॉक, रूसो ,बेंथम ,जेएस मील, कार्ल मार्क्स आदि के विचारों का सम्मिश्रण प्रस्तुत करके अपने विचारों को पेश किया था पंडित जवाहरलाल नेहरु ने व्यक्ति के विचारों अभिव्यक्ति विश्वास विचार और उपासना की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध के अभाव को लोकतंत्र में आवश्यक माना और व्यक्ति के वास्तविक स्वरुप को निखारने के लिए भी आवश्यक माना पंडित जवाहरलाल नेहरू ने लोकतंत्र को अपने शब्दों में परिभाषित करते हुए कहा कि लोकतंत्र केवल राजनीतिक या आर्थिक तत्व से ही नहीं जुड़ा बल्कि मस्तिष्क तथा विचारों से भी जुड़ा हुआ है?पंडित जवाहरलाल नेहरू ने नागरिक स्वतंत्रताओं को लोकतंत्र के लिए आवश्यक शर्त माना था उपरोक्त विचार पंडित जवाहरलाल नेहरु के लोकतंत्र के विचारों को प्रकाश में लाते हैं पंडित जवाहरलाल नेहरू का विश्वास था कि लोकतंत्र और सफल हो सकता है जब वह राजनीतिक के साथ आर्थिक और सामाजिक समस्याओं का भी समाधान कर सके 1931 में अपने विचारों को ही आगे बढ़ाते हुए 1956 में नेहरू ने एक और विचार का समर्थन किया कि भूखे-नंगे दलित के लिए व्यस्त मताधिकार का कोई विशेष महत्व नहीं पंडित जवाहरलाल नेहरू ने लोकतंत्र का अर्थ बताते हुए कहा था कि ज्यादा से ज्यादा लोगों को यदि आगे बढ़ने का एक समान अवसर मिले तो वही व्यवस्था लोकतंत्र कहलाएगी पंडित जवाहरलाल नेहरू का काम अधिकाधिक उचित मजदूरी पाने का अधिकार काम की उचित शर्तें और सामाजिक सुरक्षा शिक्षा और स्वास्थ्य का अधिकार जैसे मुख्य अधिकारों को एक सच्चे लोकतंत्र की मुख्य जरूरत मानते थे पंडित जवाहरलाल नेहरू ने लोकतंत्र को परिभाषित करते हुए कहा कि लोकतंत्र केवल राजनीतिक नहीं केवल आर्थिक नहीं परंतु मस्तिष्क का कुछ है जहां तक हो सके सभी के लिए राजनीतिक और आर्थिक क्षेत्र में अवसर की समानता को शामिल करना है लोकतंत्र पर विचार देते हुए पंडित जवाहरलाल नेहरु सामाजिक न्याय पर बात करते हैं पंडित जवाहरलाल नेहरू ने सामाजिक न्याय को एक समाज की मुख्य आवश्यकता माना है पंडित जवाहरलाल नेहरू ने सामाजिक न्याय के साथ-साथ जातिवाद पर भी प्रकाश डाला पंडित जवाहरलाल नेहरू ने कहा कि जाति के बंधनों को तोड़े बिना न तो लोगों को अवसरों की समानता मिल सकती है ना राजनीतिक और आर्थिक लोकतंत्र की स्थापना हो सकती है
पंडित जवाहरलाल नेहरू के आर्थिक विचार पंडित जवाहरलाल नेहरू ने लोकतंत्र को आर्थिक जनतंत्र से जोड़ते हुए आर्थिक जनतंत्र को राजनीतिक जनतंत्र का मुख्य अंग माना है और बिना आर्थिक लोकतंत्र के राजनीतिक लोकतंत्र को निरर्थक मानते थे पंडित जवाहरलाल नेहरू के शब्दों में जातिवाद और लोकतंत्र के बीच संघर्ष जितना स्वाभाविक है कि इन दोनों से सिर्फ एक जीवित रहेगा पंडित जवाहरलाल नेहरू का विचार था कि हमें लोकतंत्र वादी बनना चाहिए ना की घोर जातिवादी क्योंकि जातिवाद सामाजिक न्याय और लोकतंत्र के रास्ते की सबसे बड़ी अड़चन है जवाहरलाल नेहरू ने भारत की जातिवाद की समस्या को सुलझाने के लिए भारत को एक धर्मनिरपेक्ष राज्य बनाने की बात कही उपनिवेशिक काल में अंग्रेजों द्वारा हिंदू और मुसलमानों के बीच में इस्तेमाल की गई बांटो और राज करो की नीति के कारण ही जातिवाद को बढ़ावा मिला पंडित जवाहरलाल नेहरू ने कहा कि भारतीय मुसलमानों का एक बड़ा भाग गरीबी था और साहूकार और जमीनी जमीदारों ने उनकी गरीबी का अनुचित लाभ उठाकर जातिवाद को बढ़ावा दिया था
पंडित जवाहरलाल नेहरू के संविधान सभा में धर्मनिरपेक्षता पर विचार पंडित जवाहरलाल नेहरू देश के विकास के लिए जातिवाद के बंधनों को तोड़ना चाहते थे वह सभी को समानता के अवसर देना चाहते थे चाहे वह कोई सा क्षेत्र हो पंडित जवाहरलाल नेहरू के अनुसार राजनीति और मजहब से मिलने से राजनीति का रूप सांप्रदायिक बन जाता है जो देश के लिए घातक है और बहुसंख्यक समुदाय के लिए भी अल्पसंख्यक यदि इस तरीके से कोई लाभ उठाना चाहिए तो उन्हें यह जानना चाहिए कि उनके लिए सांप्रदायिकता से बढ़कर सबसे ज्यादा हानिकारक कोई चीज नहीं हो सकती धर्मनिरपेक्षता का अर्थ राज्य जब किसी एक धर्म को अपना संरक्षण देने की वजह सभी धर्मों के प्रति सहिष्णुता और संरक्षण की स्थापना करें धर्मनिरपेक्ष रहकर सभी धर्मों का समान संरक्षण
लोकतांत्रिक समाजवाद के बारे में पंडित जवाहरलाल नेहरू के विचार पंडित जवाहरलाल नेहरू गांधी जी से प्रभावित थे इसीलिए वह राजनीति के हिंसा पूर्ण उपयोग का प्रयोग करना उचित नहीं समझते थे साम्यवादी विचारधारा से जवाहरलाल नेहरू प्रभावित अवश्य थे लेकिन वह साध्य की प्राप्ति के लिए हर साधन को उचित नहीं मानते थे बल्कि उनकी मान्यता थी कि साध्य के लिए साधन भी अच्छे होने चाहिए थे पंडित जवाहरलाल नेहरू ने लोकतांत्रिक समाजवाद के विचारों में विश्वास रखते हुए कहा कि लोकतंत्र व्यक्ति को प्रगति का अवसर प्रदान करता है लेकिन ऐसे अवसरों का यह अर्थ मनमानी या अराजक साधनों का इस्तेमाल नहीं है अनुशासन और अहिंसा लोकतंत्र की पहली शर्त है
पंडित जवाहरलाल नेहरू एक लेखक के रूप में पंडित जवाहरलाल नेहरू एक प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी राजनीतिज्ञ और प्रभावशाली वक्ता ही नहीं बल्कि एक ख्याति प्राप्त लेखक भी थे 1936 में उनके द्वारा लिखी गई आत्मकथा प्रकाशित और संसार के सभी देशों में उनका सम्मान हुआ उनकी अन्य रचनाओं में भारत और विश्व सोवियत रूस विश्व इतिहास की एक झलक भारत की एकता और स्वतंत्रता आदि उल्लेखनीय है
वैज्ञानिक प्रगति के प्रेरणा स्रोत पंडित जवाहरलाल नेहरू
गांधी जी के विचारों के प्रतिकूल जवाहरलाल नेहरू ने देश में औद्योगीकरण को महत्व देते हुए भारी उद्योगों की स्थापना को प्रोत्साहन दिया। विज्ञान के विकास के लिए1947 ई. में नेहरू ने 'भारतीय विज्ञान कांग्रेस' की स्थापना की। उन्होंने कई बार 'भारतीय विज्ञान कांग्रेस' के अध्यक्ष पद से भाषण दिया। भारत के विभिन्न भागों में स्थापित वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद के अनेक केंद्र इस क्षेत्र में उनकी दूरदर्शिता के स्पष्ट प्रतीक हैं। खेलों में नेहरू की व्यक्तिगत रुचि थी। उन्होंने खेलों को मनुष्य के शारीरिक एवं मानसिक विकास के लिए आवश्यक बताया। एक देश का दूसरे देश से मधुर सम्बन्ध क़ायम करने के लिए 1951 ई. में उन्होंने दिल्ली में प्रथम एशियाई खेलों का आयोजन करवाया। समाजवादी विचारधारा से प्रभावित नेहरू ने भारत में लोकतांत्रिक समाजवाद की स्थापना का लक्ष्य रखा। उन्होंने आर्थिक योजना की आवश्यकता पर बल दिया। वे 1938 ई. में कांग्रेस द्वारा नियोजित 'राष्ट्रीय योजना समिति' के अध्यक्ष भी थे। स्वतंत्रता पश्चात् वे 'राष्ट्रीय योजना आयोग' के प्रधान बने। नेहरू जी ने साम्प्रदायिकता का विरोध करते हुए धर्मनिरपेक्षता पर बल दिया। उनके व्यक्तिगत प्रयास से ही भारत को एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र घोषित किया गया था। जवाहरलाल नेहरू ने भारत को तत्कालीन विश्व की दो महान् शक्तियों का पिछलग्गू न बनाकर तटस्थता की नीति का पालन किया। नेहरूजी ने निर्गुटता एवं पंचशील जैसे सिद्धान्तों का पालन कर विश्व बन्धुत्व एवं विश्वशांति को प्रोत्साहन दिया। उन्होंने पूंजीवाद, साम्राज्यवाद, जातिवाद एवं उपनिवेशवाद के ख़िलाफ़ जीवनपर्यन्त संघर्ष किया। अपने क़ैदी जीवन में जवाहरलाल नेहरू ने 'डिस्कवरी ऑफ़ इण्डिया', 'ग्लिम्पसेज ऑफ़ वर्ल्ड हिस्ट्री' एवं 'मेरी कहानी' नामक ख्यातिप्राप्त पुस्तकों की रचना की।
पंडित जवाहरलाल नेहरू का मूल्यांकन अपनी भारतीयता पर ज़ोर देने वाले नेहरू में वह हिन्दू प्रभामंडल और छवि कभी नहीं उभरी, जो गाँधी के व्यक्तित्व का अंग थी। अपने आधुनिक राजनीतिक और आर्थिक विचारों के कारण वह भारत के युवा बुद्धिजीवियों को अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ गाँधी के अहिंसक आन्दोलन कि ओर आकर्षित करने में और स्वतन्त्रता के बाद उन्हें अपने आसपास बनाए रखने में सफल रहे। पश्चिम में पले-बढ़े होने और स्वतन्त्रता के पहले यूरोपीय यात्राओं के कारण उनके सोचने का ढंग पश्चिमी साँचे में ढल चुका था। 17 वर्षों तक सत्ता में रहने के दौरान उन्होंने लोकतांत्रिक समाजवाद को दिशा-निर्देशक माना। उनके कार्यकाल में संसद में कांग्रेस पार्टी के ज़बरदस्त बहुमत के कारण वह अपने लक्ष्यों की ओर अग्रसर होते रहे। लोकतन्त्र, समाजवाद, एकता और धर्मनिरपेक्षता उनकी घरेलू नीति के चार स्तंभ थे। वह जीवन भर इन चार स्तंभों से सुदृढ़ अपनी इमारत को काफ़ी हद तक बचाए रखने में कामयाब रहे। नेहरू की इकलौती संतान इंदिरा गाँधी1966 से 1977 तक और फिर 1980 से 1984 तक भारत की प्रधानमंत्री रहीं। इंदिरा गाँधी के बेटे राजीव गाँधी 1984 से 1989 तक प्रधानमंत्री रहे।
भारत की खोज पुस्तक भारत की खोज (डिस्कवरी ऑफ इंडिया ) पुस्तक की रचना पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा की गई थी पुस्तक की रचना अहमदनगर जेल में हुई थी इस पुस्तक को नेहरू जी ने अंग्रेजी में लिखा और बाद में इसे हिंदी और अन्य बहुत सारे भाषाओं में अनुवाद क्या भारत की खोज पुस्तक को क्लासिक का दर्जा हासिल है पंडित जवाहरलाल नेहरु ने इसे स्वतंत्रता आंदोलन के दौर में अपने कारावास के दिनों में लिखा था यह पुस्तक 1946 में प्रकाशित हुई थी इस पुस्तक में पंडित जवाहरलाल नेहरू ने सिंधु घाटी सभ्यता से लेकर भारत की आजादी तक विकसित हुई भारत की समृद्ध संस्कृति धर्म और जटिल अजित को वैज्ञानिक दृष्टि से विलक्षण शैली में बयान किया है
पंडित जवाहरलाल नेहरू की आलोचना पंडित जवाहरलाल नेहरु शुरू से ही देश सेवा के लिए आतुर थे उन्होंने वकालत को छोड़कर देश सेवा को पहले महत्व दिया लेकिन बहुत से लोगों का विचार है कि पंडित जवाहरलाल नेहरू ने अन्य नेताओं की तुलना में भारत के स्वतंत्रता संग्राम में बहुत ही कम योगदान दिया था लेकिन गांधी जी ने उन्हें भारत का प्रथम प्रधानमंत्री बना दिया स्वतंत्रता के बाद कई दशकों तक भारतीय लोकतंत्र में सत्ता के सूत्रधार ओने प्रकारांतर से देश में राजतंत्र चलाया विचारधारा के स्थान पर व्यक्ति पूजा को प्रतिष्ठित किया और लोकप्रियता के प्रभाव मंडल से रह लोकहित की पुणत: अपेक्षा की पंडित जवाहरलाल नेहरु को महात्मा गांधी के राजनीतिक उत्तराधिकारी के तौर पर जाना जाता है महात्मा गांधी पर यह आरोप था कि उन्होंने राजनीति में नेहरू को आगे बढ़ाने का काम सरदार वल्लभ भाई पटेल समेत कई सक्षम नेताओं की कीमत पर किया था आजादी के ठीक पहले कांग्रेस अध्यक्ष बनने की बात थी तो माना जा रहा था जो कांग्रेस अध्यक्ष बनेगा वही आजाद भारत का पहला प्रधानमंत्री होगा तब भी गांधी जी ने प्रदेश कांग्रेस समिति की सिफारिशों को अनदेखा करते हुए पंडित जवाहरलाल नेहरु को ही अध्यक्ष बनाया इससे एक आम धारणा यह बनती है कि पंडित जवाहरलाल नेहरू ने न सिर्फ महात्मा गांधी के विचारों को आगे बढ़ाने का काम किया बल्कि उन्होंने उस कार्य को भी पूरा करने की दिशा में अपनी पूरी कोशिश की होगी जिन्हें खुद गांधीजी पूरा नहीं कर पाए
पंडित जवाहरलाल नेहरु की मृत्यु पंडित जवाहरलाल नेहरु जिन्हें बच्चे चाचा नेहरू के नाम से जानते हैं जिन्हें आधुनिक भारत का शिल्पकार कहा जाता था पंडित जवाहरलाल नेहरु जो देश के प्रथम प्रधानमंत्री बने थे और स्वतंत्रता संग्राम के समय से भारतीय राजनीति के प्रमुख नेता थे पंडित जवाहरलाल नेहरु को उनके कार्यों के कारण सब लोग बहुत चाहते थे और उन्होंने देश के विकास के लिए कई महत्वपूर्ण कदम भी उठाए थे लेकिन उनके इन सब कार्यों के बावजूद उनकी सबसे बड़ी असफलता चीन और पाकिस्तान के साथ भारत के संबंधों को नहीं सुधार पाना और 1962 में चीन के द्वारा भारत पर धोखे से आक्रमण कर देना इस आक्रमण के प्रभाव से पंडित जवाहरलाल नेहरू अत्याधिक दुखी हुए और उनके दिल पर गहरा आघात पहुंचा जिससे वह उभर नहीं पाए और 2 साल बाद 27 मई 1964 को पंडित जवाहरलाल नेहरु की मृत्यु हो गई और हमारे देश को एक बहुत बड़ी क्षति हुई
पंडित जवाहरलाल नेहरु के अनमोल विचार एक सिद्धांत वास्तविकता के साथ संतुलित किया जाना चाहिए | कार्य के बारे में अगर मैं लंबे समय तक आश्वस्त हूँ कि यह सही कार्रवाई है, तो मुझे संतुष्टि मिलती है | कार्रवाई करने के लिए प्रभावी होने के लिए स्पष्ट रूप से कल्पना की छोर तक निर्देशित किया जाना चाहिए | नागरिकता देश की सेवा में होती हैं | संकट और गतिरोध जब होते हैं तो उनसे कम से कम यह लाभ होता है, कि वे हमें सोचने के लिए मजबूर करते है | संस्कृति मन और आत्मा का विस्तार है | लोकतंत्र अच्छा है. मैं ऐसा इसलिए कहता हूँ क्योंकि अन्य प्रणालियां इससे बदतर हैं | संकट में हर छोटी सी बात का महत्व होता है | तथ्य, तथ्य हैं और किसी की पसंद से गायब नहीं होते हैं | विफलता तभी होती है जब हम अपने आदर्शों, उद्देश्यों और सिद्धांतों को भूल जाते हैं | एक महान कार्य में लगन और कुशल पूर्वक काम करने पर भी, भले ही उसे तुरंत पहचान न मिले, अंततः सफल जरुर होता है | जाहिर है, दक्षता का उच्चतम प्रकार वह है जो मौजूद सामग्री का उपयोग कर सबसे अच्छा लाभ प्राप्त कर सके | लोगों की कला उनके दिमाग के लिए एक सही दर्पण है | ?एक पूंजीवादी समाज की शक्तियों को अगर अनियंत्रित छोड़ दिया जाय, तो वे अमीर को और अमीर तथा गरीब को और गरीब बना देती हैं. वह व्यक्ति जिसे वो सब मिल जाता है जो वो चाहता था, वह हमेशा शांति और व्यवस्था के पक्ष में होता है | शांति के बिना अन्य सभी सपने गायब हो जाते हैं और राख में मिल जाते हैं | आप दीवार के चित्रों को बदल कर इतिहास के तथ्यों को नहीं बदल सकते है | आप तस्वीर के चेहरे दीवार की तरफ मोड़ के इतिहास का रुख नहीं बदल सकते। बहुत अधिक सतर्क रहने की नीति सभी खतरों में सबसे बड़ा है। जीवन ताश के पत्तों के खेल की तरह है। आपके हाथ में जो है वह नियति है, जिस तरह से आप खेलते हैं वह स्वतंत्र इच्छा है। दुसरों के अनुभवों से लाभ उठाने वाला बुद्धिमान होता है। संस्कृति मन और आत्मा का विस्तार है। आपतियां हमें आत्म-ज्ञान कराती हैं,ये हमें दिखा देती हैं कि हम किस मिट्टी के बने हैं। असफलता तभी आती है जब हम अपने आदर्श, उद्देश्य, और सिद्धांत भूल जाते हैं। अज्ञानता बदलाव से हमेशा डरती है। हमारे अन्दर सबसे बड़ी कमी यह है कि हम चीजों के बारे में बात ज्यादा करते हैं और काम कम। सह- अस्तित्व का केवल एक विकल्प है सह- विनाश। वफादार और कुशल महान कारण के लिए कार्य करते हैं, भले ही उन्हें तुरंत पहचान ना मिले, अंततः उसका फल मिलता है। लोगों की कला उनके दिमाग का सही दर्पण है। पूर्ण रूप से आन्दोलनकारी रवैया किसी विषय के गहन विचार के लिए ठीक नहीं है। जीवन विकास का सिद्धान्त है, स्थिर रहने का नहीं। संकट के समय हर छोटी चीज मायने रखती है। जाहिर है, दक्षता का सबसे अच्छा प्रकार वह है जो मौजूदा सामग्री का अधिकतम लाभ उठा सके ?समाजवाद…ना केवल जीने का तरीका है, बल्कि सामजिक और आर्थिक समस्यों के निवारण के लिए एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण है। ?वह व्यक्ति जो सबकुछ पा चुका है वह हर एक चीज शांति और व्यवस्था के पक्ष में चाहता है। ?संकट और गतिरोध जब वे होते हैं तो कम से कम उनका एक फायदा होता है कि वे हमें सोचने पर मजबूर करते हैं। एक नेता या कर्मठ व्यक्ति संकट के समय लगभग हमेशा ही अवचेतन रूप में कार्य करता है और फिर अपने किये गए कार्यों के लिए तर्क सोचता है जो व्यक्ति अधिकतर अपने ही गुणों का बखान करता रहता है वो अक्सर सबसे कम गुनी होता है जो व्यक्ति भाग जाता है वह शांत बैठे व्यक्ति की तुलना में अधिक खतरे में पड़ जाता है। यदि पूंजीवादी समाज की शक्तियों को अनियंत्रित छोड़ दिया जाए तो वो अमीर को और अमीर और गरीब को और गरीब बना देंग अच्छी नैतिक स्थिति में होना कम से कम उतना ही प्रशिक्षण मांगता है जितना कि अच्छी शारीरिक स्थिति में होना। हम वास्तविकता में क्या हैं वो और लोग हमारे बारे में क्या सोचते हैं उससे कहीं अधिक मायने रखता है सुझाव देना और बाद में हमने जो कहा उसके नतीजे से बचने की कोशिश करना बेहद आसान है। चुनाव जनता को राजनीतिक शिक्षा देने का विश्वविधालय है | एक सिद्धांत को वास्तविकता के साथ संतुलित किया जाना चाहिए। महान कार्य और छोटे लोग साथ नहीं चल सकते जब तक मैं स्वयं में आश्वस्त हूँ की किया गया काम सही काम है तब तक मुझे संतुष्टि रहती है शांति राष्ट्रों का सम्बन्ध नहीं है। यह एक मन: स्थिति है जो आत्मा की निर्मलता से आती है। शांति सिर्फ युद्ध का अभाव नहीं है। यह मन की एक अवस्था ह बिना शांति के, और सभी सपने खो जाते हैं और राख में मिल जाते हैं। जो पुस्तकें हमें सोचने के लिए विवश करती हैं, वे हमारी सबसे अधिक सहायक है लोकतंत्र अच्छा है। मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि बाकी व्यवस्थाएं और बुरी है हमें थोडा विनम्र रहना चाहिए, हम ये सोचें कि शायद सत्य पूर्ण रूप से हमारे साथ ना हो समय सालों के बीतने से नहीं मापा जाता बल्कि किसी ने क्या किया, क्या महसूस किया, और क्या हांसिल किया इससे मापा जाता है मैं पूर्व और पश्चिम का अनूठा मिश्रण बन गया हूँ, हर जगह बेमेल सा, घर पर कहें का नही कार्य के प्रभावी होने के लिए उसे स्पष्ठ लक्ष्य की तरफ निर्देशित किया जाना चाहिए लोकतंत्र और समाजवाद लक्ष्य पाने के साधन है, स्वयम में लक्ष्य नहीं। तथ्य तथ्य हैं और आपके नापसंद करने से गायब नहीं हो जायेंगे। हम एक अद्भुत दुनिया में रहते हैं जो सौंदर्य, आकर्षण और रोमांच से भरी हुई है. यदि हम खुली आँखों से खोजे तो यहाँ रोमांच का कोई अंत नहीं है हर एक हमलावर राष्ट्र की यह दावा करने की आदत होती है कि वह अपनी रक्षा के लिए कार्य कर रहा है। एक ऐसा क्षण जो इतिहास में बहुत ही कम आता है, जब हम पुराने के छोड़ नए की तरफ जाते हैं , जब एक युग का अंत होता है, और जब वर्षों से शोषित एक देश की आत्मा, अपनी बात कह सकती है।
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