पंडित जवाहर लाल नेहरु ( Part-01)-Pandit Jawaharlal Nehru
पंडित जवाहर लाल नेहरु ( Part-01)
Pandit Jawaharlal Nehru
भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु ,जिन्हें हम चाचा नेहरू और आधुनिक भारत का शिल्पकार के रूप में जानते हैं जिन्होंने लगातार चार बार प्रधानमंत्री पद पर कार्य किया
पंडित जवाहरलाल नेहरू का जीवन परिचय जन्म-14 नवंबर 1889 जन्म स्थान- इलाहाबाद उत्तर प्रदेश( ब्रिटिश भारत) पूरा नाम-पंडित जवाहरलाल नेहरू पिता का नाम- मोतीलाल नेहरू माता का नाम- स्वरूप रानी नेहरू पत्नी का नाम-कमला नेहरू जवाहरलाल नेहरु की पुत्री-इंदिरा गांधी पंडित जवाहरलाल नेहरू की बहनें-विजयलक्ष्मी पंडित, कृष्णा हठीसिंग संयुक्त राष्ट्र महासभा की पहली महिला अध्यक्ष बनी- विजयलक्ष्मी पंडित कृष्णा हठीसिंग- एक उल्लेखनीय लेखिका (पंडित जवाहरलाल नेहरू की बहन)
पंडित जवाहरलाल नेहरु के जन्म दिन को मनाया जाता है-बाल दिवस के रूप में पंडित जवाहरलाल नेहरु को सबसे अधिक पसंद थे-छोटे बच्चे पंडित जवाहरलाल नेहरू का उपनाम- चाचा नेहरू , आधुनिक भारत का शिल्पकार उपलब्धि- स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री प्रधानमंत्री के रूप में कार्यकाल- 15 अगस्त 1947 से 27 मई 1964 तक पंडित जवाहरलाल नेहरु जी का संबंध-कश्मीरी वंश के सारस्वत ब्राह्मण से शिक्षा -बैरिस्टर की प्रारंभिक शिक्षा-हैरों से लॉ की शिक्षा- ट्रिनिटी कॉलेज लंदन कानून शास्त्र में पारंगत- कैंब्रिज विश्वविद्यालय से इंग्लैंड में कार्य किया- फेबियन समाजवाद और आर्थिक राष्ट्रवाद की जानकारी का विकास इंग्लैंड में पंडित जी रहे-7 वर्ष पसंदीदा फूल- गुलाब
पुस्तक के लिए प्रसिद्ध- डिस्कवरी ऑफ इंडिया भारत वापसी-1912 में 1912 में अधिवेशन में भाग लिया-बांकीपुर बिहार में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में प्रतिनिधि के रूप में भारत में बैरिस्टर के रूप में कार्य किया- इलाहाबाद हाईकोर्ट में पंडित जवाहरलाल नेहरू का विवाह -1916(कमला कोल) में होमरूल लीग से जुड़े- 1917 में महात्मा गांधी से प्रथम संपर्क हुआ-1919 में (राजनीतिज्ञ ज्ञान) असली दिक्षा राजनीति की प्राप्त हुई- गांधी जी के नेतृत्व में भारत की राजनीति में कदम रखा-1916 में गांधी जी के नेतृत्व में पहले किसान मार्च का आयोजन किया गया -1920 में उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले में इलाहाबाद नगर निगम के अध्यक्ष बने-1924 में (2 वर्ष कार्य किया) इलाहाबाद नगर निगम से इस्तीफा दिया- 1926 में (ब्रिटिश अधिकारियों से असहयोग की भावना के कारण) 1926 से 1928 तक महासचिव बने-अखिल भारतीय कांग्रेस के प्रथम बार कांग्रेस के वार्षिक अधिवेशन के अध्यक्ष बने-1928-29 में प्रथम बार पूर्ण स्वराज्य की मांग- लाहौर अधिवेशन (1929 नेहरु जी की अध्यक्षता में ) पंडित जवाहरलाल नेहरू ने स्वतंत्र भारत का ध्वज लहराया -प्रथम बार 31दिसम्बर 1929 को लाहौर में
1936 में प्रकाशित पुस्तक -पंडित जवाहरलाल नेहरू की आत्मकथा पंडित जवाहरलाल नेहरू तीन साल के लिए जेल गए -भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान 1942 में 1942 में गिरफ्तार किए गए पंडित जवाहरलाल नेहरु को जेल से रिहा किया गया- 1945 में 3 वर्ष बाद 1942-45 तक जेल में रहे-अहमदनगर की जेल में अहमदनगर की जेल में पुस्तक की रचना की-भारत एक खोज पंडित जवाहरलाल नेहरू कुल जेल यात्रा गए- 9 बार जेल यात्रा की पंडित जवाहरलाल नेहरु को भारत का प्रथम प्रधानमंत्री बनाया गया-गांधीजी के आग्रह पर( जब की सर्वाधिक मत सरदार वल्लभ भाई पटेल को और उसके बाद आचार्य कृपलानी को मिले थे)
भारतीय विज्ञान कांग्रेस की स्थापना- 1947 में पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा पंडित जवाहरलाल नेहरू कितनी बार प्रधानमंत्री बने हैं- चार बार (1947, 1951, 1957 और 1962 ) 1950 में अधिनियमित हुआ- भारत का संविधान पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा प्रथम एशियाई खेलों का आयोजन- 1951 में दिल्ली में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए -दो बार (1936 और 37 में) शांति और संगठन के लिए आंदोलन की रचना की- गुटनिरपेक्ष आंदोलन की गुटनिरपेक्ष आंदोलन की रचना की गई -जोसिप बरोज टिटो और अब्दुल गमाल नासिर के सहयोग से गुटनिरपेक्ष आंदोलन का उद्देश्य- एशिया और अफ्रीका में उपनिवेशवाद का खात्मा अंतरराष्ट्रीय समस्याओं का समाधान- कोरियाई युद्ध, स्वेज नहर विवाद, कांगों समझौता, गुटनिरपेक्ष आंदोलन
लगातार किन योजनाओं का शुभारंभ किया -*3 पंचवर्षीय योजनाओं का आयोग का गठन किया गया -योजना आयोग का नेहरु जी की नीति के कारण देश में एक नया युग शुरू हुआ -कृषि और उद्योग का भारत रत्न पुरस्कार से सम्मानित किया गया-1955 में चीन ने भारत पर हमला किया-1962 में
पंडित जवाहरलाल नेहरु की राजनीति का सबसे बड़ा असफल कार्य- पाकिस्तान और चीन के साथ भारत के संबंधों को नहीं सुधार पाना पंडित नेहरू बुलाने का कारण -कश्मीरी पंडित समुदाय से संबंध होने के कारण पंडित जवाहरलाल नेहरु की मृत्यु -27 मई 1964 को (दिल का दौरा पड़ने से ) पंडित जवाहरलाल नेहरु की मृत्यु का कारण- चीन के द्वारा धोखे से भारत पर आक्रमण करना मृत्यु तक भारत के प्रधानमंत्री रहे-पंडित जवाहरलाल नेहरू आधुनिक भारत का रचयता -पंडित जवाहरलाल नेहरू पंडित जवाहरलाल नेहरू की रचनाएं -विश्व इतिहास की झलक, भारत की खोज , संबंधित लेख- जलियांवाला बाग ,महात्मा गांधी, सरदार पटेल इंदिरा गांधी पंडित जवाहरलाल नेहरू की अन्य रचनाएं -भारत और विश्व सोवियत रूस ,विश्व इतिहास की एक झलक, भारत की एकता और स्वतंत्रता आयोग के स्वतंत्रता पश्चात प्रधान बने-राष्ट्रीय योजना आयोग के
पंडित जवाहरलाल नेहरू के जीवन का परिचयऔर प्रारंभिक शिक्षा एक प्रसिद्ध कश्मीरी परिवार जिसका अपने समय कश्मीर में बड़ा नाम था बड़ी इज्जत शोहरत और सम्मानित यह कश्मीरी परिवार 18वीं शताब्दी के आरंभ में भारत में सदैव सत्ता के केंद्र में रहने वाली दिल्ली में आकर बस गया था प्रसिद्ध व्यक्तियों के साथ-साथ उनकी प्रसिद्धि भी चलती है चाहे वह कहीं भी रहे चिराग जहां भी रहेगा रोशनी करेगा क्योंकि चिरागों का कोई मकाँ नहीं होता नेहरू परिवार एक चिराग नहीं बल्कि आसमां में चमकता हुआ सूरज है जिसने भारत को जन्म के अंधेरे से निकाला है जिसने भारत माता की पैरों की बेड़ियों को काटने में अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया है जवाहरलाल नेहरू के दादा जी पंडित गंगाधर जी दिल्ली में पुलिस अधिकारी थे अंग्रेजो के विरुद्ध प्रथम महा संग्राम 1857 के समय गंगाधर जी पुलिस में थे अंग्रेजों ने जब इस क्रांति को दबाने के लिए अपनी सैनिक टुकड़ी को दिल्ली भेजा तब गंगाधर जी ने पुलिस का साथ देने की वजह से वहां से प्रस्थान कर दिया यद्यपि उन्हें अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा दिल्ली से निकलकर गंगाधर आगरा पहुंचे यहां 1861 में जवाहर जी के दादा पंडित गंगाधर का निधन हो गया पंडित गंगाधर के निधन के 3 महीने बाद मोतीलाल नेहरु का जन्म हुआ( 6 मई 1861को )पंडित मोतीलाल नेहरू ने अपनी योग्यता क्षमता और बुद्धि के बल पर समाज में प्रमुख स्थान बना लिया था पंडित मोतीलाल नेहरू ने वकालत की डिग्री हासिल की थी पंडित मोतीलाल नेहरू अत्यन मेघावी और नामी ग्रामी वकील हुए जिन्होंने अपनी वकालत में ही पैसा और काम कमाया पहले कानपुर की छोटी अदालतों में अपने को आजमाया और फिर बाद में इलाहाबाद के हाईकोर्ट में चले गए पंडित मोतीलाल नेहरू ने सीप में मोती की तरह रहकर कार्य किया था एक वकील के रूप में उनके साथि या विरोधी वकील उनसे बहुत चिढ़ते थे मोतीलाल नेहरु के तर्कों का कोई जवाब किसी को नहीं सुजता था ?यश और प्रसिद्धि के साथ साथ देशभक्ति का जज्बा अपने अंदर समेट पंडित जी एक आकर्षक व्यक्तित्व के धनी थे उनका चेहरा और मुस्कान अपने विरोधियों का भी दिल जीत लेता था पंडित मोतीलाल नेहरू जिसने विश्व साहित्य में रवि बनकर अपने प्रकाश से सारे संसार को आलोकित कर दिया प्रकृति कुछ लोगों को अपना खास वरदान देती है कुछ खास परिवारों पर लक्ष्मी और सरस्वती दोनों ही मेहरबान देती है उनमें से एक हे नेहरू परिवार पंडित जवाहरलाल नेहरु जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान सेनानी और स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री थे जिनका का जन्म 14 नवंबर 1889 को इलाहाबाद उत्तर प्रदेश (ब्रिटिश प्रांत भारत) में हुआ था पंडित जवाहरलाल नेहरू का जन्म प्रसिद्ध बैरिस्टर और समाजसेवी और एक संपन्न परिवार में हुआ था पंडित जवाहरलाल नेहरू कश्मीरी सारस्वत ब्राह्मण परिवार के थे जो अपनी प्रशासनिक क्षमता और विद्ववता के लिए विख्यात थे 18 वीं शताब्दी के आरंभ में इलाहाबाद आ गए थे पंडित जवाहरलाल नेहरु पंडित मोतीलाल नेहरु और श्रीमती स्वरूप रानी के एकमात्र पुत्र थे पंडित जवाहरलाल नेहरु की माताजी स्वरूपरानी जो लाहौर में बसे एक सुपरिचित कश्मीरी ब्राह्मण परिवार से थे और यह मोती लाल जी नेहरु की दूसरी पत्नी थी
इनके दो बहने थी विजयलक्ष्मी पंडित जो बाद में संयुक्त राष्ट्र महासभा की पहली महिला अध्यक्ष बनी इनकी दूसरी बहन कृष्णा हठीसिंग एक प्रसिद्ध उल्लेखनीय लेखिका थी उन्होंने अपने भाई पर कई पुस्तकें लिखी पंडित जवाहरलाल नेहरु भारत के प्रथम प्रधानमंत्री थे और स्वतंत्रता के पूर्व और पश्चात की भारतीय राजनीति में केंद्रीय व्यक्ति थे महात्मा गांधी के संरक्षण में वे भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के सर्वोच्च नेता के रूप में उभरे उन्होंने 1947 में भारत के एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में स्थापना से लेकर 1964 तक अपने निधन तक भारत का शासन किया आधुनिक भारतीय राष्ट्र ,राज्य एक संप्रभु, समाजवादी ,धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक गणतंत्र के वास्तुकार माने जाते हैं पंडित जवाहरलाल नेहरु के एक बेटी थी इंदिरा गांधी जो अपने पिता को अपना गुरु मानती थी और आगे चलकर यह देश की प्रथम महिला प्रधानमंत्री बनी पंडित जवाहरलाल नेहरु को गुलाब का फूल बहुत ही ज्यादा पसंद था जिसे वह अपनी शेरवानी में लगाकर रखते थे
14 नवंबर को बाल दिवस मनाने का कारण पूरे देश में पंडित जवाहरलाल नेहरू के जन्मदिन को बाल दिवस के रुप में मनाया जाता है इसका प्रमुख कारण पंडित जवाहरलाल नेहरू का बच्चों के प्रति अत्यधिक लगाव था पंडित जवाहरलाल नेहरु को बच्चों से बहुत लगाव था वे बच्चों से बहुत ज्यादा प्यार करते थे और बच्चे भी उन्हें चाचा नेहरू कहकर संबोधित करते थे बच्चों के इसी प्रेम के कारण इनका जन्म दिवस बाल दिवस के रूप में 14 नवंबर को मनाया जाता है
पंडित जवाहरलाल नेहरू की शिक्षा पंडित जवाहरलाल नेहरू की प्रारंभिक शिक्षा घर पर ही हुई थी मोतीलाल नेहरू ने पंडित जवाहरलाल नेहरु को इलाहाबाद के सेंट मेरी स्कूल में भर्ती कराया था लेकिन कुछ महीने बाद उन्हें स्कूल से निकाल दिया गया क्योंकि मोतीलाल नेहरू जवाहरलाल को अच्छी शिक्षा देना चाहते थे
इसीलिए उन्होंने जवाहरलाल के लिए घर पर ही शिक्षक की व्यवस्था की उनकी माता जी स्वरूप रानी उन्हें रामायण, महाभारत और पुराणों की कथाएं सुनाती थी एक वृद्ध पंडित जी ने उन्हें हिंदी और संस्कृत पढ़ाई थी मुंशी मुबारक अली ने फारसी पढ़ाने के साथ-साथ 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के वीरों की कहानी भी सुनाई थी अंग्रेज अध्यापक मिस्टर फर्डिनैंस ब्रुक्स ने अंग्रेजी की शिक्षा दी मिस्टर फर्डिनैंस ब्रुक्स आधे आयरिश और आधे बेल्जियन अध्यात्मज्ञानी थे लेकिन वह शिक्षक कम थ्योसफी के प्रचारक अधिक थ। जिसके कारण बालक पंडित जवाहरलाल नेहरू पर थ्योसफी के द्वारा आध्यात्मिक प्रभाव भी पढा अध्यापक ब्रुक्स ने पंडित जवाहरलाल के अंदर विज्ञान के प्रति रुचि जागृत की इसके लिए उन्होंने नेहरू निवास आनंद भवन में एक विज्ञान प्रयोगशाला भी बनाए पंडित जवाहरलाल नेहरू ने आरंभ में ही दुनिया के बहुत से साहित्य का अध्ययन किया जिसमें उपन्यास ,कहानियां, विज्ञान से संबंधित साहित्य और अन्य प्रकार की रोचक और प्रेरणादायक पुस्तकों का अध्ययन पंडित जवाहरलाल नेहरू ने ब्रुक्स की प्रेरणा से कर लिया था उन्हीं दिनों श्रीमती एनी बेसेंट को भी खूब सुना था घुड़सवारी करना और टेनिस आदि का शौक उन्हें शुरू से ही रहा जो अंत तक रहा ?पंडित जवाहरलाल नेहरू ने बचपन में ही अपने शिक्षकों को बहुत प्रभावित किया था। पंडित जवाहरलाल नेहरू घर पर शिक्षा अध्यापकों से मिलने के कारण उस समय भारतीय स्कूलों में प्रचलित पढ़ाई से बच गए थे उस समय भारत में स्कूलों में जो शिक्षा दी जाती थी उसका उद्देश्य भारत के लिए अच्छे लोगों को तैयार करना नहीं था बल्कि पढ़ाई का मूल उद्देश्य अपनी जीविका चलाने के लिए किसी सरकारी नौकरी को प्राप्त करना था लार्ड मेकाले की बाबू बनाओ शिक्षा पद्धति से पंडित जवाहरलाल नेहरू बचे रहें अंग्रेजों को तो ऐसे पढ़े-लिखे लोग तैयार करना थे जो अंग्रेजी में सरकारी कार्यों को निपटा सके
पंडित जवाहरलाल नेहरु को पढ़ने लिखने का शौक प्रारंभ से ही था आगे चलकर पंडित जवाहरलाल नेहरू ने स्वयं कहीं पुस्तके लिखिए जिसमें से भारत एक खोज आज भी बहुत पढ़ी जाती है भारत एक खोज"" नाम की जवाहर की किताब पर एक सीरियल भी बन चुका है जो बहुत देखा जा गया है पंडित जवाहरलाल नेहरू का साहित्य उच्च श्रेणी के विचारों से भरा है डिस्कवरी ऑफ इंडिया के इस लेखक ने अपने विचारों से सभी को प्रभावित किया सन1905 में मोतीलाल नेहरू जवाहर को अच्छी से अच्छी शिक्षा दिलाने के उद्देश्य से इंग्लैंड ले गए उस समय पंडित जवाहरलाल नेहरू की उम्र 15 वर्ष थी 1905 में मोतीलाल नेहरू ने पंडित जवाहरलाल नेहरु को इंग्लैंड के हैरो स्कूल में भर्ती करवाया लेकिन पंडित जवाहरलाल नेहरू अपने आप को यहां अकेला महसूस कर रहे थे वह अंग्रेजों के साथ घुलमिल नहीं पाये सही है महान भारतीय संस्कृति की धरा पर जन्म लिए कोई भी व्यक्ति पाश्चात्य विचारों वाले व्यक्ति के साथ अपने आपको सहज महसूस नहीं कर सकते जो व्यक्ति दूसरी संस्कृति को अपना लेता है वह किसी भी राष्ट्र का व्यक्ति क्यों ना हो अपनी संस्कृति के लोगों द्वारा बड़ी हैय दृष्टि से देखा जाता है
हैरों में पंडित जवाहरलाल नेहरू 2 वर्ष तक रहे नेहरू की शिक्षा का काल किसी तरह से असाधारण नहीं था।हैरो से पंडित जवाहरलाल नेहरू के कैंब्रिज के ट्रिनिटी कॉलेज में प्रवेश लिया जहां जो उन्होंने 3(1910) वर्ष तक अध्ययन करके प्रकृति विज्ञान में स्नातक उपाधि प्राप्त की उनके विषय रसायन शास्त्र भूगर्भ विद्या और वनस्पति शास्त्र थे। कैंब्रिज विश्वविद्यालय से निकलने के बाद लंदन के इनर टेंपल में 2 वर्ष(1912) बिता कर उन्होंने वकालत की पढ़ाई की और उनके अपने ही शब्दों में परीक्षा उत्तीर्ण करने में उन्हें ना कीर्ति ,न अपकीर्ति मिली है पंडित जवाहरलाल नेहरू ने इंग्लैंड में 7 साल बिताएं थे जिसमें वहां के फेबियन समाजवाद और आइरिस राष्ट्रवाद के लिए एक तर्कसंगत दृष्टिकोण विकसित किया पंडित जवाहरलाल नेहरू पैलेस इंडियन सिविल सर्विस में जाना चाहते थे लेकिन बाद में उन्होंने अपना यह विचार छोड़ दिया क्योंकि उनको तो आगे चलकर भारत के राजनीति का प्रतिनिधित्व करना था कैंब्रिज में जॉर्ज बर्नार्ड शाह जैसे महान व्यक्तियों के विचार सुनने को मिली साहित्य ,राजनीतिक जीवन दर्शन आदि पर खुलकर चर्चा में भाग लेते थे कैंब्रिज में जवाहरलाल नेहरू राजनीतिक विचार को राजनीतिक घटना में रुचि लेने गए थे अपनी राजनीतिक विचारधारा में यही से धीरे-धीरे प्रखर ताल आने लगे थे भारत के राजनीतिक क्रियाकलापों में उनकी रुचि थी कैंब्रिज के ट्रिनिटी कॉलेज में पहुंचने पर उन्हें अनुभव हुआ और एक खुशी हुई कि अब वह एक अंडर ग्रेजुएट हैं
पंडित जवाहरलाल नेहरू का भारत वापसी व्यवसाय और विवाह 1907के आसपास का समय था जब भारत की राजनीति हो रही थी उनके मन को एक प्रश्न परेशान कर रहा था कि कौन सा विकल्प कैरियर के लिए चुना जाए उस समय तो इंग्लैंड सिविल सर्विस की भी बात मन में आई थी
लेकिन वह विचार केवल विचार ही था इंडियन सिविल सर्विस के लिए तब काफी समय था पंडित जवाहरलाल नेहरु को उपाधि 20 वर्ष की अल्प आयु में ही मिल गई थी आईसीएस करने के लिए उन्हें 4 वर्षों रुकना पड़ता जबकि ना तो वह स्वयं ही चाहते थे और ना ही उनके माता पिता। अत: विज्ञान का यह छात्र जो इंडियन सिविल सर्विस मैं जाने के विचार को छोड़कर वकील बन कर अथार्थ बैरिस्टरी पास करके 7 साल विदेश में रहकर पंडित जवाहरलाल नेहरू 1912 में भारत लौट आए भारत और इलाहाबाद में अपने प्रसिद्ध वकील पिता के साथ जवाहरलाल नेहरू ने वकालत का कार्य शुरू किया वकालत के पेशे में जवाहरलाल नेहरू का मन नहीं लगा भारतीय पर होने वाले जुर्म ,भारतीयों का शोषण, भारतीय की दरिद्रता ,जवाहर के मन को बेचैन करती थी उनको वकालत रास नहीं आती थी लोकतंत्र के विचारों के समर्थक को गुलामी भरे माहौल में रहकर कार्य करना संभव नहीं लगा उनका लक्ष्य उनको वकालत नजर नहीं आता था देश में फैली अंग्रेजी हुकूमत से मुक्ति पाने का विचार उनके मन को बार-बार वकालत के पेशे से दूर ले जाता था कानून के छोटे-छोटे नियम कानून के वकालात के तर्क वितर्क करना उनको देश की आजादी से वह छोटा लगा । पंडित जवाहरलाल नेहरू का विवाह कमला कोल के साथ फरवरी 1916 में हुआ कमला कौल दिल्ली के एक व्यापारी की पुत्री थी कमला नेहरू ने अपने पति का आजादी की कांटों भरी राहों पर हर कदम पर साथ दिया जवाहरलाल के कार्यों का उन्हों ने समर्थन किया कमला नेहरू महान राष्ट्रभक्त पति की एक आदर्श पत्नी साबित हुई जिसने विपरीत परिस्थितियों में भी पति का साथ कभी नहीं छोडा। कमला नेहरू अत्यंत सुशील,दार्शनिक, समर्पित महिला थी विवाह के 2 वर्ष के बाद उनके यहां इंदिरा गांधी का जन्म हुआ। इंदिरा नेहरू के जन्म से आनंद भवन में आनंद ही आनंद छा गया
लेकिन यह आनंद अधिक समय तक नहीं टिक सका क्योंकि जवाहरलाल जी के अंदर के युवक में कुछ कर गुजरने का संस्कार विदेश से ही आया था
पंडित जवाहरलाल नेहरु की महात्मा गांधी से प्रथम मुलाकात और कांग्रेस का सदस्य बनना,होमरूल आंदोलन में शामिल होना सन 1912 में पंडित जवाहरलाल नेहरू वकील बन कर भारत आए थे लेकिन उनका मन वकालत में बिल्कुल नहीं लग रहा था उनका मन देश की सेवा करने के लिए विचलित हो रहा था कचहरी के एक व्यक्ति के मुकदमे की पैरवी करने के बजाए तो कांग्रेस के मंच से संपूर्ण भारत की पैरवी करना कहीं बेहतर है उन्होंने सोचा और वह कांग्रेस के सदस्य बन गए 1912 में प्रतिनिधि के रूप में उन्होंने बांदीपुर कांग्रेस ने भी भाग लिया
महात्मा गांधी जी से प्रथम मुलाकात अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी से पंडित जवाहरलाल नेहरू की पहली भेंट 1916 में हुई थी पंडित जवाहरलाल नेहरू मुलाकात महात्मा गांधी जी से लखनऊ अधिवेशन में हुई थी जिसने पंडित जवाहरलाल नेहरू के जीवन की दिशा ही बदल दी थी एक मुलाकात में पंडित जवाहरलाल नेहरु गांधी जी से बहुत प्रभावित हुए इसके पूर्व पंडित जवाहरलाल नेहरू ने गांधीजी के बारे में सिर्फ अखबारों में पढ़ा था और लोगों से उनके कार्यों के बारे में सुना था ।महात्मा गांधी से पंडित जवाहरलाल नेहरू की मुलाकात के बाद पंडित जवाहरलाल नेहरु की समझ में आने लगा था कि क्रांतिकारी आंदोलन के स्थान पर अहिंसा का मार्ग भारत को आजादी दिलाने में अधिक सक्षम साबित होगा गांधीजी की अहिंसा की शैली बहुत लोगों के विचारों से मेल खाने लगी थी जबकि क्रांतिकारी गांधीजी की अहिंसा की विचारधारा और गांधी जी के विरोध प्रदर्शन के तरीकों को पसंद नहीं करते थे लेकिन पंडित जवाहरलाल नेहरू को यह महसूस हो गया था यही क्रांतिकारियों के सशक्त आंदोलन का एक विकल्प है जिस समय पंडित जवाहरलाल नेहरु गांधी जी से मिले थे उन दिनों कांग्रेस में दो दल नरम दल और गरम दल थे पंडित जवाहरलाल नेहरु जी का रुझान शुरू से ही गरम दल की ओर रहा था लेकिन उनके पिताजी नरमी में विश्वास करते थे इसका अंतर था रक्त का नए पुराने रक्त का रूस में हो रही प्रत्येक हलचल से जवाहरलाल नेहरू पूर्ण रुप से परिचित थे पर गांधीजी के प्रभाव से भी वह मुक्त नहीं थे पंडित जवाहरलाल नेहरू ने महात्मा गांधी जी के उपदेशों के अनुसार अपने परिवार को भी ढाल दिया था पंडित जवाहरलाल नेहरू और मोतीलाल नेहरू ने पश्चिमी कपड़ों और महंगी संपत्ति का त्याग कर दिया वैभव खादी कुर्ता और गांधीजी टोपी पहने लगे पंडित जवाहरलाल नेहरू ने 1920 से 1922 में असहयोग आंदोलन में सक्रिय लिया और इसी दौरान को पहली बार गिरफ्तार किए गए
होम रूल लीग में शामिल होना उसी समय देश में उग्रवादी विचारधारा के समर्थक अंग्रेजी हुकूमत को जड़ से उखाड़ने के लिए राजनीतिक हत्या कर रहे थे सरकार दमन कार्यवाही जारी रखी थी पंडित जवाहरलाल नेहरु जी धीरे-धीरे राजनीति क्रियाकलापों में शामिल होने लगे थे धीरे धीरे इलाहाबाद में पंडित जवाहरलाल नेहरू का निवास आनंद भवन राजनीतिक गतिविधियों का केंद्र बनने लग। लोग बाग नेहरू परिवार की तरफ आशा भरी नजरों से देखने लगे सन 1917 में होमरूल आंदोलन के नेता एनी बेसेंट की गिरफ्तारी होने पर मोतीलाल नेहरू ने इनको जेल से रिहा कराने के लिए चल रहे आंदोलन में जोर शोर से भाग लिया
अंग्रेज सरकार द्वारा स्वायत्त संस्था के विकास पर बल दिए जाने की मोंटेगो की घोषणा के बाद श्रीमती एनी बेसेंट को रिहा किया गया यद्यपि सरकार की घोषणाओं का भारत के लोगों ने पूरा भरोसा नहीं किया वह जानते थे कि अंग्रेजों की घोषणाओं का क्या अर्थ होता है पंडित जवाहरलाल नेहरू 1917 में होम रूल लीग से जुड़े
पंडित जवाहरलाल नेहरू का स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान पंडित जवाहरलाल नेहरू जो पेशे से वकील थे और इंडियन सिविल सर्विस में वह जाना चाहते थे लेकिन उस समय की देश की राजनीतिक स्थिति में उनके मन को विचलित कर रखा था और वह देश की स्थिति को देखते हुए देश के स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हो गए और अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई उस समय वह स्वतंत्रता संग्राम के आंदोलन में एक महत्वपूर्ण भूमिका रखते थे पंडित जवाहरलाल नेहरू के स्वतंत्रता संग्राम की शुरुआत गांधी जी के द्वारा दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद के विरोध में चलाए गए आंदोलन के लिए धन एकत्रित करने से हुई 1912 में बांदीपुर में कांग्रेस के प्रतिनिधि के रूप में उन्होंने भाग लिया इसके पश्चात गांधी जी के संपर्क में इनके जीवन को पूर्णतः बदल दिया था पंडित जवाहरलाल नेहरु महात्मा गांधी के कंधे से कंधा मिलाकर अंग्रेजो के खिलाफ लड़ते रहे चाहैं असहयोग आंदोलन की बात हो या फिर नमक सत्याग्रह या फिर 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन की बात उन्होंने गांधी जी के आंदोलन में बढ़-चढ़कर भाग लिया गांधीजी जवाहरलाल नेहरु की विश्व के बारे में जानकारी से काफी प्रभावित थे और वह आजादी के बाद प्रधानमंत्री पद पर पंडित जवाहरलाल नेहरु को देखना चाहते थे पंडित जवाहरलाल नेहरू ने 1920 में पहले किसान मार्च का आयोजन उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले में किया गया 1920 से 1922 के असहयोग आंदोलन के सिलसिले में उन्हें दो बार जेल भी जाना पड़ा असहयोग आंदोलन के दौरान गुजरात में गुजरात विद्यापीठ, वाराणसी में काशी विद्यापीठ और अलीगढ़ में जामिया मिलिया इस्लामिया आदी स्वदेशी कॉलेजों और स्कूलों की स्थापना की गई थी जवाहरलाल नेहरू ने तन मन धन से असहयोग आंदोलन में गांधीजी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम किया था सिर्फ एक माह के अंदर ही 25000 से अधिक लोग अंग्रेजी जुल्म की सिखचो के पीछे पहुंचा दिए गए थे फरवरी 1922 में उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले में चोरा चोरी नामक स्थान पर हुए कार्ड के बाद महात्मा गांधी जी ने असहयोग आंदोलन को स्थगित कर दिया जिससे महात्मा गांधी की कई जगह आलोचनाएं और विरोध हुए फिर भी पंडित जवाहरलाल नेहरू ने किसी भी प्रकार की दलीय गुटबंदी को पसंद नहीं किया और गांधीजी की मूल विचारधारा को नहीं छोड़ा पंडित जवाहरलाल नेहरू सांप्रदायिक वाद की धर्म की राजनीति को भारत की परंपरा के विरुद्ध मानते थे वह सांप्रदायिक की राजनीति से हमेशा दूर है सच्चाई की राह पर चलकर ही उन्होंने अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ी थी 1923 में हुआ अखिल भारतीय कांग्रेस के महासचिव चुने गए
1926 में पंडित जवाहरलाल नेहरू ने इटली स्वित्ज़रलैंड इंग्लैंड बेल्जियम और जर्मनी रूस का दौरा किया बेल्जियम में उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एक-एक अधिकारी प्रतिनिधि के रूप में ब्रुसलेस मे दीन देशों के सम्मेलन में भाग लिया पंडित जवाहरलाल नेहरू ने 1927 में मास्को में अक्तूबर समाजवादी क्रांति की 10 वीं वर्षगांठ समारोह में भाग लिया था जवाहरलाल नेहरु की रूस यात्रा ने उनको समाजवादी विचारधारा के तरफ मोड़ने में बहुत योगदान दिया कार्ल मार्क्स वर्ग विहीन समाज की झांकी प्रत्यक्ष रुप से देखने को मिली
इससे पहले 1926 में मद्रास कांग्रेस में कांग्रेस को आजादी के लक्ष्य के लिए प्रतिबंध करने में नेहरू की एक महत्वपूर्ण भूमिका थी 1928 में लखनऊ में साइमन कमीशन के खिलाफ एक जुलूस का नेतृत्व करते हुए उन पर लाठी चार्ज किया गया था 29 अगस्त 1928 को उन्होंने सर्वदलीय सम्मेलन में भाग लिया और वह उन लोगों में से एक थे जिन्होंने भारतीय संवैधानिक सुधार की नेहरू रिपोर्ट पर अपने हस्ताक्षर किए थे इस रिपोर्ट का नाम उनके पिता श्री मोतीलाल नेहरु के नाम पर रखा गया था उसी वर्ष उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता लीग की स्थापना की थी और इसके महासचिव बने इस लीग का मुख्य उद्देश्य भारत को ब्रिटिश साम्राज्य से पूर्णतया अलग करना था पंडित जवाहरलाल नेहरू ने समाजवादी विचारधारा को अपनाने का फैसला कर लिया था 1929 के लाहौर अधिवेशन में पंडित जवाहरलाल को अध्यक्ष बनाया गया जिसमें उन्होंने अंग्रेजों से पूर्ण स्वतंत्रता की मांग की थी 31 दिसंबर 1929 को रावी नदी के किनारे से अधिवेशन में राष्ट्रीय ध्वज फहराया गया यह अधिवेशन पंडित जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता वाला पहला अधिवेशन था कांग्रेस ने पूर्ण स्वतंत्रता घोषित कर दिया था पंडित जवाहरलाल नेहरु ने गांधी जी द्वारा 12 मार्च 1930 को आरंभ की गई अपनी दांडी यात्रा का पूर्ण समर्थन किया साबरमती से चलकर 6 अप्रैल को जब दांडी में गांधी जी ने नमक कानून तोड़ा तो सारे देश में फिर से एक आंदोलन शुरू हुआ पंडित जवाहरलाल नेहरु ने अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं किया आजादी के पथ पर चलते रहे नमक कानून तोड़ने से आंदोलन में भारत वासियों में फिर एक नई आशा दीप प्रज्वलित कर दिया था जगह जगह धरने-प्रदर्शन होने लगे थे पंडित जवाहरलाल नेहरु को भी गिरफ्तार कर लिया गया था पंडित जवाहरलाल नेहरू के साथ उनकी पत्नी कमला नेहरू, पिता मोतीलाल नेहरू और बहन विजयलक्ष्मी भी एक-एक करके जेल में डाल दिए गए इस आंदोलन को दबाने का प्रयास किया था अंत में महात्मा गांधी और लार्ड इरविन के समझौते के बाद यह समाप्त हुआ गांधी इरविन समझौता 1931 में होने के बाद कांग्रेस ने द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में भाग लिया 1930 के गोलमेज सम्मेलन में कांग्रेस ने भाग नहीं लिया था
0 Comments