इस जिले का नामांकरण पाली नगर के आधार पर किया गया। इसका प्राचीन नाम पालिका है, राजस्थान में कुल 33 जिलें है पाली उनमे से एक है | यह जिला 24 डिग्री 45' व 26 डिग्री 29' उत्तरी अक्षांश और 72 डिग्री 47' व 74 डिग्री 18' पूर्वी देशांतर के मध्य स्थित है । पाली एकमात्र जिला है जिसकी सीमा 8 ज़िलों (सिरोही, जालोर,जोधपुर,नागौर, अजमेर,बाड़मेर, उदयपुर,राजसमन्द) को छूती है| इसका क्षेत्रफल 12386 वर्ग किलोमीटर है । क्षैत्रफल की दृष्टि से पाली जिले का राजस्थान में 9वाँ स्थान हैं।
"जब भी मैं राजस्थान आता हूं। मेरा मन पुराने जमाने की ओर चला जाता है । राजस्थान का इतिहास वीरता की गाथा का प्रतिबिम्ब रहा है।" पंडित जवाहरलाल नेहरु
पाली जिले का सामान्य परिचय
- राज्य- राजस्थान (भारत)
- प्रशासनिक प्रभाग- जोधपुर संभाग
- मुख्यालय- पाली
- क्षेत्रफल- 12,386 वर्ग कि.मी.
- भौगोलिक स्थिति- 24॰- 45॰26' उत्तरी अंक्षाश 72॰47'- 74॰18' पूर्वी देशान्तर
- साक्षरता दर(%)- 62.4 %
- साक्षरता दर(%)- 76.8%
- साक्षरता दर(%)- 48.0%
- पाली में राष्ट्रीय राजमार्गों की संख्या- (3) NH- 65, NH- 112, NH- 14
- मुख्य रेलवे स्टेशन- पाली व मारवाड़ जंक्शन
- STD Code- 02932
- Pincode- 306401
- वाहन पंजीकरण संख्या- RJ- 22
- आधिकारिक भाषाएं- हिन्दी एवं मारवाड़ी।
- लोकसभा क्षेत्र - पाली
- विधानसभा क्षेत्र (6) - सोजत, जैतारण, पाली, सुमेरपुर, बाली, मारवाड़ जंक्शन
- जिला परिषद (1)- पाली
जिले में प्रशासनिक दृष्टि से 10 तहसिले और 10 ही पंचायत समितियां हैं। 4 उपखण्ड कार्यालय हैं। तहसील व पंचायत समिति 1.बाली 2 देसूरी 3 जैतारण 4 रायपुर 5 पाली 6 रोहट 7 मारवाड़ जंक्शन 8 सोजत 9 सुमेरपुर 10 रानी।
2011 की जनगणना के अनुसार पाली की जनसंख्या
- पुरुष जनसंख्या 1025422
- महिला जनसंख्या 1012151
- योग 2037573
- जनसंख्या घनत्व 164
- लिंगानुपात 987 (राजस्थान में तीसरा स्थान)
- 0- 6 आयु की जनसंख्या 297434 कुल जनसंख्या का 14.60 %
- दशकीय जनसंख्या वृद्धि 11.9%
तापमान
- अधिकतम तापमान 44.2 सेल्सियस
- न्यूनतम तापमान - 1.2 सेल्सियस
- वार्षिक वर्षा 41.64 सेमी
"जब जब भी मैंं राजस्थान की वीर प्रसूता धरती पर कदम रखता हूं । मेरा हृदय कांप उठता है कि कहीं मेरे पैर के नीचे किसी वीर की समाधि ना हो, किसी वीरांगना का थान न हो ।" रामधारी सिंह दिनकर
पाली जिले में भूमि & कृषि
कुल भौगोलिक क्षेत्र 1233 वर्ग हैक्टेयर
कृषि क्षेत्रफल
- अनाज 294 हैक्टेयर
- दाले 44 हैक्टेयर
- तिलहन 171 हैक्टेयर
- कपास 20 हैक्टेयर
- गन्ना - नगण्य
सिंचाई साधनों के अनुसार विशुद्ध सिंचाई क्षेत्र 156296 हैक्टेयर
पाली की जलवायु
इस जिले की जलवायु में तेज गर्मी, अल्पवर्षा, ठंडा शीतकाल और केवल मानसून के स्वर्ण काल को छोड़कर हवा के शुष्कता वाले लक्षण पाए जाते हैं । आधे नवंबर से लेकर फरवरी के अंत तक सर्दी का मौसम रहता है। इसके बाद कृष्ण काल का आगमन हुआ है , जो जून माह के अंत तक चलता है । फिर दक्षिण पश्चिम मानसून का मौसम होता है। जो लगभग आधे सितंबर तक रहता है। इसके बाद वाले 1 महीने को मानसून के बाद का अथवा जाती हुई मानसून का काल कहा जा सकता है । क्योंकि वक्त से दिन और रात दोनों के तापमान में तेजी से बदलाव होता है। उस समय न्यूनतम तापमान पानी के जमाव बिंदु से 2 या 3 डिग्री नीचे तक चला जाता है।
हवाऐं - सामान्यतः हवाएं हल्की से मध्यम तक होती हैं । किंतु गर्मी में और प्रारंभिक दक्षिण पश्चिम मानसून के मौसम में तेज हवाएं भी चलती है । वह मानसून के मौसम में पश्चिम से दक्षिण पश्चिमी हवाएं प्रभावित होती हैं । वर्षा काल के बाद में वह शीतकाल के महीनों में हवा का रुख प्रमुख रुप से पश्चिम और उत्तर के बीच रहता है । गर्मी के मौसम में हमें दक्षिण पश्चिम व उत्तर पश्चिम दिशाओं के बीच प्रभावित होती है।
आद्रता - केवल दक्षिण पश्चिम मानसून के अल्प काल के दौरान सापेक्ष आद्रता समय तक रहती हैं । वर्ष के बाकी दिनों में हवा शुष्क होती हैं । गर्मी के मौसम में जो कि वर्ष का सबसे गर्म होता है । दोपहर के समय आद्रता सामान्यतः 30% से नीचे रहती है।
प्रमुख पर्वत श्रेणियाँ
इस जिले में अरावली की पहाड़ियां स्थित है। किसी भी पहाड़ी की उचाई महत्वपूर्ण नहीं है। पाली तहसील में स्थित पहाड़ियों के नाम इस प्रकार हैं मनियारी, बालासोर, सोरावास, केरला, बुमाद्रा, चोटिला भोरी, भाकरी वाला, हेमावास।
सोजत तहसील की प्रमुख पहाड़िया इस प्रकार हैं माताजी की भाखरी, नरसिंह जी की भाकरी, धोलागर का भाकर, नीम की भाकरी ,धारेश्वर की भाखरी, खोड़िया व रायरा तथा गजनाई के भाकर, देसूरी नाल, करमाल भाकरी, भील बेरी, जेतारण सब डिवीजन के अंतर्गत बर, मेघड़दा, सेन्दड़ा, निमाज गिरी, सुमेल और रास में भी छोटी छोटी पहाड़ियां बिखरी हुई है ।
पाली जिले की प्रमुख नदियां
लीलरी नदी - यह नदी अरावली पर्वत श्रेणियों से निकलती हैं और पाली जिले के जैतारण तहसील के सुमेल और रास नामक गांव से प्रवाहित होती हुई दक्षिण पश्चिम की ओर मुड़ जाती हैं । सुकड़ी से मिलती हुई है निमाज से होकर प्रवाहित होती हैं और निम्बोल नामक गांव के निकट लूणी से मिल जाती है । इसी नाम की एक दूसरी नदी अरावली पर्वत से निकलती हैं और गोरिया एवं बोयल नामक गांव से प्रवाहित होती हुए लगभग 45 किलोमीटर की दूरी तय करती है।
सुकड़ी नदी - यह नदी जयसुरी के दक्षिण में स्थित अरावली पर्वत से निकलती हैं और रानी गुडा एंदला और कानोर नामक गांव में प्रभावित होती हैं। पाली जिले में यह लगभग 130 किलोमीटर बहती हैं । इसी नाम की एक दूसरी नदी भी पाली जिले में ही बहती है यह नदी अरावली पर्वत से निकलती हैं और हरियामाली,बगड़ी नगर, सियाट, सोजत और गागुड़ा से होकर प्रवाहित होती हैं और सरदारसमन्द बांध में जाकर गिरती हैं।
बांडी नदी - यह नदी अरावली पर्वत से निकलती हैं और फुलाद, मिथोरा, कालान, भटकते फेकारिया और पाली से होकर निकलती हैं । पाली में इसकी जल का उपयोग वस्त्रों की रंगाई हेतु किया जाता है । यह नदी पाली जिले में लगभग 118 किलोमीटर तक बहती है ।
जवाई नदी यह नदी सिरोही जिले से पाली जिले में प्रवेश करती हैं और लगभग 66 किलोमीटर तक प्रवाहित होती हैं। एरनपुरा में इस नदी पर जवाई बांध का निर्माण किया गया है।
झीले एवं तालाब
इस जिले में झीलों का अभाव है, यद्यपि यहां सिचाईं के उद्देश्य से अनेक तालाबों और बांधों का निर्माण किया गया है। जवाई बांध, रायपुर बांध, गजनाई बांध, लूणी बांध, हेमावास बांध, खारडा बांध, बिराटिया खुर्द बांध, कंटालिया बांध आदि जिले के प्रमुख बांध है ।
"राजस्थान वासियों ने चारों और अंधकार को प्रकाश में प्रदीप्त किया। राजस्थान का एक एक पत्थर वीरता के इतिहास से भरा हुआ है । बलिदानों के सुनहरे कारनामों से भरा हुआ है। राजस्थान की पुरानी कीर्ति आज भी हमारे दिल को अभिमान, हर्ष, और उत्साह से भर देती है । आज उसी राजस्थान में नई दुनिया के योग्य नया इतिहास बनाने का अवसर प्राप्त हैं ।" सरदार वल्लभ भाई पटेल
पाली राजस्थान के पर्यटक स्थल
1. रणकपुर जैन मंदिर
पाली के सादड़ी कस्बे में मधाई नदी के किनारे स्थित है, यह स्थान महाराणा कुंभा के शासन काल में निर्मित जैन मंदिरों के लिए विख्यात है । रणकपुर जैन मंदिर उदयपुर के महाराणा कुंभा के शासनकाल में उनके मंत्री धरण शाह ने शिल्पी देपा से इस विशाल एवं भव्य चतुर्मुखी मंदिर का निर्माण करवाया था । इसमें 1444 विशाल खंबे हैं । जिनकी बनावट एक दूसरे से भिन्न है। इसका निर्माण 15वीं शताब्दी में हुआ।रणकपुर मंदिर उदयपुर से 96 किलोमीटर की दूरी पर है। भारत के जैन मंदिरों में संभवतः इसकी इमारत सबसे भव्य तथा विशाल है।
2. परशुराम गुफा
यह स्थान सादड़ी से लगभग 14 किलोमीटर की दूरी पर स्थित अरावली पर स्थित हैं। जनश्रुति के अनुसार ऋषि परशुराम ने यहा पर तपस्या की थी । गुफा में प्राकृतिक शिवलिंग है तथा मनमोहक स्थान देखते ही बनता है। यहां शिवरात्रि एवं श्रावण माह में मेला लगता है
3. सालेश्वर महादेव
यह स्थान पाली के गुड़ा प्रताप सिंह गांव के निकट स्थित सालेश्वर महादेव नामक प्राचीन तीर्थ स्थल के लिए प्रसिद्ध है । परशुराम के पिता महर्षि जमदग्नि ने इस स्थल पर तपस्या की थी। भीमगोडा वनवासी पांडव की याद दिलाता है ।
4. जूना खेड़ा
यह गांव नाडोल कस्बे के निकट स्थित हैं। जूना खेड़ा चौहान वंश के क्षत्रियों की प्राचीन राजधानी रहा था। इसका इतिहास 8 व 9 वीं शताब्दी का रहा। यहा पर 8 वीं एवं नवीं शताब्दी के अनेक स्थल दर्शनीय हैं। कालांतर में इसका नाम नाडोल हो गया । यही पर सम्राट पृथ्वीराज चौहान के पिता सोमेश्वर सोलंकियों से युद्ध करते हुए शहीद हुए।
5. सुगाली माता का मंदिर आउवा (1857 की देवी) -
सुगाली माता आऊवा राजघराने की कुल देवी है। माता की प्राचीन प्रतिमा को ब्रिटिश काल के दौरान अंग्रेज सैनिक खंडित कर मंदिर से ले गए थे। प्राचीन प्रतिमा के 54 हाथ व 10 मस्तक है। प्रतिमा काले पत्थर की बनी है। अब प्राचीन मूर्ति के समान ही नई प्रतिमा पेनोरमा में स्थापित की गई है। जबकि माता के मंदिर में दो मूर्तियां है। जिनका निर्माण् व प्रतिष्ठा नाहरसिंह की ओर से करवाई गई थी। ग्रामीणों के अनुसार 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम मे सुगाली माता की कृपा से क्रांतिकारियों ने ब्रिटिश सेना के दांत खट्टे कर दिए थे।
6. मीरा बाई मंदिर कुड़की -
मीराबाई का जन्म सन 1498 ई. में पाली के कुड़की गांव में में दूदा जी के चौथे पुत्र रतन सिंह के घर हुआ। ये बचपन से ही कृष्णभक्ति में रुचि लेने लगी थीं ऐसा मन जाता है कि मीरा बाई यहां पर भगवान कृष्ण की मूर्ति में लीन हो गयी थी।
7. ओम बन्ना मंदिर चोटिला -
पाली और जोधपुर के मध्य रोहट ओम बन्ना का पवित्र स्थान है, यह मंदिर पर्यटकों को काफी आकर्षित करता है यहां देश विदेश से लाखों दर्शनार्थी ओम बन्ना के दर्शन के लिए आते है यहां पर ओम बन्ना और उनकी मोटरसाइकिल की पूजा की जाती है। इन्हें बुलट वाला बाबा भी कहते हैं।
8. जवाई बांध -
इस बाँध का निर्माण जोधपुर के महाराजा उम्मेदसिंह ने 13 मई, 1946 को शुरू करवाया था। 1956 में इसका निर्माण कार्य पुरा हुआ। यह सुमेरपुर से 8 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है प्राचीन नाम एरिनपुरा इसी गांव का नाम है। वर्तमान में जवाई बाँध जोधपुर और पाली ज़िले का मुख्य पेयजल स्रोत है। इसके अलावा जवाई बाँध को मारवाड़ का अमृत सरोवर या मान सरोवर कहा जाता है। जो पश्चिमी राजस्थान का सबसे बड़ा बांध है।
9. नाथ निरजंन -
कुटीर में मेहन्दी नगरी सोजत के समीप नेशनल हाइवे पर स्थित चन्डावल नगर में पश्चिमी राजस्थान के साईनाथ से विख्यात परम् श्रद्धेय, प्रातः वन्दनीय व स्मरणीय ब्रह्मलीन गुरुदेव वासुदेव जी महाराज का परम धाम हैं। महारात्री (गुरुदेव का जन्मदिन) और गुरुपुर्णिमा पर भव्य बरसी व धार्मिक समारोह का आयोजन होता है जो हजारों की तादाद में भक्त देश के कोने कोने से गुरूवर के धाम पर पहुंचते हैं।
10. सुमेल
जेतारण के पास गिरी गांव के समीप सुमेल का प्रसिद्ध युद्ध 1540 में शेरशाह व माल देव के बीच में हुआ था । जो एक ऐतिहासिक स्थल है। यहां पर पूर्व सांसद ओंकार सिंह लखावत द्वारा सत्याग्रह उद्यान का निर्माण करवाया है ।
अन्य पर्यटन स्थल-
- निम्बो का नाथ - पांडवों की माता कुंती इसी स्थान पर शिव पूजा किया करती थी।
- सोमनाथ मंदिर - इसका निर्माण गुजरात के राजा कुमारपाल सोलंकी ने विक्रम संवत 1209 में करवाया।
- चामुण्डा मंदिर - निमाज कस्बे में राजा भोज का बनाया हुआ प्राचीन चामुंडा माता का मंदिर पुरातात्विक महत्व का प्रमुख स्थल है।
- नवगज पीर बाबा - सरसमन्द बांध की तलहटी में बाबा की समाधि और मजार है, जहा हिन्दू और मुस्लिम दोनों मज़हब के भक्त लोग आते हैं।
- मस्तान बाबा - यह कलक्टर स्थल पाली शहर से नये बस स्टैण्ड की तरफ जाते समय बायीं तरफ आता है।
- आशापुरा माता - यह नाडोल में स्थित है। यह भी पवित्र स्थान हैं जहा हजारों श्रद्धालू भक्त आते हैं।
- कर्माबाई का मन्दिर - पाली जिले का एकमात्र कर्माबाई का मन्दिर सोजत में अवस्थित है।
- श्वेताम्बर गोल्डन जैन टेम्पल फालना - इसे मारवाड़ का स्वर्णमंदिर भी कहा जाता है
- जालेश्वर महादेव - के नामक स्थान पर परशुराम के पिता महर्षि जमदग्नि तपस्या की थी ।
- सोजत का किला
- रणकपुर बांध
- सोनाणा खेतलाजी मंदिर
- ओम चिह्न टेम्पल जाडन
- मुछाला महावीर मंदिर
- निम्बेश्वर महादेव जी मंदिर
- हटूंडी राता महावीर जी
- बांगर म्यूज़ियम पाली
- पीरदुल्हेरशाह मस्जिद चोटिला
- श्री उम्मेद मिल - राज्य की सबसे बड़ी सूती मिल है
- फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला
- मरुधरा लोक कल्याण मंडल
- घाणेराव मुछाला महावीर का मंदिर
पाली जिले के मेले
- रामदेव जी का मेला - पाली जिले में रायपुर क्षेत्र के बिराटिया खुर्द गांव में प्रतिवर्ष भादवा शुक्ला एकादशी को पड़ता है।
- परशुराम महादेव मेला - देसूरी क्षेत्र में स्थित परशुराम महादेव की प्राकृतिक गुफा एवं परशुराम जयंती श्रावण शुक्ला सप्तमी पर भारी मेला भरता है।
- निंबो का नाथ मेला - नींबों के नाथ स्थल पर वैशाखी पूर्णिमा शिवरात्रि को मेला भरता हैं ।
- सोनाणा खेतलाजी का मेला - सारंगवास गांव में सोना जी खेतला जी का दो दिवसीय लक्खी मेला प्रतिवर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को भरता है, इसमें 7 से 70 गैर नृत्य दल अपनी पारंपरिक एवं विचित्र वेशभूषा में ढोल थाली तथा चंग के साथ गैर और लोक नृत्य प्रस्तुत करते हैं।
- बरकाना का मेला - जैन धर्मावलंबियों का यह मेला रानी के पास बरकाना जैन तीर्थ पर प्रतिवर्ष पौष सुदी 10 को भरता है ।
- चोटिला में पीर दुलेशाह का मेला - यह मेला जोधपुर पाली रेलवे लाइन पर केरला रेलवे स्टेशन के पास हजरत पीर की मजार पर दिवाली के दूसरे दिन भरता है ।
- चोटिला पीर रुणिचा का मेला - यह मेला जोधपुर पाली रेलवे लाइन पर केरला रेलवे स्टेशन के पास हजरत पीर की मजार पर दिवाली के दूसरे दिन भरता हैं।
राजस्थान के प्रमुख मेले (Rajasthan ke Pramukh Mele Quiz)
अन्य महत्वपूर्ण मेले
गोरिया गणगौर मेला, महादेव मेला, भाकरी मेला, बजरंग बाग, फूल मंडी मेला, हनुमान मेला, महालक्ष्मी मेला, खिवाड़ा तथा चंडावल का पशु मेला, मावली पशु मेला, मानपुरा भाकरी पशु मेला, नया गांव चोपड़ा पशु मेला, आनंदपुर कालू में पशु मेला भरता हैं।
"राजस्थान उच्च कोटि का प्रदेश है । इसका इतिहास अत्यंत रोचक और प्रेरणास्पद है। स्वतंत्रता के लिए यहां वीर राजाओं ने ही अपना सर्वस समर्पण नहीं किया अपितु साधारण कोटि के इन्सानों ने भी देश निर्माण के लिए प्रतिज्ञा की हैं कि जब तक अपना स्वराज्य का साम्राज्य कायम नहीं होगा तब तक हम थोड़ा सा भी आराम और साधन सुविधाओं का भी शौक नहीं भोगेंगे। इस प्रकार यह वीरभूमि है, जहां स्वतंत्रता का बीज कभी मुरझाया नहीं ।" पंडित गोविंद बल्लभ पंत
लोक संस्कृति
नृत्य
पाली जिले के पादरला गांव का 13 ताल लोक नृत्य देश विदेश में विख्यात है । अन्य लोक नृत्य में मुंडारा की कच्छी घोड़ी नृत्य । नित्य माता की दांडी भील युवतियों का घूमर, गरासियों का गणगौर नृत्य एवं गवरी नृत्य आदि प्रमुख नृत्य हैं।
जीवन शैली
पाली जिले के लोग बहुत मिलनसार होते है, ये सदैव दुसरों की मदद के लिये तत्पर रहते है। बोली बहुत मीठी होती हैं। बोली में मिठास व अपनत्व होता है। कलात्मक रूप से बनी हुई रंगबिरंगी पोशाकें पहने हुए लोगों को देखकर प्रतीत होता हैं कि पाली की जीवनशैली असाधारण रूप से सम्मोहित करने वाली है। वैसे पाली प्रेम, प्यार व स्नेह का अभिप्राय है। पुरूषों द्वारा पहनी हुई रंगीन पगड़ियाँ एक अलग ही पहचान और चहुँ ओर रंग बिखेर देती हैं।
Tourism in Rajasthan : राजस्थान में पर्यटन
खान- पान
यहाँ खासतौर पर दूध निर्मित खाद्य पदार्थों का ज्यादा प्रयोग होता है। जैसे मावा का लड्डू, क्रीम युक्त लस्सी, मावा कचौरी, और दूध फिरनी आदि। भोजन में प्राय यहाँ बाजरे का आटे से बनी रोटियां, जिन्हें सोगरा कहते हैं, प्रमुखता से खाया जाता है। सोगरा लसन व पुदीने की चटनी, साग आदि के साथ खाया जाता है। जो खाने में स्वादिष्ट होता है। गेहूँ का फुलका (रोटी) भी बड़ी तबियत से जिमते हैं। दाल बाटी चूरमा यहां के लोगों का पसंदीदा व्यंजन हैं। इसी प्रकार छाछ और प्याज भी इसके साथ खाया जाता है।
पाली के आऊवा का 1857 की क्रान्ति में योगदान
18 सितंबर 1857 की सुबह सुगाली देवी का फतवा ठाकुर कुशालसिंह अपने बाकी साथियों के साथ अंग्रेजों के सामने मैदान में डट गया ।
2 दिन के घमासान युद्ध में जोधपुर के किलेदार अनार सिंह तथा राव रायमल मारे गए और सिंघवी कुशल राज अपनी सेना के साथ चेलावास गांव की ओर भाग गए।
इसी बीच जोधपुर का अंग्रेजी रेजिडेंट मेजर मैंसन भी इस आक्रमण में सम्मिलित होने पहुंचा। लेकिन लारेंस की सेना के कैंप तक पहुंचने से पूर्व ही विद्रोहियों की गोली का शिकार हो गया। लॉरेंस ने 3 दिन तक के गेट को घेर रखा । किंतु आहुवा की तोपों से निकलने वाले गोलों के सामने नहीं टिक सका और उसको अपनी सेना के साथ पीछे हटना पड़ा ।
20 जनवरी 1858 कर्नल होम फिर हमला बोल दिया । अपने साथी योद्धाओं के साथ आहुवा ठाकुर भी युद्ध में कूद पड़ा। 3 दिन के युद्ध में शक्ति क्षीण हो गई । ऐसी स्थिति में ठाकुर पृथ्वी सिंह ने युद्ध का भार लेकर ठाकुर कुशालसिंह को जबरदस्ती युद्ध से चले जाने का दबाव बनाया । घमासान युद्ध के पश्चात अंग्रेजों ने अपनी कूटनीति सेे किले के दरवाजे खुलवा दियेे ।
अंग्रेजों की सैना गांव में घुस गई । जबरदस्ती लूटपाट के साथ आग लगाकर के महल मंदिर तोड़ दिए गए और इस प्रकार 24 जनवरी 1858 होम्स की सेना ने अाहुवा पर अधिकार स्थापित कर लिया। ठाकुर कुशालसिंह पर विपत्ति के पहाड़ टूट पड़े । गांव छुटा, परिवार बिछड़ा, लेकिन उन्होंने अंग्रेजों की अधीनता स्वीकार नहीं की । यह आज़ादी की लड़ाई थी। और वह आजादी के सच्चे सिपाही थे। जिनका गांव गांव में आज भी गीतों में गाया जाता हैं ।
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Especially thanks to Authors - हीरालाल जाट (अध्यापक), चण्डावल नगर, सोजत पाली, मदन सुथार भांवरी
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