भारत शासन अधिनियम 1935 के द्वारा भारतीयों को प्रांतीय शासन प्रबंध का अधिकार मिल गया था
फल स्वरुप अनेक क्षेत्रीय पार्टियों का प्रादुर्भाव हुआ पंजाब में अप्सर हुसैन ने यूनियनिस्ट पार्टी की स्थापना की ,बंगाल में फजलुल हक ने कृषक प्रजा पार्टी की स्थापना की बंगाल और मध्य प्रांत में अंबेडकर ने इंडिपेंडेंस वर्कर्स पार्टी की स्थापना की
1935 के भारत शासन अधिनियम के आधार पर फरवरी 1937 में चुनाव हुए और इसमें कांग्रेस को बड़ी सफलता मिली उसे कुल 1585 असेंबली सीटों में 711 सीटों पर विजय प्राप्त हुई
11 में से पांच प्रांतों मद्रास, बिहार, उड़ीसा, मध्य प्रांत और संयुक्त प्रांत में पूर्ण बहुमत मिला
मुंबई में लगभग पूर्ण बहुमत (175मे से 86) मिला
सरकारी समर्थन के बावजूद संयुक्त प्रांत में छतारी के नवाब की नेशनल एग्रीकल्चरिस्ट पार्टी और मद्रास में जस्टिस पार्टी को मुंह की खानी पड़ी थी
मुस्लिम चुनाव क्षेत्रों में कांग्रेस के बहुत मामूली प्रदर्शन( 482 आरक्षित सीटों में कांग्रेस 58 पर लड़ी और 26 पर विजय प्राप्त रही) के बावजूद इस बात से संतोष मिल जाता था कि मुस्लिम लीग भी मुसलमानों की एकमात्र प्रतिनिधि होने का अपना दावा करने में लीग असफल रही थी
पश्चिमोत्तर सीमा प्रांत में मुस्लिम लीग एक भी सीट नहीं पा सकी थी और वह पंजाब के 84 आरक्षित चुनाव क्षेत्रों में से केवल दो और सिंध के 33 में से केवल तीन स्थानों पर ही जीत सकी थी
अनुसूचित जातियों की अधिकांश सीटें भी कांग्रेस ने जीत ली थी सिवाए मुंबई के जहां अंबेडकर की इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी में हरिजनों के लिए आरक्षित 15 सीटों में से 13 सीटें जीती थी
संयुक्त प्रांत, बिहार, उड़ीसा, मध्यप्रांत ,बंबई और मद्रास में कांग्रेस मंत्रिमंडलों ने पदभार संभाला
यहां की विधानसभाओं में पूर्ण बहुमत मिला बाद में चलकर पश्चिमोत्तर प्रांत और असम में कांग्रेस ने मंत्रिमंडल बनाए यहा इसे सबसे बड़ा दल होने का लाभ मिला
केवल बंगाल, पंजाब और सिंध में कांग्रेस को बहुमत नहीं मिला था
पंजाब से यूनियनिस्ट पार्टी और मुस्लिम लीग ने मिलकर सयुक्त सरकार का गठन किया
लेकिन आगे चलकर मुस्लिम लीग सिकंदर हयात खाँ के प्रधानमंत्रित्व काल में यूनियनिस्ट पार्टी के मुस्लिम वर्ग पर अपना प्रभाव कायम कर लिया इससे यह सरकार मार्च 1947 तक बिना किसी व्यधान के कार्य करती रही
बंगाल में कृषक प्रजा पार्टी और मुस्लिम लीग की सरकार सत्ता में आई लेकिन बाद में मुस्लिम लीग का मंत्रिमंडल गठित हुआ जो 14 अगस्त 1947 तक सत्ता में रहा इसके प्रधानमंत्री एच.एस.सुहरार्दी थे
सिंध में 1937 से 1947 के दशक के दौरान भिन्न-भिन्न नेताओं के अधीन गैर कांग्रेसी मंत्रिमंडल बना रहा
इसके दो प्रधानमंत्री गुलाम हुसैन हिदायतुल्ला और अल्लाह बख्श के कांग्रेस के साथ गहरे संबंध थे
कांग्रेस मंत्रिमंडलों का कार्यकाल
1937के चुनाव में कांग्रेस ने कुल 8 राज्यों में अपनी सरकारें बनाई थी
यहां प्रशासन को सुचारु रुप से चलाने के लिए एक केंद्रीय नियंत्रण परिषद गठित की गई,इस परिषद को संसदीय समिति नाम दिया गया
इसके सदस्य थे सरदार वल्लभभाई पटेल, मौलाना अबुल कलाम आजाद और डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद
इस समय प्रांतों के प्रमुख को प्रधानमंत्री कहा जाता था
मद्रास के प्रधानमंत्री सी राजगोपालाचारी, बिहार में श्रीकृष्ण सिन्हा उड़ीसा में बी. एन. दास ,मध्य प्रांत में एन.बी.खरे थे
एन.बी.खरे के इस्तीफा देने के कारण रविशंकर शुक्ल को मध्य प्रांत का प्रधानमंत्री बनाया गया
संयुक्त प्रांत के प्रधानमंत्री गोविंद वल्लभ पंत और मुंबई में बी.जी. खरे थे
असम के प्रधानमंत्री सादुल्लाह के इस्तीफा देने के कारण गोपीनाथ बारदोलोई यहां के प्रधानमंत्री बने
उत्तर पश्चिमी सीमा प्रांत के प्रधानमंत्री डॉक्टर खॉ साहब थे जबकि सिंध के प्रधानमंत्री अल्लाह बख्श थे अल्लाह बख्श के इस्तीफा देने के बाद यहां बंदे अलीखा प्रधानमंत्री बने
बंगाल के प्रधानमंत्री फजलुल हक जबकि पंजाब के सर सिकंदर हयात खॉ थे
कांग्रेस सरकार ने अपने 28 माह के संक्षिप्त शासनकाल में यह प्रमाणित कर दिया कि वह केवल जनसंघर्षों के लिए ही जनता का नेतृत्व नहीं कर सकती ,बल्कि उनके हित में राज्य सत्ता का उपयोग भी कर सकती है
कांग्रेस मंत्रिमंडल द्वारा किए गए कार्य
संयुक्त प्रांत और बिहार में काश्तकारी बिल पारित किए गए
सभी कांग्रेस शासित प्रांतों में कृषको को साहूकारों के चंगुल से बचाने और सुविधाओं को बेहतर बनाने के प्रयास किए गए
यह वह काल था जब कांग्रेस और अंय कार्यकर्ताओं के प्रयास से समग्र रुप से किसानों में व्यापक जागरूकता और बढ़ती राजनीतिक चेतना देखने को मिलती है
कांग्रेस सरकारों ने श्रमिक समर्थक रुख तो अपनाया लेकिन वर्ग संघर्ष का साथ नहीं दिया
मुंबई की कांग्रेस सरकार ने 1937 में एक कपड़ा जांच समिति की नियुक्ति की थी
इसने कर्मचारियों की वेतन वृद्धि स्वास्थ्य और बीमा सुरक्षा की सिफारिश की
बम्बई सरकार ने हड़ताल और तालाबंदी रोकने के लिए मध्यस्ता के सिद्धांतों के आधार पर नवम्बर 1938 में औद्योगिक विवाद अधिनियम भी पेश किया था
अन्य कांग्रेस शासित प्रांतों में भी श्रमिकों के कल्याण के लिए बहुत से कानून लागू किए गए थे
कांग्रेस सरकारों ने नागरिक स्वतंत्रता राजनीतिक कैदियों की रिहाई और रचनात्मक कार्यक्रमों के क्षेत्रों में भी काफी प्रशंसनीय कार्य किए
ग्रामीण उद्योगों के उत्थान महानिषेद,बुनियादी शिक्षा के द्वारा प्राथमिक शिक्षा के संवर्धन, जनजातियों के कल्याण ,जेल सुधार और अस्पृश्यता निवारण के लिए विशेष कार्यक्रम शुरु किए गए
इस अवस्था में भी कांग्रेस मंत्रालयों को ईमानदारी और जनसेवा के मानक स्थापित करने का अवसर प्राप्त हुआ
मंत्रियों ने स्वेच्छा से अपना वेतन कम करके ₹500 प्रतिमाह कर दिया और रेलवे से वो द्वितीय व तृतीय श्रेणी में यात्रा करते थे
2 Comments
Shashikant
6 years ago - Replyसर 1935 के भारत मंत्रि कोन थे?
Rahul
5 years ago - ReplyJab take koi nhi tha