वायसराय लार्ड कर्जन का सबसे घृणित कार्य 1905 में बंगाल का विभाजन करना था बंगाल विभाजन के समय बंगाल में बिहार उड़ीसा और बांग्लादेशशामिल थे 1874 में असम बंगाल से अलग हो गया था एक लेफ्टिनेंट गवर्नर इतने बड़े प्रान्त को कुशल प्रशासन दे पाने में असमर्थ था लेकिन तत्कालीन गवर्नर जनरल लार्ड कर्जन ने बंगाल विभाजन का सबसे प्रमुख कारण प्रशासनिक असुविधाबताया था
लेकिन इसका वास्तविक कारण प्रशासनिक नहीं बल्कि राजनीतिक था इसकी जानकारी तत्कालीन राज्य सचिव रिजले द्वारा 1904 में कर्जन को लिखे गए पत्र से मिलती है जिसमें इसने लिखा था कि सयुक्त बंगाल एक शक्ति है, विभाजित बंगाल की दिशाएंअलग अलग होंगी बंगाल उस समय भारतीय राष्ट्रीय चेतना का केंद्र बिंदुथा और बंगालियों में प्रबल राजनीतिक जागृति थी जिसे दबाने के लिए लार्ड कर्जन ने बंगाल का विभाजन कर उसे हिंदू और मुस्लिम बहुलतावाले दो भागों में बांटने और उन्हें आपस में लड़ाने की नीतिअपनाई दिसंबर1903 मैं बंगाल विभाजन के प्रस्ताव की खबर फेलने पर चारों ओर विरोधस्वरूप अनेक बैठकेहुई
जिनमें अधिकतर बैठके ढाका मेमनसिंह और चटगांव में हुई थी सुरेंद्रनाथ बनर्जी,कृष्ण कुमार मित्र पृथ्वीशचंद्र राय आदि बंगाल के नेताओं ने बंगाली हितवादी और संजीवनी जैसे अखब़ारों द्वारा बंगाल विभाजन के प्रस्ताव की आलोचना की थी
इस विरोध के बावजूद लार्ड कर्जन ने 20 जुलाई 1905 को बंगाल विभाजन के निर्णय की घोषणा कर दी थी जिसके परिणाम स्वरुप 7 अगस्त 1905को कलकत्ता मे टाउन हॉल में स्वदेशी आंदोलन की घोषणा की थी इस दिन से ही बंगाल विभाजन के विरोध में आंदोलन प्रारंभ हो गया था इसी बैठक मे ऐतिहासिक बहिष्कार प्रस्ताव पारित किया गया था 16 अक्टूबर 1905 को बंगाल विभाजन की घोषणा के साथ ही विभाजन प्रभावी हो गया
विभाजन के बाद बंगाल पूर्वी बंगाल और पश्चिम बंगाल में बट गया पूर्वी बंगाल में असम और बंगाल के कुछ जिले राजशाही ढाका और चटगांव मिलाएं गये
इनका मुख्यालय ढाकामें था पश्चिम बंगाल में बिहार उड़ीसा और पश्चिम बंगालशामिल थे बंगाल विभाजन 16 अक्टूबर 1905 को लागू हुआ था उस दिन को पूरे बंगाल में शोक दिवस के रुप में मनाया गया था
रविंद्र नाथ टैगोर ने संपूर्ण बंगाल में इस दिन को राखी दिवस के रुप में मनाया गया
इसका उद्देश्ययह बताना था कि बंगाल को विभाजित कर अंग्रेज उनकी एकता में दरार नहीं डाल सकते थे अगले ही दिन आनंद मोहन बॉस और सुरेंद्र नाथ बनर्जी ने दो विशाल जनसभा को संबोधित किया और कुछ ही समय में आंदोलन के लिए ₹50000 इकट्ठे कर लिए थे स्वदेशी आंदोलन और बहिष्कार आंदोलन का संदेश पूरे देश में फैला दिया गया था बाल गंगाधर तिलक और उनकी पुत्री केतकर ने महाराष्ट्र में इसका प्रचार किया अजीत सिंह,लाला लाजपत राय,स्वामी श्रद्धानंद,जयपाल और गंगाराम ने पंजाब और उत्तर प्रदेश के क्षेत्रों में इस आंदोलन का प्रसार किया सैयद हैदर खाँ ने दिल्ली में इस आंदोलनका नेतृत्व किया
चिदंबरम पिल्ले, सुब्रह्मण्यम्, आनंद चारलू और टी०एम० नायक जैसे नेताओं ने मद्रास प्रेसिडेंसी में इसका नेतृत्व किया था उत्तर भारत में रावलपिंडी कांगड़ा मुल्तान और हरिद्वार में स्वदेशी आंदोलन ने अत्याधिक जोर पकड़ा था
बंगाल विभाजन बंग-भंग आंदोलन को सबसे अधिक सफलता विदेशी माल के बहिष्कार आंदोलन से मिली थी
औरतो ने विदेशी चूड़ियां पहनना और विदेशी बर्तनों का इस्तेमाल करना बंद कर दिया था
धोबियों ने विदेशी कपड़े धोने से मना कर दिया था यहां तक कि महन्तो ने विदेशी चीनी से बने प्रसाद को लेने से इंकार कर दिया था स्वदेशी आंदोलन में जन जागरण के लिए स्वयंसेवी संगठनों की मदद के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण संगठन स्वदेश बांधव समिति था
वारिसाल के एक अध्यापक आश्विनी कुमार दत्त के नेतृत्व में गठित इस समिति की 159 शाखायें फैली हुई थी स्वदेशी आंदोलन ने अपने प्रचार के लिए पारंपरिक त्योहारों, धार्मिक मेलोंआदि का भी सहारा लिया था आत्मनिर्भरता और आत्म शक्ति का नारा इस आंदोलन की विशेषता थी स्वदेशी माल की सप्लाई के लिए कई स्थानों पर स्वदेशी स्टोर खोलेगए थे इसी क्रम में आचार्य प्रफुल्लचंद्र राय ने बंगाल केमिकल स्वदेशी स्टोर खोला था
स्वदेशी आंदोलन में मुख्य भूमिका बंगाल के छात्रोंकी रही थी बंगाल सरकार के कार्यवाहक मुख्य सचिव का लाइव ने कलेक्टरोंके पास पत्र भेजा कि, वह कॉलेजों से यह कहे कि छात्रों को आंदोलन में भाग नहीं लेने दे वरनी उनकी सरकारी सहायता बंद कर दी जायेगी
विश्वविद्यालय से कहा गया है कि ऐसी संस्थाओं के मान्यता वापस ले ले जो छात्रो को आन्दोलन मे भाग लेने से नही रोक सकती इस पत्र को कार्लाइव सर्कुलरकहा जाता था सरकार द्वारा शिक्षण संस्थाओं के विरुद्ध कठोर कदम उठाने के कारण सरकारी स्कूलों का बहिष्कार हुआ है जिसके परिणाम स्वरुप राष्ट्रीय विद्यालय की स्थापना हुई और राष्ट्रीय शिक्षा को बढ़ावामिला
छात्रों को कॉलेज से निकालने व जुर्माना लगाने के कारण उन्होंने सरकारी दमन का मुकाबला करने के लिए एण्टी सर्क्युलर सोसाइटीकी स्थापना की थी
एंटी सर्कुलर सोसाइटी ‼एंटी सर्कुलर सोसाइटी की स्थापना सरकारी दवाब को कम करने के लिए कि गयी ‼जिसके सचिव छात्र नेता सचीन्द्र प्रसाद बसुबने ‼एंटी सर्कुलर सोसाइटी ने छात्रों को संगठित करने और स्वदेशी आंदोलन में छात्रों को उतारने के लिए बड़ा योगदान दिया ‼बंगाल में राष्ट्रीय शिक्षा को फैलाने में सबसे बड़ा कार्य डॉन सोसाइटी ने किया था ‼यह विद्यार्थियों का संगठन था ‼जिसके सचीव सतीश चंद्र मुखर्जीथे
बंगाल विभाजन आंदोलन का विभिन्न क्षेत्रों पर प्रभाव
बंगाल विभाजन आंदोलन का शिक्षा के क्षेत्र पर प्रभाव? बंगाल विभाजन आंदोलन का शिक्षा के क्षेत्रपर भी प्रभाव पड़ा और इसके कारण विद्यालयों की स्थापना की गई राष्ट्रीय शिक्षा के क्षेत्र में सर्वप्रथम 8 नवंबर 1905 को रंगपुर नेशनल स्कूल की स्थापना की गई थी 16 नवंबर 1905 को कलकत्ता में एक सम्मेलन हुआ था इस सम्मेलन में राष्ट्रीय नियंत्रण में राष्ट्रीय साहित्यिक वैज्ञानिक और तकनीकी शिक्षा देने के लिए राष्ट्रीय शिक्षा परिषद स्थापित करने का फैसला किया गया टैगोर के शांतिनिकेतन की तर्ज पर 14 अगस्त 1906 को बंगाल नेशनल कॉलेज और स्कूल की स्थापना की गई नेशनल कॉलेज के प्रिंसिपल अरविंद घोष बने थे 15 अगस्त 1906 को सद्गुरु दास बनर्जी ने राष्ट्रीय शिक्षा परिषद की स्थापना की थी
बंगाल विभाजन आंदोलन का सांस्कृतिक क्षेत्र पर प्रभाव? स्वदेशी आंदोलन का सबसे अधिक प्रभाव सांस्कृतिक क्षेत्र पर पड़ा था बंगला साहित्य विशेषकर काव्य के लिए स्वर्ण काल था रवींद्रनाथ टैगोर,द्विजेन्द्र लाल राय, मुकंददास ,सैयद अबू मुहम्मद के लिखे गीत आंदोलनकारियों के लिए प्रेरणा स्रोतबने उन्होंने आंदोलन को तेज करने के लिए प्रेरणा स्त्रोत आमार सोनार बांग्ला नामक गीत लिखा था जो 1971 में बांग्लादेश का राष्ट्रीय गीतबना कला के क्षेत्र में अवनींद्र नाथ टैगोर ने भारतीय कला पर पाश्चात्य आधिपत्यको तोड़ा और स्वदेशी पारंपरिक कलाओ व अजंता के चित्रकला से प्रेरणा लेनी शुरू कर दी थी विज्ञान के क्षेत्र में जगदीश चंद्र बोस,प्रफुल्ल चंद्र राय आदि की सफलताओं ने आंदोलन को और भी मजबूत बनाया
बंगाल विभाजन आंदोलन का महिलाओं पर प्रभाव इस आंदोलन की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता थी की महिलाओं ने इस आंदोलन में सक्रिय रुप से भाग लिया पहली बार महिलाएं घर से बाहर निकली प्रदर्शन में भाग लेने लगी और धरने पर बैठने लगी थी
बंगाल विभाजन आंदोलन की कमियां?
लेकिन यह आंदोलन बंगाल के किसानों को प्रभावित नहींकर सका केवल वारिसाल ही इसका अपवादरहा मुख्यतया आंदोलन शहरों के उच्च व मध्यम वर्ग तक ही सीमित रहा बहुसंख्यक मुसलमानों ने विशेषकर खेतीहर मुसलमानों ने इसमें भागनहीं लिया उस समय बंगाल के अधिकतर भूस्वामी हिंदूथे,और मुसलमान खेतीहर मजदूरथे अंग्रेजों ने मुसलमानों का उपयोग साम्प्रदायिकता के जहर को घोलने में किया ढाका के नवाब सलीमुल्लाह का इस्तेमाल स्वदेशी आंदोलन के विरोध के रूप में किया गया था सांप्रदायिकता के जहर के अलावा आंदोलन के कुछ अन्य तरीकों से भी स्वदेशी आंदोलन को क्षति पहुंची हालांकि आंदोलनकारियों ने इन तरीकों का इस्तेमाल बड़ी ईमानदारी से लक्ष्य की प्राप्ति के लिए किया था ऐसे पारंपरिक रीति रिवाजों और त्योहारों और संस्थाओंका सहारा लिया जिसका चरित्र बहुत हद तक धार्मिक था इसी कारण बंगाल के बहुसंख्यक मुसलमान स्वदेशी आंदोलन शामिल नहीहुए और कुछ तो साम्प्रदायिक राजनीति के शिकार होगए थे
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