बीकानेर का किला{जूनागढ़ का किला}-Fort of Bikaner (Fort of Junagadh)
बीकानेर का किला{जूनागढ़ का किला}
Fort of Bikaner (Fort of Junagadh)
निर्माण का परिचय बीकानेर के पुराने गढ़ की नींव बीकानेर के
संस्थापक राव बीकाजी ने करणी माता के
आशीर्वाद से सन 1485 ई. में रखी थी जिसे
बीकाजी की टेकरी कहते हैं उसी जगह इस
जूनागढ़ का निर्माण राय सिंह ने सन् 1588 ई.
फाल्गुन सुधि 12 से सन् 1593 ई. तक करवाया
| इसीलिए इसे जूनागढ़ का किला कहते हैं|
किले का आकार किले की समचौरस सफील दीवार है पूर्व की दीवार 401 गज दक्षिण की दीवार 403 गज पश्चिम की दीवार 407 गज उत्तर की दीवार 406 को्ट की सफील 19 गज ऊँची| महलायत के नीचे ओसार 20 गज और 10 गज कोट व परकोटे के नीचे है | परकोटे के बाहर खाई 20 गज जोड़ी है तथा 25 गज गहरी है इस तरह गढ़ का निर्माण करवाया गया|
दुर्ग के प्रवेश द्वार इस दुर्ग के पूर्वी दरवाजे का नामकरण बोल पश्चिम दरवाजे का नाम चांदपोल इन दो मुख्य दरवाजों के अलावा इसमें पांच आंतरिक द्वार है जो दौलतपोल फतेहपोल रतनपोल सूरजपोल तथा ध्रुव पोल है
दुर्ग के ऐतिहासिक एवं दर्शनीय स्थल
अनूप महल- इसका निर्माण महाराजा अनूपसिंह ने करवाया था इस महिला के सोने की कलम से काम किया हुआ है यहीं पर बीकानेर के राजाओं का राजतिलक होता था|
लालगढ़ महल- इसका निर्माण महाराजा गंगा सिंह ने अपने पिता लाल सिंह की स्मृति में लाल पत्थरों से करवाया था|
फूल महल व गज मंदिर- यह दोनों महल शीशे की बारीक कटाई और फूल पत्तियों के संजीव चित्रकला के लिए प्रसिद्ध है|
कर्ण महल- इस का निर्माण महाराजा अनूप सिंह ने अपने पिता करण सिंह की स्मृति में करवाया था|
छत्र निवास- इसमें सुंदर लकड़ी की छत और कृष्ण की रासलीला के संजीव चित्रण के कारण दर्शनीय है
हरमंदिर- यहां पर राजकीय विवाह गणगौर व अन्य उत्सवों का आयोजन किया जाता है
घंटाघर- इसका निर्माण महाराजा डूंगर सिंह ने करवाया था रामसर व रानी सर दुर्ग में जल पीने हेतु हत्था जलराशि वाले कुए है
सुर सागर- इस झील का निर्माण सुर सिंह ने करवाया था| इस झील का वसुंधरा राजे ने जीर्णोध्दार करवाकर 15 अगस्त 2008 को इसमें नौकायन का उद्घाटन किया|
इस दुर्ग में 33 करोड़ देवी देवता मंदिर है जिसमें हेरंब गणपति{ सिंह पर सवार गणपति} की दुर्लभ प्रतिमा स्थित है एवं यहां बने संग्रहालय में 1000 वर्ष पुरानी सरस्वती की प्रतिमा दर्शनीय है|
किले की विशेषताएं यह दुर्ग राती घाटी नामक चट्टान पर बना हुआ है अत: इस दुर्ग को राती घाटी का किला कहते हैं दयालदास की ख्यात में लिखा है कि नए गढ की नीव मौजूदा पुराने गढ़ के स्थान पर ही भरी गई थी इसी कारण से जूनागढ़ का जाता है यह दुर्ग 'धान्वन दुर्ग' व भूमि दुर्ग की श्रेणी में आता है इस ग्रुप को जमीन का जेवर नाम से भी जाना जाता है यह दुर्ग चतुष्कोणीय या चतुर्भुजाकृति में बना हुआ है! राजस्थान में पहली बार इस ग्रुप में लिफ्ट बनाई गई! इस दुर्ग का निर्माण हिंदू और मुस्लिम शैली के समन्वय से हुआ है ! इस दुर्ग के बारे में कहते हैं दीवारों के कान होते हैं पर जूनागढ़ के महलों की दीवारें बोलती है | इस दुर्ग में एक भी साका नहीं हुआ| आमेर व बीकानेर दो ऐसे किले है जो जिस वंश के द्वारा बनाए गए थे हमेशा उसी वंश के अधिकार में रहे|
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