Mineral Estates of India (Part 02)-भारत की खनिज सम्पदा ( Part 02 )
Mineral Estates of India (Part 02)-
भारत की खनिज सम्पदा ( Part 02 )
भारत के प्रमुख उद्योग (Important Industries in India)
लौह एवं इस्पात उद्योग (Iron and Steel Industry) सीमेन्ट उद्योग (Cement Industry) कोयला उद्योग (Coal Industry) पेट्रोलियम उद्योग (Petroleum Industry) कपड़ा उद्योग (Cloth Industry) रत्न एवं आभूषण उद्योग (Gems and Jewellery Industry) चीनी उद्योग (Sugar Industry)
लौह एवं इस्पात उद्योग (Iron and Steel Industry)
लौह इस्पात उद्योग का महत्त्व-? यह उद्योग अर्थव्यवस्था की रीढ़ माना जाता है। इसके महत्त्व को स्वीकार करते हुए पं- जवाहरलाल नेहरू ने कहा था कि, ‘लौह एवं इस्पात उद्योग आधुनिक सभ्यता का आधार है।’
लौह इस्पात उद्योग की प्रारंभ से अब तक की स्थिति (तालिका)-
क्र-सं-1.⬇ उद्योग का नाम-बंगाल आयरन वर्क्स कम्पनीः ब्रिटिश संस्था द्वारा खोला गया एवं असफल रहा। स्थापना वर्ष-1870 स्थान-झरिया के निकट कुलटी नामक स्थान (पश्चिम बंगाल)
क्र-सं-2.⬇ उद्योग का नाम-टाटा आयरन एंड स्टील कम्पनी (TISCO) स्थापना वर्ष-1907 स्थान-सिंहभूमि जिला जमशेदपुर (झारखंड)
क्र-सं-3.⬇ उद्योग का नाम-इंडियन आयरन एवं स्टील कम्पनी (IISCO): TISCO & IISCO निजी क्षेत्र की कम्पनी थी जिसकी स्थापना का श्रेय जमशेदजी नोशेरवान जी टाटा को जाता है। स्थापना वर्ष-1919 स्थान-हरिपुर नामक स्थान (आसनसोल बंगाल)
क्र-सं-4.⬇ उद्योग का नाम-विश्वेश्वरैया आयरन एंड स्टील वर्क्सः सार्वजनिक क्षेत्र की पहली इकाई स्थापना वर्ष-1923 स्थान-भद्रावती नामक स्थान, मैसूर (कर्नाटक)
स्वतंत्रता के समय से भारत में उपरोक्त तीनों स्टील प्लान्ट कार्यरत हैं। वर्ष 1955 में 3 बड़े स्टील प्लान्ट लगाने के समझौते किए गए।
भिलाई स्टील प्लान्ट (वर्तमान में छत्तीसगढ़)—सोवियत संघ के सहयोग से स्थापित
?राउरकेला स्टील प्लान्ट (उड़ीसा में)—पश्चिमी जर्मनी के सहयोग से स्थापित
दुर्गापुर स्टील प्लान्ट (प- बंगाल में) —ब्रिटेन के सहयोग से स्थापित उपरोक्त तीनों सार्वजनिक क्षेत्र के कारखानों में उत्पादन कार्य 1956 (II FYP) से प्रारंभ हुआ। तीसरी पंचवर्षीय योजना में सोवियत संघ (USSR) के सहयोग से बोकारो (अब झारखंड में) में एक और स्टील प्लान्ट की स्थापना का कार्य प्रारंभ हुआ। चौथी पंचवर्षीय योजना में सलेम (तमिलनाडु), विशाखापत्तनम (आंध्र प्रदेश) एवं विजय नगर (कर्नाटक) में नए इस्पात कारखाने स्थापित कर उत्पादन क्षमता में वृद्धि करने का प्रयास किया गया। पांचवीं पंचवर्षीय योजना में सरकार ने भारतीय स्टील अथॉरिटी (Steel Authority of India—SAIL) की स्थापना 1974 में की तथा इसे भारत में इस्पात उद्योग के विकास की जिम्मेदारी दी गई।
नोटः 14 जुलाई, 1976 में ISSCO का स्वामित्व सरकार ने अपने हाथ में ले लिया तथा इसका विलय SAIL में कर दिया गया जिसे 1 अप्रैल, 2005 से प्रभावी माना गया है।
वर्तमान में SAIL के स्वामित्व में निम्नलिखित सार्वजनिक क्षेत्र हैं: Durgapur, Rourkela, Bokaro, Burahpur Steel Plant, Alloy Steel Plant, Durgapur, Salem Steel Plant, Maharshtra Electrosmelt Ltd. (mini iron plant) and Visvesvaraya Iron and Steel Ltd.
वित्तीय वर्ष 2006–07 से 2010–11 के दौरान क्रूड स्टील (कच्चा इस्पात) के उत्पादन में 84% की चक्रवृद्धि वार्षिक दर (Compound Annual Rate) से वृद्धि हुई। विश्व स्टील एसोसिएशन (World Steel Association—WSA) के ताजा आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2010 में भारत में इस्पात उत्पादन 68.3 मिलियन टन रहा। ताजा आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2011 में इस्पात उत्पादन के क्षेत्र में शीर्ष 4 देश है—(1) चीन,(2) जापान, (3) अमेरिका, (4) भारत। 26 जुलाई, 2011 को पांचवें भारतीय इस्पात शिखर सम्मेलन (नई दिल्ली) में केंद्रीय इस्पात मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा ने इस्पात उत्पादन का लक्ष्य 2020 तक 150 मिलियन टन करने का लक्ष्य रखा है (2013 तक 120 मिलियन टन पहुंचने की सम्भावना है)। इस उद्योग में लगभग ₹ 90,000 करोड़ की पूंजी लगी हुई है और 5 लाख से अधिक लोगों को प्रत्यक्ष रूप से रोजगार मिल रहा है।
प्रमुख योजनाएं (Main Planning) विशाखापत्तनम इस्पात परियोजनाः? दक्षिण में आंध्र प्रदेश के विशाखापत्तनम बंदरगाह के पास स्थापित है (तट के निकट स्थापित भारत की पहली इस्पात योजना) इस संयंत्र की वार्षिक क्षमता 30 लाख टन क्रूड स्टील की है। अगस्त, 1992 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पी- वी- नरसिंह राव ने यह संयंत्र राष्ट्र को समर्पित किया।
पोस्को की इस्पात परियोजनाः ओडिशा में जगतसिंहपुर में 12 मिलियन टन सालना क्षमता वाली दक्षिण कोरिया की कम्पनी POSCO की महत्त्वाकांक्षी योजना है। इस योजना में ₹ 51 हजार करोड़ के निवेश के लिए पोस्को इस्पात कम्पनी और ओडिशा सरकार के मध्य वर्ष 2005 में समझौता हुआ जिसकी मंजूरी 2007 में दी गई। पर्यावरणविदों के भारी विरोध के चलते 2010 पर इस योजना पर रोक लगा दी गई तथा मीन गुप्ता की अध्यक्षता में 4 सदस्यीय समिति का गठन किया गया। इस समिति की संस्तुति को स्वीकार हुए 31 जनवरी, 2011 को इसे पर्यावरणीय मंजूरी दी गई। 30 मार्च, 2012 में राष्ट्र हरित न्यायाधिकरण (Nation Green Tribunal) ने पुनः इस पर रोक लगा दी है। नोटः वर्ष 2014 में पोस्को की इस्पात योजना को कार्य करने की मंजूरी दे दी गयी।
सीमेन्ट उद्योग (Cement Industry)
सीमेन्ट उद्योग का महत्त्वः वर्तमान में भारतीय सीमेन्ट उद्योग, विश्व में सीमेन्ट के उत्पादन में न केवल दूसरे स्थान पर है, बल्कि विश्वस्तरीय गुणवत्ता का सीमेन्ट भी उत्पादित करता है।
सीमेन्ट उद्योग का प्रारंभ से अब तक की स्थितिः वर्ष 1904 में सर्वप्रथम मद्रास (अब चेन्नई) में भारत का पहला सीमेन्ट कारखाना खोला गया जो असफल रहा किंतु 1912–14 के मध्य 3 बड़े सीमेन्ट कारखाने खोले गएः पोरबंदर (गुजरात)। कटनी (मध्य प्रदेश)। लाखेरी।
नोटः 1991 में घोषित औद्योगिक नीति के अन्तर्गत सीमेन्ट उद्योग को लाइसेन्स मुक्त कर दिया गया। मार्च, 2011 के अन्त में देश में 166 बड़े सीमेन्ट संयंत्र है इसके अलावा देश में कुल 350 लघु सीमेन्ट संयंत्र भी है। वर्ष 2010–11 में सीमेन्ट और ईंट का निर्यात 40 लाख टन रहा। भारतीय सीमेन्ट ने बांग्लादेश, इंडोनेशिया, मलेशिया, नेपाल, मध्य पूर्व एशिया (Middle East Asia), म्यांमार, अफ्रीका, आदि देशों के बाजार में अपनी पहुंच बना ली है।'
भारत की सीमेन्ट कम्पनियां हैं: बिरला सीमेन्ट, जे-पी- सीमेन्ट, एसीसी सीमेन्ट और बांगर सीमेन्ट।
कोयला उद्योग (Coal Industry)
कोयले का महत्त्वः
भारतीय कोयला उद्योग एक आधारभूत उद्योग है जिस पर अन्य उद्योगों का विकास निर्भर करता है। वर्तमान समय में शक्ति के साधन (Source of energy) के रूप में कोयला उद्योग का महत्त्व बहुत अधिक बढ़ जाता है।
नोटः भारत में कुल विद्युत उत्पादन क्षमता में:
तापीय ऊर्जा (Thermal Power) : 1,32,013 MW जल विद्युत : 38,991 MW नाभकीय विद्युत : 4780 MW अन्य स्त्रोत : 24,503 MW कुल विद्युत उत्पादन क्षमता : 2,00,287 MW
अप्रैल, 2012 में झज्जर (हरियाणा) में 660 MW की नई इकाई का उत्पादन भी सम्मिलित है। भारत में कुल ऊर्जा के उत्पादन में कोयले का अंश लगभग 67% है।
भारत में दो कोयला उत्पादन क्षेत्र हैं:
गोंडवाना कोयला क्षेत्रः पश्चिम बंगाल, बिहार, उड़ीसा, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश। भारत में प्राप्त कुल कोयले का 98% भाग गोंडवाना क्षेत्र से ही प्राप्त होता है। इस क्षेत्र से एन्थ्रेसाइट और बिटुमिनस किस्म के कोयले प्राप्त होते हैं।
टर्शियरी कोयला क्षेत्रः जम्मू-कश्मीर, राजस्थान, तमिलनाडु, आसाम, मेघालय और उत्तर प्रदेश। भारत में प्राप्त कुल कोयले का 2% भाग टर्शियरी कोयला क्षेत्र से प्राप्त होता है। इस क्षेत्र से लिग्नाइट किस्म का कोयला प्राप्त होता है जिसे ‘भूरा कोयला’ भी कहते हैं।
कोयला उद्योग की वर्तमान स्थितिः भारतीय भूगर्भ सर्वेक्षण के अनुसार, ‘भारत में 1 अप्रैल, 2011 तक सुरक्षित कोयले का भंडार 285.87 अरब टन है।’ कोयला उद्योग में ₹ 800 करोड़ की पूंजी विनियोजित है तथा यह 7 लाख से अधिक लोगों को रोजगार मुहैया कराता है। भारत में कोयले के सर्वाधिक भंडार वाले राज्य (जनवरी, 2008 के अनुसार) हैं— (1) झारखंड, (2) उड़ीसा, (3) छत्तीसगढ़, (4) पश्चिम बंगाल और (5) आंध्र प्रदेश।
भारत के प्रमुख कोयला क्षेत्र हैं— रानीगंज, झरिया, पू- और पश्चिम बोकारो, तवाघाटी, जलचर, चन्द्रान्वर्धा और गोदावरी की घाठी।
वर्तमान समय में भारतीय कोलया उद्योग का संचालन एवं नियंत्रण सार्वजनिक क्षेत्र की दो प्रमुख संस्थाएं करती हैं: कोल इंडिया लि- (Coal India Ltd.—CIL): कोयले के कुल उत्पादन के लगभग 86% भाग पर नियंत्रण यह एक धारक कम्पनी है। इसके अधीन 7 कम्पनियां कार्यरत हैं। नोटः 8 अप्रैल, 2011 को CIL को महारत्न (Maharatna Status) का दर्जा प्राप्त हुआ।
सिंगरैनी कोलारीज क- लि- (Singareni Collieries Company Ltd.—SCCL) यह आंध्र प्रदेश सरकार तथा केंद्र सरकार का संयुक्त उपक्रम (Joint venture) है। कोयले के कुल उत्पादन का लगभग 10% भाग इस कम्पनी से प्राप्त होता है।
नोटः? भारत में सर्वाधिक लिग्नाइट (Lignite) किस्म का कोयला पाया जाता है।
पेट्रोलियम उद्योग (Petroleum Industry)
पेट्रोलियम उद्योग का महत्त्वः भारत में पेट्रोलियम उद्योग का महत्त्व उसकी मांग एवं पूर्ति से लगाया जा सकता है। देश में कच्चे तेल का कुल भंडार 75.6 करोड़ टन अनुमानित है। परंतु फिर भी भारत अपनी कुल आवश्यकता का मात्र 20% भाग ही स्वदेशी उत्पादन द्वारा प्राप्त कर पाता है।
पेट्रोलियम उद्योग का प्रारंभ से अब तक की स्थितिः
वर्ष 1956 तक भारत में केवल एक ही खनिज तेल उत्पादन क्षेत्र विकसित थी जो डिग्बोई असम में था। डिग्बोई के जिस तेल कुएं से तेल निकाला गया था वहां से आज भी तेल निकाला जा रहा है। वर्तमान में भारत असम, त्रिपुरा, मणिपुर, पश्चिम बंगाल, मुम्बई, गुजरात, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, राजस्थान, केरल के तटीय प्रदेशों तथा अंडमान एवं निकोबार से खनिज तेल प्राप्त करने का कार्य कर रहा है। भारत में तेल की खोज और इसके उत्पादन का काम व्यापक और व्यवस्थित रूप से 1956 में तेल और प्राकृतिक गैस आयोग (Oil and Natural Gas Commission—ONGC) के स्थापना के बाद प्रारंभ हुआ। इसी क्रम में ऑयल इंडिया लि- (Oil India Limited—OIL) सार्वजनिक क्षेत्र की दूसरी कम्पनी बन गई। नोटः 1 फरवरी, 1994 में तेल और प्राकृतिक गैस आयोग (Oil and Natural Gas Commission) का नाम बदलकर Oil and Natural Gas Corporation कर दिया गया। 1999 में केंद्र सरकार ने तेल एवं गैस की खोज एवं उत्खनन (Quarrying) के लिए लाइसेंस प्रदान करने की नई नीति न्यू एक्सप्लोरेशन लाइसेंसिंग पॉलिसी (New Exploration Licensing Policy—NELP) तैयार की है। NELP के 9वें दौर के तहत 33 तेल ब्लाकों के लिए बोलियां लगाने की तिथि 15 अक्टूबर, 2010 से 18 मार्च, 2011 के दौरान सरकार द्वारा आमंत्रित की गई थी जिनमें से 16 ब्लाक आवंटित कर दिए गए हैं। वर्तमान में देश में 21 Oil Refineries हैं जिनमें 17 सार्वजनिक क्षेत्र, 3 निजी क्षेत्र एवं 1 संयुक्त क्षेत्र की है। नोटः भारत सरकार NELP के बाद तेल की खोज व उत्खनन के लिए ओपेन एक्रीएज लाइसेन्सिग पॉलसी लाने का सरकार का इरादा है। जिसके तहत तेल कम्पनी कोई भी नया ब्लाक स्वतः ही चुनकर तेल उत्खनन हेतु अपना प्रस्ताव सरकार को प्रस्तुत कर सकेगी अतः उन्हें NELP के तहत सरकारी पेशकश की प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ेगी। प्राकृतिक गैस उत्पादन के मामले में देश की निजी कम्पनी ‘रिलायंस इंडस्ट्रीज लि-’ देश की अग्रणी कम्पनी बन गई है। रिलायंस ने कृष्णा गोदावरी बेसिन् (K.G. Bassein) के D-6 क्षेत्र से 2010 के अंत तक 80 मिलियन स्टैण्डर्ड क्यूबिक मीटर पर डे (MSCMD) गैस का उच्चतम उत्पादन स्तर प्राप्त करने की संभावना है। भारत में दूसरे स्थान पर प्राकृतिक गैस का उत्पादन सार्वजनिक क्षेत्र की ओएनजीसी (ONGC) द्वारा किया जाता है। ONGC प्राकृतिक गैस का उत्पादन मुख्यतया दो तेल क्षेत्रें Bombay Hai व Bassein से किया जाता है। वर्ष 2009 में ONGC का उत्पादन स्तर 49.6 mscmd का है। तीसरे स्थान पर प्राकृतिक गैस का उत्पादन BG ग्रुप करता है जिसका मुक्ता (पन्ना) व ताप्ती तेल क्षेत्रें से लगभग 16 mscmd उत्पादन का स्तर है। भारत में खनिज तेल की आत्म निर्भरता हेतु काली क्रांति (Black Revolution) का प्रारंभ किया जा रहा जिसके अन्तर्गत पेट्रोल में ऐथनाल का मिश्रण 10% बढ़ाने तथा बायोडीजल (जेट्रोफा) का उत्पादन करने की सरकार की योजना है। बायोडीजल के उत्पादन का कार्य ग्रामीण विकास मंत्रलय (Ministry of Rural Development) को दिया गया।
नवीनतम तेल परिशोधनशाला (Latest Rectification House)
भारत की नवीनतम तेल परिशोधनशाला निम्नलिखित हैं: बीना ऑयल रिफाइनरीः ध्य प्रदेश के सागर जिले में 20 मई, 2011 को प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह द्वारा इसका उदघाटन हुआ। यह भारत पेट्रोलियम कारपोरेशन लि- (BPCI) व ओमान ऑयल कम्पनी (BOL) का संयुक्त उपक्रम है। इसमें 1% हिस्सेदारी MP Govt. की, 26% हिस्सेदारी ओमान ऑयल कम्पनी तथा शेष 73% हिस्सेदारी भारत पेट्रोलियम कार्पोरेशन लि- की है। वर्ष 2015–16 में इस रिफाइनरी की क्षमता 150 लाख टन करने की योजना है।
गुरू गोविन्द सिंह रिफाइनरीः पंजाब के भटिंडा में स्थित इस रिफाइनरी का उदघाटन 28 अप्रैल, 2012 को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने किया। यह सार्वजनिक क्षेत्र की कम्पनी हिंदुस्तान पेट्रोलियम कारपोरेशन लि- (HPCL) तथा लक्ष्मी निवास मित्तल की मित्तल एनर्जी इन्वेस्टमेंट प्राइवेट लि- का संयुक्त उपक्रम है। इस रिफाइनरी (Refinery) के प्रारंभ होने से भारत में कुल तेलशोधन क्षमता 213 मिलियन मीट्रिक टन सलाना (MMTPA) हो गया है।
अन्य रिफाइनरीः ONGC द्वारा 3 रिफायनरियां स्थापित करने की योजना है—(1) मंगलौर (कर्नाटक), (2) काकीनाड़ा (आंध्र प्रदेश) और (3) बाड़मेर (राजस्थान)। IOC द्वारा 2 रिफायनरियां स्थापित करने की योजना है—(1) एन्नोर (तमिलनाडु) और (2) पाराद्वीप में।
नोटः खनिज तेल की खपत से संबंधित अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेन्सी के ताजा आंकड़ों के आधार पर अमेरिका का प्रथम, चीन का द्वितीय स्थान है तथा 2025 तक बढ़ रही ऊर्जा जरूरतों के चलते अमेरिका एवं चीन के बाद भारत विश्व का तीसरा विशालतम तेल आयातक (Importer) देश बन जाएगा तथा इस क्रम में चौथा स्थान जापान का होगा। वर्ष 2030 तक वैश्विक ऊर्जा जरूरत का 45% हिस्सा भारत और चीन का ही होगा।
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