करमा नृत्य- मंडला के आसपास के क्षेत्रों में गोंड और बेगा आदिवासियों का प्रमुख नृत्य है करमा नृत्य कर्म देवता को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है कर्मा कर्म की प्रेरणा देने वाला नृत्य है जो ग्रामीण और आदिवासियों के कठोर वन्य जीवन और ग्राम अंचलओं के कृषि संस्कृति एवं श्रम पर आधारित है वर्षा ऋतु को छोड़कर बाकी सभी ऋतु में यह निर्णय किया जाता है यह विजयदशमी से प्रारंभ होकर पगली वर्षा ऋतु के आरंभ तक चलता है इसमें पुरुष और स्त्री दोनों भाग लेते हैं
परधोनी नृत्य- यह बेगा आदिवासियों द्वारा विवाह के अवसर पर बारात अगवानी के लिए किया जाने वाला लोक नृत्य है इस नृत्य का मुख्य उद्देश्य प्रसन्नता की अभिव्यक्ति है नृत्य में वर पक्ष की ओर से एक हाथी बना कर चला जाता है यह एक अनुष्ठान के रूप में होता है यह बेगा जीवन चक्र का एक अटूट हिस्सा माना जाता है
दशहरा नृत्य- बेगा आदिवासी यद्यपि दशहरा त्योहार नहीं मनाते हैं पिंटू विजयदशमी से प्रारंभ होने के कारण इस नृत्य का नाम दशहरा नृत्य पड़ा है किस नृत्य को बेगा आदिवासियों का आदि नृत्य कह सकते हैं दशहरा नृत्य अन्य नृत्यों का द्वार है एक तरह से दशहरा नृत्य बैगा वासियों में सामाजिक व्यवहार की कलात्मक सम्पूर्ति है
भगोरिया नृत्य- मध्यप्रदेश के झाबुआ और अलीराजपुर क्षेत्र में निवास करने वाले भीलो का भगोरिया नृत्य, भगोरिया हाट में होली तथा अन्य अवसरों पर युवक युवतियों द्वारा किया जाता है भगोरिया का आयोजन फागुन के मौसम में होली के पूर्व होता है भगोरिया हाट केवल हॉट ना होकर युवक-युवतियों के मिलन मेले है यही वे एक दूसरे के संपर्क में आते हैं आकर्षित होते हैं और जीवन सूत्र में बंधने के लिए भाग जाते हैं इसलिए इसका नाम भगोरिया हॉट पड़ा है
हुलकी नृत्य- हुलकी पाटा नृत्य मुरिया आदिवासियों में प्रचलित इसमें नृत्य के साथ ही गीत विशेष आकर्षण रखते हैं इस नृत्य में लड़के लड़कियां दोनों ही भाग लेते हैं इसमें यह गाया जाता है की राजा रानी कैसे रहते हैं अन्य गीतों में लड़के लड़कियों की शारीरिक संरचना के प्रति सवाल जवाब होते हैं जैसे ऊंचा लड़का किस काम का ? जवाब सैमी तोड़ने के काम का ! यह निरंतर किसी समय सीमा में बंधा हुआ नहीं है कभी भी नाचा गया जा सकता है
थापटी नृत्य- थापटी कोरकुओ का पारंपरिक लोक नृत्य है ये स्त्री और पुरुष दोनों सामूहिक नृत्य करते हैं युवतियों के हाथों में चिरखोरा वाद्ययंत्र होता है युवक के हाथों में एक पंछा और झांझ वाद्य यंत्र होता है ये गोलाकार परिक्रमा करते हुए दाएं बाएं झुक कर नृत्य करते हैं थापटी के मुख्य वाद्य यंत्र ढोल और ढोलक है ग्राम मल्हारगढ़ खंडवा के श्री मौजी लाल कोरकु थापटी नाच के प्रतिष्ठित कलाकार है
शैला नृत्य- यह शुद्धता जनजातियों का नृत्य है यह नृत्य आपसी प्रेम एवं भाईचारे का प्रतीक है सैला का अर्थ शीला का ठंडा होता है सेला शिखरों पर रहने वाले लोगों के द्वारा किए जाने के कारण इसका नाम सैला पड़ा यह मीरत दशहरे से आरंभ हुआ पूरी शरद ऋतु की रातों को चलता है यह नृत्य केवल पुरुषों द्वारा किया जाता है
अटारी नृत्य- यह बघेलखंड के भूमिया बेगा जनजाति का नृत्य है यह नृत्य वर्तुलकार होता है एक पुरुष के कंधे पर दो आदमी आरुण होते हैं एक व्यक्ति ताली बजाते हुए भीतर बाहर जाता रहता है पादप पार्श्व में रहते हैं
ढाढ़ल नृत्य- यह नृत्य कोरकू आदिवासियों द्वारा किया जाता है नृत्य के साथ सिंगार गीत गाए जाते हैं और नृत्य करते समय एक दूसरे पर छोटे-छोटे डंडों के प्रहार किया जाता है यह नृत्य जेष्ठ आषाढ़ की रातों में किया जाता है
भड़म नृत्य- इसे भढ़नी या भंगम नृत्य भी कहता है भारिया जनजाति में यह मुक्ता विवाह के अवसर पर किया जाता है इस नृत्य में ढोलक वादक एक पंक्ति में खड़े रहता है और टीमकी वादक खुले में रहते हैं समांतर गति में धीरे धीरे कम घूमते हुए संगीत की ताल के साथ कदम से कदम मिलाकर यह नृत्य किया जाता है
सैतम नृत्य- यह भारिया महिलाओं द्वारा किया जाने वाला नृत्य है इसमें हाथों में मंजीरा लेकर युवतियों के दो दल आमने-सामने खड़े होते हैं और बीच में एक पुरुष ढोल बजाता है एक महिला दो पंक्ति गाती है और शेष उसे दोहराते हुए नृत्य करते हैं
सरहुल नृत्य- सरहुल उराव जनजाति का अनुष्ठान इक नृत्य है उरांव वर्ष में चित्र मास की पूर्णिमा पर साल वृक्ष की पूजा का आयोजन करते हैं और वृक्ष के आसपास नृत्य करते हैं सरहुल एक समूह है इस नृत्य में पुरुष विशेष प्रकार का पीला साफा बांधते हैं महिलाएं अपने जुड़े में बगुले की पंख की कल की लगाती है नृत्य में पद संचालन वाद्य की ताल पर नहीं बल्कि गीतों की लयऔर तोड़पर होता है
Specially thanks to Post and Quiz makers ( With Regards )
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