मध्यप्रदेश में सांस्कृतिक एवं सामाजिक विभिन्नता होने के कारण अनेक प्रकार की बोलियां बोली जाती है !
बुंदेलखंडी बुंदेलखंडी शौरसेनी अपभ्रंश से जन्मी पश्चिमी हिंदी की एक प्रमुख बोली है इसका नामकरण जॉर्ज ग्रियर्सन ने किया था प्रदेश में इस बोली का क्षेत्र अन्य गोलियों की तुलना में अधिक व्यापक है ! इस़ बोली का विस्तार महाराष्ट्र के चाँदा,नागपुर, बुलढाना, भंडारा ,अकोला. जिलों में तथा उत्तर प्रदेश के झांसी जालौन ललितपुर आगरा हमीरपुर इटावा बांदा जिला में एवं मध्यप्रदेश के छतरपुर ,टीकमगढ़ .दमोह सागर .पन्ना. जबलपुर नरसिंहपुर. सिवनी. होशंगाबाद जिले में हैं!
निमाड़ी यह बोली मुख्य रूप से खंडवा. खरगोन .भारद्वाज बड़वानी .झाबुआ एवं इंदौर जिलों में बोली जाती है यह बोली शौरसेनी अपभ्रंश से विकसित हुई है डॉक्टर ग्रियर्सन ने इसे दक्षिणी राजस्थानी कहा है निमाड़ी बोली के कुछ स्थानगत एवं जातिगत रूप भी प्रचलित हैं
बघेलखंडी बघली अर्धमागधी अपभ्रन्ष से जन्मी पूर्वी हिंदी की एक महत्वपूर्ण बोली है प्रदेश में विशुद्ध बघेली रीवा शहडोल सतना और सीधी जिले में देखने को मिलती है इस होली में लोकगीतों एवं लोक कथाओं के रूप में फुटकर साहित्य रचा गया है
मालवी मालवी हिंदी के राजधानी वर्ग की बोली है मालवा क्षेत्र में बोली जाने के कारण ऐसे मालवी कहा गया है यह मुख्य रूप से सिहोर .नीमच . रतलाम मंदसौर शाजापुर झाबुआ उज्जैन देवास एवं इंदौर जिले में बोली जाती है!
ब्रजभाषा ब्रजभाषा खड़ी हिंदी की एक बोली है जो मुख्य रूप से भिंड मुरैना ग्वालियर में बोली जाती है इस बोली में सूरदास मीरा रसखान जैसे कवियों ने बड़े पैमाने पर साहित्य का सृजन किया है
कोरकू यह गोली बेतूल होशंगाबाद छिंदवाड़ा खरगोन जिले के गौर को आदिवासियों द्वारा बोली जाती है इस बोली में लोकगीतों एवं लोककथाओं के रूप में फुटकर साहित्य रचा गया है
भीली यह बोली प्रदेश के रतलाम धार झाबुआ खरगोन एवं अलीराजपुर जिले में रहने वाली भील जनजाति के द्वारा बोली जाती है
गोंडी गोंडी बोली प्रदेश में छिंदवाड़ा सिवनी बालाघाट मंडला डिंडोरी एवं होशंगाबाद जिले में रहने वाली गोंड जनजाति के द्वारा बोली जाती है
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