मध्य प्रदेश के प्रमुख राजवंश

मध्य प्रदेश के प्रमुख राजवंश


मध्य प्रदेश के प्राचीन काल के प्रमुख राजवंश एवं उनका योगदान


कारुषवंश 
अनुश्रुति अनुसार मनुष्य की परंपरा में अंतिम बिंदु बैवस्त हुए जिनके 10 पुत्र थे जिनमें से एक पुत्र कारुष के नाम पर कारूश वर्तमान बघेलखंड पर शासन किया

चंद्रवंश
मनु बैवस्त की पुत्री इला का  विवाह सोम  चंद्र से हुआ था इनके राज्य का नामऐल सामाराज्य हुआ जिसका आदी पुरुष चन्द्र ही था !
सोम चंद्रवंश के साम्राज्य का विस्तार बुंदेलखंड (Bundelkhand) तथा सोम  के पुत्र आयु और अमावसु हुए!

नंदवंश
मगध में नंद वंश. राजा महापदम नंद ने साम्राज्य विस्तार की नीति के अंतर्गत केडी को मगध राज्य में मिलाया था  एवं बड़वानी से नंद वंश की मुद्राएं प्राप्त हुई थी !

मौर्य वंश( Mauryan dynasty)
मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) में मौर्य सत्ता के व्यापक साक्ष्य मिले हैं ऐतिहासिक साक्ष्यों के अनुसार अशोक ने बौद्ध धर्म (Buddhism) के प्रचार हेतु सांची के स्तूप का निर्माण कराया था मौर्य युग में व्यापारिक मार्गो ( Trading routes) की संख्या 4 थी जिनमें तीसरा मार्ग दक्षिण में प्रतिष्ठान से उत्तर में श्रावस्ती तक जाता था जिसमें माहिष्मती उज्जैन दीदी शादी नगर स्थित है जबकि छोटा प्रसिद्ध व्यापारिक मार्ग जरूरत से मथुरा तक जाता था जिसके रास्ते में उज्जैनी पढ़ता था उस समय व्यापार के ऊपर राज्य का नियंत्रण होता था

शुंग वंश(Shunga dynasty)
सुंग वंश की स्थापना 185 ईस्वी पूर्व के आसपास अंतिम मौर्य शासक ब्रहद्रथके  सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने उसकी हत्या करके की थी पुष्यमित्र शुंग का पुत्र अग्निमित्र विदिशा का शासक था ! शुंग वंश के पांचवें शासक भागभ्द्र के समय में यवन राजपूत हेलियोडोरस ने विदिशा में भागवत धर्म से प्रभावित होकर गरुड़ध्वज की स्थापना कराई थी सुंगवंशीय राजाओं द्वारा भरहुत के स्तूप बनवाने के साक्ष्य भी मिले हैं

सातवाहन वंश(Satavahana dynasty)
सातवाहन वंशीय शातकरणी के द्वारा मालवा पर शासन करने के साक्ष्य विभिन्न पुराणों में मिले हैं इसके साथ ही उज्जैन देवास तेवर त्रिपुरी आदि से सातवाहन वंश के सिक्के प्राप्त हुए हैं सात  वाहन वंशीय राजाओं के काल में रोम के साथ व्यापार संबंधित है जिसके सक्ष्या चकर खेड़ा तथा बिलासपुर से मिलने वाले रोमन सिक्के हैं

क्षहरात वंश
भुमक और नहपान नामक दो प्रसिद्ध राजा इस वंश में हुए नहपान का संघर्ष गोमतीपूर्ण मे सातकर्णि से हुआ था नहपान इसके पूर्व मध्य प्रदेश के कई क्षेत्रों पर अधिकार कर चुका था जुगलथूम्बी से भी नह पान के पुनर्मुद्रित सिक्के मिले हैं !

कार्दम्क वंश
यशोमती और उसके पुत्र शासन द्वारा स्थापित उज्जैन का शक राज्य कार्म्दक वंशीय था इसका प्रसिद्ध राजा रुद्रदामन संस्कृत का महान पंडित था उसके गिरनार स्थित संस्कृत अभिलेख अनुसार सौराष्ट्र में सुदर्शन च
चषटक का पुनर्निर्माण रुद्रदामन ने कराया था उसने ही सर्वप्रथम तिथि युक्त चांदी के सिक्के मध्यप्रदेश में चलवाए थे!

नाग वंश
पौराणिक साक्ष्यों के अनुसार तीसरी चौथी सदी में नागवंशी राजाओं के अधिकार में विदिशा से लेकर मथुरा तक का समूचा क्षेत्र था विदिशा से इस वंश के शासकों के सिक्के प्राप्त हुए हैं इस वंश के राजाओं ने किसानों का प्रतिरोध किया था तथा उनके उन्मूलन के लिए 10 अश्वमेघ यज्ञ किए थे!

गुप्त वंश(Gupta dynasty)
गुप्त वंश के प्रतापी राजा समुद्रगुप्त ( Samudragupta) के कारण प्रदेश के इतिहास में कुछ परिवर्तन हुए प्रयाग प्रशस्ति के अनुसार समुद्रगुप्त ने महा कांतर महाकोशल और बेतूल तक के क्षेत्र को जीता हरिषेण (Harisen) के प्रयाग अभिलेख से विदित होता है कि समुद्रगुप्त ने तत्कालीन विदिशा शासक श्रीधर को पराजित करके विदिशा पर अधिकार कर लिया था समुद्रगुप्त ने सबको को पश्चिमी मध्य भारत में हराया नर्मदा के उत्तर के अधिकांश क्षेत्र उसने जीते नर्मदा के उत्तर के अधिकांश क्षेत्र गुप्ता के अधीन है !

समुद्रगुप्त ने वाकाटक वंश और नागवंशी वैवाहिक संबंध बनाए समुद्रगुप्त का उत्तराधिकारी रामगुप्त था जो सबको से प्राप्त हुआ चंद्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य ने लाखों को हराकर उज्जैन पर अधिकार किया और उसे राजधानी बनाया जाए यही उस के दरबार में नवरत्न रहते थे (कालीदास,, बेताल वट्ट,वराहमिहिर ,धन्वंतरि, अमर सिंह ,वररुचि घटक ,क्षणपक .सुख)
उदयगिरी गुफा लेख में उसके विदिशा अभिलेख का पता चलता है एरण की तरह होती अभिलेख से तोरमण का पता चलता है !

वाकाटक वंश
पुराणों के अनुसार विद्या शक्ति नामक ब्राह्मण ने विदिशा में वाकाटक वंश की स्थापना की थी इसके साथ वियाग्रा राज के नचना कुठार सतना एवं गज अभिलेख पन्ना से भी मिलते हैं ! प्रवरसेन - द्वितीय ने छिंदवाड़ा सिवनी बेतूल बालाघाट इंदौर क्षेत्र पर शासन किया!

ओलीकर वंश
प्राचीन मंदसौर में औलीकर वंश की सत्ता स्थापित हुए जयवर्मन,सिंहवर्मन नरवर्मन इसके प्रारंभिक शासक थे एक शासक बंधु बर्मन का प्रसिद्ध शिलालेख मंदसौर में है जिसके अनुसार बंधुवर्मन स्कंद गुप्त का सामानतवन गया था

परीव्राजक वंश
इसका पहला राजा देवादय था ! पन्ना में स्थापित परिव्राजक वंश की सत्ता पूरे बुंदेलखंड तक व्याप्त थी प्रभंजन दामोदरपुर हस्तिन उसके उत्तराधिकारी हुए जिनमें हस्तिन प्रतापी राजा था!

वर्धन वंश
हर्षवर्धन 606 से 143 ईसवी के समय मध्य प्रदेश का कुछ भाग उसके अधीन तब आया था जब वह अपनी बहन जय श्री को खोजने यहां आया था!

शैल वंश
महाकोशल क्षेत्र में स्थित सेल राज्य से संबंधित जानकारी बालाघाट ताम्रपत्र से होती है इसका प्रथम राजा श्रीवर्धन और अंतिम राजा जयवर्धन था !

राष्ट्रकूट वंश(Rashtrakuta dynasty)
सातवीं सदी में इस वंश की दो शाखाओं ने बेतूल अमरावती तथा मयंकखेट  पर शासन किया था राष्ट्रकूट वंश के अधिक साक्षय राज्य में नहीं मिलते हैं मान्यखेट शाखा का प्रतापी राजा दंतिदुर्ग ने पहली शाखा को भी अपने राज्य में मिला लिया था दंतिदुर्ग ने नर्मदा नदी के तट पर कई युद्ध किए थे !
गोविंद तृतीय ने नागभट्ट द्वितीय गुर्जर को परास्त कर उज्जैन में दरबार लगाया था !ध्रुव ने मालवा पर अधिकार किया तथा वत्सराज मालवा का प्रतिहार नरेश तथा धर्मपाल (बंगाल का पाल नरेश )को हराया इंद्र तृतीय ने त्रिपुरी के कलचुरी वंश की राजकन्या वेजंवा से विवाह किया ! इसका अभिलेख इंद्रगढ़ मंदसौर से मिलता है इंद्र तृतीय के समय अरबी आती असलम सूरी भारत आया था बेतूल अमरावती शाखा से दुर्ग राज गोविंदराज स्वामीकराज और युद्ध शुरू के शासन के प्रमाण मिलते हैं !

गुर्जर प्रतिहार वंश
इस वंश का प्रसिद्ध राजा नागभट्ट प्रथम था जिसका शासनकाल 730 ईस्वी से 760 ईसवी में था इसने उज्जैनी में शासन किया था इसने अरबों के भारत पर आक्रमण को विफल किया था वत्सराज ने  राज्य का विस्तार किया जिसने राष्ट्रकूट शासक कृष्ण तृतीय पाल नरेश धर्मपाल और प्रतिहार नरेश वत्सराज के बीच त्रिपक्षीय संघर्ष हुआ रामभद्र के पुत्र मिहिर भोज के समय अरबी यात्री सुलेमान आया था!
मिहिरभोज की महत्वपूर्ण उपलब्धि बुंदेलखंड पर अधिकार था
से पराजित होना पड़ था !
राज्यपाल को चंदेल नरेश विद्याधर गंड ने मार कर त्रिलोचन को राजा बनाया यशपाल अंतिम प्रतिहार राजा था !
मिहिरभोज को धर्म राष्ट्रकूट तथा कोलल कलचुरी त्रिपुरी

परमार वंश
परमार वंश की स्थापना उपेंद्र कृष्णा राज ने की थी परंतु इस वंश का प्रथम स्वतंत्रता शासक  श्री हर्ष  परमार वंश का प्रसिद्ध राजा भोज था परमार वंश की राजधानी विधार्थी राजा भोज ने भोजताल (भोपाल )सरस्वती मंदिर धार का निर्माण कराया था इस वंश के राजा जयसिंह को हराकर गुजरात के शासक चालुक्य भीम प्रथम एवं कलचुरी शासक करण के संग ने मालवा को हथिया लिया था !

कलचुरी वंश
उत्तरी कलचुरियों ने 550 से 1156 इसवी तक तथा दक्षिणी कलचुरियों ने 620 से 1181 ईसवी तक शासन किया थाइस वंश का संस्थापक कृष्णा राज को माना जाता है इस वंश के तीन राजाओं पकृष्ण राज शंकरगण बुद्ध राज के सिक्के मिलते हैं बुधराज को चालुक्य सासक मंगलेश ने हराकर माहिष्मती पर अधिकार कर लिया था

गूहलिवंश
जीरण मंदसौर अभिलेख से मंदसौर में गुहिल वंश के शासन की पुष्टि होती है विग्रह पाल इसका पहला ज्ञात शासक था!

कचछापघाट वंश
इस वंश की तीन शाखाएं गवालियर 29 कुंड और नरवर में स्थापित है ग्वालियर से प्राप्त विभिन्न अभिलेखों में इस वंश का उल्लेख है पहला शासक लक्ष्मण था जिसके पुत्र बज्रदमन  ने ही कन्नौज से गवालियर को छीन कर राज्य विस्तार किया था !

चंदेल वंश
चंदेल वंश ने महोबा में शासन किया था इस वंश का संस्थापक नियुक्त था राजा धंगदेव के शासनकाल में चंदेलों ने प्रतिहारों से स्वतंत्र होकर अपने राज्य का विस्तार किया था खजुराहो के प्रसिद्ध मंदिरों पार्शवनाथ एवं विश्वनाथ का निर्माण धंगदेव ने कराया था खजुराहो चंदेल वंश की राजधानी थी अंतिम चंदेल शासक परमार परमर्दी  को कुतुबुद्दीन ऐबक ( Qutbuddin Aibak) ने हराकर महोबा को अपने राज्य में मिला लिया था !
जय शक्ति के नाम पर ही बुंदेलखंड का नाम जेजाभक्ति पड़ा यशोवर्मन ने कलिंग कलिंजर का किला जीता था खजुराहो में विष्णु मंदिर बनवाया विष्णु मूर्ति उसने प्रतिहार नरेश नेपाल को हराकर कन्नौज से प्राप्त की थी! खजुराहो के जगदंबे और चित्रगुप्त मंदिर गगन देश के शासन में बनाए गए गगन देव का पुत्र विद्याधर हुआ जिसने हिंदू संग से भागे राजा राज्य पाल प्रतिहार की हत्या कर की ! कंदरिया महादेव मंदिर विद्यालय ने बनवाया था सुलक्षण वर्मन ने परमार शासकों के मालवा को लूटा हो त्रिपुरी के कलचुरी शासक को हराया !

तोमर वंश
वीर सिंह तोमर ने 14 वी सदी मे मुस्लिम सत्ता की राजा की स्थिति का लाभ उठाकर ग्वालियर में पंवार वंश की स्थापना की थी किस वंश के राजा शूरसेन ए गवालियर का मजबूत किला बनवाया था जिसे किलो का जिब्राल्टर नाम से जाना जाता है !

बघेल वंश
इस वंश का शासन रीवा में था रामचंद्र के दरबार के संगीतज्ञ तानसेन को अकबर ने अपने नवरत्नों में शामिल किया 1569 ईस्वी में बघेल वंश ने मुगलों की अधीनता स्वीकार कर ली थी भथा राज्य विंध्य प्रदेश के अंतिम शासक मार्तंड सिंह ने जिन्होंने इसका विलय 1947 में भारतीय संघ में किया जो रीवा में सांसद भी चुने गए!

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