'आखा' गढ गोमुखी बाजी, माँ भई देख मुख राजी
धन्य धन्य गंगिया माजी, जिन जायो सूरज मल गाजी
भइयन को राख्यो राजी, चाकी चहुं दिस नौबत बाजी.'
'नहीं जाटनी ने सही व्यर्थ प्रसव की पीर, जन्मा उसके गर्भ से सूरजमल सा वीर'.
"नाँच उठी भारत की भावी सदाशिव शीश, ओंधी हुई बुद्धि उस जनरल महान की ।
होती न हीन दशा हिन्दी−हिन्द−हिन्दुओं की, मानता जो भाऊ, कहीं सम्मति सुजान की।।"
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