माउंटबेटन योजना 3 जून 1947(Mountbatten Plan 3 June 1947)
माउंटबेटन योजना 3 जून 1947
(Mountbatten Plan 3 June 1947)
समय- 3 जून 1945 माउंटबेटन का पूरा नाम-लार्ड लूई माउंटबेटन लार्ड माउंटबेटन-भारत के गवर्नर जनरल भारत आगमन-24 मार्च 1947 माउंटबेटन की प्रथम मुलाकात-पंडित जवाहरलाल नेहरू से गांधी जी से मुलाकात-31 मार्च 1947 माउंटबेटन योजना-भारत का विभाजन माउंटबेटन द्वारा सर्वप्रथम विभाजन के लिए तैयार किया गया- सरदार वल्लभ भाई पटेल और उसके बाद पंडित जवाहरलाल नेहरू
लार्ड माउंटबेटन का दुबारा भारत आगमन-31 मई 1947 माउंटबेटन योजना की प्रस्तुति-3 जून 1947 लार्ड माउंटबेटन योजना के अंय नाम-मन बाटन योजना, 3 योजना माउंटबेटन योजना का निर्णय- भारत विभाजन की एकमात्र विकल्प है नेहरु को भारत विभाजन के लिए तैयार किया गया-लेडी माउंटबेटन द्वारा माउंटबेटन योजना का विरोध किया-कांग्रेस समिति के 161 सदस्य ने
वेवल के स्थान पर लार्ड लुई माउंटबेटन को भारत का वायसराय नियुक्त करने की घोषणा की
24 मार्च 1947 को लॉर्ड माउंटबेटन गवर्नर जनरल बनकर भारत आए
भारत आते ही लॉर्ड माउंटबेटन ने घोषणा कर दी कि वह कुछ ही महीनों में भारतीयों को सत्ता सौंप देंगे
माउंटबेटन ने यहां की राजनीतिक स्थितियों पर काबू पाने के लिए देश के विभिन्न नेताओं से विचार विमर्श किया यह विचार विमर्श 24 मार्च से 15 अप्रैल के बीच तक किया गया
कांग्रेस के प्रमुख नेताओं में सर्वप्रथम लॉर्ड माउंटबेटन ने पंडित जवाहरलाल नेहरू से मुलाकात की
महात्मा गांधी से लार्ड माउंटबेटन की पहली मुलाकात 31 मार्च 1947 को हुई
इसके पश्चात लार्ड माउंटबेटन वल्लभभाई पटेल से मिले
मोहम्मद अली जिन्नाह से माउंट बेटन की मुलाकात कांग्रेस नेता मौलाना अबुल कलाम आजाद जे. बी.कृपलानी .कृष्ण मेनन और मुस्लिम लीग सचिव लियाकत अली के साथ हुई
मोहम्मद अली जिन्ना अपनी पाकिस्तान की मांग पर अड़े रहे इससे कांग्रेसी नेताओं को स्पष्ट हो गया था कि भारत की एकता असंभव है
सिक्ख प्रतिनिधियों में बलदेव सिह, मास्टर तारा सिंह और अन्य सिक्ख नेताओं के अतिरिक्त बीकानेर और भोपाल की भारतीय रियासतों के राजाओं से भी बातचीत की
24 मार्च से 15 अप्रैल के बीच के विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं से वार्तालाप के बाद वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि भारतीय समस्या का एकमात्र समाधान देश का विभाजन और पाकिस्तान की स्थापना करना था
गांधीजी ने अपनी मुलाकात के दौरान यह सुझाव दिया कि अंतरिम सरकार पूर्ण रूप से मुस्लिम लीग के नेता मोहम्मद अली जिन्ना के हाथों में सौंप दी जाए जिससे भारत में सांप्रदायिक दंगों को रोका जा सके
लेकिन गांधीजी का यह सुझाव कांग्रेस नेताओं और वर्किंग कमेटी को स्वीकार नहीं था
मोहम्मद अली जिन्ना ने भी अपनी मुलाकात के दौरान गांधीजी के सुझाव का विरोध किया था
जब लार्ड माउंटबेटन को यह पता चल चुका था कि भारतीय समस्याओं का समाधान केवल विभाजन है तो लार्ड माउंटबेटन कांग्रेस नेतृत्व को अपनी राय के पक्ष में लाने के लिए कार्य करना प्रारंभ कर दिया
माउंटबेटन ने सबसे पहले सरदार वल्लभभाई पटेल को देश के बंटवारे के पक्ष में किया ,इसके बाद पंडित जवाहरलाल नेहरु को समझा कर बटवारे के लिए हां करवाया
पंडित जवाहरलाल नेहरू को समझाने के कार्य में माउंटबेटन से ज्यादा लेडी माउंटबेटन ने सहयोग किया
भारत विभाजन के खिलाफ? लेकिन अबुल कलाम आजाद देश विभाजन के खिलाफ थे उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा मैं बटवारे के खिलाफ रहा हूं और अभी भी हूं
गांधी जी ने भी कहा अगर कांग्रेस बंटवारा मंजूर करेगी तो उसे मेरी लाश के ऊपर से गुजरना पड़ेगा जब तक मैं जिंदा हूं भारत के बटवारे के लिए कभी राजी नहीं होगा और अगर मेरा बस चला तो कांग्रेस को भी इसे मंजूर करने की इजाजत नहीं दूंगा
2 अप्रैल 1947 को महात्मा गांधी लॉर्ड माउंटबेटन से मिले उन्होंने माउंटबेटन को सुझाव दिया कि जिन्ना को सरकार बनाने दिया जाए
लार्ड माउंटबेटन को यह सुझाव कुछ हद तक मंजूर था लेकिन इस सुझाव का जबरदस्त विरोध पंडित जवाहरलाल नेहरु और सरदार वल्लभभाई पटेल दोनों ने किया और गांधीजी को यह सुझाव वापस लेने के लिए बाध्य किया गया
मौलाना अबुल कलाम आजाद का विचार था कि गांधीजी सरदार पटेल के प्रभाव के कारण बटवारे का विरोध ना करें और उनके समर्थक बन जाए और ऐसा ही हुआ सरदार वल्लभ भाई पटेल के प्रभाव में गांधीजी विभाजन के लिए अनिच्छापूर्वक की तैयार हो गये
कांग्रेस नेतृत्व को विभाजन के लिए तैयार करने के पश्चात लार्ड माउंटबेटन मई 1947 में विचार विमर्श के लिए लंदन गए
लार्ड माउंटबेटन नें लंदन पहुंचकर ब्रिटिश सरकार के सामने देश विभाजन की अपनी योजना पेश किए
ब्रिटिश सरकार की सहमति पाकर लार्ड माउंटबेटन दुबारा 31 मई 1947 को वापस आए और कांग्रेस और मुस्लिम लीग नेताओं से बातचीत की
☄लॉर्ड माउंटबेटन की योजना☄ 3 जून 1947 को लॉर्ड माउंटबेटन ने एक वक्तव्य दिया जिसमें भारतीय समस्या का हल इस प्रकार सुझाया
महामहिम सम्राट की सरकार की कोई इच्छा नहीं कि वह संविधान सभा के कार्य में बाधा डाले
उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि सभा द्वारा बनाया गया संविधान उन प्रांतों पर लागू नहीं किया जा सकता जो इसे स्वीकार करने को उद्यत नहीं है
महामहिम की सरकार को ऐसे प्रदेशों की इच्छाओं को जानने के लिए निम्नलिखित तरीका ही संतोषजनक प्रतीत होता है
उनका संविधान विद्यमान संविधान सभा ही बनाएं अथवा एक नई सविधान या पृथक संविधान सभा जिसमें सब प्रदेशों के प्रतिनिधि भाग ले
जिन्होंने इस सभा में भाग लेना अस्वीकार कर दिया है जब ऐसा हो जाएगा तो यह निर्णय करना होगा कि किस शक्ति को अथवा शक्तियों को प्रभु सत्ता का हस्तांतरण किया जाए
पंजाब और बंगाल में हिंदू और मुसलमान बहुसंख्यक जिलों के प्रांतीय विधान सभा के सदस्यों की अलग-अलग बैठक बुलाई जाए
इस बैठक में एक मुस्लिम बहुसंख्यक भाग और दूसरा शेष प्रांत के प्रतिनिधियों का है
इन बैठकों में यह निश्चित किया जाएगा कि प्रांतों का बंटवारा हो अथवा नहीं
यदि कोई भी प्रांत का साधारण बहुमत बंटवारे के पक्ष में मत देता है तो बंटवारे का प्रबंध किया जाए
सिंध की प्रांतीय सभा को भी विशेष बैठक में ऐसा निर्णय करना था
उत्तर पश्चिमी सीमा प्रांत में जनमत द्वारा यह पता लगाया जाए की वह भारत के किस भाग में के साथ रहना चाहेगा
भारतीय नरेशों के प्रति पुरानी नीति रहेगी की सर्वोच्चता के अधिकार उन राज्यों को वापस लौटा दिए जाएंगे
असम के मुस्लिम बहुसंख्यक जिले सिलहट में भी जनमत संग्रह का प्रावधान था कि
वह आसीम में रहे अथवा पूर्वी बंगाल में सम्मिलित हो
लॉर्ड माउंटबेटन का सबसे मुख्य बिंदु हिंदुस्तान को दो हिस्सों भारतीय संघ और पाकिस्तान में बांट दिया जाएगा
यदि बंटवारा होना था तो इस योजना में सीमा आयोग का प्रावधान भी था ताकि बंटवारे की सीमाएं निश्चित की जा सके
इस वक्तव्य के अंत में यह भी कहा गया कि महामहिम की सरकार इसी वर्ष में एक विधेयक पारित करेगी ताकि एक अथवा दो प्राधिकरणों को प्रादेशिक शासन स्वतंत्रता के आधार पर सत्ता सौंपी जा सके
इसमें यह भी कहा गया ब्रिटिश राष्ट्रमंडल में बने रहना अपनी इच्छा पर निर्भर होगा
☄लॉर्ड माउंटबेटन योजना पर स्वीकृति☄
लॉर्ड माउंटबेटन द्वारा 3 जून 1947 को जो योजना प्रस्तुत की गई उसे कांग्रेस और मुस्लिम लीग दोनों ने स्वीकार कर लिया
बंगाल और पंजाब में जिलों के विभाजन और सीमा निर्धारण का कार्य एक कमीशन के अधीन सौंपा गया
स्पष्टत:माउंटबेटन की योजना देश के 2 टुकड़े कर देने की थी साथ ही यह देसी रियासतों को अधिकार देती थी कि वह चाहे तो भारतीय संघ या पाकिस्तान किसी में शामिल ना होकर ब्रिटेन के अधीन बनी रह सकती थी
माउंटबेटन योजना को कांग्रेस कार्यसमिति मे 14 जून 1947 की बैठक में स्वीकृति हेतु गोविंद बल्लभ पंत ने (देश के विभाजन का)प्रस्ताव रखा गया
इस प्रस्ताव का समर्थन अब्दुल कलाम आजाद ने किया जो प्रारंभ में बंटवारे का विरोध कर रहे थे
अबुल कलाम आजाद ने कहा कि कांग्रेस कार्य समिति का फैसला सही फैसला नहीं है लेकिन कांग्रेस के सामने कोई और रास्ता नहीं है
पटेल और नेहरू ने भी इस प्रस्ताव का समर्थन किया गांधी ने प्रस्ताव को स्वीकार करने की सलाह दी
इस प्रस्ताव का विरोध करने वाले नेताओं में सिंध कांग्रेस के नेता चौथराम गिडवानी, पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष डॉक्टर किचलू ,पुरुषोत्तम दास टंडन ,मौलाना हाफिज उरर्रहमान ने इसका विरोध किया
महात्मा गांधी पंडित जवाहरलाल नेहरु और सरदार वल्लभ भाई पटेल के समर्थन के बावजूद कांग्रेस कार्यसमिति का प्रस्ताव अखिल भारतीय कांग्रेस समिति में सर्वसम्मति से पास नहीं हो सका था
देश के विभाजन को अखिल भारतीय कांग्रेस समिति ने सर्वसम्मति से स्वीकार नहीं किया कांग्रेस समिति के108 सदस्य विभाजन के विरोध में थे या तटस्थ रहे
☄भारत का बटवारा☄
3 जून की योजना सभी दलों ने स्वीकार कर ली थी
मुस्लिम लीग बहुत प्रसन्न थी क्योंकि उसे स्वदेश मिल गया था चाहे वह कटा-छंटा था
मुस्लिम लीग की काउंसिल की बैठक 10 जून 1947 को दिल्ली में बुलाई गई मुस्लिम लीग में भारी मतों से योजना को स्वीकार किया
लीग की बैठक मे उपस्थिति 400 सदस्यों में से सिर्फ 10 सदस्यों ने इसका विरोध किया था
कांग्रेस ने बटवारा इसीलिए स्वीकार कर लिया क्योंकि इसके अतिरिक्त कोई दूसरा मार्ग नहीं था
सिक्खो ने अनचाछे होकर इसे स्वीकार किया
यह योजना बिना किसी विलंब के लागू कर दी गई
पंजाब और बंगाल की सभाओ ने बटवारा मांगा और पूर्वी बंगाल और पश्चिमी पंजाब पाकिस्तान में सम्मिलित हो गए
इन दोनों प्रांतों के बंटवारे के लिए सीमा आयोग नियुक्त किया गया
उत्तरी पश्चिमी प्रांत के जनमत संग्रह का परिणाम पाकिस्तान के पक्ष में था क्योंकि प्रांतीय कांग्रेस ने इस जनमत संग्रह में भाग नहीं लिया था
कांग्रेस द्वारा माउंटबेटन योजना को स्वीकार कर लेने के बाद पश्चिमोत्तर सीमा प्रांत के राष्ट्रवादी खुदाई खिदमतगार के नेता अब्दुल गफ्फार खाँ धर्म संकट में पड़ गए
उन्होंने मांग की कि अलग पठानिस्तान या पख्तूनिस्तान की योजना के बारे में भी जनमत लिया जाए लेकिन माउंटबेटन ने इससे इंकार कर दिया
फलत: पाकिस्तान या भारतीय संघ में सम्मिलित होने के बारे में जनमत लेने के समय उन्होंने बहिष्कार का नारा दिया
मुस्लिम लीग ने सांप्रदायिकता का प्रचार कर और अनेक जाली वोट डलवाकर पश्चिमोत्तर सीमा प्रांत को पाकिस्तान में शामिल होने का फैसला करवाया
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