मीर कासिम द्वारा सिंध पर आक्रमण

मीर कासिम द्वारा सिंध पर आक्रमण


अरब भारत पर पहला मुस्लिम आक्रमणकारी थे अरब आक्रमण के समय सिंघ की राजधानी एलोर( वर्तमान रोहडी़ ) थी
 सिंध पर अरब आक्रमण से पहले चाच नामक एक ब्राह्मण का अधिकार था। चाच के अधिकार से पूर्व सिंध पर राय परिवार का आधिपत्य था राय वंश के शासक शूद्र थे राय वंश का अंतिम शासक साहसी द्वितीय था
चाच ने साहसी द्वितीय की हत्या कर इसकी विधवा लाडी से विवाह कर स्वयं गद्दी पर बैठ गया था

अरबों के आक्रमण के समय 712 में सिंध पर चाच का भतीजा दाहिर राज्य कर रहा था दाहिर द्वारा लुटेरे डाकू के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं करने के कारण इस घटना से हज्जाज ने सिंध पर आक्रमण करने का निर्णय किया
हज्जाज ने  सिंध पर आक्रमण करने के लिए उबैदुल्लाह और बुदेल के नेतृत्व में दो अभियान भेजें लेकिन यह दोनों ही अभियान असफल हुए इसके पश्चात हज्जाज ने मीर कासिम (मोहम्मद बिन कासिम )के नेतृत्व में सिंध विजय हेतु अभियान भेजा था

मीर कासिम( मुहम्मद बिन कासिम )

उबैदुल्लाह और बुदेल के पराजित होने के बाद हज्जाज ने सिंध विजय अभियान का दायित्व मीर कासिम को सौंपा जो उसका दामाद और भतीजा दोनों ही था (अल हज्जाज इराक का गवर्नर था और उस समय खलीफा वालिद भी था)
इस अभियान के समय मीर कासिम की आयु मात्र 17 वर्ष थी वह वीर और कुशल सेनानायक था मीर कासिम मकरान के रास्ते स्थल मार्ग से सिंधु पर हमला किया उसके साथ सीरिया और इराक के 6000 चुने हुए घुड़सवारों 6000 ऊँट सवारों और 3000 भारवाही  ऊँटें थी।
जल मार्ग से पांच बड़ी मशीने भेजी गई एक मशीन के साथ 500 आदमी थे और पाँच  मशीनें मिलकर 2500 सैनिक थे मकरान के पास वहां का गवर्नर मोहम्मद हारुन भी अपनी सेना सहित उसके साथ हो लिया

मकरान से मुहम्मद बिन कासिम देवल की ओर बढ़ा मार्ग में जाटों और मेढो़ को भी अपने पक्ष में कर लिया। जाट और मेढ़ मीर कासिम से इसलिए मिले क्योंकि उनके साथ सिंध के राजा दाहिर का व्यवहार अच्छा नहीं था
वहां के बौद्ध भी दाहिर से असंतुष्ट थे और उन्होंने आक्रमणकारियों का स्वागत किया एक विशाल सेना के साथ 712 ई. में मीर कासिम देवल के बंदरगाह पर पहुंचा और उसे घेर लिया

दाहिर या तो भयभीत होकर या फिर मोर्चा की दृष्टि से सिंध के पश्चिमी प्रदेशों को छोड़कर उसके पूर्व किनारों पर युद्ध की तैयारी में लग गया अरबों ने देवल पर अधिकार कर लिया 3 दिन तक जनसंहार होता रहा 17 वर्ष से अधिक आयु वाले  सभी पुरुषों को मौत के घाट उतार दिया गया और शेष को गुलाम बना लिया गया

 नीरुन विजय
देवल के अधिकार के बाद मीर कासिम ने नीरुन की ओर प्रस्थान किया इस समय नगर पर बौद्ध भिक्षुओं और ब्राह्मणों का अधिकार था।बौद्धों ने बिना युद्ध किए ही आत्म समर्पण कर दिया।

सेहवान यात्रा
नीरुन के बाद मीर कासिम सेहवान की ओर बढ़ा सेहवान पर दाहिर का चचेरा भाई बजहरा का शासन था इसने अरबों का मुकाबला करना चाहा लेकिन नगर निवासी अधिकांश बौद्ध थे युद्ध नहीं करना चाहते थे
बजहरा ने नगर छोड़कर बुधिया के जाटों के पास शरण ली। सेहवान के निवासियों ने नगर अरबो को सौंप दिया और जजिया देना स्वीकार कर लिया

जाट आक्रमण
 सेहवान से कूच कर मीर कासिम ने जाटो  पर आक्रमण किया क्योंकि जाटों ने बजहरा को शरण दी थी बजहरा ने जाटों की सहायता से मीर कासिम का मुकाबला किया लेकिन मारा गया जाटों का एक  मुखिया काक  मीर कासिम से मिल गया
सिंधु नदी को पार करने के लिए मीर कासिम ने नावों के पुल बनाने की आज्ञा दी।

रावर युद्ध
दाहिर इस आक्रमण से आश्चर्यचकित रह गया और अपनी सेना के साथ भागकर रावर में शरण ले ली।  मीर कासिम ने दाहिर पर आक्रमण(712) किया दोनों के बीच युद्ध हुआ लेकिन दाहिर पराजित हुआ और मारा गया

रानी बाई
राजा दाहिर की मृत्यु के पश्चात उसकी विधवा रानी "रानी बाई" ने वीरता पूर्वक रावर दुर्ग की रक्षा की। रानी बाई के नेतृत्व में सिंध की स्त्रियों ने अपने पुरुषों के पापों का प्रायश्चित  करने का प्रयत्न किया।
रानी बाई  वीरता पूर्वक लड़ी लेकिन सफलता नहीं मिलने पर अन्य स्त्री के साथ रानी ने जौहर कर लिया
दाहिर की विधवा रानी ""रानी  बाई के द्वारा किए गए जोहर का उल्लेख पहली बार भारतीय  इतिहास में मिलता हैं

ब्राह्मणवाद विजय
रावर  से मीर कासिम ने ब्राह्मणवाद की ओर प्रस्थान किया उस समय ब्राह्मणवाद में दाहिर का बेटा जयसिंह शासन कर रहा था छह माह तक मोर्चा बंदी के बाद जय सिंह का राज मंत्री मीर कासिम से मिल गया और अंत में विवश होकर उसने आत्मसमर्पण कर दिया और बाद में उसने मुस्लिम धर्म स्वीकार कर लिया

ब्राह्मणवाद के पतन के बाद मोहम्मद बिन कासिम ने दाहिर की दूसरी विधवा रानी लाडी और दो कन्याओं सूर्य देवी और परमल देवी को बंदी बना लियाचचनामा ग्रंथ के अनुसार दाहिर कि यह दोनों पुत्रियां मीर कासिम की मृत्यु का कारण थी क्योंकि इन्होंने खलीफा से  मीर कासिम की शिकायत की थी और इनकी शिकायत पर मीर कासिम को मृत्युदंड दिया गया था

ब्राह्मणवाद के बाद मीर कासिम ने सिंध की राजधानी ऐरोर पर अधिकार कर लिया उस समय यहाँ दाहीर के पुत्रों का अधिकार था इसके साथ ही संपूर्ण सिंध पर अरबों का अधिकार हो गया

मुल्तान विजय
सिन्ध  विजय के बाद 713ईस्वी में मीर कासिम ने मुल्तान पर आक्रमण किया 2 महीने के घेरे के पश्चात वह मुल्तान पर विजय प्राप्त करने में सफल हुआ।
अरबों  को मुल्तान से इतना सोना प्राप्त हुआ कि उसे स्वर्ण नगरी पुकारा जाने लगा
मुल्तान विजय के बाद मीर कासिम शेष भारत के विजय की योजना बनाने लगा कन्नौज विजय के लिए उसने अबू हकीम के अधीन 10000 अश्वारोही सेना भेजी।इस योजना के कार्यान्वयन से पूर्व ही मीर कासिम का अंत हो गया

मीर कासिम की मृत्यु
714ई.मे खलीफा वलीद की मृत्यु के बाद नया खलीफा सुलेमान बना यह हज्जाज का शत्रु था मीर कासिम हज्जाज का भतीजा और दामाद था इस कारण सुलेमान को मीर कासिम से भी द्वैष था उसने मीर कासिम को वापस ईराक बुलाया और घोर यातनाएं देकर उसका वध करवा दिया

कासिम की मृत्यु के संबंध के विषय में कई मतभेद है चचनामा के अनुसार दाहिर की दो अविवाहित पुत्रियां थी सूर्य देवी और परमाल देवी थी जिसे मीर कासिम ने ब्राह्मणवाद के पतन के बाद अपना बंदी बना लिया था

खलीफा सुलेमान के पास इन दोनों को भेंट के रूप में भेजा था उन्होंने खलीफा सुलेमान से शिकायत की कि वह (मुहम्मद बिन कासिम) पहले ही उनके सतीत्व को नष्ट कर चुका है अतः खलीफा ने क्रुद्ध होकर मीर कासिम को मार डालने की आज्ञा दी

चचनामा की उपयुक्त उल्लेख की सत्यता पर कुछ विद्वानों को संदेह है मीर कासिम के मृत्यु के बाद भारत में अरबों का विस्तार शिथील पड़ गया

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