मुहम्मद बिन तुगलक की नवीन योजनाएं और सुधार(New plans and reforms of Muhammad bin Tughluq)
मुहम्मद बिन तुगलक की नवीन योजनाएं और सुधार
(New plans and reforms of Muhammad bin Tughluq)
मुहम्मद बिन तुगलक एक विलक्षण प्रतिभा का शासक था वह जनहित और राज्य की समृद्धि के लिए सदैव नई योजनाएं बनाता रहता था
इतिहासकार बरनी ने सुल्तान की 5 नवीन योजनाओं का उल्लेख किया है जिसका क्रम इस प्रकार है--
1-दोआब में राजस्व वृद्धि(1325ई.) 2-राजधानी परिवर्तन(1326-27ई.) 3-सांकेतिक मुद्रा का प्रचलन(1329ई.) 4-खुरासान अभियान और 5-कराचिल अभियान(1330-31ई.)
सुविधा की दृष्टि से मुहम्मद बिन तुगलक के शासनकाल को दो भागों में विभक्त किया जा सकता है
प्रथम भाग-1325 से 1335ई.तक मुहम्मद बिन तुगले नये प्रयोग करता रहा और प्राय: शांति बनी रहे
द्वितीय भाग- 1335 से 1351ई. तक उसकी नई योजनाओं का प्रयोग असफल रहा अमीर और उलेमा वर्ग उसके विरुद्ध हो गए और राज्य में विद्रोह प्रारंभ हो गया।
दोआब में राजस्व वृद्धि
अलाउद्दीन खिलजी के बाद मुहम्मद बिन तुगलक दिल्ली सल्तनत का दूसरा शासक था जिसने भू राजस्व पर ध्यान दिया
अलाउद्दीन खिलजी और मुहम्मद बिन तुगलक दोनों ने ही भूमि संबंधी (कृषि )नीति के विकास में सहायता की जो मुगलों के शासन काल में पूर्ण विकसित हुई
सर्वप्रथम मुहम्मद तुगलक ने सुबें की आय व्यय का हिसाब रखने के लिए एक रजिस्टर तैयार कराया और सभी सूबेदारों को इस संबंध में अपने अपने सुबों को हिसाब भेजने के आदेश दिए
लगान वसूलने वाले कर्मचारियों के कार्यों के निरीक्षण के लिए "शताधीकारी" नामक नए पदाधिकारी की नियुक्ति की गई जो सौ गांवों के लगान वसूलने वाले अधिकारियों के कार्यों पर नियंत्रण रखता था
मुहम्मद बिन तुगलक ने प्रसिद्ध सूफी शेख शिहाबुद्दीन को दीवान ए मुस्तखराज (लगान की बकाया राशि वसूल करने वाला) नियुक्त किया
मुहम्मद बिन तुगलक के राजस्व संबंधी सबसे महत्वपूर्ण कार्य था, दोआब में कर की वृद्धि करना
दो आब उपजाऊ प्रदेश था इसीलिए सुल्तान ने आर्थिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए इस क्षेत्र में कर वृद्धि की योजना बनाई
प्रचलित लगान में 1/10 से 1/20 तक की वृद्धि की गई इसके अतिरिक्त नए कर (आबताब) भी लगाए गए,चराई कर और गढी़ कर को सख्ती से वसूला गया
खेत की उपज का आकलन वास्तविक उपज के आधार पर नहीं बल्की मानक उपज के आधार पर किया जाता था
इसके अतिरिक्त राज्य के हिस्से को नगद में रूपांतरित करते समय वास्तविक मूल्य को नहीं बल्कि सरकार द्वारा निश्चित दरों को ध्यान में रखा जाता था
दुर्भाग्य से दोआब में कर वृद्धि के समय ही वहां अकाल पड़ गया था, यह अकाल लगभग 1334-35ई.के आसपास प्रारंभ हुआ जो लगभग 7 वर्ष तक चला
ऐसी स्थिति में कर वृद्धि और सुल्तान के कृषि संबंधी सुधार कृषको पर अत्याधिक बोझ बन गए, किसानों की स्थिति दयनीय हो गई
भू राजस्व अधिकारियों ने निश्चित राशि को निर्दयता से वसूल करने का प्रयत्न किया, इस अत्याचार से घबराकर किसानों ने अपनी खरीफ फसलों में आग लगा दी और खेती करना छोड़ दिया
शक्तिशाली जमीदारो ने लगान देने से इंकार कर दिया, किसानों ने राजस्व अधिकारियों और सैनिकों की हत्या कर दी
इस प्रकार पूरे दोआब क्षेत्र में विद्रोह फैल गया,सुल्तान ने बड़ी कठोरता से इस विद्रोह को दबाया
बरनी के अनुसार- हजारों व्यक्ति मारे गए और जब उन्होंने बचने का प्रयास किया तब सुल्तान ने विभिन्न स्थानों पर आक्रमण किया और जंगली जानवरों की भांति उनका शिकार किया
राजधानी परिवर्तन
मोहम्मद तुगलक के कार्यों में सर्वाधिक विवादास्पद राजधानी का परिवर्तन था
1326-27 ईस्वी में उसने राजधानी दिल्ली से देवगिरी (दौलताबाद) परिवर्तित करने का निर्णय किया और उसका नाम कुतुबुल इस्लाम रखा
इससे पूर्व कुतुबुद्दीन मुबारक ख़िलजी ने देवगिरी का नाम कुत्बाबाद रखा था और यहां टकसाल स्थापित किया था
राजधानी परिवर्तन के विषय में जियाउद्दीन बरनी ने लिखा है कि--नगर इतनी बुरी तरह उजड़ गया है कि नगर की इमारतों महल और आसपास के इलाकों में एक बिल्ली कुत्ता तक नहीं बचा
इसी विषय में--इब्नबतूता ने कहा है कि एक अंधे को घसीटकर दिल्ली से दौलताबाद लाया गया, एक शय्यागत लंगड़े को पत्थर फेंकने के यंत्र द्वारा वहां फेंका गया
राजधानी परिवर्तन के कारण
मुहम्मद बिन तुगलक दिल्ली के सुल्तानों में प्रथम सुल्तान था, जिसने उत्तरी और दक्षिणी भारत के मध्य प्रशासनिक और सांस्कृतिक एकता स्थापित करने का प्रयत्न किया
देवगिरी दौलताबाद को संभवत राजधानी बनाने में उसका मूल कारण यही था
राजधानी परिवर्तन के परिणाम
मोहम्मद बिन तुगलक की राजधानी परिवर्तन की यह योजना विफल रही
1334-35 ईस्वी में माबर( तमिलनाडु) में भयंकर विद्रोह हुआ, अतः विद्रोह दबाने के लिए वह माबर की ओर प्रस्थान करने लगा
वीदर पहुंचने पर प्लेग की महामारी फैल गई जिससे सुल्तान के कई सैनिक मर गए, मुहम्मद बिन तुगलक स्वयं भी बीमार पड़ गया और दौलताबाद वापस आ गया
इस घटना के बाद सुल्तान की मृत्यु के अफवाह फ़ैल गई फल स्वरुप स्थिति का लाभ उठाते हुए दक्षिण के मुख्य राज्य माबर,द्वारसमुद्र और वारंगल, दिल्ली सल्तनत से अलग हो गए
सुल्तान ने जनता को पुनः दिल्ली लौटने का आदेश दिया 1335 ईस्वी में दिल्ली, पुन: राजधानी बनाई गई
दिल्ली से दौलताबाद राजधानी परिवर्तन का एक दूरगामी प्रभाव यह पढ़ा की बहुत सारे सूफी और उलेमाओं ने दोलताबाद में ही रुकने का निर्णय किया
फल स्वरुप दौलताबाद इस्लामी शिक्षा और ज्ञान का केंद्र बन गया,जिससे बहमनी सुल्तान लाभांवित हुए
शेख निजामुद्दीन औलिया के शिष्य शेख बुरहानुद्दीन गरीब थे ,जिन्हें मोहम्मद बिन तुगलक राजधानी परिवर्तन दौलताबाद जाने के लिए विवश किया
बाद में उन्होंने दोलताबाद को अपनी शिक्षा का केंद्र बनाया
दक्षिण भारत में चिश्ती सिलसिले की नींव शेख बुरहानुद्दीन ने रखी थी
राजधानी परिवर्तन के लिए विद्वानों के मत और कारण
मोहम्मद बिन तुगलक की राजधानी परिवर्तन के विषय में विद्वानों ने अलग अलग मत दिया है
बरनी के अनुसार-- सुल्तान दक्षिण पर प्रभावशाली प्रशासनिक नियंत्रण स्थापित करना चाहता था क्योंकि दौलताबाद देवगिरी साम्राज्य के केंद्र में स्थित था और गुजरात लखनौती, सतगांव ,सुनारगांव, तेलंग, माबर, द्वारसमुद्र और कंपिल से उसकी दूरी समान थी
इसके अतिरिक्त बरनी के अनुसार--नई राजधानी को साम्राज्य के केंद्र में स्थित होने के कारण चुना
बरनी के अनुसार-- नगर( दिल्ली) इतनी पूरी तरह उजड़ गया कि नगर की इमारतों, महल और आसपास के इलाकों में एक बिल्ली और कुत्ता तक नहीं बचा
इब्नबतूता के अनुसार-- सुल्तान को दिल्ली के नागरिक असम्मानपूर्ण पत्र लिखते थे इसीलिए उन्हें दंड देने के लिए राजधानी देवगिरी परिवर्तित करने का निर्णय लिया
इब्नबतूता ने लिखा है कि-- राजधानी परिवर्तन की आज्ञा देने के बाद उसने समस्त दिल्ली की तलाशी लेने की आज्ञा दी तो उसे मात्र एक अंधा और एक लंगड़ा व्यक्ति मिला
इसामी के अनुसार--सुल्तान और दिल्ली की जनता के बीच बैर भाव था इसीलिए उसने उनकी शक्ति क्षीण करने के लिए राजधानी परिवर्तित की थी
प्रोफेसर हबीबुल्लाह ने लिखा है कि--वह दक्षिण भारत में मुस्लिम संस्कृति के विकास और दक्षिण की संपनता और शासन की सुविधा की दृष्टि से देवगिरी को राजधानी बनाना चाहता था
डॉक्टर मेहदी हुसैन के अनुसार-- वह दौलताबाद को मुस्लिम संस्कृति का केंद्र बनाने के लिए उसे राजधानी बनाना चाहता था
गार्डन ब्राउन ने यह मत दिया है कि--मंगोलों के निरंतर आक्रमण से साम्राज्य की राजनीतिक गतिविधियों का केंद्र उत्तरी भारत से खिसक कर धीरे-धीरे दक्षिण भारत बन गया
इन मतों के विपरीत आधुनिक इतिहासकारों ने लिखा है कि--दिल्ली से बड़ी संख्या में लोग दौलताबाद अवश्य गए थे लेकिन दिल्ली पूरी तरह नष्ट नहीं हुई थी
डॉक्टर मेहदी हुसैन ने लिखा है कि-- दिल्ली राजधानी ना रही हो ऐसा कभी नहीं हुआ और इस कारण वह ना कभी आबादी रहित नहीं हुई और ना निर्जन
डॉक्टर के.ए.निजामी ने लिखा है की-- समस्त जनता को जाने का आदेश नहीं दिया गया था बल्कि केवल सरदार ,शेख उलेमा और उच्च वर्ग के व्यक्तियों को ही दौलताबाद जाने के आदेश दिए गए थे
विभिन्न मतों से स्पष्ट होता है कि अपने शासन के आरंभिक काल में बहाउद्दीन गुरशास्प के विद्रोह के बाद मोहम्मद बिन तुगलक दक्षिण में एक शक्तिशाली प्रशासनिक केंद्र स्थापित करना चाहता था
जिससे दक्षिण में किसी भी विद्रोह को सरलता से दबाया जा सके ,इसके अतिरिक्त वह दक्षिण में मुस्लिम संस्कृति को विकसित भी करना चाहता था
राजधानी दौलताबाद परिवर्तित होने के बाद मुल्तान में बहराम किश्लु खॉ ने विद्रोह किया जिसे दबाने के लिए दिल्ली से सेना भेजी गई,सेना ने विद्रोह को सफलतापूर्वक दबा दिया
इससे यह प्रमाणित होता है कि दिल्ली और दौलताबाद के बीच संपर्क बना रहा।
मुद्रा शास्त्रीय अध्ययनों से प्राप्त साक्ष्य से भी सिद्ध होता है कि इस अवधि में दिल्ली में भी सिक्के ढाले जा रहे थे
1327-30ईस्वी में दिल्ली में ढाले गये सिक्कों पर तख्तगाहे दिल्ली और दौलताबाद में ढाले गए सिक्के पर तख्तगाहे दौलताबाद लिखा था
इन विवरण से स्पष्ट होता है कि दिल्ली और दौलताबाद (देवगिरी )साम्राज्य की दो राजधानी थी
सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक के राजधानी परिवर्तन का कोई निर्णय कोई तत्कालिक निर्णय नहीं था
दिल्ली से दौलताबाद के 40 दिन की यात्रा को सुविधाजनक बनाने के लिए उसने व्यापक तैयारियां की थी
700 मील की लंबी सड़क के दोनों और वृक्ष लगाएं यात्रियों के ठहरने के लिए सराय का निर्माण किया गया था जिससे भोजन पानी की व्यवस्था थी
सांकेतिक मुद्रा का प्रचलन
राजधानी परिवर्तन की विफलता के बाद सुल्तान की दूसरी योजना सांकेतिक मुद्रा को जारी करना था
इल्तुतमिश के बाद मोहम्मद बिन तुगलक दिल्ली सल्तनत का दूसरा शासक था जिसने मुद्रा व्यवस्था में उल्लेखनीय परिवर्तन किया
उसने विभिन्न प्रकार के सिक्के जारी किए, दोकानी नामक एक नया सिक्का और दीनार नामक स्वर्ण मुद्राएं चलवाई
मुहम्मद बिन तुगलक ने चांदी का 140 ग्रेन का टंका या अदली भी चलवाया था ,सोने के सिक्के में सोने की मात्रा 175ग्रेन से बढ़ाकर 200 ग्रेन तक कर दी गई,उसने सिक्कों पर कलमा खुदवाना बंद करवा दिया
मुद्रा व्यवस्था में मुहम्मद बिन तुगलक का सबसे महत्वपूर्ण कार्य था सांकेतिक मुद्रा का प्रचलन
उस समय चांदी का सिक्का टंका और तांबे का सिक्का जीतल कहलाता था
मुहम्मद बिन तुगलक ने प्रतीक मुद्रा के रूप में चांदी के सिक्के के स्थान पर कांसे का सिक्का प्रचलित किया, प्रतीक मुद्रा पर अरबी और फारसी दोनों भाषाओं में लेख थे
बरनी के अनुसार-- सुल्तान विदेशी राज्य को जीतना चाहता था इसके लिए धन की आवश्यकता थी,साथ ही सुल्तान की उदारता और अपव्ययता से खजाना खाली था अतः उसे सांकेतिक मुद्रा चलानी पड़ी
नेल्सन राइट के अनुसार-- सांकेतिक मुद्रा प्रचलित करने का एक और कारण यह था कि चौदवी शताब्दी में संपूर्ण विश्व में चांदी की कमी हो गई थी
मोहम्मद बिन तुगलक ने इस कठिनाई से निपटने के लिए चीन और ईरान में प्रचलित सांकेतिक मुद्रा के आधार पर भारत में भी सांकेतिक मुद्रा चलाई
उस समय सोने और चांदी का आनुपातिक मूल्य तीन विशेषज्ञ द्वारा दिया गया जो इस प्रकार है--
1-एडवर्ड टॉमस 8:1 2-कर्नल भूल 7:1 और 3-नेल्सन राइट और नेविल 10:1
चीनी के कुबलाई खां (1260 से 94ईस्वी)और इरान के के गैखातू खां ने प्रतीक मुद्रा चलाई थी
कुबलाई द्वारा प्रचलित सांकेतिक मुद्रा चाऊ चीन में सफल रही लेकिन इरान के शासक गैखातु खां की सांकेतिक मुद्रा योजना असफल रही
इस कारण इस योजना के अनुसार सुल्तान ने 1329-30ई. में सांकेतिक मुद्रा को वैधानिक आधार देकर लागू किया और सभी को उसे स्वीकार करने के आदेश दिए
सुल्तान की यह एक क्रांतिकारी योजना थी जिसके द्वारा उसने राजकोष में चांदी को सुरक्षित रखने की व्यवस्था की
लेकिन उसकी यह योजना असफल रही क्योंकि उस समय सिक्के बनाने की कला साधारण थी सांकेतिक मुद्रा में कोई पेचदी डिजाइन नहीं था और ना ही कोई सरकारी नियंत्रण
सरकारी टकसाल भी थे और सर्राफ की दुकान पर भी टकसाल का काम होता था, कहीं भी धातु देकर सिक्का बनवाया जा सकता था
बरनी के अनुसार-- प्रत्येक हिंदू का घर टकसाल बन गया था जनता ने चांदी जमा करना आरंभ कर दिया और प्रत्येक खरीदारी प्रति मुद्रा में करने लगे
इस प्रकार यथेष्ट चांदी प्रचलन से बाहर कर दी गई
भू-राजस्व का भुगतान जाली प्रतीक मुद्रा में किया जाने लगा, खुत, मुकद्दम और चौधरी शक्तिशाली और अवज्ञाकारी बन गए
मध्यवती जमीदारों ने चांदी के सिक्के छिपा लिए और नए सिक्के से हथियार भी खरीदने लगे
विदेशी व्यापारियों ने भारत में अपना माल लाना बंद कर दिया जिससे आयात को भारी क्षति पहुंची अंत में निराश होकर सुल्तान ने सांकेतिक मुद्रा बंद कर दी और सभी तांबे के सिक्के को असली सोने और चांदी के सिक्कों में बदलने का निश्चय किया
इससे खजाने को बहुत क्षति पहुंची साथ ही अफसरों ने सुल्तान को बदनाम करने के लिए प्रचार शुरु कर दिया
एडवर्ड टामस-- ने मोहम्मद तुगलक को ""धनवानों का राजकुमार"" कहा है
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