मोहम्मद गौरी का अंतिम भारतीय अभियान पंजाब के खोखर जातियों के विरुद्ध था मोहम्मद गौरी की मृत्यु की अफवाह का प्रभाव भारत पर भी पड़ा पंजाब के खोखर जाति के दो सरदारों बकन और सर्का ने समस्त प्रदेश में विप्लव आरंभ कर दिया और Lahore पर अधिकार करने की योजना बनाई उन्होने लाहौर और गजनी के बीच संचार काट दिए इस कारण 1205 ईस्वी में मोहम्मद गौरी पुन:भारत आया झेलम और चिनाब नदी के बीच खोखरो में उसका मुकाबला हुआ खोखर वीरता से लड़े लेकिन पराजित हुए और उनका दमन हुआ खोखरो के दमन के बाद मोहम्मद गोरी लाहौर पहुंचा वहां व्यवस्था स्थापित कर कुतुबुद्दीन ऐबक को दिल्ली जाने की अनुमति दे कर वह गजनी के लिए रवाना हुआ
मोहम्मद गौरी की मृत्यु मार्ग में सिंधु नदी के किनारे दमयक नामक स्थान पर कुछ समय के लिए उसने अपना शिविर लगाया जिस समय मोहम्मद गोरी संध्याकालीन नवाज पढ़ रहा था कुछ व्यक्ति अचानक उसके शिविर में घुस आए और 15 मार्च 1206 ईस्वी को उसकी हत्या कर दी और मोहम्मद गौरी की विजयी सेना को एक शव यात्रा का रूप दे दिया मोहम्मद गोरी के शव को गजनी लाया गया और यही दफनाया गया मोहम्मद गौरी का कोई पुत्र नहीं था उसकी मृत्यु के बाद उसका भतीजा महमूद उसका उत्तराधिकारी बना लेकिन महमूद अधिक दिनों तक जीवित नहीं रहा उसकी मृत्यु के बाद ख्वारिज्म शासक ने गोरी के मध्य एशिया
(Central Asia)के अधिकांश भाग पर अधिकार कर लिया कुछ समय तक गोरी का एक दास ताजुद्दीन याल्दीज ने गजनी पर अपना अधिकार रखा लेकिन ख्वारिज्मो ने वहां से उसे निकालकर संपूर्ण मध्य एशिया अपने अधीन कर लिया
गुलाम वंश(ममुलक वंश )की स्थापना ऐसी स्थिति में कुतुबुद्दीन ऐबक मोहम्मद गौरी के भारतीय विजय क्षेत्रों की सुरक्षा करने में सफल रहा और अंत में गुलाम वंश की स्थापना हुई गोर वंश की समाप्ति के साथ दिल्ली सल्तनत (Delhi Sultanate) की शुरुआत(1206) हुई कुतुबुद्दीन ऐबक मोहम्मद गौरी का गुलाम था मोहम्मद गोरी के कोई उत्तराधिकारी नहीं होने के कारण कुतुबुद्दीन ऐबक ने गुलाम वंश की स्थापना की दिल्ली सल्तनत की स्थापना उत्तरी भारत में तुर्कों के सैनिक अभियानों का प्रत्यक्ष परिणाम था जो लगभग दो शताब्दियों के मध्य दो चरणों में संपन्न हुआ
मोहम्मद गौरी का चरित्र और मूल्यांकन स्थाई परिणाम की दृष्टि से मोहम्मद गोरी महमूद गजनबी की तुलना में अधिक श्रेष्ठ सिद्ध हुआ इसी कारण वह जन्मजात सेनापति ना होते हुए भी एक सफल विजेता अवश्य हुआ
अन्हिलवाड़ा युद्ध में वह मूलराज द्वितीय से पराजित हुआ,तराइन का प्रथम युद्ध में पृथ्वीराज तृतीय से पराजित हुआ और अंधखुद के युद्ध में वह ख्वारिज्म शाह से पराजित हुआ
इन पराजय ने मोहम्मद गोरी का साहस नहीं तोड़ सकी और ना हीं उसे लक्ष्य से भटका सकी मोहम्मद गोरी में परिस्थितियों को समझने और उनके अनुसार कार्य करने की क्षमता थी वह मानव चरित्र का अच्छा पारखी था ,योग्य व्यक्तियों की तलाश करना उन से काम लेना उसे आता था कुतुबुद्दीन ऐबक ,यल्दिज और तुगरिल जैसे व्यक्ति जो उसकी सफलता के लिए उत्तरदाई थे उनको मोहम्मद गोरी ने शिक्षित किया था मोहम्मद गौरी को शासन की ओर ध्यान देने का अवसर नहीं मिला लेकिन व सांस्कृतिक प्रगति से उदासीन नहीं था उसने विद्वानों को संरक्षण दिया फखरुद्दीन राजी और नजामी उरुजी उसके दरबार से संबंध थे मोहम्मद गोरी ने हिंदू देवी की आकृति वाले सिक्के चलवाए थे दिल्ली पर अधिकार कर लेने के बाद मोहम्मद गोरी ने चौहानों के सिक्कों की भांति दिल्ली में भारतीय ढ़ग की मुद्रा चलाई थी कन्नौज विजय के पश्चात उसे गहड़वालों के सोने के सिक्कों के ढ़ग पर लक्ष्मी,नंदी के चित्र अंकित किए जिस पर देवनागरी लिपि में मुहम्मद बिनसाम अंकित था मोहम्मद गोरी ने 56 क्रेन का दिल्ली वाला नामक सिक्के चलवाए थे
मोहम्मद गोरी से संबंधित अन्य तथ्य मोहम्मद गौरी के सिक्कों पर एक तरफ कलिमा खुदा रहता था और दूसरी तरफ लक्ष्मी की आकृति अंकित रहती थी कुछ सिक्कों के पृष्ठ भाग पर अव्यक्तमेक मुहम्मद अवतार भी लिखा रहता था इन सिक्कों को देहलीवाल सिक्के कहा जाता था यह देहलीवाल सिक्के भारत में तुर्क विजय के समय प्रचलित थे मोहम्मद गौरी के कोई संतान नहीं थी मोहम्मद गौरी के साथ 1192 ई. में ख्वाजा मोहिद्दीन चिश्ती भारत आए और अजमेर में बस गए थे सर्वप्रथम मोहम्मद गोरी ने इक्ता प्रथा चलाई किंतु Iltutmish ने इसे संस्था का रुप दिया मोहम्मद गोरी शंसबानी वंश का था इससे पहले गोरी वंश के लोग बौद्ध मतावली थे दिल्ली 1193 में भारत के गोरी साम्राज्य की राजधानी बनी और कुतुबुद्दीन ऐबक को दिल्ली की सत्ता सौंपी इससे पहले कुतुबुद्दीन ऐबक ने 1192 इसी में दिल्ली के निकट indraprastha को राजधानी बनाया था ऐतिहासिक दृष्टि से दिल्ली का संस्थापक अंगत पाल तोमर (11 वीं सदी )को माना जाता है पृथ्वीराज रासो (Prithviraj Raso) में इसे ढिल्ली या ढिल्लीश कहा गया है 1276ई. के पालम बावली अभिलेख में दिल्ली का एक और नाम योगिनीपुर मिलता है
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