मोहम्मद बिन तुगलक के शासनकाल के स्त्रोत(Source of the reign of Mohammad bin Tughluq)
मोहम्मद बिन तुगलक के शासनकाल के स्त्रोत
(Source of the reign of Mohammad bin Tughluq)
गयासुद्दीन तुगलक की मृत्यु के बाद उसका पुत्र जूना खां मोहम्मद तुगलक की उपाधि ग्रहण कर 1325 में गद्दी पर बैठा था
उस के शासनकाल के विषय में दो महत्वपूर्ण स्त्रोत है
1प्रथम स्त्रोत-- जियाउद्दीन बरनी की तारीख ए फिरोजशाही 2द्वितीय स्त्रोत-- इब्नबतूता का यात्रा वृतांत
इब्नबतूता
इब्नबतूता का मूल नाम अब्दुल्लाह मुहम्मद बिन बतूता था
वह मोरक्को (अफ़्रीका) का निवासी था,मोहम्मद तुगलक के काल में 1333 में भारत आया
सुल्तान ने उसे दिल्ली का काजी नियुक्त किया था,1342 ईस्वी में मुहम्मद तुगलक ने उसे अपना दूत बनाकर चीन भेजा था बाद में इब्नबतूता से मनमुटाव होने के कारण इन्हे जेल में भी डाल दिया गया था
इब्नबतुता के अनुसार-- तुगलक साम्राज्य 23 प्रांतों में बटा हुआ था
उदार शासन प्रबंध
मोहम्मद तुगलक को अपने पिता से एक विस्तृत साम्राज्य प्राप्त हुआ था जिसमें उसने और वृद्धि की
दिल्ली सल्तनत के सुल्तानों में सर्वाधिक विस्तृत साम्राज्य मोहम्मद बिन तुगलक का था,
मोहम्मद बिन तुगलक का साम्राज्य 23 प्रांतों में बंटा हुआ था जिनके नाम है--देहली, देवगिरी, मुल्तान कहराम(कुहराम) , समाना, सीविस्तान (सवस्तान) उच्छ, हांसी ,सरसुती (सिरसा ),माबर, तेलंगाना( तिलंग ),गुजरात ,बदायूं, अवध ,कन्नौज ,लखनौती, बिहार, कड़ा, मालवा , लाहोर, कलानौर ,राजनगर और द्वारसमुद्र
मोहम्मद बिन तुगलक एक योग्य शासक था, नस्ल और वर्गविभेद को समाप्त कर उसने योग्यता के आधार पर अधिकारियों की नियुक्ति की नीति अपनाई
उसने धर्मनिरपेक्ष ढंग से शासन करने का प्रयास किया और शासन को धर्म से अलग रखा
मोहम्मद बिन तुगलक के विषय में जियाउद्दीन बरनी ने अपनी पुस्तक तारीख ए फिरोजशाही में लिखा है कि-- जब उसने राज्यसत्ता पानी तब वह शरीयत के नियमों और आदर्शों से काफी स्वतंत्र था
वह दिल्ली सल्तनत का प्रथम सुल्तान था जिसने केवल हिंदुओं को ही नहीं बल्कि विभिन्न निम्न कुलो और जातियों के व्यक्तियों को राज्य में उचित स्थान प्रदान किया
डॉक्टर इरफान हबीब के अनुसार--मोहम्मद बिन तुगलक के अमीर वर्ग में कई जातियों के लोग थे जिनमें मुख्यतः मंगोल, विदेशी मुसलमान और हिंदू भी थे
भारत से बाहर जो देश जैसे चीन इराक सीरिया ख्वारिज्म आदि से संबंध स्थापित किया और वहां के राजदूतों का आदान प्रदान किया
उसने सती प्रथा को रोकने का प्रयत्न किया ,उलेमा वर्ग को न्याय के स्थान पर एक अधिकार से वंचित कर दिया
मोहम्मद तुगलक का भाई मुबारक खाँ दीवान-ए-खाना में काजी के पास उसके मुकदमों के निर्णय के कार्य में सहायता के लिए बैठता था
मोहम्मद बिन तुगलक का राजत्व का सिद्धांत
मुहम्मद बिन तुगलक का राजत्व सिद्धांत अपने पूर्ववर्ती शासकों की निरंकुशता पर आधारित था,उसने निरंकुश राजतंत्र को पुनः सशक्त बनाने का प्रयास किया
मुहम्मद बिन तुगलक ने स्वयं खलीफा की उपाधि अमीर- उल- मोमिनीन धारण की और अपने आरंभिक काल में उसने सुल्तान के पद के लिए किसी खलीफा की स्वीकृति नहीं हुई और ना ही अपने सिक्के पर उसका नाम अंकित करवाया
बलबन की भांति सुल्तान को ईश्वर की प्रतिछाया मानता था, उसने अपने सिक्कों पर सुल्तान के लिए जिल्लिलाहा (सुल्तान ईश्वर की परछाई) शब्द खुदवाया
अलाउद्दीन की भांति मुहम्मद बिन तुगलक ने भी उलेमा वर्ग का शासन में हस्तक्षेप स्वीकार नहीं किया, न्याय विभाग पर उलेमा वर्ग के आधिपत्य को समाप्त कर दिया
उसने अन्य व्यक्ति को भी काजी का पद प्रदान किया। उसकी दृष्टि में राज्य का कानून सर्वोपरि था, अपराध करने वाले को एक समान दंड दी जाती थी
मोहम्मद बिन तुगलक दिल्ली सल्तनत का पहला शासक था जिसने तांबे और अन्य धातु के सिक्कों के माध्यम से जनता को राजत्व का महत्व बताने का प्रयास किया
उसने अपने सिक्कों पर सुल्तान ईश्वर की प्रतिछाया है, ईश्वर सुल्तान का समर्थक है आदि शब्द खुदवाए
उसने खलीफा के लिए मुकद्दमों को भेजना रोक दिया, मोहम्मद बिन तुगलक की इस नीति के कारण उलेमा वर्ग उसका विरोधी हो गया और जनता में भी असंतोष बढ़ने लगा
लेकिन अपने बाद के समय में उसने उलेमा वर्ग से समझौता कर लिया
मुहम्मद बिन तुगलक के शासन काल में राज्य में कई विद्रोह हुए और उसे प्राकृतिक प्रकोप का भी सामना करना पड़ा इसके लिए उसने खलीफा के प्रति सम्मान को उत्तरदाई माना
फलस्वरुप खलीफा के प्रति उसने अपना दृष्टिकोण बदल दिया,सिक्कों पर अपना नाम हटाकर खलीफा का नाम अंकित करवाया
अपने सुल्तान पद की स्वीकृति के लिए मिश्र के खलीफा से प्रार्थना की
1343 ईस्वी में उसने अपने पद की स्वीकृति (मानपत्र )अल हकीम द्वितीय से प्राप्त की
1344 ई.में मुहम्मद बिन तुगलक ने खलीफा द्वारा भेजे गए दूत हाजी शहीद सरसरी का भव्य सम्मान के साथ स्वागत किया
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