मौलाना अबुल कलाम आजाद(Maulana Abul Kalam Azad)

मौलाना अबुल कलाम आजाद


(Maulana Abul Kalam Azad)


हजारो साल नरगिस अपनी बेनूरी पे रोती है
बडी मुश्किल से होता है चमन मे दीदावर पैदा

संक्षिप्त परिचय 
नाम : मौलाना अबुल कलाम आजाद / Maulana Abul Kalam Azad
 अन्य नाम : गुलाम मुहियुद्दीन
 जन्म : 11 नवंबर, 1888
 जन्म स्थान : मक्का, Hejaz Vilayet, ओटोमन साम्राज्य (सऊदी अरब)
 निधन : 22 फ़रवरी 1958 (69 वर्ष ) दिल्ली, भारत
 राजनीतिक पार्टी :  भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
 पद : भारत के शिक्षा मंत्री / Minister of Education, India (15 August 1947 – 2 February 1958)
 पुरस्कार :  भारत रत्न, भारत और Chinese Man of India & Superman
 उपलब्धियाँ : 1923 व 1940 मे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष तथा  स्वतंत्र भारत के प्रथम शिक्षा मंत्री

मौलाना अबुल कलाम आजाद भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के एक महान् सेनानी तथा राष्ट्रवादी नेता थे । आचार्य जे०बी० कृपलानी ने उनके सम्बन्ध में कहा था- ”वे भारत के एक महान् शास्त्रवेत्ता, विद्वान्, प्रभावशाली वक्ता, राष्ट्रभक्त एवं विश्ववादी नेता थे ।” धर्मनिरपेक्षतावादी सिद्धान्तों में उनकी गहरी आस्था थी । उनकी निडरता एवं प्रभावशाली व्यक्तित्व के कई उदाहरण मिलते हैं । भारतीय संस्कृति में उनका अटूट विश्वास था ।
मौलाना अबुल कलाम आजाद के नाम से किसी को त्आर्रुफ ( परिचय ) कराने की आवश्यकता नही है ।
ये वो शख्सियत ( व्यक्तित्व ) है जिन्होने सर्वप्रथम आजाद भारत मे शिक्षा ( महिला शिक्षा ) के लिऐ अपना बहुमूल्य योगदान दिया ।

मौलाना अबुल कलम आजाद का कथन था कि - राष्ट्रीय शिक्षा का कोई भी कार्यक्रम उपयुक्त नहीं हो सकता यदि वह समाज के आधे भाग से जुडी शिक्षा पर ध्यान नहीं देता हो – वह है महिलाओं की शिक्षा

अन्य कथन :-
मुझे एक भारतीय होने पर गर्व है। मैं एक अविभाज्य एकता का हिस्सा रहा हूँ जो कि भारतीय राष्ट्रीयता है। मैं इस भव्य संरचना का अपरिहार्य अंग हूँ और मेरे बिना यह शानदार संरचना अधूरा है। मैं  एक आवश्यक तत्व हूँ जो भारत का निर्माण के लिए कटिबद्ध है. मैं अपने इस  दावा को कभी ख़ारिज नहीं कर सकता.

मौलाना अबुल कलाम आज़ाद का असली नाम अबुल कलाम ग़ुलाम मुहियुद्दीन था। वह मौलाना आज़ाद के नाम से प्रख्यात थे। मौलाना अबुल कलाम आज़ाद भारत के प्रमुख स्वतंत्रता सेनानियों में से एक थे। वह एक प्रकांड विद्वान के साथ-साथ एक कवि भी थे।
मौलाना आज़ाद कई भाषाओँ जैसे अरबिक, इंग्लिश, उर्दू, हिंदी, पर्शियन और बंगाली में निपुण थे। मौलाना आज़ाद किसी भी मुद्दे पर बहस करने में बहुत निपुण जो उनके नाम से ही ज्ञात होता है – अबुल कलाम का अर्थ है “बातचीत के भगवान”। उन्होंने धर्म के एक संकीर्ण दृष्टिकोण से मुक्ति पाने के लिए अपना उपनाम “आज़ाद” रख लिया।

मौलाना आज़ाद स्वतंत्र भारत के प्रथम शिक्षा मंत्री बने। राष्ट्र के प्रति उनके अमूल्य योगदान के लिए मौलाना अबुल कलाम आज़ाद को मरणोपरांत 1992 में भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया ।

 प्रारंभिक जीवन 
मौलाना अबुल कलाम आज़ाद का जन्म 11 नवंबर 1888 को मक्का में हुआ था। उनके परदादा बाबर के ज़माने में हेरात (अफ़ग़ानिस्तान का एक शहर) से भारत आये थे। आज़ाद एक पढ़े लिखे मुस्लिम विद्वानों या मौलाना वंश में जन्मे थे।
उनकी माता अरब देश के शेख मोहम्मद ज़हर वत्री की पुत्री थीं और पिता मौलाना खैरुद्दीन अफगान मूल के एक बंगाली मुसलमान थे। खैरुद्दीन ने सिपाही विद्रोह के दौरान भारत छोड़ दिया और मक्का जाकर बस गए। 1890 में वह अपने परिवार के साथ कलकत्ता वापस आ गए।

परिवार के रूढ़िवादी पृष्ठभूमि के कारण आज़ाद को परम्परागत इस्लामी शिक्षा का ही अनुसरण करना पड़ा। शुरुआत में उनके पिता ही उनके अध्यापक थे पर बाद में उनके क्षेत्र के प्रसिद्ध अध्यापक द्वारा उन्हें घर पर ही शिक्षा मिली। आज़ाद ने पहले अरबी और फ़ारसी सीखी और उसके बाद दर्शनशास्त्र, रेखागणित, गणित और बीजगणित की पढाई की। अंग्रेजी भाषा, दुनिया का इतिहास और राजनीति शाष्त्र उन्होंने स्वयं अध्यन कर के सीखा।

 कैरियर 
उन्होंने कई लेख लिखे और पवित्र कुरान की पुनः व्याख्या की। उनकी विद्वता ने उन्हें तक्लीक यानी परम्पराओं के अनुसरण का त्याग करना और तज्दीद यानी नवीनतम सिद्धांतो को अपनाने का निर्देश दिया।
उन्होंने जमालुद्दीन अफगानी और अलीगढ के अखिल इस्लामी सिद्धांतो और सर सैय्यद अहमद खान के विचारो में अपनी रूचि बढ़ाई।
अखिल इस्लामी भावना से ओतप्रोत होकर उन्होंने अफगानिस्तान, इराक, मिश्र, सीरिया और तुर्की का दौरा किया।
वह इराक में निर्वासित क्रांतिकारियों से मिले जो ईरान में संवैधानिक सरकार की स्थापना के लिए लड़ रहे थे। मिश्र में उन्होंने शेख मुहम्मद अब्दुह और सईद पाशा और अरब देश के अन्य क्रांतिकारी कार्यकर्ताओं से मुलाकात की। उन्हें कांस्टेंटिनोपल में तुर्क युवाओं के आदर्शों और साहस का प्रत्यक्ष ज्ञान हुआ। इन सभी मुलाकातों ने उन्हें राष्ट्रवादी क्रांतिकारी में तब्दील कर दिया।

राजनीति व स्वतंत्रता संग्राम
विदेश से लौटने पर आज़ाद ने बंगाल के दो प्रमुख क्रांतिकारियों अरविन्द घोष और श्री श्याम शुन्दर चक्रवर्ती से मुलाकात की और ब्रिटिश शासन के खिलाफ क्रांतिकारी आंदोलन में शामिल हो गए। आज़ाद ने क्रांतिकारी गतिविधियों को बंगाल और बिहार तक ही सीमित पाया।
दो सालों के अंदर मौलाना अबुल कलाम आज़ाद ने पूरे उत्तर भारत और बम्बई में गुप्त क्रांतिकारी केन्द्रो की संरचना की। उस समय बहुत सारे क्रांतिकारी मुस्लिम विरोधी थे क्योंकि उन्हें लगता था कि ब्रिटिश सरकार मुस्लिम समाज का इस्तेमाल भारत के स्वतंत्रता संग्राम के विरुद्ध कर रही है। मौलाना अबुल कलाम आज़ाद ने अपने सहयोगियों को समझाने की कोशिश की ।

1912 में मौलाना अबुल कलाम आज़ाद ने मुसलमानों में देशभक्ति की भावना को बढ़ाने के लिए ‘अल हिलाल’ नामक एक साप्ताहिक उर्दू पत्रिका प्रारम्भ की। अल हिलाल ने मोर्ले मिंटो सुधारों के परिणाम स्वरुप दो समुदायों के बीच हुए मनमुटाव के बाद हिन्दू मुस्लिम एकता बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
अल हिलाल गरम दल के विचारों को हवा देने का क्रांतिकारी मुखपत्र बन गया। 1914 में सरकार ने अल हिलाल को अलगाववादी विचारों को फ़ैलाने के कारण प्रतिबंधित कर दिया। मौलाना आज़ाद ने तब हिन्दू-मुस्लिम एकता पर आधारित भारतीय राष्ट्रवाद और क्रांतिकारी विचारों के प्रचार के उसी लक्ष्य के साथ एक और साप्ताहिक पत्रिका ‘अल बलाघ’ शुरू की। 1916 में सरकार ने इस पत्रिका पर भी प्रतिबंध लगा दिया और मौलाना अबुल कलाम आज़ाद को कलकत्ता से निष्कासित कर दिया और रांची में नजरबन्द कर दिया गया जहा से उन्हें 1920 के प्रथम विश्व युद्ध के बाद रिहा कर दिया गया ।

मौलाना कलाम आजाद , महात्मा गांधी के सिद्धांतो का समर्थन करते थे। उन्होंने हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए कार्य किया, तथा वे अलग मुस्लिम राष्ट्र (पाकिस्तान) के सिद्धांत का विरोध करने वाले मुस्लिम नेताओ में से थे।
खिलाफत आंदोलन में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही। 1923 में वे भारतीय नेशनल काग्रेंस के सबसे कम उम्र के प्रेसीडेंट बने। वे1940 और 1945 के बीच काग्रेंस के प्रेसीडेंट रहे। आजादी के वाद वे भारत के सांसद चुने गए और वे भारत के पहले शिक्षा मंत्री बने। विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग 1948 और माध्यमिक शिक्षा आयोग 1959 में उन्होंने वैज्ञानिक व प्राविधिक शिक्षा की वकालत की । उन्हीं के प्रयत्नों से विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की स्थापना हुई । शिक्षा और संस्कृति के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण योगदान देने के साथ-साथ उन्होंने उर्दू भाषा और साहित्य की बड़ी सेवा की ।

वे धारासन सत्याग्रह के अहम इन्कलाबी (क्रांतिकारी) थे। वे 1940-45 के बीट भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष रहे जिस दौरान भारत छोड़ो आन्दोलन हुआ था। कांग्रेस के अन्य प्रमुख नेताओं की तरह उन्हें भी तीन साल जेल में बिताने पड़े थे। स्वतंत्रता के बाद वे भारत के पहले शिक्षा मंत्री बने और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की स्थापना में उनके सबसे अविस्मरणीय कार्यों मे से एक था।

 विशेष तथ्य 
भारत सरकार भारत के पहले शिक्षा मंत्री एवं भारत रत्न से सम्मानित मौलाना अबुल कलाम आज़ाद की याद मैं हर 11 नवंबर को शिक्षा दिवस मनाया जाता है। वैधानिक रूप से इसका प्रारम्भ 11 नवम्बर 2008 से किया गया है

 उपसंहार
मौलाना अबुल कलाम आजाद सच्चे राष्ट्रभक्त, एक कुशल वक्ता तथा महान् विद्वान् थे । पुराने एवं नये विचारों में अद्‌भुत सामंजस्य रखने वाले हिन्दू-मुस्लिम एकता के प्रबल समर्थक थे । देश सेवा और इस्लाम सेवा दोनों को एक्-दूसरे का पूरक मानते थे । हिन्दू और मुस्लिम दोनों ही संस्कृतियों के अनूठे सम्मिश्रण की वे एक मिसाल थे 

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