रजिया मध्यकालीन भारत और दिल्ली सल्तनत ( Delhi Sultanate) की प्रथम और अंतिम मुस्लिम महिला शासिका थी रजिया को उमदत- उल-निस्वा की उपाधि दी गई थी रजिया 1236 ईस्वी में दिल्ली की गद्दी पर बैठी थी उसे गद्दी पर बैठने के लिए दिल्ली सल्तनत के इतिहास में उत्तराधिकार के प्रश्न पर दिल्ली की जनता ने पहली बार निर्णय लेकर सुल्तान को चुना था रजिया ने अपने सिक्कों पर उमदत- उल-निस्वां का विरुद्ध धारण किया रजिया में समस्त प्रशंसनीय गुण और योग्यताएं थी जो एक शासक के लिए आवश्यक है राजगद्दी पर अपनी पकड़ मजबूत बनाने के बाद उसने प्रशासन का पुनर्गठन किया
मिनहाज (Minhaj) के अनुसार राज्य में शांति स्थापित हो गई और सरकार की सत्ता दूर-दूर तक फैल गई
लखनौती से देवल तक के क्षेत्र में सभी मलिकों और अमीरों ने अपनी आज्ञाकारिता और अधीनता अभीव्यक्त की
सुल्तान बनने के लिए रजिया को लोगों का समर्थन था लेकिन बदायूं ,मुल्तान, हांसी और लाहौर के गवर्नर उसके विरोधी थे इल्तुतमिश ( Iltutmish) के समय वजीर निजामुल मुल्क मुहम्मद जुनैदी भी रजिया का विरोधी था अन्य विरोधियों में मलिक अलाउद्दीन जानी ,कबीर अयाज खाँ, मलिक इजुद्दीन सलारी और मलिक सैफुद्दीन कूची थे रजिया के विरुद्ध पहला विद्रोह लोहार के गवर्नर कबीर खॉ एयाज किया था रजिया के समय से सुल्तान और तुर्क अमीरों के बीच संघर्ष की शुरुआत हुई जो बलबन के सत्तारूढ़ होने तक जारी रही
प्रारंभिक कार्य प्रशासन के साथ सीधा संबंध स्थापित करने के लिए रजिया ने महिला वस्त्र त्याग कर पुरुषों द्वारा धारण किए जाने वाला कबा( कुर्ता )और कुलाह (पगड़ी का एक प्रकार को अपनाया उसने दरबार में उपस्थित होना प्रारंभ किया शासन के प्रारंभ में रजिया ने इल्तुतमिश के भूतपूर्व वजीर निजामुल मुल्क जुनैदी के नेतृत्व में प्रांतीय शासकों के गठबंधन को समाप्त कर दिया
रजिया की प्रारंभिक समस्याएं सुल्तान को गद्दी पर बैठाना और उन्हें पदच्युत करना प्रांतीय इक्तादार अपना अधिकार समझते थे प्रांतीय इक्तादारी ने रुकनुद्दीन फिरोज शाह को गद्दी पर बैठा था लेकिन विद्रोही बनकर उसे पदच्युत भी कर दिया रुकनुद्दीन के बाद रजिया सुल्तान बनी इस पद पर उसे दिल्ली की जनता ने आसीन किया था इसमें इक्तादारों का कोई योगदान नहीं था किंतु वह इस अधिकार को छोड़ने के लिए तैयार नहीं थे कि सुल्तान के चुनाव में उनकी संमत्ति होनी चाहिए वजीर निजामुल मुल्क जुनैदी ने भी रजिया का राज्य रोहण अस्वीकार कर दिया था प्रसिद्ध तुर्क सामंतो जैसे मलिक अलाउद्दीन जानी, मलिक सैफुद्दीन कूची ,मलिक ईजुद्दीन कबीर खॉ एयाज और मलिक इजुद्दीन मोहम्मद सलारी ने इसका समर्थन किया सभी ने मिलकर रजिया के विरोध का निश्चय किया और इस उद्देश्य हेतु दिल्ली की ओर प्रस्थान किया मलिक नुसरतुद्दीन तायसी जिसे रजिया ने अवध का इकतादार नियुक्त किया था और विद्रोहियों को शांत करने के लिए भेजा गया लेकिन सैफुद्दीन कूची ने उस पर आक्रमण कर बंदी बना लिया और कारागार में डाल दिया था जहॉ उसकी मृत्यु हो गई रजिया ने विद्रोही संगठन के विनाश का निश्चय किया सेना के साथ वह दिल्ली से बाहर निकली और यमुना नदी के किनारे अपना शिविर लगाया इस समय रजिया की सैन्य स्थिति कमजोर थी छुटपुट युद्ध का कोई परिणाम नहीं निकला अतः उसने कूटनीति से काम लिया और विरोधियों में मतभेदों को उजागर करने का प्रयास किया उसने बदायूं के इक्तेदार मलिक ईजाउद्दीन मुहम्मद सलारी और मुल्तान के इक्तेदार कबीर खॉ एयाज को गुप्त रुप से अपनी तरफ मिला लिया वजीर जुनैदी और अन्य इक्तादारों को कैद करने की योजना बनाई मलिकों को इस षड्यंत्र की सूचना मिल गई वह अपना शिविर छोड़कर भाग गए हांसी का सूबेदार मलिक सैफुद्दीन कुची और उसका भाई फखरुद्दीन पकड़े गए और कारागार में डाल दिया गया लाहौर का सूबेदार मलिक अलाउद्दीन जानी मारा गया।वजीर जुनैदी सिरमूर की पहाड़ियों में भाग गया जहां उसकी मृत्यु हो गई थी
रजिया सुल्तान के कार्य विद्रोही इक्तादारों को परास्त करने के पश्चात रजिया सुल्तान ने शासन का पुनर्गठन किया था उसका प्रमुख लक्ष्य शासन से तुर्की गुलाम सरदारों के प्रभाव को समाप्त कर उन्हें सिंहासन के अधीन लाना था विभिन्न पदों और सूबो में उसने नवीन अधिकारियों की नियुक्ति की अपने विश्वासपात्र सरदारों को विभिन्न पदों पर पदोन्नत किया ख्वाजा मुहाजबुद्दीन के वजीर ,मलिक सैफूद्दीन ऐबक बहतू को सेना का प्रधान और उसकी मृत्यु के पश्चात मलिक कुतुबुद्दीन हसन गोरी को "नायब ए लश्कर" नियुक्त किया गया
मलिक ईज्जुद्दीन कबीर खॉ एयाज को लाहौर का इक्तादार बनाया गया इसके अतिरिक्त दो अन्य महत्वपूर्ण नियुक्तियों के अंतर्गत मलिक- ए-कबीर इख्तियारुद्दीन एतगीन को बदायूं का इक्तादार और फिर अमीर ए हाजिब का पद दिया गया इख्तिरुद्दीन अलतूनिया को पहले बरन का फिर भटिंडा का इक्तादार बनाया गया यह दोनों अधिकारी रजिया के कृपापात्र थे लेकिन रजिया के पतन में इन्हीं दोनों ने प्रमुख भाग लिय एक अबिसीनियन मलिक जमालुद्दीन याकूत को रजिया ने अमीर-ए-अखुर( अस्तबल का प्रमुख) के रूप में नियुक्त किया जमालुद्दीन याकूत रजिया का कृपा पात्र था। वह रजिया को घोड़े पर बैठाते समय हाथों का सहारा देता था
इस कारण कुछ इतिहासकारों ने रजिया पर याकूत के साथ प्रेम संबंध होने का आरोप लगाया थ फरिश्ता के अनुसार वह घनिष्ठता है जो अबीसीनियन (याकूत) और रानी के बीच इस बात में प्रकट होती थी कि जब रानी घोड़े पर सवार होती थी तो सदैव वही अपने हाथों से उसे घोड़े पर चढाता था
अमीर- ए- अखुर के पद पर केवल तुर्की अधिकारी ही नियुक्त किए जाते थे संस्थापित जातीय विशेषाधिकारों पर रजिया के इन स्पष्ट प्रहारों के विरुद्ध विरोध ने शीघ्र ही विद्रोह का स्वरूप धारण कर लिया प्रथम बार रजिया ने ही सामंत वर्ग की कमर तोड़ने का निश्चय किया और गैर तुर्क शासक वर्ग की शक्ति संगठन का प्रयास किया उसने तुर्क सामंतों की शक्ति कम करने के लिए गैर तुर्क सरदारों को प्रोत्साहन देने की नीति बनाई याकूत को अमीर- ए-अखुर के पद पर नियुक्त करना ही इसी नीति का एक भाग था बिहार का विद्रोही सरदार तूगारिल- ए-तूगान खां ने रजिया के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया
इस प्रकार उच्छ से लेकर लखनौती तक रजिया का आधिपत्य स्थापित हो गया मिनहाज के अनुसार देवल से लखनौती तक सभी मलिको और अमीरों ने उसकी सत्ता स्वीकार कर ली थी मलिको और अमीरों का नियंत्रण स्थापित करने के बाद रजिया ने मलिक कुतुबुद्दीन हसन गोर के नेतृत्व में रणथंबोर के विरुद्ध अभियान भेजा लेकिन सफलता प्राप्त नहीं हुई थी
रजिया का विद्रोह रजिया ने तुर्क सामंतों की शक्ति तोड़ने और गैर तुर्क सरदारों को प्रोत्साहन और प्रोन्नति देना प्रारंभ किया तुर्क सामंत जातिय रुप से अपने आप को श्रेष्ठ मानते थे,अतः गैर तुर्क सामंतों की प्रोन्नति से उसका असंतोष बढ़ने लगा दूसरी ओर गेर तुर्क सामंतो का नवगठित दल संख्या और अनुभव में तुर्क सामंतों से कमजोर था और रजिया को आवश्यकतानुसार समर्थन देने की स्थिति में नहीं था रजिया के विरोधियों ने उसके कमजोरी का लाभ उठाने का निश्चय किया दो सरदारों जो रजिया के कृपापात्र थे मलिक इख्तियारुद्दीन एतगीन और मलिक इख्तियारुद्दीन अल्तुनिया ने रजिया के विरुद्ध षड्यंत्र रचा लाहौर का सूबेदार कबीर खाँ एयाज भी इस षड्यंत्र में शामिल था रजिया को दिल्ली की जनता का समर्थन प्राप्त था और वह पूर्व सचेत थी जिसके कारण महल में कोई षड्यंत्र सफल नहीं हो सकता था दिल्ली पर आक्रमण कर उसे जितना भी कठिन था।अत:रजिया को राजधानी से दूर ही पराजित किया जा सकता था इस आशय से सर्वप्रथम 1240ई. में लाहौर के इक्तादार कबीर खॉ एयाज ने विद्रोह किया,कबीर खॉ एयाज रजिया सुल्तान का विद्रोह करने वाला प्रथम विद्रोही था रजिया ने शीघ्रता से इस विद्रोह को दबा दिया कबीर खां पराजित हो कर भाग खड़ा हुआ रजिया ने चिनाब नदी तक उसका पीछा किया चिनाब नदी के उस पार मंगोलों का अधिकार था अंत में विवश होकर कबीर खॉ एयाज ने आत्म समर्पण कर दिया रजिया ने उसे लाहौर की सूबेदारी छीन ली और उसके स्थान पर उसे मुल्तान की सूबेदारी प्रदान की इस विद्रोह के दमन के 10 दिन बाद एतगीन के इशारे पर भटिंडा के सूबेदार अल्तुनिया ने विद्रोह कर दिया ?रमजान के गर्मी के दिनों की परवाह नहीं करते हुए रजिया ने तुरंत विद्रोह को दबाने के लिए तबरहिंद की ओर प्रस्थान किया राजधानी के कुछ अमीर गुप्त रुप से अल्तुनिया का समर्थन कर रहे थे अमीरों ने याकूत की हत्या कर दी थी
बहराम शाह का सुल्तान बनना अल्तुनिया ने रजिया को पराजित कर भटिंडा के किले में कैद कर दिया रजिया के कैद होते ही तुर्क अमीरों ने इल्तुतमिश के तीसरे पुत्र बहरामशाह को गद्दी पर बैठा दिया गद्दी पर बैठने के बाद बहराम शाह ने नाइब-ए -मामलिकात का नवीन पद सृजित किया सर्वप्रथम यह पद विद्रोहियों के नेता एतगीन को दिया गया अल्तुनिया इस निर्णय से संतुष्ट नहीं था रजिया को सत्ता से हटाने के बाद उसने जो भूमिका निभाई उसके अनुसार उसे कोई लाभ नहीं मिला रजिया ने अल्तुनिया के इस असंतोष से लाभ उठाकर उसे अपना संपर्क बना लिया और विवाह कर लिया रजिया अल्तुनिया की सहायता से अपना सिंहासन पुनः प्राप्त करना चाहती थी अल्तुनिया को भी अपने सम्मान और पद में वृद्धि की आशा थी शासक बनने के पश्चात बहराम शाह ने अपने हाथों में शक्ति संचित करने का प्रयास किया ।सबसे पहले उसने एतगीन की हत्या करवा दी बहराम शाह का मुकाबला करने के लिए खोखर, राजपूत और जाटों को सम्मिलित कर अल्तुनिया ने एक सेना एकत्रित कि बहराम से असंतुष्ट सरदार मलिक सलारी और कराकश भी उस में जा मिले
रजिया सुल्तान की मृत्यु अल्तुनिया ने रजिया के साथ अपनी सेना लेकर दिल्ली की ओर बढ़ा लेकिन बहराम शाह के हाथों पराजित हो कर उसे भठिंडा लौटना पड़ा वापस लौटते समय मार्ग में कैथल के निकट उसकी सेना ने साथ छोड़ दिया रजिया और अल्तुनिया एक पेड़ के नीचे आराम कर रहे थे तभी 25 दिसंबर 1240 को डकैतों ने उस का वध कर दिया
रजिया सुल्तान का मूल्यांकन रजिया का शासनकाल अत्यंत सीमित रहा,रजिया ने मात्र 3 वर्ष 6 माह 6 दिन तक शासन किया निश्चित रूप से वह इल्तुतमिश के उत्तराधिकारियों में सबसे योग्य थी स्त्री होते हुए भी वह पुरुषोचित गुणों से परिपूर्ण थी, उसमें स्त्री सुलभ दुर्बलता का नामोनिशान नहीं था
इतिहासकारों के अनुसार रजिया का व्यक्तित्व इतिहासकार मिनहाज उल सिराज रजिया की प्रशंसा करते हुए हुए मिनहाज उल सिराज ने लिखा है की सुल्तान रजिया एक महान शासक थी-- बुद्धिमान ,न्याय प्रिय, उदार चित और प्रजा की शुभ चिंतक, समदृष्टि ,प्रजापालक और अपने सेनाओं का नेता थी उसमें सभी बादशाही गुण विद्यमान थे सिवाय नारीत्व के और इसी कारण मर्दों की दृष्टि में उसके सब गुण बेकार थे
अन्य इतिहासकार
कुछ इतिहासकारों ने रजिया की असफलता का मुख्य कारण उसका स्त्री होना बताया
लेकिन आधुनिक इतिहासकार इससे सहमत नहीं है उनके अनुसार उसके पतन का प्रमुख कारण तुर्की अमीरों अर्थात चहलगनी की महत्वकांशा थी
रजिया स्त्री होकर स्त्री होने के किसी दुर्बलता का परिचय नहीं दिया था स्त्री के रूप में रजिया का शासक बनना इस्लाम के समर्थकों के लिए नई बात थी लेकिन इस्लाम के इतिहास के लिए नहीं रजिया के व्यक्तिगत गुणों की सभी इतिहासकारों ने प्रशंसा की है
तत्कालीन इतिहासकार इसामी
इसामी ने उस पर जलालुद्दीन याकूत से अनुचित प्रेम संबंध का आरोप लगाया था
लेकिन अन्य इतिहासकार इस तथ्य को स्वीकार नहीं करते
मिनहाज ने दोनों के संबंधों को निष्कलंक बताया है
रजिया राजनीतिक दूरदर्शिता और योग्यता से परिपूर्ण थी सर्वप्रथम उसने सामंत वर्ग की शक्ति को तोड़ने और तुर्क शासक वर्ग की शक्ति को संगठित करने का प्रयास किया इस दृष्टि से रजिया अलाउद्दीन खिलजी और मुहम्मद बिन तुगलक की अग्रगामी थी विदेश नीति के संदर्भ में उसने अपने दूरदर्शिता का परिचय दिया,1238 ईस्वी में ख्वारिज्म के शाह के सूबेदार मलिक हसन कार्लुक को मंगोलों ने निष्काषित कर दिया
तब वह रजिया के पास सैनिक सहायता का प्रस्ताव लेकर भारत आए रजिया ने उसे सहानुभूति प्रकट करते हुए बरन(बुलंदशहर) की आय देने का वायदा किया, उनका सम्मान किया लेकिन सैनिक सहायता देने से इंकार कर दिया इस संबंध में वह अपने पिता इल्तुतमिश की नीति को अपनाकर मंगोलों से दिल्ली सल्तनत की रक्षा की राजनीतिक दूरदर्शिता और योग्यता से परिपूर्ण होने के बाद भी एक शासक के रूप में रजिया सफल नहीं रही, इस असफलता का मूल कारण शासक वर्ग में व्याप्त उसके प्रति विरोध की भावना थी रजिया का स्त्री होना भी उसकी सफलता का एक कारण माना जाता है उसमें एक महान शासक के सभी गुण थे लेकिन सारे गुण और उसकी योग्यता इसलिए प्रभावहीन हो गई कि वह स्त्री थी एक महिला शासक के रूप में उसे ना स्वीकृति मिली और नहीं शासक वर्ग के सदस्यों का समर्थन के निजामी ने लिखा ह कि इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि इल्तुतमिश के उतराधिकारियों में रजिया सबसे श्रेष्ठ थी
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