राजस्थान की मिट्टियां ( Part 02 )

राजस्थान की मिट्टियां ( Part 02 )


मिट्टीयों की विशेषताएं 


राजस्थान की मिट्टी काफी प्राचीन व परिपक्व है
अधिकतर मिट्टीयों में नाइट्रोजन जीवांश और खनिज लवणों की कमी पाई जाती है
राज्य में पठारी व पहाड़ी भागों में मिट्टीयो की परतें हल्की और मैदानों में गहरी होती है
शुष्क जलवायु के कारण मिट्टीयों को सिंचाई की आवश्यकता अधिक होती है
राजस्थान में मिट्टियों में नमक क्षार व अम्लीयता की अधिकता पाई जाती है
पश्चिमी राजस्थान में इंदिरा गांधी नहर क्षेत्र में मिट्टियां सेम समस्या से ग्रसित है
निरंतर कृषि के कारण भारत की मिट्टियों में उर्वरता में ह्रास की समस्या गंभीर हो गई है
यहां पर वायु व जल अपरदन की समस्या है 

उच्च तापांतर के कारण चट्टानों के भौतिक विघटन के साथ ही उनका रासायनिक अपघटन भी शुरू हो जाता है
यहां की अधिकांश मिट्टियां प्राचीन जलोढ़ है
इन मिट्टीयो के निर्माण में पैतृक चट्टानों तथा जलवायु की दशाओं का विशेष योग है
राजस्थान की मिट्टियों में एकरूपता नहीं पाई जाती है
इन मिट्टियों में उर्वरा शक्ति भी एक समान नहीं होती है
मिट्टी की पतली परत*ही मानव मात्र में भोजन का आधार है

राजस्थान की मिट्टियों के प्रकार


उर्वरकता के आधार पर मिट्टिया
रेतीली मिट्टी
रेतीली चूना रहित मिट्टी
रेतीले धोरे युक्त मिट्टी
 रेतीली जलोढ़ मिट्टी
सिरोजोन मिट्टी
 जिप्सम व चूनायुक्त मिट्टी
लावणिक व क्षारीय मिट्टी
नई जलोढ़ मिट्टी
लाल दोमट मिट्टी
गहरी सामान्य काली मिट्टी
 पथरीली मिट्टी

कणों के आधार पर मिट्टीया
बुलई मिट्टी
दोमट मिट्टी
मटियार मिट्टी
बलुई दोमट मिट्टी

शैलोंके आधार पर मिट्टियां 
अति प्राचीन रवेदार व कायांतरित शैलों से निर्मित
कुडुप्पा व विंध्यन शैलों से निर्मित
गोडवाना शैलो से निर्मित
दक्कन ट्रैप से निर्मित
टरशरी शैलो से निर्मित
नवीन शैलों से निर्मित 

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के आधार पर मिट्टियां
लाल मिट्टी
काली मिट्टी
लेटराइट मिट्टी
क्षारयुक्त मिट्टी
कांप मिट्टी
रेतीली मिट्टी
वनों वाली मिट्टी
हल्की काली व दलदली मिट्टी 


भौगोलिक वितरण के आधार पर मिट्टियां

रेतीली मिट्टी
रेतीली बालुका मिट्टी ,लाल रेतीली मिट्टी ,गहरी मध्यम पीली व भूरी मिट्टी ,लवण मिट्टी
भूरी रेतीली मिट्टी
लाल व पीली मिट्टी
रेतीली मिट्टी ,सतही मिट्टी, गहरी मध्यम व भारी मिट्टी
लाल लोमी मिट्टी
मिश्चित लाल व काली मिट्टी
मध्यम काली मिट्टी
काँप या कछारी मिट्टी
भूरी रेतीली कछारी मिट्टी 

वैज्ञानिक वर्गीकरण के आधार पर मिट्टियां
कैम्बोऑरथिड्स
केल्सिऑरथड्स
क्वॉर्टजीसामैन्टस
टोरीफ्लूवेण्ट्स
उस्टीफ्येवेण्टस
टौरीसामैन्ट
 हेप्लूस्ताल्फस
 क्रोमस्टर्ट्स
पेल्युस्टर्ट्स

 माथुर व सक्सेना के आधार पर  की मिट्टियां
रेतीली बलुई मिट्टी
भूरी रेतीली या लाल पीली रेतीली मिट्टी
सिरोजम/धूसर मिट्टी
पर्वतीय मिट्टी
लाल दोमट मिट्टी
मध्यम काली मिट्टी
लाल काली मिट्टी
भूरी मिट्टी
कछारी/दोमट/जलोढ़ मिट्टी
लवणीय मिट्टी

राजस्थान में मिट्टियों के प्रकार


रेतीली मिट्टी
यह मिट्टी सामान्यता उन क्षेत्रों में पाई जाती हैं जहां वार्षिक वर्षा न्यूनतम होती है अरावली पर्वतमाला के उत्तरी पश्चिमी क्षेत्र में थार का मरुस्थल का मुख्य भाग है यहां पर अधिकतम मिट्टी रेतीली है अरावली पर्वत माला के उत्तर पश्चिमी क्षेत्र में इस प्रकार की मिट्टी का अधिक जमाव पाया जाता है इस क्षेत्र में पाई जाने वाली मिट्टियों में जीवाश्म तत्वों की कमी पाई जाती है
श्री गंगानगर हनुमानगढ़ जिले में इस रेतीली मिट्टी को बागड़ प्रदेश कहते हैं यह मिट्टियां प्राचीन काँप मिट्टियां होती है  यहां पर सिंचाई द्वारा राजस्थान का सर्वाधिक उत्पादन किया जाता है इस कारण श्री गंगानगर को राजस्थान का अन्न भंडार कहा गया है इस मिट्टी में अंत: स्पंदन और पारगम्यता की दर अधिक होने के कारण इनमे जल व पादप पोषण तत्वों का ह्मस अधिक होता है यह संपूर्ण क्षेत्र वायु द्वारा निक्षेपित मिट्टी से बना है
इसमें रेतीली लाल, पीली, पीली भूरी आदि मिट्टियां की प्रधानता है  यह मिट्टी पवन अपरदन के प्रति संवेदनशील है इस मिट्टी की विशेषता कैल्सियम लवणो की अधिकता से 


 रेतीली मिट्टी को रंग व उपलब्ध के आधार पर 4 भागों में बाटा गया है

रेतीली बलुई/बालू मिट्टी  ➖ इस मिट्टी को रेतीली मरुस्थलीय बलुई बालू मिट्टी भी कहते हैं इस मिट्टी का निर्माण अम्लीय आग्नेय चट्टानों और बालू पत्थर के अपक्षय से होता है इस मिट्टी में क्ले की मात्रा 5-7%होती है यह मिट्टी रेत के टीलो के रुप में पाई जाती हैं  जो पश्चिमी राजस्थान के अधिकांश क्षेत्रों में होती है  यह मिट्टी राजस्थान में सबसे अधिक क्षेत्रों में पाई जाने वाली मिट्टी है  जहां पर 10 सेमी से भी कम वर्षा होती है वहां पाई जाती है  यह राजस्थान क्षेत्र के श्री गंगानगर बीकानेर चूरू जोधपुर जैसलमेर बाड़मेर जालौर क्षेत्र में पाई जाती है इस मिट्टी में जल ग्रहण की क्षमता नहीं पाई जाती है  इस मिट्टी के कण मोटे होते हैं  मिट्टी के कण मोटे होने के कारण पानी शीघ्र ही विलीन हो जाता है  इस कारण वर्षा का जल बहुत थोड़े समय के लिए ही नमी बना पाता है  जिसके कारण सिंचाई का कोई भी विशेष लाभ नहीं होता है
इस प्रकार की मिट्टी में नाइट्रोजन कार्बनिक लवणों सूक्ष्म पोषक तत्व मेग्जीन तांबा व लोहां की कमी पाई जाती है लेकिन इसमें कैल्शियम लवणों की अधिकता होती है ph मान की अधिकता व जैविक पदार्थों की कमी पाई जाती है इस मिट्टी प्रदेश में कटीली झाड़ियां के रूप में वनस्पति मिलती है इस प्रकार के क्षेत्रों में सामान्यता पशुपालन का कार्य किया जाता है वर्तमान में इंदिरा गांधी नहर के आने से यहां पर कृषि की संभावनाएं बड़ी है 
बालूका स्तूप स्थिरीकरण के क्षेत्रों में कैल्शियम आक्साइड कम पाया जाता है  जोधपुर और जयपुर के कुछ भाग इस क्षेत्र में आते हैं इन क्षेत्रों में कैल्शियम आक्साइड मिट्टी में गहराई की और कम होते जाते हैं जो कैल्शियम कार्बोनेट संचयन का परिणाम है अधिकांश रेतीली मिट्टियों में नाइट्रोजन की मात्रा कम होती है ऐसे क्षेत्रों में बाजरा मोठ मूंग आदि की फसलें पैदा की जाती है  कुछ सिंचित भागों में गेहूं की खेती भी की जाती है  यह मिट्टी बाजरे की खेती के लिए उपयुक्त होती है  क्वार्टज मुख्यतः बलुई भूमि में पाया जाता है 

लाल रेतीली मिट्टी (लाल मिट्टी/लाल बलुई मिट्टी) ➖
इस मिट्टी की उत्पत्ति प्राचीन क्रिस्टलाइन व रूपांतरित चट्टानों से हुई है
इस मिट्टी का रंग पीला भूरा अथवा गहरा होता है
यह मिट्टी नागौर जोधपुर पाली जालोर चूरु तथा झुंझुनू के कुछ भागों में पायी जाती है
इस मिट्टी में जल ग्रहण की क्षमता अधिक होती है
इस मिट्टी में बालू की मात्राअधिक होती है
इसमें CaCO3 नहीं पाया जाता है
इस मिट्टी में अगर सिंचाई की सुविधा उपलब्ध हो जाए तो मिट्टी कृषि योग्य बन सकती है
इस मिट्टी का लाल रंग लोहे के विस्तृत विसरण के कारण है
इस मिट्टी में नाइट्रोजन और कार्बनिक तत्वों की मात्रा कम होती है
इस भाग में सिंचाई करने और रासायनिक खाद डालने पर रबी की फसलें गेहूं जौ चना आदि पैदा किए जा सकते हैं
खरीफ के मौसम में बारानी खेती की जाती है जो पूर्णतः वर्षा पर निर्भर होती है
इस मिट्टी को Early Soil भी कहते है क्योंकि दक्षिण पश्चिम मानसून की शुरूआती हल्की वर्षा में ही इस मिट्टी में बुआई संभव हो जाती है    

गहरी मध्यम पीली व भूरी रेतीली मिट्टी
यह मिट्टी नागौर में पाली जिले में पाई जाती है
यह पीली भूरी रेतीली से बालू दोमटआदि के रुप में पाई जाती है
इसमें 100 से 150 सेमी की गहराई पर चूना मिश्रित मिट्टी की परत पाई जाती है
इस मिट्टी में *चने का उत्पादन अधिक किया जाता है 

खारी मिट्टी/लवण मिट्टी ➖
यह मिट्टी राजस्थान के पश्चिमी भाग में अंतः प्रवाह क्षेत्र में पाई जाती है
यह मिट्टी की राजस्थान की 8 आंतरिक बेसिनों में पाई जाती है
इन्हीं अंतः प्रवाह क्षेत्र में नमक की प्राप्ति होती है
सांभर डीडवाना पचपदरा लूणकरणसर बेसिन आदि में इस प्रकार की मिट्टियां पाई जाती है
प्रशासनिक दृष्टि से नागोर (निम्न भूमियो अथवा गर्तो)बिकानेर बाड़मेर और  जैसलमेर में लवण मिट्टी की अधिकता पाई जाती है
इस मिट्टी में लवणता की मात्रा अधिक होती है

लाल व पीली मिट्टी
इस मिट्टी में लोहांश और वनस्पति अंश (ह्माूमस व कार्बोनेट तत्वो) की कमी पाई जाती है
इस कारण इसका रंग लाल व पीला होता है
पीला रंग लोहा ऑक्साइड के जलयोजन की उच्च मात्रा के कारण होता है
इस मिट्टी का निर्माण ग्रेनाइट शिस्त तथा नीस चट्टानों से माना जाता है
इस प्रकार की मिट्टी सवाई माधोपुर भीलवाड़ा करोली टोंक अजमेर सिरोही जिले में मिलती है
जलवायु और स्थानीय दशाओं का प्रभाव इस मिट्टी पर अधिक पड़ता है
इन क्षेत्रों में चीका व दोमट दोनों प्रकार की मिट्टियां पाई जाती हैं
इस मिट्टी का पीएच मान 5.5 से 8.5 के बीच होता है 
जलवायु और स्थानीय दशाओं*के आधार पर इस *मिट्टी को तीन भागों*में बाटा गया है 


रेतीली मिट्टी➖

यह मिट्टी रेतीली से दोमट रेतीली है
यह मिट्टी छोटे कण वाली होती है
इसलिए इसे दोमट रेतीली मिट्टीभी करते हैं
इस मिट्टी के क्षेत्र में कहीं-कहीं बालूका स्तूप भी दिखाई देते हैं
इसमें रेत की मात्रा 75 से 90%होती है
यह मिट्टी खुली मुलायम और भुरभुरी है
इसके कारण इसमें जल को सोखने की क्षमता बहुत अधिक होती है
इस मिट्टी मे घुलनशील लवण का प्रतिशत बहुत कम पाया जाता है
राज्य के अजमेर जिले में यह मिट्टी पाई जाती है 

छिछली अथवा सतही मिट्टी➖
यह मिट्टी 30 से 120 सेमी की गहराई में पाई जाती है
यह मिट्टी चट्टानी क्षेत्रों में पाई जाती है
इस मिट्टी के नीचे कठोर चट्टानें (धरातल) होती है
इसलिए मिट्टी का जमाव असमतल व उबड- खाबड होता है
इस मिट्टी में बालू की मात्रा 65 से 75%होती है 

गहरी मध्यम व भारी मिट्टी➖
यह मिट्टी 5 से 10 मीटर की गहराई लिए होती है
इस मिट्टी के कण कठोर व सुदृढ होते हैं
इस कारण इस में पानी आसानी से नहीं घूस पाता है
सवाईमाधोपुर के कुछ क्षेत्रों में यह मिट्टी गहरी लोमी के रूप में पाई जाती है
रेतीली दोमट से दोमट और पीली भूरी से गहरे भूरे, हल्के भूरे रंग में यह मिट्टी मिलती है

भूरी व रेतीली मिट्टी
अरावली के पश्चिम में बाड़मेर जालौर जोधपुर सिरोही पाली नागौर सीकर झुंझुनू जिले में पाई जाती है
अरावली के पश्चिमी भाग में यह मिट्टी 36 500 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में विस्तृत है
इस प्रकार की मिट्टी प्रदेश में भूमिगत जल की गहराई अधिक पाई जाती है
सामान्यता 50 से 200 मीटर की गहराई पर पानी मिलता है फास्फोरस तत्व अधिक पाए जाते हैं
कुछ स्थानों पर फास्फोरस का प्रतिशत बहुत अधिक मिलता है
जितना कि कांप मिट्टी और बालू में पी एच का मान 7.2से9.2 के बीच मिलता है
मिट्टी की उर्वरता नाइट्रेट की उपस्थिति के कारण और अधिक बढ़ जाती है
पाली जिले के सुमेरपुर स्थान पर मिट्टी में विषमताएं अधिक पाई गई हैं
यह मिट्टी दलहनी फसलों हेतु उपयुक्त है
इस क्षेत्र में 90 से 150 सेमी की गहराई पर चूने  की सतह मिलती है
चूने की इस सतह को हार्ड-पेन कहते हैं
नाइट्रोजन की अधिकता इस मिट्टी को उपजाऊ बनाती है 

 Lal लोमी मिट्टी/दोमट मिट्टी
इस मिट्टी का निर्माण प्राचीन स्फटकीय व कायान्तरित चट्टानों से हुआ है
इस मिट्टी के कण बारीक होते हैं
इसलिए बारीक कणों वाली मिट्टी को लाल दोमट मिट्टी भी कहते हैं
यह मिट्टी दक्षिणी राजस्थान के डूंगरपुर बांसवाड़ा उदयपुर प्रतापगढ़ राजसमंद और चित्तौड़ के कुछ भागों में पाई जाती है
इस प्रकार की मिट्टी में पानी अधिक समय तक रहता है
इस कारण वर्षा के बाद एक लंबे समय तक इस मिट्टी में नमी बनी रहती है
इस मिट्टी का रंग लाल होता है
इस मिट्टी लौहऑक्साइड के लवण व पोटाश के तत्व अधिक पाए जाते हैं
लोहा ऑक्साइड के लवण के अधिक होने से कारण इस मिट्टी का रंग लाल होता है
इसमें नाइट्रोजन फास्फोरस और कैल्सियम लवणों की कमी होती है
इस मिट्टी में रासायनिक खाद और सिंचाई करने से मक्का कपास गेहूं जौ चना चावल गन्ना आदि की फसलें पैदा की जा सकती है
यह मिट्टी मक्का व ज्वार की खेती के लिए सर्वाधिक उपयुक्त होती है ​​

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