यह मिट्टी मालवा के पठार की काली मिट्टी का ही विस्तार है यह मिट्टी बालूई मटियार अथवा बालुई दोमट के रूप में मिलती है इस में फास्फेट नाइट्रोजन कैल्शियम औप जीवाश्म पदार्थों की कमी होती है कई स्थानों पर गहराई में भिन्नत होने के कारण इसके उपजाऊपन में भी अंतर पाया जाता है काली मटियारी मिट्टीयों की किस्मअच्छी होती है यह मिट्टी उपजाऊ मिट्टी है यह मिट्टी सोयाबीन कपास मक्का तिलहन फसलों के लिए उत्तम मानी जाती है इसमें लौह तत्व की मात्रा अधिक होती है बागवानी के पौधे अफीम की खेती के लिए यह मिट्टी उपयुक्त है यह मिट्टी उदयपुर भीलवाड़ा के पूर्वी भाग चित्तौड़ डूंगरपुर बांसवाड़ा के दक्षिण पूर्वी भाग में पाई जाती है
मध्यम काली मिट्टी इस मिट्टी का निर्माण दक्षिण पूर्वी भाग ज्वालामुखी (विन्ध्यन व डेकन ट्रेप क) बेसाल्ट लावा से होता है इस मिट्टी के कण सबसे महीन होते हैं इस कारण इसमें जल धारण क्षमता सर्वाधिक होती है इस मिट्टी को रेगुर/रेगुड कहते हैं यह मिट्टी काली तथा कांप मिट्टी के मिश्रण से बनती है इस मिट्टी का रंग धूसर गहरे भूरे रंग की मटियार मध्यम गहरे काले रंग की होती है चंबल बेसिन में इस प्रकार की मिट्टी का जमाव अधिक पाया जाता है यह मिट्टी व्यापारिक फसलो के लिए अधिक उपयुक्त होती है इस मिट्टी का क्षेत्र कपास सोयाबीन अफीम और संतरे के लिए सर्वाधिक उपयुक्त माना जाता है इस मिट्टी में कैल्शियम व पोटाश की अधिकता होती है फास्फोरस नाइट्रोजन और जैविक पदार्थों की कमी पाई जाती है इस मिट्टी का अपरदन सर्वाधिक होता है राजस्थान के दक्षिण पूर्वी भागो झालावाड़ (पश्चिमी झालावाड़ को छोड़ कर) बूंदी बारा और कोटा*जिलों में पाई जाती है काली मिट्टी को मृत्तिका भी कहते हैं काली मिट्टी में हल्की वर्षा होने पर जल का प्रवेश धीरे धीरे होता है इस कारण ऋतु के बाद के समय में कृषि कार्य किया जाता है जिसे Late Soil कहते हैं 45 प्रतिशत काली मिट्टीयों में निचली सतह में जिप्सम जमा होता है काली मिट्टी का रंग टिटेनीफेरम और ह्यमस के कारण होता है
काँप या कछारी/जलोढ मिट्टी इस मिट्टी को कछारी/ दोमट/कॉप/ब्लैक कॉटन सोयल भी करते हैं इस मिट्टी का निर्माण नदी नालों के किनारे और उनके प्रवाह क्षेत्र से हुआ है नदियों के पानी द्वारा बहा कर लाई गई मिट्टी को जलोढ़ मिट्टी कहते हैं जलोढ़ मिट्टी बहुत उपजाऊ होती है जलोढ़ मिट्टी का उपजाऊ का कारण इस में उपस्थित नमी होता है इस मिट्टी का रंग कहीं हल्का लाल व कहीं पीला होता है इस मिट्टी में कही कही कंकरो का जमाव भी पाया जाता है कंकर के जमाव के कारण केल्सियम तत्व की मात्रा बढ़ जाती है इस मिट्टी में चूना फास्फोरिक अम्ल और ह्यमस जिंक कैल्सियम लवणो की कमी पाई जाती है मिट्टी में नाइट्रोजन व कार्बनिक लवण पर्याप्त मात्रा में पाए जाते हैं यह मिट्टी उत्पादकता के लिए प्रसिद्ध है यह मिट्टी राजस्थान की सर्वाधिक उपयुक्त(उपजाऊ) मिट्टी है मिट्टी में पानी का रिसाव धीमा होता है इस कारण इस मिट्टी को पानी मिलते ही यह मिट्टी कृषि के लिए बहुत उपयोगी है लेकिन अत्याधिक सिंचाई की वजह से इस में लवणीयता की समस्या होती है इस मिट्टी में नमी बहुत समय तक बनी रहती है इस मिट्टी में खरीफ और रबी दोनों प्रकार की फसलें उगाई जाती हैं इस मिट्टी में मटियार की मात्रा 35 से 40% होती है यह मिट्टी अलवर जयपुर अजमेर टोंक सवाई माधोपुर भरतपुर धौलपुर कोटा*आदि जिलों में पाई जाती है नवीनतम कांप मिट्टी को खादर कहते हैं खादर का परिवर्तित रूप बाँगर कहलाता है पुरानी काँप मिट्टी को बॉगर कहते हैं पुरानी
भूरी रेतीली कछारी मिट्टी राज्य के अलवर भरतपुर राजस्थान के उत्तरी भाग में श्रीगंगानगर और हनुमानगढ़ जिले के मध्यवर्ती भाग में यह मिट्टी पाई जाती है इस मिट्टी का रंग भूरा (थोडा ललाई) होता है फास्फोरस लोहांश और वनस्पति अंश की कमी होती है सामान्यतः इसे बागढ़ प्रदेश की मिट्टी भी कहा जाता है इस का निर्माण प्राचीन काल में नदियों द्वारा लाई गई कांप मिट्टी से हुआ है अत: इसमें व्यापारिक व खाद्यान फसलें अधिक बोयी जाती हैं इन क्षेत्रो में सिंचाई की अच्छी सुविधा होने के कारण कपास गन्ना और गेहूं की कृषि अधिक होती है वर्तमान में कांप मिट्टी के नवीन जमाव चंबल की मध्यवती घाटी,छप्पन के मैदान में पाए जाते हैं
लवणीय-क्षारीय मिट्टी इस मिट्टी में क्षारीय लवण तत्व की मात्रा अधिक होती है इस मिट्टी से राजस्थान के पश्चिमी भाग बाड़मेर(कच्छ के रण के आस पास का क्षेत्र) जालौर जिले अधिक प्रभावित हैं पश्चिमी राजस्थान के अधिकतर कुओं का पानी खारा है इस कारण सिंचाई करने से ऊपरी परत में लवणो व सोडियम कार्बोनेट की मात्रा बढ़ जाती है जिस वजह से यहां की मिट्टी लवणीय क्षारीय हो जाती है यह मिट्टी खारे पानी की झीलो डीडवाना सांभर कुचामन पचपदरा लूणकरणसर आदि के आज के क्षेत्रों में पाई जाती है सेम समस्या वाले क्षेत्र हनुमानगढ़ गंगानगर में भी पाई जाती इस मिट्टी को भूरा उसर रेहयुक्त उसर रेेहली उसर और नमकीन मिटटी के नाम से जाना जाता है लवणीय मृदा के सुधार का सिद्धांत जड क्षेत्र से सामान्य से अधिक लवण का निष्कासन है लवणीय मिट्टी से निक्षालन द्वारा लवणों को हटा देने से मिट्टी सामान्य हो जाती है लवणों का जमाव अधिक सिचाई करने से भी होता हे राजस्थान के उत्तरी पूर्वी जिले गंगा नगर भरतपुर व कोटा जिलों में अधिक सिंचाई वाले भागों में लवणीय मिट्टियां अधिक पाई जाने लगी है यह मिट्टी पूर्णतः अनुपजाऊ होती है इस मिट्टी में केवल झाड़ियां वह बरसाती पेड़-पौधे ही उगते हैं इसमें चारागाह का काम किया जाता है लवणीय मृदा में उगने वाले पौधे हेलोफाइट्स कहलाते है लवणीय मिट्टी मे उर्वरक के रूप मे अमोनियम सल्फेट, गंधक, गोबर का खाद, उड़द, ग्वार या ढैंचा कि फसल और जिप्सम का प्रयोग किया जाता है लवणीय-क्षारीय मिट्टी के खेतों में फव्वारा/ ड्रिप सिंचाई उपयुक्त होती है राजस्थान में लगभग 11लाख हेक्टेयर भूमिक्षारीय व लवणीयता से ग्रस्त है
रेह/रेतीली मिट्टी- उसे कहते हैं जहां वर्षा का जल एक स्थान पर पड़ा रहकर वाष्पीकृत होता रहता है इसमें मृदा में उपस्थित सोडियम कैल्शियम ,मैग्नीशियम, पोटेशियम के क्लोराइड ,सल्फेट कार्बोनेट, बाइकार्बोनेट आदि परत के रूप में जमा हो जाते हैं उन सब को स्थानीय भाषा में रेह या रेतीली मिट्टी कहते हैं पानी में लवणो की मात्रा अधिक होती है उसे सामान्य बोलचाल की भाषा में तेलिया पानी कहा जाता है
मिट्टी में लवणता के कारण मिट्टी में सोडियम कैल्शियम मैग्नीशियम क्लोराइड सल्फेट कार्बोनेट बाइकार्बोनेट लवणों की मात्रा का अधिक होना वर्षा की कमी के कारण शुष्क और अर्ध शुष्क क्षेत्र में लवणीय मिट्टी का निर्माण होना खारे पानी से सिंचाई ,उच्च भूजल स्तर कठोर परत का बनना
लवणीय-क्षारीय मिट्टी की विशेषता इस मिट्टी में सोडियम ,क्लोराइड एवंसल्फेट होते है साथ ही कम मात्रा में केल्सियम एवं मैगनेशियम ,के क्लोराइड सल्फेट एवं बाईकार्बोनेट भी उपस्थित होते हैं इस मिट्टी का रंग उजला या हल्का धूसर होता है वह मिट्टी जिसकी भौतिक और रासायनिक अवस्था सोडियम की अधिकता के कारण बहुत अधिक प्रभावित होती है क्षारीय मिट्टी कहलाती है इस मिट्टी में क्षारीय लवण तत्व की मात्रा अधिक होती है क्षारीय मिट्टी के निर्माण की प्रक्रिया में लवणों का जमा होना पहला चरण होता है
लवणीयता-क्षारीयता की समस्या निवारण ऊसर भूमि को सुधारने के लिए गोबर का खाद ग्वार या ढैचा की फसल का प्रयोग किया जाता है धमाशा (टेफ्रोसिया परपुरिया)व सुबबूल (ल्युसियाना ल्युकोलसेफेका) आदि खरपतवार को मिट्टी में मिलाने से लवणीयता की समस्या को कम किया जा सकता है मिट्टी में खारापन या क्षारीयता की समस्या समाधान के लिए जिप्सम का उपयोग किया जाता है अमोनियम फास्फेट का लवणीय-क्षारीय मिट्टियों वाले क्षेत्रों में इसका उपयोग किया जाता है केंद्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान करनाल (हरियाणा) में स्थित है राजस्थान में सबसे पहले मृदा परीक्षण प्रयोगशाला केंद्र सरकार की सहायता से जोधपुर जिले में क्षारीय मृदा परीक्षण प्रयोगशाला स्थापित की गई है ph मान के द्वारा मिट्टी की क्षारीयता व लवणीयता का निर्धारण होता है यदि मिट्टी का पीएच मान कम है तो अम्लीय मिट्टी अगर मिट्टी का पीएच मान अधिक होता है तो मिट्टी क्षारीय होती है अगर पी एच मान कुछ नहीं होता है तो मिट्टी उदासीन मानी जाती है
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