स्वतंत्रता प्राप्ति के समय राजपूताने में 19 रियासते आती थी, उनमें सबसे प्राचीन रियासत मेवाड़ और क्षेत्रफल की दृष्टि से सबसे बडी रियासत जोधपुर थी, जोधपुर का क्षेत्रफल 45000 वर्ग किलोमीटर था। हरिपुरा कांग्रेस अधिवेशन में यह निर्णय लिया गया था कि रियासतों में प्रजामंडल, प्रजा परिषद व लोक परिषद की संस्थाएं स्थापित कर ली जाए, वे संस्थाए अपने नरेशो की छत्रछाया में उत्तरदायी शासन की स्थापना का प्रयास करें।
विभिन्न रियासतों के एकीकरण की इस समय तक कल्पना भी नहीं की गई थी लेकिन 31 दिसंबर 1945 में अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद् का अधिवेशन उदयपुर में जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में हुआ था, उसमे लिए गए निर्णय के अंतर्गत अखिल भारतीय लोक परिषद् की शाखा के रुप में राजपूताना प्रांतिय सभा की स्थापना की गई, जिसका प्रधान कार्यालय जयपुर में रखा गया। वास्तव में राजपूताना प्रदेश के भावनात्मक एकीकरण की ओर यह प्रथम कदम था
सितंबर 1946 में केंद्र में पंडित जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में अंतरिम सरकार का गठन हुआ, उसमें भारतवासियों के हृदय में नवीन चेतना का उदय हुआ। अंतरिम सरकार के गठन के सात दिन उपरांत ही अखिल भारतीय देशी लोक परिषद् की राजपूताना प्रांतीय सभा में 9 सितंबर 1946 को एक प्रस्ताव पारित कर घोषणा की कि राजस्थान की कोई भी रियासत अपने आप में भावी भारतीय संघ में सम्मिलित होने योग्य नहीं है
अतः समस्त राजस्थान को एक इकाई के रूप में भारतीय संघ में मिलना चाहिए, उपरोक्त प्रस्ताव के पारित हो जाने से राजपूताने की राजनीति ने नया मोड़ लिया इसने नरेशों की छत्रछाया का सिद्धांत समाप्त कर दिया तथा जन साधारण में एकिकरण की भावना का सर्जन किया। विभिन्न रियासतों ने अपनी कृत्रिम सीमाएं समाप्तकर अपने को संयुक्त राजस्थान के रूप में रुपांतरितकरने की कल्पना को साकार रुप देने का विचार किया।
इसी प्रस्ताव में राजपूताने के स्थान पर राजस्थान शब्द का प्रयोग किया गया, इस प्रकार कर्नल टोड़ के द्वारा 117 वर्ष पूर्व प्रयुक्त राजस्थान शब्द ने पुनः यहा महत्वपूर्ण स्थान ग्रहण कर लिया। अखिल भारतीय देशी लोक परिषद की राजपूताने की प्रांतीय सभा में इस विषय का प्रस्ताव पारित हो जाने से भी राजस्थान का निर्माण एक आकस्मिक घटना के रूप में नहीं हुआ।
इसके गठन में अनेक कठिनाइयां प्रस्तुत हुई, उन कठिनाइयों के निवारण में राज्यों के नरेशों ने भी अपना योगदान दिया व वहां की जनता ने भी अपना योगदान दिया।
राजस्थान की 19 रियासतों का विलय 18 मार्च 1948 को आरंभ हुआ और इस की पूर्णाहुति 1 नवंबर 1956 को हुई। 8 वर्षों के अंतराल में राजस्थान को अपने लक्ष्य तक पहुंचने में 7 चरणों से गुजरना पड़ा
स्वतंत्रता प्राप्ति के समय अलवर व भरतपुर में बड़े पैमाने पर सांप्रदायिक दंगे हो रहे थे, प्रथम मेव लोगों ने भरतपुर का उत्तरी भाग गुड़गांव और अलवर के दक्षिणी भाग को मिलाकर मेवस्तान बनाने का प्रयास किया था, लेकिन हिंदुओं ने उनकी मुरादों पर पानी फेर दिया और इसी कारण यह अशांति फेल गई थी, वहां के मेव मुसलमान लोग भारी संख्या में पाकिस्तान जा रहे थे, भारत सरकार इससे विक्षुब्ध थी
अलवर नरेश का उस में सक्रिय हाथ होने की आशंका में भारत सरकार के गृह मंत्री ने अलवर नरेश को दिल्ली नजर बंद कर लिया और राज्य का प्रशासन अपने हाथों में ले लिया, हालांकि अलवर में सांप्रदायिक झगड़े भरतपुर के झगड़ों के कारण हुए थे, उधर इन सांप्रदायिक दंगो के कारण भरतपुर की कानून व्यवस्था भी टूट चुकी थी, अतः भरतपुर नरेश बृजेंद्र सिंह अपने राज्य की बिगड़ती दशा के कारण अपनी रियासत का शासन तंत्र वी पी मेनन की मंत्रणा पर केंद्र सरकार को सौपने को उद्यत हो गया, हालांकि भरतपुर नरेश ने सांप्रदायिक झगड़े को शांत करने के लिए हरचंद कोशिश की थी, जनता से भी इसमें सहयोग देने को कहा गया था लेकिन भरतपुर सरकार के सारे प्रयास विफल रहे।
अलवर, भरतपुर से मिलती हुई करौली, धौलपुर दो छोटी रियासते और थी, यह चारों रियासते भारत सरकार द्वारा निर्धारित मापदंड के अनुसार पृथक अस्तित्व बनाए रखने योग्य नहीं थी, वैसे भी धौलपुर नरेश ने पाकिस्तान में विलय के प्रश्न पर जोधपुर नरेश का साथ दिया था, अब भारत सरकार उससे भी नाराज थी इसीलिए 27 फरवरी 1948 को भारत सरकार ने इन रियासतों को सलाह दी कि अलवर, भरतपुर, धौलपुर व करोली को मिलाकर एक नवीन राज्य के रूप में रुपांतरित हो जाना चाहिए
चारों रियासतों ने इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया और 18 मार्च 1948 को यह चारों रियासते मत्स्य राज्य के रुप में उभर आएगी, महाभारत काल में भी इस प्रदेश को मत्स्य के नाम से ही जाना जाता था। अतः इस नवीन राज्य को यही नाम दिया गया और इस नवीन राज्य का उद्घाटन 18 मार्च 1948 को भारत के केंद्रीय मंत्री नरहरि गॉडगिल ने किया।
हालांकि इसके उद्घाटन के समय भरतपुर नरेश के हनुमान सिंह के नेतृत्व में जाटों ने भारी विरोध किया था, इस नवीन राज्य का क्षेत्रफल 12000 वर्ग किलोमीटर था और इसकी राजधानी अलवर रखी गई, इसकी जनसंख्या 1.8 करोड़ और वार्षिक आय दो करोड़ थी। मत्स्य संघ का प्रधानमंत्री अलवर प्रजामंडल के नेता श्री शोभाराम कुमावत को बनाया गया, जबकि राज प्रमुख महाराजा धौलपुर उदय भान सिह को बनाया गया, मंत्रिमंडल में आठ मंत्री रखे गए।
इस राज्य का नाम कन्हैया लाल, माणिक लाल, मुंशी की सलाह पर मत्स्य संघ रखा गया, अलवर महाराजा तेजसिह और अलवर के दीवान एनबी पर महात्मा गांधी की हत्या के षड्यंत्र का आरोप था, इसीलिए सरकार ने इंहें 7 फरवरी 1948 को दिल्ली बुलाकर नजर बंद कर दिया था। भरतपुर के महाराजा ब्रजेंद्र सिंह पर भी सांप्रदायिक दंगे भड़काने का आरोप था।
☘द्वितीय चरण अथवा राजस्थान संघ☘
- संघ का नाम - राजस्थान संघ अथवा संयुक्त राजस्थान संघ प्रथम
तिथि - 25 मार्च 1948
सम्मिलित रियासतें - कोटा, बूंदी,झालावाड ,टॉक ,शाहपुरा, किशनगढ़, डूंगरपुर ,बांसवाड़ा, प्रतापगढ़ ,कुशलगढ़ ,लावा ठिकाना
राज प्रमुख - भीम सिंह *कोटा)
उप राज प्रमुख - बहादुर सिंह (बूंदी)
प्रधानमंत्री - गोकुल लाल असावा
राजधानी - कोटा
उद्घाटन - नरहरी विष्णु गाँडगिल
मत्स्य संघ के निर्माण के साथ साथ भारत सरकार राजस्थान के अन्य छोटे राज्यों के शासकों से उनके भविष्य के बारे में भी बातचीतकर रही थी
कोटा का महाराव भीमसिंह कोटा ,बूंदी व झालावाड मिलाकर हाड़ौती यूनियन बनाना चाहता था
डूंगरपुर का महारावल लक्ष्मण सिह बागड प्रदेश डूंगरपुर बांसवाड़ा और प्रतापगढ़ की Union बनानाचाहता था
लेकिन दोनों के प्रयत्न असफल रहे
रियासती विभाग में इन्हें मध्य भारत और मालवा में मिलाने का प्रस्ताव रखा
लेकिन राजस्थान के नरेशों को मध्य भारत व मालवा में सम्मिलित होना स्वीकारनहीं था
रियासती विभाग को शाहपुरा और किशनगढ़ को अजमेर में मिलाने की योजना पहले ही जनप्रतिनिधियों के विरोध के कारण रद्दकर दी गई थी
अब रियासती विभाग के सामने राजस्थान की छोटी-छोटी रियासतो को मिलाकर एक अलग यूनियन बनाने के अतिरिक्त और कोई चारा नहीं था
रियासती विभाग चाहता था कि राजस्थान की रियासतों का एकीकरण इस प्रकार हो कि उनकी सदियों पुरानी सामाजिक और सांस्कृतिक एकता बनी रहे
रियासती विभाग ने 3 मार्च 1948 को कोटा ,बूंदी, झालावाड टोक, डूंगरपुर ,बांसवाड़ा, प्रतापगढ़ किशनगढ़ और शाहपुरा की रियासतों को मिलाकर संयुक्त राजस्थान संघ प्रथम के निर्माण का प्रस्ताव दिया
प्रस्तावित राज्य के हाड़ोती और बागड क्षेत्र के बीच मेवाड़ की रियासतपड़ती थी
रियासती विभाग द्वारा निर्धारित नीति के अनुसार मेवाड़ अपना पृथक अस्तित्व बनाए रखने का अधिकारी था
इसलिए रियासती विभाग मेवाड़ पर विलय के लिए दबाव नहीं डाल सकता था
फिर भी कतिपय राजाओं के आग्रह पर रियासती विभाग ने मेवाड़ को नये राज्य में शामिलहोने की दावत दी
मेवाड़ के प्रधानमंत्री सर रामामूर्ति और महाराणा ने रियासती विभाग के प्रस्ताव का विरोध करते हुए कहा कि मेवाड़ का 1300वर्ष पुराना राजवंश अपनी गौरवशाली परंपरा को तिलांजलि देखकर भारत के मानचित्र पर अपना अस्तित्व समाप्त नहीं कर सकता
अतः रियासती विभाग ने कोटा,बूंदी,झालावाड,डूंगरपुर, बांसवाड़ा,प्रतापगढ़, टौक, शाहपुरा और किशनगढ़ और कुशलगढ,लावा(ठिकाने)के 9 राज्यों व दो ठिकाने को मिलाकर संयुक्त राजस्थान संघ प्रथम अथवा राजस्थान संघ राजस्थान के राज्य के अंतर्गत गठित कर दिया
इन सब राज्यों का मिलाकर क्षेत्रफल 16807 वर्ग मील था और जनसंख्या 2334 220 था
इस संदर्भ में स्वयं सरदार वल्लभभाई पटेल का विचार था कि पालनपुर ,दांता ,डूंगरपुर बांसवाड़ा और सिरोही रियासतों को मालवा व पश्चिमी भारत में मिला देना चाहिए
उपयुक्त राजस्थान संघ में कोटा सबसे बड़ी रियासत थी
इस कारण कोटा नरेश महाराव भीमसिंह इस नवीन संघ के राज प्रमुखबने
यद्यपि बूंदी नरेश महाराव बहादुर सिंह ने कोटा नरेश के इस पद पर आसीन होने का विरोध किया
क्योंकि कोटा रियासत का निर्माण ही बूंदी सेहुआ था
लेकिन अंत में उन्हें यह स्वीकारकरना पड़ा
वर्तमान राजस्थान के गठन में इस संघ को संयुक्त राजस्थान प्रथम अथवा राजस्थान संघभी कहते हैं
क्योंकि आगे चलकर सयुक्त राजस्थान राज्य प्रथमका ही गठन फिर होता है
इस संघ का उद्घाटन 25 मार्च 1948 को भारत के मंत्री श्री नरहरि विष्णु गॉड गिल ने किया
उन्होंने यहां का प्रधानमंत्री का पद गोकुल लाल असावाको दिया
बांसवाड़ा के शासक चंद्रवीर सिंह ने विलय पत्र पर हस्ताक्षर करते हुए कहा था कि मैं अपने डेथ वारंट पर हस्ताक्षर कर रहा हूं
इन सभी राज्यों को मिलाकर एक संयुक्त राजस्थान संघ बनाने का प्रारंभिक प्रस्ताव कोटा डूंगरपुर और झालावाड के राजाओं की तरफसे आया
☘तृतीय चरण अथवा संयुक्त राजस्थान संघ द्वितीय का गठन☘
संघ का नाम - संयुक्त राजस्थान द्वितीय
तिथि - 18 अप्रैल 1948
सम्मिलित रियासते - संयुक्त राजस्थान संघ प्रथम अथवा राजस्थान संघ + उदयपुर
राजप्रमुख - भूपालसिह ₹मेवाड़)
उप राज प्रमुख - महाराजा भीम सिंह (कोटा)
राजधानी - उदयपुर
प्रधानमंत्री - माणिक्य लाल वर्मा
उद्घाटनकर्ता - पंडित जवाहरलाल नेहरू
जिस समय सयुक्त राजस्थान प्रथम का गठनकिया जा रहा था
उस समय मेवाड़ के महाराणा के सम्मुख मेवाड़ को भी संघ में विलय करने का प्रस्ताव रखा गया था
भारत सरकार ने महाराणा के निर्णय की प्रतीक्षा में संयुक्त राजस्थान प्रथम के उद्घाटन को भी स्थगितकरने का प्रयास किया था
लेकिन कोटा के महाराव के अनुरोध पर उस का उद्घाटन निर्धारित समय 25 मार्च 1948पर ही हुआ
महाराणा ने मेवाड़ विलय के प्रस्ताव का विरोध करते हुए कहा कि मेवाड़ का 1300 वर्ष पुराना राजवंश अपने गौरवशाली परंपराओं को तिलांजलि देखकर भारत के मानचित्र पर अपना अस्तित्व समाप्तनहीं कर सकता है राजस्थान की रियासते चाहे तो उनमें मिलसकती है
इस पर राज्य के प्रजामंडल के प्रमुख नेता और संविधान निर्मात्री परिषद के सदस्य श्री माणिक्य लाल वर्मा ने इसकी कड़ी प्रतिक्रियाकी और कहा कि मेवाड़ की 20लाख जनता के भाग्य का निर्णय केवल अकेले महाराणा और मेवाड़ के प्रधानमंत्री सर रामामूर्तिनहीं कर सकते
प्रजामंडल की यह स्पष्ट नीति है कि मैंवाड अपना अस्तित्व समाप्त कर राजस्थान का अंग बन जाए
प्रजामंडल के नेताओं ने जनता को इस तरफ से प्रभावित करना आरंभ किया कि मेवाड़ की उन्नति उसकी पृथकता समाप्त करके ही संभव थी
रियासती विभाग अपनी निर्धारित नीति के अनुसार मेवाड़ पर विलेय के लिए दबाव नही डाल सकता था
लेकिन 4 अप्रैल को मेवाड़ में विधानसभा के चुनाव होने वाले थे
चुनाव में प्रजामंडल के सदस्य भूरेलाल बया और क्षेत्रीय परिषद के सदस्य गुमान सिंह के बीच टक्कर होने को थी
इस चुनाव में प्रथम मेवाड़ का वातावरण उत्तेजनात्मक बनाया और उधर महाराणा के रूख को विनम्रबनाया
बदलती हुई राजनीतिक परिस्थितियों ने महाराणा को स्पष्ट कर दिया कि कोई भी राजतंत्र जनमत के विरुद्ध अधिक समय तक खड़ानहीं रह सकता
अतः सयुक्त राजस्थान प्रथम के उद्घाटन के 3 दिन बाद महाराणा ने भारत सरकार को सूचितकिया कि वह सयुक्त राजस्थान प्रथम में सम्मिलित होने के लिए तैयार है
इसके साथ ही महाराणा भूपाल सिंह ने अपने प्रधानमंत्री सर राम मूर्ति को दिल्ली विलय की शर्तें तयकरने के लिए वी पी मेननसे मिलने भेजा
प्रधानमंत्री के साथ श्री मोहन सिंह मेहताभी दिल्ली गए थे
परिणामत:यह तय हुआ कि उदयपुर के संयुक्त राजस्थान प्रथम में शामिल होने पर राज्य की राजधानी उदयपुर होगी
महाराणा उदयपुर आजन्म राज प्रमुखहोंगे
उन्हें प्रिवीपर्स के 1लाख रूपों के अतिरिक्त 5लाख रुपए वार्षिक राज प्रमुख के पद का भत्ता और 5लाख रुपए वार्षिक धार्मिक कार्यों पर खर्चकरने के लिए और दिए जाएंगे
उस समय इतनी रियायते विलय होने वाली किसी अन्य रियासत कोनहीं दी गई थी
रियासती विभाग में महाराणा की निजी संपत्ति के प्रश्न पर भी उदारता पूर्वकविचार करने का आश्वासन दिया
महाराणा ने उक्त शर्तें स्वीकार कर ली इसके अलावा मेवाड़ की भौगोलिक स्थिति भी मेवाड़ को संयुक्त राजस्थान संघ प्रथममें विलय को ही आमंत्रित कर रही थी
इन परिस्थितियों में मेवाड़ ने 11 अप्रैल 1948 को राजस्थान में मिलने का प्रस्ताव विधिवत रियासती विभाग को भेजा
इस नवीन संघ का उद्घाटन स्वर्गीय जवाहरलाल नेहरू ने 18 अप्रैल 1948को किया
इस संयुक्त राजस्थान के राजप्रमुख महाराणा भूपाल सिंह और प्रधानमंत्री माणिक्य लाल वर्मा बने
इस संयुक्त राजस्थान के गठन में भारत सरकार को अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा
कई बार रियासती विभाग और राणा जी के मध्य आपसी विरोध पत्र-व्यवहार हुए थे
परंतु वर्मा जी के मंत्रिमंडल ने अपने 11 महीने के कार्यकाल में वह कर दिखाया जो राज्य सरकारी 11 वर्षों में भी नहींकर पाई थी
चतुर्थ चरण अथवा वृहत्तर राजस्थान का गठन
संघ का नाम - वृहत्तर राजस्थान
तिथि - 30 मार्च 1949
सम्मिलित रियासतें - संयुक्त राजस्थान द्वितीय+जयपुर,जोधपुर, जैसलमेर,बीकानेर
महाराजप्रमुख - भूपाल सिंह (आजीवन)
उप राज प्रमुख - भीमसिह व हनुवंतसिंह
राज प्रमुख - मानसिंह द्वितीय(आजीवन)
प्रधानमंत्री - हीरालाल शास्त्री
राजधानी - जयपुर
उद्घाटन - सरदार वल्लभ भाई पटेल
संयुक्त राजस्थान द्वितीय के निर्मित हो जाने से पूर्व ही अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद् की राजपूताना प्रांतीय सभा 20 जनवरी 1948 को एक प्रस्ताव द्वारा राजस्थान की सभी रियासतों को मिलाकर एक वृहद् राजस्थान राज्य के निर्माण की मांग कर चुकी थी
इस प्रस्ताव को क्रियांवित करने में भारत सरकार के समक्ष अनेक कठिनाइयाप्रस्तुत हुई थी
लेकिन जब मार्च 1948 में मत्स्य संघ का गठनहो गया और अप्रैल 1948 में ही राजस्थान की दक्षिण और उत्तर पूर्ण की रियासतों को मिलाकर संयुक्त राजस्थान द्वितीय का निर्माण कर दिया गया तो भारत सरकार के समक्ष वृहद राजस्थान के निर्माण में आने वाली कुछ कठिनाइयां कमहो गई थी
उधर मई 1948 में ही भारत सरकार ने सिरोही रियासत का शासन प्रबंध मुंबई सरकार को सौंप दिया था
अब राजस्थान की प्रमुख रियासतों में जयपुर, जोधपुर, बीकानेर ,जैसलमेर रियासते ही बची थी
जो अभी तक किसी संघ में नहीं मिलीथी
जोधपुर ,बीकानेर ,जैसलमेर रियासते पाकिस्तान की सीमा से सटी हुई थी
इसके अलावा इनका बहुत बडा क्षेत्र रेगिस्तानी होने के कारण यातायात व संचार की दृष्टि से बहुत पिछड़ाहुआ था
इसीलिए भारत सरकार का गृह मंत्रालय इन तीनों राज्यों को केंद्रीय शासित प्रदेशबनाने के लिए उत्सुक था
लेकिन रियासती विभाग लोक-भावनाओं को ध्यान में रखकर ही कोई निर्णय लेना चाहता था
तीनों रियासतों के नरेश अपनी-अपनी रियासतों का स्वतंत्र अस्तित्व रखना चाहते थे
तीनों रियासतो के नरेश मे बीकानेर नरेश श्री शार्दूल सिह तो इस संदर्भ में अपने विचार व्यक्त कर चुके थे
उधर समाजवादी नेता श्री जयप्रकाश नारायण और राम मनोहर लोहिया भी राजस्थान का समर्थन 9 नवंबर 1948 को कर चुके थे
बीकानेर ,जैसलमेर ,जोधपुर की पाकिस्तान की सीमा पर स्वतंत्र इकाई के रूप में बने रहना भारत सरकार को स्वीकार नहीं था
सरदार वल्लभ भाई पटेल ने रियासती विभाग के सचिव श्री वी पी मेनन को उक्त चारों रियासतों के नरेशों से बात करने भेजा
जयपुर रियासत के दीवान सर वी०टी०कृष्णामाचारी ने वृहद राजस्थान का विरोध किया पर साथ में ही अपने वजनदार सुझाव भीप्रस्तुत की है
उन्होंने कहा कि इस समय पंजाब में सिख प्रभुत्व की समस्या बनी हुई है यदि वृहद राजस्थान बन गया तो यहां पर राजपूत प्रभूत्वकी समस्या उठ खड़ी होगी
अतः राजपूत रियासतों का एकीकरण एक की बजाए तीन ईकाईयों में करनाचाहिए
पहली इकाई में *वर्तमान संयुक्त राजस्थान यूनियन हो
दूसरी में जयपुर अलवर व करौली शामिलकिए जाएं और
तीसरी का़ो जोधपुर, बिकानेर और जैसलमेर के विलय से बनाई जाए
भरतपुर ,धौलपुर जाट रियासतों को उत्तर प्रदेश में मिला दिया जाए
बीकानेर के दीवान श्री सी०एस० वैंकटाचारी ने वृहद राजस्थान का समर्थन किया और मेनन के साथ मिलकर कृष्णामाचारी को योजना से असहमति प्रकट करते हुए कहा कि
प्रदेश में फैली हुई जन भावनाओं और समाजवादियों द्वारा आरंभ किए गए आंदोलन को ध्यान में रखते हुए राजपूताना की रियासतों को एक ही इकाई के रुप में एकीकरणकरने के अतिरिक्त और कोई रास्ता नहीं है
सरदार वल्लभ भाई पटेल ने श्री वी पी मेनन व वेंकटाचारी की राय से सहमति प्रकट की
अत: सरदार वल्लभ भाई पटेल के प्रयासों से दिसंबर 1948 में जयपुर जोधपुर बीकानेर राजस्थान में मिलना स्वीकार कर लिया
जनवरी 1948 को सरदार पटेल ने उदयपुर की एक विशाल सभा में इस आशय की घोषणा भी कर दी
वृहद राजस्थान के निर्माण की घोषणा तो कर दी गई पर इसके साथ ही भारत सरकार के सामने अनेक कठिनाइया उत्पन्न हो गई
वृहद राजस्थान का राजप्रमुख कौन बने , मुख्य-मंत्री का पद किसेदिया जाए और नवीन संघ की राजधानी कहांरखी जाए
इन समस्याओं के निवारण के लिए दिल्ली में 3 फरवरी 1948 को राजस्थान के गणमान्य कांग्रेस नेताओं(श्री गोकुल भाई भट्ट श्री माणिक्य लाल वर्मा श्री जयनारायण व्यास व हीरालाल शास्त्री)की एक बैठक आमंत्रित की गई
उसमें तय किया गया कि राज प्रमुख का पद जयपुर नरेश सवाई मानसिंह को मुख्यमंत्री का पद श्री हीरालाल शास्त्रीको दिया जावे
मेवाड़ के महाराणा की मान मर्यादा को ध्यान में रखते हुए श्री भूपाल सिंह को महाराज प्रमुख के पद से सम्मानितकिया जाए
इन सब शर्तो के तय हो जाने पर जब मानसिह जी वायु यान से दिल्ली जाने वाले थे कि उनका वायु यान भस्म हो गया और वह आहतहो गए
इस कारण वृहद राजस्थान के निर्माण में कुछ विलंब होगया
उधर जब वृहद राजस्थान का उद्घाटन करने 29 मार्च को सरदार वल्लभ भाई पटेल जयपुर आ रहे थे तो शाहपुरा के पास वायुयान में खराबी होने के कारण हवाई जहाज को शुष्क नदी में उतारना पड़ा
इन देवीय मुसीबतों को पार करने के उपरांत नवीन संघ की राजधानी जयपुर में 30 मार्च 1949 को सरदार पटेल ने वृहतर राजस्थान का उद्घाटन किया और 7 अप्रैल को हीरालाल शास्त्री के मंत्रिमंडल ने शपथ ली
श्री हीरालाल शास्त्री को अपना मंत्रिमंडल बनाने में ना तो श्री जय नारायण व्यास और नहीं सी माणिक्य लाल वर्मा से सहयोग मिला
यद्यपि मंत्री मंडल के सभी सदस्य चरित्रवान और योग्यथे
तथापि इनकी जडे कांग्रेस संगठन में गहरीनहीं थी, इसका खामियाजा श्री हीरालाल शास्त्री को उठानापड़ा
रियासती विभाग के वरदहस्त के बावजूद उन्हें 21 माह में अपने पद से त्यागपत्र देना पड़ा यह
एक सर्वथा अलग कहानी है यही कहना पर्याप्त होगा कि अंततोगत्वा वृहद राजस्थान बन गया
इस वृहतर राजस्थान के निर्माण से राजस्थान में सदियों से चली आ रही राजशाही समाप्तहो गई
राजशाही के अंतिम चिह्न के रूप में अब केवल मात्र राज प्रमुख के नव सृजित पद रह गए थे
यह पद संयुक्त राजस्थान और मत्स्य संघ प्रांतों के राज्यपालों के समकक्ष थे
यह एक ऐसी रक्त हीन क्रांति थी जिसका उदाहरण संसार के इतिहास में ढूंढनेपर भी नहीं मिलेगा
30 मार्च 1949 को वर्तमान राजस्थान का एक ढांचामिल गया था
वृहद राजस्थान के निर्माण के पूर्ण होने की तिथि को ही राजस्थान दिवस के रुप में मनाया जाता है
हीरालाल शास्त्री राजस्थान के प्रथम मनोनीत मुख्यमंत्री थे
वह इस पद पर 7 अप्रैल 1949 से 5 जनवरी 1951 तक रहे ,जिनमें 24 जनवरी 1950 तक उन्हें प्रधानमंत्री पद नाम से और उसके बाद मुख्यमंत्री पद नाम से जानागया
शास्त्री के बाद 5 जनवरी 1951 से 26 अप्रैल 1951 तक सी एस वेंकटाचारी को उसके बाद 24 अप्रैल 1951 से 3 मार्च 1952 तक जय नारायण व्यास राजस्थान के मनोनीत मुख्यमंत्री रहे
3 मार्च 1952 को राजस्थान की पहली निर्वाचित सरकार गठित की गई
जिसमें टीकाराम पालीवाल को राजस्थान का प्रथम निर्वाचित मुख्यमंत्रीबनाया गया
यह 31 अक्टूबर 1952 तक मुख्यमंत्री पदपर रहे
1 नवंबर 1952 से 12 नवंबर 1954 तक जय नारायण व्यास राजस्थान के मुख्यमंत्रीबने
जय नारायण व्यास के बाद मोहनलाल सुखाडया को राजस्थान का मुख्यमंत्री बनाया गया
यह 17 वर्ष तक मुख्यमंत्री राजस्थान में सर्वाधिक समय तक में थे
जयपुर को वृहद राजस्थान की राजधानी श्री पी सत्यनारायण राव की अध्यक्षता में गठित समिति की सिफारिश पर बनाया गया
राजस्थान में निम्न विभाग स्थापितकरने के निर्णय लिए गए
जोधपुर में हाईकोर्ट ,बीकानेर में शिक्षा विभाग ,उदयपुर में खनिज और कस्टम तथा एक्सरसाइज विभाग ,कोटा मे वन और सरकारी विभाग ,भरतपुर में कृषि विभाग स्थापित करने का प्रस्तावकिया गया था
पंचम चरण अथवा संयुक्त वृहद राजस्थान
राज्य का नाम - संयुक्त वृहत राजस्थान
तिथि - 15 मई 1949
सम्मिलित रियासत - वृहतर राजस्थान+मत्स्य संघ
इस चरण में मत्स्य संघ की धौलपुर व भरतपुर रियासत शंकरराव कमेटी की सिफारिश के आधार पर सयुक्त वृहत राजस्थान में शामिल की गई
जब संयुक्त राजस्थान की 10 रियासते जयपुर ,जोधपुर, बीकानेर, जैसलमेर के साथ मिलकर वृहद राजस्थान में रूपांतरित हो गई
तब मत्स्य राज्य का स्वतंत्र अस्तित्व भारत सरकार को निरर्थकलगा
इस संदर्भ में 13 फरवरी 1949 को दिल्ली में एक बैठक आयोजित की गई चारों रियासतों के नरेशों को बुलाया गया और उनके साथ एक लंबी वार्ताहुई
उनसे पूछा गया कि तुम्हारे राज्य राजस्थान में मिलाया जाए या उत्तर प्रदेश में
मत्स्य संघ के निर्माण के समय उसमें शामिल होने वाले चारों राज्यों के शासकों को स्पष्ट कर दिया गया था कि आर्थिक दृष्टि से स्वावलंबी न होने के कारण यह संघ भविष्य में उत्तर प्रदेश अथवा राजस्थान में विलीन किया जा सकता है
अलवर और करौली राजस्थान में मिलने के पक्षमें था
लेकिन धौलपुर, भरतपुर की स्थिति स्पष्ट नहीं थी
इन दोनों राज्यों की जनता की राय जानने की दृष्टि से सरदार पटेल ने शंकर राव देव की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया
समिति ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि इन राज्यों की अधिकतर जनता राजस्थान में शामिलहोने के पक्ष में है
समिति की सिफारिशों को स्वीकार करते हुए 15 मई 1949 को मत्स्य संघ की चारो रियासत को वृहद राजस्थान में मिला दिया गया और संयुक्त वृहद राजस्थान के नाम से संबोधित किया जाने लगा
मत्स्य संघ के प्रधानमंत्री श्री शोभा लाल कुमावत को श्री हीरालाल शास्त्री ने अपने मंत्रिमंडल में सम्मिलित कर लिया
भारत सरकार ने कमेटी की अनुशंसा को स्वीकारते हुए 1 मई 1949 को राजस्थान में मत्स्य संघ के विलय की प्रेस विज्ञप्ति जारी कर दी थी
10 मई 1949 को मत्स्य संघ के चारों राजाओं और संयुक्त राजस्थान के राजप्रमुख व मुख्यमंत्रियों को आगे की बातचीत के लिए दिल्लीबुलाया था और मत्स्य संघ को राजस्थान में मिलाने का अंतिम निर्णय लिया गया
राजस्थान के निर्माण व एकीकरण से संबंधित तथ्य
वर्तमान राजस्थान के निर्माण के बाद राज प्रमुख का पद समाप्तकर दिया गया
इसके स्थान पर राज्यपाल का पद बनायागया
राजस्थान का प्रथम राज्यपाल गुरुमुख निहाल सिंह को बनाया गया
राजस्थान की रियासतों में सबसे प्राचीन रियासत मेवाड़ रियासत थी
सबसे नई रियासत झालावाड रियासत थी
क्षेत्रफल की दृष्टि से सबसे बड़ी रियासत जोधपुरथी
क्षेत्रफल की दृष्टि से सबसे छोटी रियासत शाहपुराथी
15 अगस्त 1947 को जब भारत स्वतंत्र हुआ उस समय डूंगरपुर अलवर भरतपुर व जोधपुर इन 4 रियासतों के नरेशो ने स्वतंत्र रहने की घोषणा की थी
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत में 3 श्रेणी के राज्य थे इसमें 10 'राज्य 'अ"श्रेणी के 8 राज्य "ब" श्रेणी के 10 राज्य "स"श्रेणीका था
भारतीय संविधान परिषद में मेवाड़ से भेजे जाने वाले 2 प्रतिनिधियों में सर TV राघवाचार्य और माणिक्य लाल वर्मा थे,जोधपुर से सी एस वेंकटाचारी और श्री जयनारायण व्यासको भेजा गया था
वर्तमान राजस्थान के निर्माण की प्रक्रिया 1 नवंबर 1956 को प्रातः 9:40 पर जनता लोकतंत्र की मुख्यधारा में शामिल होने के साथ संपूर्ण हुई थी
संविधान के 7 वें संशोधन द्वारा ए बी व सी श्रेणियों का भेदभाव समाप्त कर राज्य व केंद्र शासित प्रदेश कर दिया गया और राज्य प्रमुख के स्थान पर राज्यपाल का पद सृजित किया गया
19 जुलाई 1948 को Lava ठिकाने को केंद्रीय सरकार के आदेश से जयपुर रियासत में शामिल कर दिया गया था
राजपूताने की रियासतों को सैल्यूट स्टेटस कहा जाता था
इन्हें अंग्रेजों से तोपों की सलामी प्राप्त करने का अधिकार था
खुदमुख्तयार ठिकाने इन्हें नॉन सैलूट स्टेट्स कहा जाता था
जिन्हें अंग्रेजो से तोपों की सलामी प्राप्त करने का अधिकार नहीं था
इन ठिकानों में कुशलगढ़-बांसवाड़ा, लावा-जयपुर और नीमराणा-अलवर आते हैं
शाहपुरा-भीलवाड़ा राजस्थान की एकमात्र ऐसी रियासत थी जहां के शासक सुदर्शन देव में 14 अगस्त 1947 को पूर्ण उत्तरदायी शासन की स्थापना की थी
1947 से पूर्व राजस्थान की एकमात्र रियासत जैसलमेर ऐसी थी जिसमें संवैधानिक सुधार को उत्तरदायी सरकार स्थापित करने की दिशा में कोई प्रयास नहीं किया गया था
राजस्थान के स्वतंत्र होने के समय टोक एकमात्र ऐसी रियासत थी जिसका शासक मुस्लिम था
टोंक मुस्लिम रियासत का संस्थापक अमिर खां पिंडारीथा
ब्रिटिश सर्वोच्च सत्ता के अधीन आने वाली रियासतों के मुख्य को एजेंट टू गवर्नर जनरल कहा जाता था
भारत के गवर्नर जनरल विलियम बैंटिंक ने 1832 में अजमेर में ए जीजी का कार्यालय स्थापित किया था
मिस्टर लॉकेट प्रथम एजीजी थे
राजस्थान में अजमेर में स्थित एजीजी का प्रधान कार्यालय था ,इसके नियंत्रण में राजपूताने की सभी रियासतेथी
देलवाड़ा माउंट आबू और अजमेर मेरवाड़ा को फजल अली की अध्यक्षता में गठित राज्य पुनर्गठन आयोग की सिफारिश पर राजस्थान में सम्मिलितकर लिया गया था
राजपूताने की सबसे बड़ी सैल्यूट स्टेट जयपुर और उदयपुर थी
यहां के शासकों को अपनी रियासत में 21 तोपों की और रियासत के बाहर 13 तोपों की सलामी लेने का अधिकार था
भारतीय संघ के विलय पत्र पर सर्वप्रथम हस्ताक्षर बीकानेर महाराजा सादुल सिंह ने 7 अगस्त 1947 को किए थे
शाहपुरा रियासत के अंतिम शासक सुदर्शन देव थे
सुदर्शन देव के शासनकाल में गोकुल लाल असावा के नेतृत्व में 14 अगस्त 1947 को शाहपुरा में पहली लोकतांत्रिक और उत्तरदायी सरकार का गठन किया गया था
अजमेर मेरवाड़ा की विधान सभा को धार सभा कहा जाता था
अजमेर मेरवाड़ा के एकमात्र मुख्यमंत्री हरिभाऊ उपाध्याय बनाए गए थे
जनसंख्या की दृष्टि से सबसे बड़ी रियासत जयपुर व जनसंख्या की दृष्टि से सबसे छोटी रियासत शाहपुरा थी
राजस्थान के एकीकरण में 7 वर्ष 8 माह 14 दिन कासमय लगा था
चेंबर ऑफ प्रिंसेज का उद्घाटन 8 फरवरी 1931 को ब्रिटेन के तत्कालीन सम्राट जार्ज प्रथम के भाई ड्यूक ऑफ कनोट ने दिल्ली में किया था
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