राजस्थान किसान आंदोलन के भाग 2 में बूंदी किसान आंदोलन, डाबी हत्याकांड, गुर्जरों का आंदोलन, अलवर आंदोलन, भरतपुर किसान आंदोलन और अलवर भरतपुर मेव आंदोलन के सम्पूर्ण तथ्यों को समझाया गया है जो आपको राजस्थान के इतिहास को समझने और Central and Rajasthan state government ( केंद्र और राज्य सरकार ) के द्वारा आयोजित होने वाली परीक्षाओ ( RAS, REET, Rasthan Police, Patwari, Forest Gurd, Forester, LDC, Banking, College and School lecturer, RSMSSB, Rajasthan High Court exams ) में अच्छे नंबर लाने में सहायक होंगे
बूंदी किसान आंदोलन (1926-1943)
बूंदी किसान आंदोलन की शुरुआत 1926 में पंडित नयनू राम शर्मा के नेतृत्व में हुई थी यह लगभग 17 सालों तक चला था आंदोलन मुख्यत: राज्य प्रशासन के विरोध था बूंदी किसान आंदोलन को बरड किसान आंदोलन के नाम से भी जाना जाता है बरड आंदोलन की शुरुआत 1922-25 के मध्य हुई थी बरड डाबी के आसपास के क्षेत्र हैं बूंदी के दक्षिण-पश्चिम में मेवाड़ राज्य को स्पर्श करने वाला क्षेत्र भी बरड के नाम से जाना जाता है बरड क्षेत्र में सर्वप्रथम अगस्त 1920 में साधु सीताराम दास द्वारा डाबी में किसान पंचायत की स्थापना की गई थी राजपुरा के हरला भड़क को किसान पंचायत का पहला अध्यक्ष बनाया गया था
बूंदी का किसान आंदोलन बिजोलिया किसान आंदोलन से प्रभावित व राजस्थान सेवा संघ से प्रोत्साहित था राजस्थान सेवा संघ के प्रोत्साहन के कारण परिणाम स्वरुप बूंदी के किसानों ने सर्वप्रथम 1922 में बूंदी सरकार के विरुद्ध आंदोलन प्रारंभ किया बूंदी रियासत का बरड किसान आंदोलन राजस्थान सेवा संघ के कार्यकर्ता भवर लाल सोनी सुनार के नेतृत्व में प्रारंभ हुआ था
29 मई 1922 को लंबाखोह नामक गांव में एक सभा आयोजित हुई थी जिसमें लगभग 1000 किसान पहुचे थे दूसरे दिन 30 मई 1922 को निमाना में 4000 से 5000 के बीच किसान स्त्रियों सहित पहुंचे थे निमाना सभा में राजस्थान सेवा संघ के कार्यकर्ता बिजोलिया निवासी भवरलाल सुनार प्रज्ञाचक्षु को राज्य पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था विजय सिंह पथिक ने इस आंदोलन का समर्थन किया था बिजोलिया पद्धति पर किसान पंचायत का गठन किया गया बरड आंदोलन का संचालन राजस्थान सेवा संघ ने किया था इस आंदोलन में लगभग संपूर्ण बरड क्षेत्र में कर बंदी अभियान का श्रीगणेश किया था
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मई 1922 में बूँदी सरकार द्वारा आर.बी. मदनमोहन लाल तथा महाराजा हरि नाथ सिंह को किसानों की मांगों की जांच के लिए भेजा गया था 13 जून 1922 को सरकारी टुकड़ी ने राजपुरा, नरौली और लंबाखोह से 17 व्यक्तियों को गिरफ्तार किया था इन 17 व्यक्तियों को गणेशपुरा गांव में महिलाओ के एक दल ने मुक्त करवाने का प्रयास किया था इस मुठभेड़ में 14 महिलाएं गंभीर रुप से घायल हुई थी राजस्थान सेवा संघ द्वारा इस घटना की जांच के लिए रामनारायण चौधरी और सत्याभगत को भेजा गया था महिलाओं के साथ हुई मुठभेड़ की जांच रिपोर्ट के आधार पर राजस्थान सेवा संघ ने बूंदी राज्य में महिलाओं पर अत्याचार नामक पुस्तिका प्रकाशित की थी ब्रिटिश सरकार द्वारा अक्टूबर 1922 में ब्रिटिश सरकार की सेवा से निवृत स्वरूप नारायण और संयुक्त प्रांत के पुलिस अधीक्षक इकराम हुसैन को बूंदी भेजा गया था दिसंबर 1922 में रियासत ने उन समस्त व्यक्तियों की जागीरें तथा संपत्ति जप्त करने के आदेश दिए थे जो किसानों की सहायता कर रहे थे जब किसानों की संपत्ति और जागीरें जब्त की जा रही थी इस अवधि में जागीरदार रणवीर सिह का सक्रिय सहयोग था
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डाबी हत्याकांड
डाबी एवं गराडा में 28 जुलाई 3 अगस्त 1922 की सभाओं में किसानों ने यह निर्णय किया था कि वह राज्य के आदेश की अवहेलना करेंगे और भुगतान करने पर भी राज्य कर्मचारियों को खाद्य सामग्री उपलब्ध नहीं कराएंगे इस आंदोलन की चरम परिणति 2 अप्रैल 1923 को डाबी में एक अप्रिय घटना के रूप में हुई 2 अप्रैल 1923 को डाबी में किसान सभा का आयोजन किया गया था
इस सभा में राजस्थान सेवा संघ के प्रतिनिधि हरिभाई कीकर तथा भवन लाल स्वर्णकार प्रज्ञाचक्षु ने भी भाग लिया था सभा में सर्वप्रथम नानक देव ने विजयसिह पथिक द्वारा रचित झंडा गीत गाया था इस सभा की अध्यक्षता नयनूराम शर्मा ने की थी इस सभा में निर्णय लिया गया था कि किसी भी प्रकार का राजस्व नहीं दिया जाए और किसी भी राज्य अधिकारी को किसी भी प्रकार का सहयोग प्रदान ना किया जाए
इसी सभा के दौरान बूंदी के पुलिस अधीक्षक इकराम हुसैन द्वारा बिना किसी चेतावनी के गोली चलाने का आदेश दिया गया इस गोली कांड में 2 अप्रैल 1923 को नानक भील और देवा गुर्जर नामक किसान मारे गए नानक भील विजय सिह पथिक के साथ झंडा गीत गाते हुए शहीद हुए इस अवसर पर माणिक्य लाल वर्मा ने उसी समय नानक भील की याद में एक गीत अर्जी शीर्षक से लिखा था नानक भील राजस्थान का एक प्रमुख शहीद कहलाया इस अवसर पर भवरलाल स्वर्णकार ने भी अर्जी शीर्षक से लोकगीत सुनाया था 10 मई 1923 को नयनूराम शर्मा को राज्य विरोधी गतिविधियों के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया और 4 वर्ष के कारावास की सजा दी गई और रिहा होने के के बाद राज्य में प्रवेश निषेध कर दिया गया 1925 में बूंदी में किसान आंदोलन में केवल याचिका प्रस्तुत करने का स्वरूप धारण कर लिया था
किसानों की ओर से यह याचिकाएँ राजस्थान सेवा संघ प्रस्तुत कर रहा था याचीकाएँ प्रस्तुत करने के उपरांत नयनूराम शर्मा को राजस्थान सेवा संघ की हाडौती शाखा का अध्यक्ष बना कर उसका मुख्यावास कोटा रखा गया 1926 के उपरांत राजस्थान सेवा संघ की गतिविधिया संपूर्ण राजस्थान में कमजोर पड़ने लगी 1927 के बाद राजस्थान सेवा संघ ही अंतर्विरोधों के कारण बंद हो गया था राजस्थान सेवा संघ के साथ ही बूंदी के बरड क्षेत्र का किसान आंदोलन समाप्त हो गया था इस आंदोलन में महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार भी किया गया था बरड किसान आंदोलन में महिलाओं ने भी उत्साह से भाग लिया था
गुर्जरों का आंदोलन (1936-45)
यह आंदोलन गुर्जर समुदाय के लोगो द्वारा किया गया गुर्जर समुदाय के लोगों में अनेक कष्टदायक करों व राज्य द्वारा उनके सामाजिक मामलों में हस्तक्षेप को लेकर आक्रोश व्याप्त था 1936 में बरड क्षेत्र में पुन:आंदोलन प्रारंभ हो गया 21 अक्टूबर 1936 को बूँदी सरकार ने अपराध कानून संशोधन अधिनियम 1936 पारित किया था 1936 में बूँदी सरकार द्वारा मृत्युभोज पर कानूनी पाबंदी लगा दी गई थी पशु की गिनती की सरकारी कार्रवाई ने गुर्जरो के मन में आकांक्षा उत्पन्न कर दी थी कि उनके ऊपर चराई कर लगाया जा सकता है भारी राजस्व की दर व गैर कानूनी लागों के विरोधी भी थे गुर्जर
गुर्जर राज्य की कृषि विस्तार नीति के विरोधी थे क्योंकि अधिक भूमि जोत में आने से पशु चराने के लिए कम भूमि उपलब्ध रहने की संभावना है इन सभी कारणों से 5 अक्टूबर 1936 को हिंडोली में हुडेश्वर महादेव के मंदिर पर गुर्जर मीणा और अन्य पशुपालको व किसानों की एक सभा हुई जिसमें 90 गांवों के लगभग 500 व्यक्ति सम्मिलित हुए थे सभा के पटेलों ने अपना एक मांग पत्र प्यार कर हिंडोली के तहसीलदार के समक्ष प्रस्तुत किया उनकी मांग पत्र के मुख्य बिंदु चराई करो को समाप्त करना/कम करना पशुपालको की सहूलियते उपलब्ध कराना था बूंदी के दीवान 7 नवंबर 1936 को एक आयोग नियुक्त किया
जिसमें राज्य कौंसिल के न्याय राजस्व व गृह सदस्य को सम्मिलित किया गया था इस आयोग को हिंडोली के गुर्जर किसानों की शिकायतों की जांच का दायित्व सौंपा गया था 1939 में गुर्जरों का आंदोलन लाखेरी से प्रारंभ हुआ था 3 सितंबर 1939 को 40 गांव के लगभग 150 गुर्जरों ने लाखेरी में तोरण की बावरी पर एक सभा की थी जिसका नेतृत्व भवरलाल जमादार एक राज्य कर्मचारी गोवर्धन चौकीदार सीमेंट फैक्ट्री के कर्मचारी रामनिवास तंबोली ने किया था
1943 में पुन:हिन्डोली क्षेत्र*मे गुर्जर आन्दोलन प्रारम्भ किया गया 5 Jan 1943 को 60 गॉवो के गुर्जर ने के महाराजा के समक्ष ज्ञापन भेजा था 11 अक्टूबर 1943 को बूंदी के दीवान ने इस मुद्दे पर निर्णय लेते हुए अधिसूचना जारी की कि शुल्क मुक्त चराई की छूट किसान की जोत के अनुपात में प्रदान की जाएगी इस आन्दोलन का मुख्य उद्देश्य चराई कर था 1945 के अंत तक बूंदी आंदोलन खत्म हो गया
अलवर आंदोलन
अलवर रियासत में जन जागृति का प्रारंभ किसान आंदोलन को ही माना जाता है अलवर में 80% भूमि खालसा के अंतर्गत थी जबकि केवल 10% भूमि जागीरदारों के नियंत्रण में थी यह एकमात्र किसान आंदोलन था जो खालसा क्षेत्र में चलाया गया था अलवर भरतपुर के अधिकांश किसानों को खालसा क्षेत्रों में स्थाई भू स्वामित्व के अधिकार प्राप्त थे जिन्हे विश्वे्दारी कहते थे अलवर-भरतपुर में भू-राजस्व की सबसे बदतर पद्धति इजारा प्रचलित थी ब्रिटिश पद्धति पर अलवर में पहला भूमि बंदोबस्त 1876 में किया गया था
अलवर में *दो बार*आंदोलन हुआ था
- पहला आंदोलन 1921 में हुआ था
- दूसरा आंदोलन 1923-24 में हुआ था
अलवर के शासक जयसिंह द्वारा जंगली सूअरों को मारने पर प्रतिबंध लगाने के कारण 1921 में अलवर में आंदोलन किया गया था अलवर रियासत में जंगली सुअरों को अनाज खिलाकर रोधो में पाला जाता था यह सूअर किसानों की खड़ी फसल को बर्बाद कर देते थे और इसके बदले किसानों को कोई मुआवजा नहीं मिलता था किसानों ने परेशान होकर 1921 में सूअर मारने की अनुमति के लिए यह आंदोलन प्रारंभ किया था महाराजा को किसानों की बात को मानना पड़ा और सूअर पालने के रोधों को समाप्त कर दिया गया और किसानों को सूअर मारने की अनुमति प्रदान की गई
दूसरा आंदोलन 1923-24 में भू-राजस्व में भारी वृद्धि के कारण नीमूचाणा अलवर में शुरू हुआ था
नीमूचाणा हत्याकांड
अलवर रियासत में 1924 में भूमि बंदोबस्त हुआ था lagaan की दरों को पुनः मूल्यांकन कर लगान की दरों में 40% की वृद्धि कर दी गई इस कारण भू राजस्व में भारी वृद्धि हो गई राजपूत किसानों को पूर्व में प्राप्त रियासतों को समाप्त कर दिया गया भूमि लगान वृद्धि तथा राजपूत किसानों की रियासतों की समाप्ति के खिलाफ खालसा क्षेत्र के राजपूत किसानों ने 1924 में आंदोलन की शुरुआत की
इस आंदोलन का नेतृत्व माधोसिह और गोविंद सिंह ने किया था इस आंदोलन का मुख्य केंद्र नीमूचाणा था अलवर के किसानों ने 1925 में दिल्ली में एक सभा आयोजित की गई थी जिसमें 200 राजपूत किसानो ने भाग लिया यहीं से पुकार नामक पुस्तिका में किसानों की समस्याओं को प्रकाशित किया गया था अलवर के महाराजा ने किस मामले की जांच हेतु 7 मई 1925 को एक आयोग गठित किया था
अलवर के किसान अपनी समस्याओं को लेकर नीमूचाणा नामक स्थान पर एकत्रित हुए थे इसी स्थान पर 14 मई 1925 को छाजू सिंह नामक अंग्रेजी कमांडर द्वारा सभा में गोलियां चलाई गई और पूरे गांव को जला दिया गया घटना में सैकडो किसान मारे गए थे इस घटना को इतिहास में नीमूचाणा हत्याकांड के नाम से जाना जाता है नीमूचाणा हत्याकांड की देशभर में आलोचना की गई महात्मा गांधी ने इसे जलियांवाला बाग हत्याकांड की घटना बताते हुए इसे दोहरी डायरशाही कहा था
राजस्थान सेवा संघ ने इस मामले में जांच की तथा इस जाचँ की पूरी कहानी 31 मई 1925 को तरूण राजस्थान के अंक में प्रकाशित की गई थी इस घटना की जाचँ से अजमेर के रामनारायण चौधरी भी जुड़े हुए थे देसी राज्य के इतिहास में इस घटना का वही महत्व है जो भारत में जलियांवाला बाग हत्याकांड का है इस हत्याकांड का असली खलनायक गोपाल दास नामक पंजाबी अधिकारी को माना जाता है अलवर नरेश जयसिंह स्वयं नीमूचाणा आये और मारे गए लोगों के परिवार को मुआवजा दिया गया और 18 नवंबर 1925 को पुरानी दर से लगान वसूलने के आदेश दिए गए इन आंदोलनों ने ही प्रजामंडल आंदोलन के लिए जमीन तैयार की थी
सीता देवी
अलवर रियासत के नीमूचाणा के किसान रघुनाथ की बेटी थी सीतादेवी ने अलवर किसान आंदोलन में भाग लिया था अंग्रेजों द्वारा नीमूचाणा गांव में किसानों पर गोलियां बरसाने के समय सीता देवी ने किसानों को ललकारा था सीता देवी ने किसानों से कहा कि हम किसी भी हालत में ठिकानों को अधिक लगान नहीं देंगे नीमूचाणा हत्याकांड अलवर नरेश जयसिंह प्रजापालक को बदनाम करने के लिए रचा था क्योकी अंग्रेज जयसिंह को पसंद नही करते थे जवाहरलाल नेहरु ने महाराजा जयसिंह के लिए कहा था अगर यह युवक राज परिवार में जन्म ना लेकर किसी सामान्य वर्ग में जन्म लेता तो भारतवर्ष को एक बड़ा नेता प्राप्त होता
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भरतपुर किसान आंदोलन
भरतपूर राज्य में किसानों की दशा अच्छी थी भरतपुर में 95% भूमि सीधे राज्य के नियंत्रण में थी 5% भूमि राज्य से अनुदान प्राप्त छोटे जागीरदारों को माफीदारों के पास थी भरतपुर रियासत में 5 जातियां ब्राह्मण जाट गुर्जर अहीर व मेव सामान्य हैसियत रखते थे भरतपुर राज्य में खालसा भूमि के अंतर्गत लंबरदार व पटेल व्यवस्था अस्तित्व मान थी इसके अंतर्गत लंबरदार व पटेल भू राजस्व की वसूली के लिए जिम्मेदार थे भरतपुर राज्य में 1931 में नया भूमि बंदोबस्त लागू किया गया इस नए भूमि बंदोबस्त के कारण भू राजस्व में वृद्धि हो गई भू राजस्व अधिकारी लंबरदारों ने इस बढेे हुए भू राजस्व के विरोध में 1931 में आंदोलन शुरु किया
नये बंदोबस्त से किसानों में असंतोष व अशांति उत्पन्न कर दी लंबरदार व पटेलों को भू राजस्व वसूली में बड़ी कठिनाई का सामना करना पड़ रहा था इस कारण लंबरदार एवं पटेल बढ़े हुए राजस्व के मुददे के विरुद्ध लड़ने के लिए आगे आए 23 नंबर 1931 को भोजी लंबरदार के नेतृत्व में 500 किसान भरतपुर में एकत्रित हुए भोजी लंबरदार ने राज्य के विरोध भड़काऊ भाषण देने के कारण भोजी लंबरदार को नवम्बर मे गिरफ्तार कर लिया गया भोजी लंबरदार की गिरफ्तारी के साथ 1931 में ही यह आंदोलन समाप्त हो गया
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अलवर भरतपुर मेव आंदोलन
हिंदू धर्म से परिवर्तित मुसलमान किसान मेव कल आते हैं अलवर मे मेव जाति का पहला आंदोलन 1921 में प्रारंभ हुआ था
मेवो ने प्रारम्भ से ही गुरिल्ला युद्ध आरंभ कर दिया था अलवर भरतपुर क्षेत्र को मेवाती क्षेत्र करते हैं अलवर भरतपुर में आंदोलन की शुरुआत 1932 में हुई थी इस आंदोलन का नेतृत्व डॉक्टर मोहम्मद अली ने किया था अलवर भरतपुर रियासत के मेव किसानो ने बड़ी हुई lagaan देने से इंकार कर दिया मेवो ने बांध व सड़क बनाने घास काटने संघो की सफाई करने और बेगार समाप्त करने की मांगों के लिए आंदोलन किया था अलवर के मेव किसान आंदोलन का नेतृत्व गुडगांव के मेव नेता चौधरी यासिन खान द्वारा किया गया था
इतिहासकारों के अनुसार यह आंदोलन कालांतर में सांप्रदायिक प्रभाव में भी आ गया था अलवर भरतपुर क्षेत्र मे मोहम्मद हादी ने1932 में अंजुमन खादिमुल इस्लाम नामक संस्था स्थापित की थी इस संस्था ने मेव किसानों को संगठित किया और मेव जाति के लोगों में जन जागृति लाने का कार्य किया चौधरी यासीन खान के नेतृत्व में मेव लोगों ने खरीफ फसल का लगान देना बंद कर दिया अंजुमन खादिमुल इस्लाम संस्था ने अलवर के महाराजा से उर्दू की शिक्षा के प्रसार मुसलमानों के लिए पृथक शिक्षण संस्थाओ की स्थापना और मस्जिदों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त करने की मांग की थी दिसंबर 1932 में अलवर रियासत में मेव किसानों की आर्थिक परेशानी की जांच के लिए एक समिति का गठन किया मेव किसानों ने इस समिति का बहिष्कार किया मेवो ने 1933 में गोविंदगढ़ में सरकारी सेना पर आक्रमण कर दिया
मेवो को संतुष्ट करने के लिए राज्य काँन्सिल में एक मुस्लिम सदस्य खान बहादुर काजी अजीजुद्दीन बिलग्रामी को सम्मिलित कर लिया था खान बहादुर काजी अजीजुद्दीन बिलग्रामी को सम्मिलित करने के बाद भी आंदोलन खत्म नहीं हुआ बल्कि और उग्र हो गया 1933 में सेना ने नगर तहसील के सोमलाकला व झीतरहेडी गांव को घेरकर बलपूर्वक राजस्व वसूल कर बंदी अभियान को कुचल दिया राजस्व व पुलिस प्रशासन हेतु ब्रिटिश अधिकारी नियुक्त कर दिए गए मई 1933 में महाराजा जयसिंह को गद्दी से हटाकर राज्य से निर्वासित कर दिया गया 1933 में राज्य द्वारा भू राजस्व संबंधी छूटों के बाद विद्रोह दब गया खरीफ के लगान में 25% और रबी के लगान 50% की छूट प्रदान की गई भरतपुर राज्य के मेवो ने भी 1933 में लगान देना बंद कर दिया पर दमन के कारण आंदोलन असफल रहा 1934 में मेवो को सुविधा देने के उद्देश्य से सरकार द्वारा अजीजुद्दीन बिलग्रामी की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गयाइस समिति की रिपोर्ट के आधार पर मेवो को भू-राजस्व तथा अन्य करो में छूट के साथ-साथ सामाजिक व धार्मिक समस्याओं का समाधान भी किया गया
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