बीकानेर किसान आंदोलन
सिंचाई सुविधा हेतु 1929 में नहरी क्षेत्र के जमीदार संघ द्वारा यह आंदोलन शुरू किया गया था सरकार द्वारा किसानों से पूर्ण आबियाना सिंचाई कर वसूल किया जा रहा था लेकिन पूर्ण जल उपलब्ध नहीं करवाया जा रहा था 19 अप्रैल 1929 में जमीदार एसोसिएशन का गठन किया गया दरबार सिह को जमींदार एसोसिएशन का अध्यक्ष नियुक्त किया गया इस (जमीदार एसोसिएशन) संगठन के निर्माण के साथ ही क्षेत्र के किसानों ने आंदोलन किया था सबसे पहले 10 मई 1929 को श्री गंगानगर में आयोजित जमींदार एसोसिएशन की बैठक में अपनी समस्याओं का एक मांग पत्र तैयार किया गया था जमीदार एसोसिएशन 1929 से आरंभ होकर 1947 तक अपने सदस्यों के हितो को पूरा करती है और इसकी गतिविधिया संवैधानिक को शांतिपूर्ण थी
1934 में किसानों ने जागीरदारों द्वारा लगाई गई लागतों के विरोध बीकानेर के महाराजा गंगा सिंह को एक प्रार्थना पत्र प्रस्तुत किया गया प्रार्थना पत्र में निवेदन किया कि जब तक उनकी मांगों को नहीं माना जाएगा तब तक वह लगान नहीं देंगे मांग पत्र के आधार पर 1934 में जाट किसानों ने लागे देना बंद कर दिया महाराजा गंगासिह ने लगान नहीं देने को घोर अपराध घोषित कर दिया था और इस अपराध की जमानत भी नहीं दी जा सकती थी दमनचक्र चलाकर किसानों की निजी संपत्ति जप्त कर ली गई 1937 में उदासर के किसानों के समर्थन में बिकानेर प्रजामंडल ने आवाज उठाई और बेगार को समाप्त करने की मांग की किसान आंदोलन की शुरुआत सर्वप्रथम 1937 में उदासर के किसानों ने की थी यहां के किसान नेता जीवन चौधरी ने बीकानेर किसानों की समस्याएं महाराजा और अन्य अधिकारियों के समक्ष प्रस्तुत की थी पर इसका कोई परिणाम नहीं निकला यह आंदोलन जातिवाद से मुक्त था जागीरदार लगभग 37 प्रकार की लाग-बाग किसानों से लेते थे बिकानेर में मूल रूप से लाग बाग व बेगार के विरोध*में किसान आंदोलन आरंभ हुआ था बीकानेर के किसानों की 68.7% भूमि सामंतो के अधिकार में थी जिन्हें ठिकाना अथवा जागीर कहा जाता था
महाजन ठिकाने का किसान आंदोलन
महाजन बीकानेर राज्य का प्रथम श्रेणी का ठिकाना था महाजन ठिकाने को विशेष प्रशासनिक अधिकार प्राप्त थे महाजन के किसानों ने दीवान (प्रधानमंत्री) को शिकायत की कि भूराजस्व तथा चराई की दरें खालसा क्षेत्र*के समान निश्चित की जाए किसानों की समस्या के संदर्भ में बिकानेर राज्य की ओर से कोई विशेष प्रगति नहीं हुई बीकानेर सरकार ने बकाया राशि में छूट की घोषणा की इस कारण दिसंबर 1942 के अंत तक महाजन ठिकाने का किसान आंदोलन को लेकर शांत हो गया
दूधवाखारा किसान आंदोलन
दूधवाखारा किसान आंदोलन बीकानेर रियासत में चलाया गया था वर्तमान में दूधवाखारा चूरु जिले में स्थित है दूधवाखारा के जागीरदार सूरजमल के अत्याचार के विरोध में हनुमान सिह और मद्याराम वैद्य के नेतृत्व में यह आंदोलन चलाया गया सूरजमल ने हनुमान सिह को अनुपगढ किले में कैद कर लिया था हनुमान सिह ने अनूपगढ़ किले में 65 दिनों तक भूख हड़ताल की थी 1944 में यहां के जागीरदारों ने बकाया राशि के भुगतान का बहाना कर अनेक किसानों को उनकी जोत से बेदखल कर दिया गया था चौधरी हनुमान सिंह के नेतृत्व में किसानों का एक प्रतिनिधिमंडल 2 जून 1945 को माउंट आबू में महाराजा सार्दुल सिंह से मिला था
हनुमान सिंह को रतनगढ़ में गिरफ्तार कर उनके विरुद्ध राजद्रोह का मुकदमा चलाया गया था 4 जनवरी 1948 को उन्हें जेल से रिहा कर दिया गया था बीकानेर के किसान आंदोलन के इतिहास में दूधवाखारा का किसान आंदोलन सबसे अधिक महत्वपूर्ण और निर्णायक अन्त था दूधवाखारा आंदोलन में कहीं महिलाओं ने भाग लिया था दूधवाखारा किसान आंदोलन में महिलाओं का नेतृत्व खेतु बाई ने किया था
बीकानेर राज्य प्रजा परिषद के नेतृत्व में किसान आंदोलन
बीकानेर प्रजा परिषद के नेतृत्व में दूसरा किसान आंदोलन रायसिंहनगर की घटना को लेकर हुआ था 1 जुलाई 1946 को प्रजा परिषद् के नेतृत्व में रायसिहनगर में एक जुलूस निकल रहा था इस जुलूस को पुलिस व सेना के बल पर इसे कुचलने की नाकाम कोशिश की गई थी इस सैनिक कार्यवाही में एक कार्यकर्ता बीरबल सिंह की मृत्यु हो गई थी प्रजा परिषद ने 6 जुलाई 1946 को संपूर्ण बीकानेर राज्य में किसान दिवस मनाया था
कांगड काण्ड
बीकानेर के किसान आंदोलन के इतिहास की अंतिम व महत्वपूर्ण घटना कांगड़ कांड रतनगढ थी यह आंदोलन जागीरदारों के अत्याचारों से उपजा स्वस्फूर्त किसान आंदोलन था 1946 मे खरीब की फसल नष्ट होने के कारण अकाल की स्थिति पैदा हो गई थी अकाल पड़ने के बाद भी 1946 में किसानों से कर वसूली का प्रयास किया गया था जिसके कारण किसानों ने आंदोलन किया कांगड़ के लगभग 35 किसान महाराजा को याचिका प्रस्तुत करने बिकानेर पहुंचे जागीरदारों के आदमियों ने उस गांव के किसानों के साथ खुलकर लूटपाट की पुरुष महिला और बच्चों को गढ में ले जाया गया जहां पर उनके साथ अमानवीय अत्याचार किए गए 1948 में बिकानेर में उत्तरदायी शासन की स्थापना हुई 30 मार्च 1949 को बीकानेर राज्य के राजस्थान में विलय के साथ ही बिकानेर में राजतंत्र व सामंतवाद को अंतिम रूप से विदा कर दिया गया था इस कार्य में किसान आंदोलनों की निर्णायक भूमिका रही20 फरवरी 1944 को अलवर में स्वतंत्रता दिवस मनाया गया 5 फरवरी 1947 को भरतपुर में प्रजा परिषद के नेतृत्व में बैगार विरोधी दिवस मनाया गया