मारवाड़ किसान आंदोलन
मारवाड़ राजस्थान का सबसे बड़ा राज्य था इसके अंतर्गत संपूर्ण राजस्थान का 36 प्रतिशत भू भाग था मारवाड़ राज्य की राजधानी जोधपुर शहर थी जोधपुर राज्य का 87 प्रतिशत भाग जागीरों के अंतर्गत था केवल 13 प्रतिशत भाग ही राज्य के सीधे नियंत्रण में था मारवाड़ के किसान अंग्रेज महाराजा और जागीरदारों के तिहरे शोषण*का शिकार थे मारवाड़ में जनचेतना का प्रारंभ 1915 से माना जाता है मारवाड़ में 1915 में मरुधर मित्र हितकारिणी सभा का गठन किया गया था इस सभा को ही मारवाड़ में जनचेतना का आधार माना गया ] जय नारायण व्यास प्रथम व्यक्ति थे जिन्होंने मारवाड़ में शासकों के शोषण के विरुद्ध आवाज उठाई थी जय नारायण व्यास के निर्देशन में 1920 में चांदमल सुराज के द्वारा मारवाड़ सेवा संघ की स्थापना की गई थी इस को ही बदल कर 1924 में मारवाड़ हितकारिणी सभा बना दिया गया
मारवाड़ के किसान आंदोलन अधिकांशत मारवाड़ हितकारिणी सभा के नेतृत्व में ही हुए थे मारवाड़ हितकारिणी सभा ने जयनारायण व्यास के नेतृत्व में मादा पशुओं के राज्य से बाहर भेजने के मुद्दे पर आंदोलन किया था आंदोलन के फलस्वरुप मादा पशुओं के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया गया था मारवाड़ हितकारिणी सभा ने उस समय प्रचलित 136 प्रकार की लागे व बेगार प्रथा से किसानों को मुक्ति दिलाने हेतु पुन: आंदोलन चलाया गया मारवाड़ में 1915 में मरुधर मित्र हितकारिणी सभा नामक प्रथम राजनीतिक संगठन की स्थापना हुई इस संगठन का उद्देश्य मारवाड़ की जनता के सामाजिक व आर्थिक हितों की सुरक्षा करना था मारवाड़ के आदिवासियों ने मोतीलाल तेजावत द्वारा शुरू किए गए एकी आंदोलन में भाग लिया था
1921 में मारवाड़ सेवा संघ नाम का दूसरा राजनीतिक संगठन स्थापित हुआ इस संघ का कार्य क्षेत्र अधिक विस्तृत था मारवाड़ राज्य के बाली एवं गोडवान निजामतों के भीलो और गरासियों ने 1922 में समाज सुधार गतिविधियों के साथ-साथ राज्य को राजस्व अदा न करने हेतु आंदोलन किया सैनिक प्रयासों से भील और गरासिया एकी आंदोलन से अलग हो गए और उपयुक्त कर देने पर सहमत हो गए थे इस कारण इस आंदोलन को सामंतवाद के विरोध संघर्ष का अगुवा कहा जाता था इस आंदोलन में जोधपुर राज्य में दासता से मुक्ति की ज्योति जलाई ] 1923 में मारवाड़ हितकारिणी सभा स्थापित हुई इस सभा में जयनारायण व्यास के नेतृत्व में पशु निर्यात नीति को रद्द करने हेतु आंदोलन चलाया था मारवाड़ हितकारी सभा के नेतृत्व में 15 जुलाई 1924 को जोधपुर शहर में जनसभा का आयोजन हुआ अपनी मांगे मनवाने के लिए राज्य पर दबाव बनाया गया
दबाव को देखते हुए राज्य ने 15 अगस्त 1924 को इनकी मांग स्वीकार कर ली किसानों ओर जनता का ध्यान आकर्षित करने के उद्देश्य से सभा ने दो पुस्तिकाएं पोपाबाई की पोल एवं मारवाड़ की अवस्था प्रकाशित की थी मारवाड़ हितकारिणी सभा ने 11 और 12 अक्टूबर 1929 को जोधपुर में मारवाड़ स्टेट पीपुल्स कॉन्फ्रेंस का पहला अधिवेशन आयोजित करने का निर्णय लिया 1924 में राज्य के समर्थन से राजभक्त देश हितकारी सभा स्थापित की गई इस सभा का उद्देश्य मारवाड़ हितकारिणी सभा के कार्यक्रमों की खिलाफत करना था मारवाड़ स्टेट पिपुल्स कांफ्रेंस का प्रथम सम्मेलन नवंबर 1931 में पुष्कर में आयोजित हुआ था इस सम्मेलन की अध्यक्षता चांद करण शारदा के द्वारा की गई
1934में जोधपुर प्रजामंडल की स्थापना श्री भवरलाल सर्राफ के द्वारा हुई 1936 में सिविल लिबर्टीज यूनियन नामक संगठन की स्थापना हुई 1937 में इन दोनों को गैरकानूनी घोषित कर दिया गया फरवरी 1938 में मारवाड़ लोक परिषद नामक नए संगठन की स्थापना श्री रणछोड़दास गट्टानी द्वारा हुई 1938-39 में जोधपुर में भयंकर सूखा पड़ा था फरवरी 1939 में जयनारायण व्यास के जोधपुर प्रवेश पर लगे प्रतिबंध को हटा दिया गया था मारवाड़ लोक परिषद ने तीन मुद्दों पर आधारित एक शक्तिशाली आंदोलन प्रारंभ करने का निर्णय लिया था
- अकाल की स्थिति तथा राज्य की अकाल राहत नीति
- दितीय विश्व युद्ध के समय राज्य द्वारा अंग्रेजो को सैनिक सहायता उपलब्ध करवाने के साथ साथ युद्ध कोष के लिए भारी अनुदान दिया जाना
- जागीरी क्षेत्रों में बेगार तथा लालबाग का विरोध
सरकार ने 28 मार्च 1940 को मारवाड़ लोक परिषद को गैरकानूनी घोषित कर दिया और परिषद के नेताओं को गिरफ्तार किया गया आंदोलन के बढ़ते दबाव के कारण जून 1940 में परिषद पर से प्रतिबंध हटा दिया गया और नेताओं को मुक्त कर दिया गया मार्च 1941 में मारवाड़ लोक परिषद ने जागीरदार विरोधी अभियान प्रारंभ किया इस अभियान के तहत परिषद ने जागीरों में रहने गरीब किसानों व जनता के गैरकानूनी तरीके से होने वाले शोषण का विरोध प्रारंभ किया
मंडोर किसान आंदोलन
1921-26 के दौरान खालसा भूमि के बंदोबस्त के पश्चात भू राजस्व की नगद भुगतान की व्यवस्था की गई थी इस नगद भुगतान की व्यवस्था को बीघोडी के नाम से जाना जाता था इस पद्धति में निर्धारित राज्य की दरें लाटा पद्धति से भी अधिक थी 1928 में खालसा क्षेत्रों में भूराजस्व की नई दरें लागू की गई थी नई दरों के कारण किसानों पर भूराजस्व का भार अत्यधिक बढ़ गया था 8 जुलाई 1932 को मंडोर के समीप चीना का बढ़िया नामक स्थान पर किसानों ने एक सभा आयोजित की यह सभा माली किसानों के द्वारा की गई थी इस सभा में निर्णय लिया कि नगदी राजस्व पद्धति के तहत 50% छूट के लिए सरकार से निवेदन करेंगे किसानों ने 14 से 18 जुलाई 1931 के दौरान राजस्व अधिकारियों के पास विनती पत्र भेजे थे
किंतु राजस्व अधिकारियों द्वारा विनती पत्र पर कोई ध्यान नहीं दिया गया इसके परिणाम स्वरुप किसानों ने विभिन्न गांव में सभाएं आयोजित की इन सभाओं में निर्णय लिया गया कि यदि कोई राज्य को राजस्व देगा तो उसे जाति से बहिष्कृत कर दिया जाएगा इस कारण मंडोर व उसके आसपास के माली किसानों द्वारा अघोषित कर बंदी आंदोलन प्रारंभ किया राज्य ने मंडोर चेनपुरा गवांन बेगान आदि गांवों के कुल राजस्व में 2597 रुपए की छूट प्रदान की गई राज्य द्वारा दी गई इस छूट को अघोषित कर बंदी आंदोलन की आंशिक सफलता माना जा सकता है 26 जनवरी 1930 को चूरू के धर्मस्तूप शिखर पर चंदन मल बहड स्वामी गोपालदास वह अन्य साथियों ने तिरंगा झंडा फहराया था
मारवाड़ स्टेट पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के तहत आंदोलन 1931
मारवाड स्टेट पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के गठन ने जोधपुर राज्य में किसान आंदोलन के नए युग का शुभारंभ किया इस कांफ्रेंस का प्रथम सम्मेलन 24- 25 नवंबर 1931 को चांदकरण शारदा की अध्यक्षता में अजमेर के निकट पुष्कर में आयोजित हुआ था यह संगठन प्रजामंडल का ही प्रारंभिक रूप था इसी सभा के आयोजन के संबंध में 1929 में जयनारायण व्यास आनंद राज सुराणा भवरलाल सर्राफ को गिरफ्तार किया गया था अध्यक्ष चांदकरण शारदा ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में जोधपुर महाराजा से बेगार लाल बाग समाचार पत्रों पर रोक समाप्त करने हेतु निवेदन किया
इस सम्मेलन में किसानों से संबंधित निम्न प्रस्ताव पास किए गए थे
- बेगार प्रथा तुरंत समाप्त की जाए
- किसानों के कल्याण हेतु एक समिति गठित की जाए
- सभी जागीरदारों को उनकी निहित शक्तियों से वंचित किया जाए
- बीघोडी पद्धति के अंतर्गत बड़े हुए राजस्व को कम किया जाए
- किसानों को भू राजस्व प्रदान किया जाए
इन प्रस्तावों को कार्यान्वित करने की जिम्मेदारी मारवाड़ हितकारिणी सभा ने ली थी दिसंबर 1931 के प्रथम सप्ताह में भारी संख्या में किसान मारवाड़ हितकारिणी सभा के नेतृत्व में जोधपुर में एकत्रित हुए थे 1931 में मारवाड यूथ लिंग नामक संगठन स्थापित हुआ था किसानों ने पुन: 9 फरवरी से 2 मार्च 1932 के दौरान मांग पत्र प्रस्तुत किए
मारवाड़ लोक परिषद् के नेतृत्व में आंदोलन
1936 में जवाहरलाल नेहरू ने अखिल भारतीय राज्य प्रजा परिषद के पांचवें सत्र (सम्मेलन) को संबोधित किया था इस सम्मेलन को कांग्रेस की नीति में परिवर्तन का आरंभ कहा गया नेहरू ने अपने संबोधन में जनसंपर्क पर अधिक बल दिया इस संबोधन के कारण पहली बार इस सत्र में कृषकों के संबंध में एक कार्यक्रम तैयार करते हुए भू राजस्व में एक तिहाई की कमी ऋणों को कम करने और कश्मीर अलवर सीकर लोहारू की घटनाओं के संदर्भ में किसानों की समस्याओं के संदर्भ में जांच करने की मांग की गई थी जय नारायण व्यास को जोधपुर में राजनीतिक चेतना का जनक कहा गया था मारवाड़ लोक परिषद में जागीरदारों के विरुद्ध अभियान छोड दिया था सितंबर 1939 में दितीय विश्व युद्ध आरंभ हो गया था
द्वितीय विश्व युद्ध में राज्य द्वारा अंग्रेजो को सैनिक सहायता और युद्ध कोश लिए भारी अनुदान दिया जा रहा था इसका विरोध मारवाड़ लोक परिषद ने एक आंदोलन के रुप में किया जयनारायण व्यास ने गैर-कानूनी लागे शीर्षक से दो भागों में एक पुस्तिका प्रकाशित की थी मारवाड़ लोक परिषद् द्वारा किया गया लाग विरोधी आंदोलन जो की जोधपुर राज्य की सभी जागीर गांव में फेल गया था इस लाग विरोधी आंदोलन से जागीरदारों ने भयभीत होकर 15 अप्रैल 1941 को एक गुप्त सभा करके लोक परिषद के विरुद्ध एक संगठन बनाया यह संगठन जागीरदार सभा नाम से बना इस प्रकार जागीदार सभा संगठन 1941 में अस्तित्व में आया 1935 में स्थापित राजपूत समाज सभा नामक जातिय संगठन भी जागीरदारों के बचाव में आया था
मारवाड़ किसान सभा 1941
22 मार्च 1941 को मारवाड़ किसान सभा का अस्तित्व स्थापित किया गया मारवाड़ किसान सभा की स्थापना किसानों के उद्देश्य को हानि पहुंचाने हेतु सरकार का दूसरा शरारतपूर्ण कदम था
मारवाड़ किसान सभा के संगठन कर्ता व संरक्षक बलदेव राम मिर्धा थे
बलदेव राम मिर्धा जोधपुर राज्य की पुलिस में अधीक्षक थे और जाट समुदाय से संबंधित है यह राज्य के विनम्र व विश्वसनीय सेवक थे
मारवाड़ किसान सभा का प्रथम अध्यक्ष मंगल सिंह कच्छावा को बनाया गया था
मंगल सिंह कच्छावा व्यवसाय से ठेकेदार था
मारवाड़ किसान सभा लाग-बाग,बेगार,लटाई पद्धति के विरुद्ध था
प्रारम्भ में मारवाड़ किसान सभा ने मारवाड़ लोक परिषद की कार्यशैली का विरोध किया था जागीर द्वारा
जागीरदारों द्वारा किसानों का ही नहीं बल्कि मारवाड़ लोक परिषद् के नेताओं व कार्यकर्ताओं का भी अपमान किया
इस प्रकार जागीर गांव में आतंक स्थापित हो गया था
धीरे धीरे किसान सभा लोक परिषद की इस बात से सहमत हो गई थी की किसानों की समस्याओं के लिए उत्तरदायी शासन की स्थापना की आवश्यकता है
जाट समाज सुधारक संघ 1938
जाट कृषक सुधारक संघ की स्थापना 1931 में हुई थी
नागौर परगने के जाट किसानों ने जाट कृषक सुधारक संघ के नेतृत्व में कार्य किया था
जाट कृषक सुधारक संघ एक समाज सुधारक संगठन था
यह संगठन जाट समुदाय में उनके उत्थान हेतु कार्य कर रहा था 19 सितंबर 1941 को जाट कृषक सुधारक सभा ने राजस्व को समाप्त कर के लाग-बाग बेगार समाप्त करने और जागीरदारों को उनकी निरंकुश शक्तियो से वंचित करने की मांग की गई थी
1942 में जाट-राजपूत संघर्ष आरंभ हुआ था
1942 में जोधपुर राज्य का किसान आंदोलन एक नए युग में प्रवेश कर चुका था
मारवाड़ लोक परिषद और चंडावल कांड 1942
जोधपुर राज्य में किसान आंदोलन का संचालन करने हेतु मारवाड़ लोक परिषद एक प्रमुख संस्था बन गई थी
मारवाड़ लोक परिषद का प्रमुख उद्देश्य जोधपुर राज्य में जिम्मेदार सरकार स्थापित करना था
8 फरवरी 1942 को मारवाड़ लोक परिषद् का खुला अधिवेशन लाडनू में आयोजित हुआ था
इस अधिवेशन में जागीरों के किसानों की समस्याओं पर खुलकर चर्चा हुई ओर जागीर क्षेत्रों में किसानो पर हो रहे अत्याचारों की कड़ी निंदा की गई
रणछोड़दास गट्टानी ने अपने अध्यक्षी उदबोधन में समसामिकी स्थितियो का मूल्यांकन व विश्लेषण किया फतनपुर अत्याचार की चरम परिणति चंडावल की दुखद घटना के रूप में है
परिषद द्वारा 28 मार्च 1942 को संपूर्ण मारवाड़ रियासत में उत्तरदायी सरकार दिवस मनाया जा रहा था
चंडावल सोजत परगने के अंतर्गत एक जागीर गांव का
28 मार्च 1942 को चंडावल में बहुत बड़ी संख्या में कार्यकर्ता एकत्रित हुए थे
इस आयोजन से चंदावल का जागीरदार अत्याधिक बौखला गया था
क्रोधित जागीरदारों ने लोक परिषद के कार्यकर्ताओं पर आक्रमण करवा दिया
ठिकानों के लोगों ने परिषद के कार्यकर्ता पर लाठियां-भालों से हमला किया था
आक्रमण में परिषद के 25 कार्यकर्ता घायल हुए थे
28 मार्च 1942 को नीमाज गून्दोज रोडू धामली मीठडी ठिकानों में में भी चंडावल के समान घटनाएं हुई थी
रोडू के जागीरदार ने वहां के लोक परिषद के कार्यकर्ता चौधरी उमाराम को तंग करने के लिए उस पर कई मुकदमे
10 मई 1942 के हरिजन अंक में महात्मा गांधी ने जागीर क्षेत्रों में घटी हुई घटना की निंदा की मई 1942 से मई 1944 तक मारवाड़ लोक परिषद की गतिविधिया जोधपुर शहर तक सीमित थी
मारवाड़ किसान सभा का अखिल भारतीय सम्मेलन जोधपुर 1945
मारवाड़ किसान सभा मई 1942 से काफी सक्रिय हो गई थी
यह सभा महाराजा के प्रति वफादार थी जिस वजह से यह आंदोलन को पूरी तरह से सफल नहीं बना पाई
मारवाड़ किसान सभा ने 25 सितंबर 1945 को जोधपुर में किसान सम्मेलन का आयोजन किया था
इस सम्मेलन में पंजाब के चौधरी छोटूराम जाट नेता ने भी भाग लिया था
उस समय चौधरी छोटूराम उत्तरी भारत के प्रमुख जाट नेता* थे
किसान सभा का यह सम्मेलन व्यर्थ ही गया
चंद्रावल और डाबड़ा कांड 1947
मारवाड़ के सोजत परगने के चंद्रावल गांव में 1945 में मारवाड़ लोक परिषद के कार्यकर्ताओं ने शांतिपूर्ण एक सम्मेलन किया था
इस सम्मेलन मे मारवाड़ लोक परिषद के कार्यकर्ताओं पर लाठीया और भालों से हमला किया गया जिसमें अनेक लोग घायल हो गए थे
किसानों पर जागीरदारों का अत्याचार और दमन दिनों दिन बढ़ता जा रहा था
इस कारण जनवरी 1946 में किसान सभा की नीति में परिवर्तन आया
जनवरी 1946 में किसान सभा व लोक परिषद ने उत्तरदायी शासन की स्थापना के लिए संयुक्त अभियान प्रारंभ किया
13मार्च 1947 को डीडवाना परगना के डाबरा नामक गांव में मारवाड़ लोक परिषद व किसान सभा ने एक सयुक्त सम्मेलन आयोजित किया था
सम्मेलन की कार्यवाही आरंभ होते ही जागीरदारों ने इस सम्मेलन के नेताओं और कार्यकर्ताओं को लाठियों व घातक हथियारो से निर्दयतापूर्वक पीटा गया
इस गांव के किसानों के घरों को लूट कर जला दिया गया
महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार और बलात्कार किया गया इस घटना मे 12 लोग मारे गए और सैकड़ों घायल हुए
नेताओं को बंदी बनाकर रावले में ले जाया गया
इन्हें मोलासर के सेठ डूंगरजी के हस्तक्षेप के बाद मुक्त किया गया
उपरोक्त घटना ने संपूर्ण राज्य में विरोधी आंदोलन को और अधिक तीव्र कर दिया
इस हत्याकांड की पूरे देश में समाचार पत्रों में निंदा की गयी
मुंबई के वंदे मातरम जयपुर के लोकवाणी जोधपुर के प्रजा सेवक और दिल्ली के हिंदुस्तान टाइम्स ने इस घटना की निंदा की थी
भारत सरकार के राज्य सचिव वी पी मेनन 28 फरवरी 1948 को जोधपुर आए
उन्होंने महाराजा व आंदोलनकारियो के बीच मध्यस्थता कर महाराजा को उत्तरदायी सरकार की स्थापना के लिए राजी कर लिया
6 अप्रैल 1949 को (जोधपुर राज्य के 30 मार्च 1949 को राजस्थान में विलय के पश्चात)मारवाड़ टेनेंसी एक्ट पारित हुआ
इसके द्वारा किसानो को उनकी जोतों खातेदारी अधिकार प्रदान कर दिए गए
इस प्रकार मारवाड़ के लंबे संघर्ष के बाद किसानों का आंदोलन सफलता के साथ संपन्न हुआ
डाबड़ा आंदोलन देश के स्वतंत्र होने तक चलता रहा डाबरा सम्मेलन के मुख्य आयोजक मथुरादास माथुर थे चुन्नी लाल शर्मा रुघाराम चौधरी रामाराम चौधरी पन्नाराम चौधरी डाबरा किसान आंदोलन के दौरान शहीद हुए थे मारवाड़ लोक परिषद किसान आंदोलन की जननी थी जेतारण बिलाड़ा व सोजत के जागीरदारों ने लोक परिषद के कार्यकर्ताओं को अपने क्षेत्र में मीटिंग ना करने देने का निर्णय लिया था पन्नाराम चौधरी व उसके पुत्रो मोतीराम को लोक परिषद व किसान सभा के नेताओं को शरण देने के कारण मार दिया गया डाबड़ा के मुख्य आयोजन मथुरादास माथुर ने डाबड़ा की घटना के लिए कहा कि आधी शताब्दी तक राजनैतिक जीवन मे रहते हुए जब भी पीछे मुड़कर देखता हूं तो सबसे अधिक झकझोरने वाली घटना डाबरा की ही लगती है जून 1948 को जय नारायण व्यास के नेतृत्व में मारवाड़ में मंत्रिमंडल बना डावडा वर्तमान में नागौर जिले में है डाबड़ा आंदोलन देश के स्वतंत्र होने तक चलता रहा
डाबरा सम्मेलन के मुख्य आयोजक मथुरादास माथुर थे चुन्नी लाल शर्मा रुघाराम चौधरी रामाराम चौधरी पन्नाराम चौधरी डाबरा किसान आंदोलन के दौरान शहीद हुए थे मारवाड़ लोक परिषद किसान आंदोलन की जननी थी जेतारण बिलाड़ा व सोजत के जागीरदारों ने लोक परिषद के कार्यकर्ताओं को अपने क्षेत्र में मीटिंग ना करने देने का निर्णय लिया था पन्नाराम चौधरी व उसके पुत्रो मोतीराम को लोक परिषद व किसान सभा के नेताओं को शरण देने के कारण मार दिया गया डाबड़ा*के मुख्य आयोजन मथुरादास माथुर ने डाबड़ा की घटना के लिए कहा कि आधी शताब्दी तक राजनैतिक जीवन मे रहते हुए जब भी पीछे मुड़कर देखता हूं तो सबसे अधिक झकझोरने वाली घटना डाबरा की ही लगती है जून 1948 को जय नारायण व्यास के नेतृत्व में मारवाड़ में मंत्रिमंडल बनाया गया डाबडा आंदोलन में जागीरदारों की ओर से महताबसिह मारा गया था डाबरा में सम्मेलन आयोजित करने वालों पर जागीरदार ने मुकदमा चलवाया इनमें जय नारायण व्यास और आनंदाराज सुराना के विरुद्ध बगावत का मुकदमा चला
माप तोल आंदोलन
जोधपुर रियासत में 100 सैर को 80 तोले में परिवर्तन करने पर 1920-21 मे इसका विरोध किया गया इस आंदोलन का नेतृत्व चांदमल सुराणा ने किया
Nise sab