भीलों के नृत्य इनमें विभिन्न प्रकार के नृत्य करते हैं सामूहिक नृत्य में आधा वृत पुरूषों का आधा महिलाओं का होता है कुछ में बीच में छाता लेकर कंधों पर हाथ रख कर पद संचालन किया जाता है (1)राई या गवरी नृत्य -यह नृत्य नाटक है जो सावन भादो में भील प्रदेशों में किया जाता है इसके प्रमुख पात्र भगवान शिव जी होते हैं माँ पार्वती के कारण ही नृत्य का नाम गवरी पड़ा। शिव को पूरिया कहा जाता है। इनके चारों ओर समस्त नृत्यकार मांदल व थाली की ताल पर नृत्य करते हैं
(2)गवरी की घाई -विभिन्न प्रसंगों को एक प्रमुख प्रंसग से जोड़ने वाला सामूहिक नृत्य (3)युद्ध नृत्य -भीलों द्वारा पहाड़ी क्षेत्रों में हथियार के साथ तालबद्ध नृत्य (4)द्विचकी नृत्य -विवाह के अवसर पर महिलाओं व पुरुषों के द्वारा वृत बनाकर करने वाला नृत्य लोकनृत्य घूमरा -बांसवाड़ा, उदयपुर डूंगरपुर के भील महिलाओं के द्वारा ढोल व थाली के साथ घूम कर किया जाता है
गरासियों के नृत्य (1)वालर नृत्य -बिना वाघ के धीमे गति से अाधा वृत बनाकर कंधे पर हाथ रख कर किया जाता है नृत्य का प्रांरभ पुरूष के द्वारा हाथ में छाता या तलवार लेकर किया जाता है भारत सरकार ने वालर नृत्य पर डाक टिकट जारी किया है
लूर, कूद, मांदल, गौर, जवारा, मोरिया नृत्य इस जाति के हैं
घुमंतू जाति के नृत्य कंजर जाति के नृत्य (1)चकरी नृत्य -ढोलक, मंजीरा, नंगाडे की लय पर युवतियों के द्वारा किया जाता है हाड़ौती अंचल का प्रसिद्ध नृत्य है
(2)धाकड़ नृत्य -हथियार लेकर किया जाता है जिसमें युद्ध की सभी कलाएं प्रदशिर्त की जाती है
सांसियो के नृत्य यह मेवात की जाति हैं इनके नृत्य अटपटे व कलात्मक होते हैं। अंग संचालन उत्तम होता है। इनका संगीत कर्णप्रिय नहीं होता है इसमें पुरूष व महिलाएं आमने सामने स्वच्छंद अंग भंगिमाएं बनाते हुए नृत्य होता है
कालबेलियों के नृत्य इनमें अधिकतर महिलाएं नृत्य करती है पूंगी,खंजरी, मोरचंग वाघ होते हैं कलात्मक लहंगे, अोढनी अंगरखी पहनते हैं
(1)इन्डोणी नृत्य -खंजरी वाघ पर किया जाता है (2)शंकरिया नृत्य -परिणय कथा पर आधारित नृत्य (3)पणिहारी नृत्य -ढोलक व बांसुरी पर किया जाता है
(4)गुलाबो कालबेलिया नृत्य -यह नृत्यांगना अंतर राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त है
गडरिया लुहारो के नृत्य -इसमें सामूहिक संरचना न हो कर गीत के साथ स्वच्छंद नृत्य किया जाता है
बणजारों के नृत्य -इनके गीत व नृत्य बेहद कर्ण प्रिय होते हैं ढोलकी प्रमुख वाघ है। मछली नृत्य, नेजा नृत्य प्रमुख हैं मछली नृत्य पूर्णिमा के रात होने वाला नृत्य नाटक है
कथौडी जनजाति के नृत्य (1)मावलिया नृत्य -नवरात्रि में 9दिन किया जाता है
(2)होली नृत्य -होली पर किया जाने वाला नृत्य
मेवो के नृत्य (1)रणबाजा नृत्य -यह विशेष नृत्य है महिलाओं व पुरुषों के द्वारा किया जाता है (2)रतवई नृत्य -अलवर जिले में महिलाओं के द्वारा किया जाता है
गूजरों के नृत्य (1)चरी नृत्य -यह नृत्य चरी लेकर किया जाता है। सिर पर कलश व उसमें कपास (काकडे ) के बीज में तेल डालकर आग लगा दी जाती है फिर कलश लेकर नृत्य प्रारंभ किया जाता है बांकिया, ढोल व थाली से संगीत उत्पन्न करते हैं किशनगढ़ क्षेत्र के आसपास किया जाने वाला नृत्य किशनगढ़ की फलकू बाई इस नृत्य की प्रमुख नृत्यांगना है
भोपो के नृत्य राजस्थान में गोगाजी, पाबू जी, देवजी, भैरू जी आदि के पड के सामने इनकी गाथा का वर्णन करते हुए नृत्य किया जाता है कठपुतली नृत्य भी किया जाता है
मीणो के नृत्य इनमें दो टोलियाँ होती है एक ताली बजाते हुए नृत्य को लय देती है दूसरी नृत्यकार को वृत बना कर घेरे रखती है
व्यवसायिक नृत्य
भवाई नृत्य यह नृत्य पेशेवर लोकनृत्य में बहुत लोकप्रिय है इसमें शास्त्रीय कला की झलक मिलती है तेज लय में विविध रंगों की पगड़ियो को हवा में फैला कर कमल का फूल बना लेना, रूमाल उठाना, गिलास पर नाचना, थाली के किनारे पर, तलवार की धार पर, कांच के टुकड़ों पर नृत्य किया जाता है रूपसिंह, दया राम, तारा शर्मा, अस्मिता काला प्रमुख कलाकार हैं
तेरहताली नृत्य कामड जाति के लोगों द्वारा रात रात भर यश गाथाएं कर नृत्य किया जाता है महिलाएं नौ मंजीरे दाएं पैर में, दो मंजीरे हाथ में कोहनी के ऊपर बांधती है और दो मंजीरे हाथों में रखती है इसलिए इसे तेरहताली नृत्य कहते हैं मंजीरा, तानपुरा, चौवारा पुरुष बजाते है
1954 में नेहरू जी के सामने गडिया लौहार सम्मेलन में यह नृत्य प्रस्तुत किया गया मांगी बाई इस नृत्य के लिए विख्यात है 1990 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार प्रदान किया गया
कच्छी घोडी नृत्य
इस नृत्य में नृत्यकार पैटर्न बनाकर नृत्य करते हैं इसमें बांस की खपच्चियों से घोडा बनाया जाता है जिसे ढककर नृत्यकार नाचते हैं
अन्य नृत्य
झाँझी नृत्य -मारवाड में किया जाता है
थाली नृत्य - रावण हत्था वाघ यंत्र के साथ किया जाता है डांग नृत्य -वल्लभ सम्प्रदाय विशेष कर नाथद्वारा, राजसमंद के भक्तों द्वारा किया जाता है लांगुरिया नृत्य- करौली के यदुवंशी शासकों की कुलदेवी के रूप में कैलादेवी के लख्खी मेले में गीत गाया व नृत्य किया जाता है खारी नृत्य -यह वैवाहिक नृत्य है दुल्हन की विदाई के समय सखियों द्वारा किया जाता है राजस्थान के मेवाड़ विशेष कर अलवर में यह नृत्य मुख्य रूप से होता है
चरवा नृत्य माली समाज की महिलाओं के द्वारा किसी के संतान होने पर कांसे के घड़े में दीपक जलाकर सिर पर रखकर किया जाता है कांसे के घड़े के कारण चरवा नृत्य कहलाता है
सालेडा नृत्य राजस्थान के विभिन्न प्रांतों में समृद्धि के रूप में किया जाने वाला नृत्य रण नृत्य मेवाड़ में विशेष रूप से प्रचलित है युवकों द्वारा तलवार आदि लेकर युद्ध कौशल का प्रदर्शन करते हुए नृत्य किया जाता है
चरकूला नृत्य राजस्थान के पूर्वी भाग में विशेष कर भरतपुर जिले में किया जाता है मूल रूप से उत्तर प्रदेश का नृत्य है
सूकर नृत्य आदिवासियों के लोक देवता की स्मृति में मुखौटा लगा कर किया जाता है
पेजण नृत्य बांगड में दीपावली के अवसर पर किया जाता है आंगी -बांगी गैर नृत्य यह चैत्र वदी तीज को रेगिस्तानी क्षेत्र में लाखेटा गांव में किया जाता है धोती कमीज के साथ लम्बी आंगी पहनी जाती है इसलिए आंगी गैर भी कहते हैं तलवारों की गैर उदयपुर से 35 किमी दूर मेनार नाम गांव में यह प्रसिद्ध है यह वहां ऊकांरेश्वर पर होता है सभी के लिए चूडीदार पजामा, अंगरखी, साफा होना आवश्यक माना जाता है
नाहर नृत्य यह नृत्य भीलवाड़ा जिले के माण्डल कस्बे में होली के बाद रंग तेरस को किया जाता है भील, मीणा, ढोली, सरगडा जाति के लोग रूई को शरीर पर चिपका कर नाहर का वेश धारण कर नृत्य करते हैं शाहजहां काल से यह आयोजित किया जाता है झेला नृत्य सहरिया आदिवासियों का यह फसली नृत्य है फसल पकने पर आषाढ़ माह में किया जाता है इन्दरपरी नृत्य सहरिया लोग इन्द्रपुरी के समान अलग अलग मुखौटे लगा कर नृत्य करते हैं। मुखौटे बंदर, शेर, राक्षस, हिरण आदि के मिट्टी कुट्टी के बने होते हैं
राड नृत्य होली पर वांगड अंचल में राड खेलने की परम्परा है कहीं कंडो से, पत्थरों से, जलती हुई लकड़ी से खेला जाता है भीलूडा, जेठाना गांव में पत्थरों की राड खेली जाती है
वेरीहाल नृत्य खैरवाडा के पास भाण्दा गांव में रंग पंचमी को किया जाता है वेरीहाल एक ढोल है
सुगनी नृत्य यह नृत्य भिगाना व गोइया जाति के युवक युवतियों के द्वारा किया जाता है।युवतियां आकर्षक वस्त्रों में ही नहीं सजती अपितु अपने तन पर और चेहरे पर जडीबूटी का रस लेपती है और वातावरण सुंगधित होता है इसलिए यह सुगनी नृत्य के नाम से जाना जाता है
भैरव नृत्य होली के तीसरे दिन ब्यावर में बादशाह बीरबल का मेला लगता है मेले का मुख्य आकर्षण बीरबल होता है और नृत्य करता हुआ चलता है
फूंदी नृत्य विवाह के विशिष्ट अवसरों पर किया जाता है
बिछुड़ो नृत्य यह कालबेलियों महिलाओं में लोकप्रिय हैं नृत्य के साथ गीत बिछुडो गाया जाता है
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