↪ सर्वप्रथम हित्ती नामक जाति, जो एशिया माइनर में 1800 - 1200 ई.पू. के लगभग शासन करती थी, ने ही 1300 ई.पू. में लोहे का प्रयोग किया था। ↪ वाजसनेयी संहिता में उल्लिखित लौहे तथा श्याम का तात्पर्य क्रमशः तांबे तथा लोहे के अर्थ में ग्रहण किया गया है। ↪ अथर्ववेद में उल्लिखित श्याम अयश से तात्पर्य लौह धातु से है। ↪ इस काल के लोग एक विशिष्ट प्रकार के बरतन का प्रयोग करते थे जिसे चित्रित धूसर (गैरिक) मृदभान्ड कहा जाता है। ↪ अतरंजीखेड़ा की खुदाई में धातु - शोधन करने वाली भट्टियों के अवशेष मिले हैं। ↪ साहित्यिक प्रमाणों के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि उत्तर वैदिक काल में हमारी ईसा पूर्व आठवीं शताब्दी में भारतीयों को लोहे का ज्ञान प्राप्त हो गया था।
⚜▪ लौह युगीन संस्कृति के प्रमुख स्थल ▪⚜ 1. चित्रित धूसर मृदभान्ड संस्कृति ( सिन्धु गंगा विभाजक तथा ऊपरी गंगा घाटी) = अहिच्छत्रपुर, आलमगीरपुर, अल्लाहपुर, हस्तिनापुर, अंतरजीखेड़ा, रोपड़ और जखेड़ा। 2. मध्य भारत (मालवा) = नागदा, उज्जैन और एरण 3. मध्य निम्न गंगा घाटी (पूर्वी भारत) = पांडु राजार ढीबी (बंगाल), माहिस्दाल, चिरांद, सोनपुर (बिहार)। 4. दक्षिण भारत = हल्लूर, आदिच्चनल्लूर।
? ताम्र पाषाण संस्कृति? ▪मानव द्वारा व्यवहार में लाई गई पहली धातु ताम्बा (5000 ई.पू.) ही हैं। ▪ ताम्र पाषाण संस्कृति पत्थर व ताम्बे के औजार पर आधारित थी। ▪ ताम्र पाषाण संस्कृति में लोग मुख्यतः ग्रामीण लोग थे। वे पहाड़ियों व नदियों के आस पास ही रहते थे। जबकि हड़प्पा संस्कृति के लोगों में नगरीकरण हो चुका था। ▪ भारत में ताम्र युग के मुख्य क्षेत्रों में ? पूर्वी राजस्थान की बनास घाटी (आहड़ व गिलुन्द), पश्चिमी मध्य प्रदेश (मालवा, कायथा, एरन), पश्चिमी महाराष्ट्र व दक्षिणी पूर्वी भारत है।
? जोर्वे की संस्कृति ? ↪ जोर्वे की संस्कृति गोदावरी - प्रवरा नदी क्षेत्र में विकसित हुई। इसके खोजकर्ता एम.एन. देशपान्डे थे। ↪ जोर्वे की संस्कृति यद्यपि ग्रामीण थी फिर भी इसकी कई बस्तियां जैसे दैमाबाद व ईमामगांव नगरीकरण की अवस्था तक पहुंच गई थी। ↪ जोर्वे स्थलों में सबसे बड़ा दैमाबाद है। यह गोदावरी नदी घाटी में है। यह बीस हैक्टेयर में फैला है। ↪ जोर्वे संस्कृति से नैदानिक मृदभान्ड हैं। जो लाल तल पर काले डिजाइन वाले चाक निर्मित बर्तन हैं। ↪ ईमामगांव से मिली मातृदेवी की मूर्ति से ऐसा प्रतीत होता है कि ताम्र पाषाण संस्कृति के लोग मातृदेवी की पूजा करते थे।
? आहड़ ? ↪ बनास घाटी की ताम्र पाषाण संस्कृति के केन्द्र आहड़ व गिलुन्द थे। ↪ वर्तमान में आहड़ राजस्थान के उदयपुर जिले में और गिलुन्द राजसमन्द जिले में हैं। ↪ आहड़ का प्राचीन नाम ताम्बवती अर्थात तांबावाली जगह है। इसका समय 2100 ई.पू. से 1500 ई.पू. के बीच था। ↪ 1500 ई.पू. के आस पास गिलुन्द में कच्चे मकान बने थे जबकि आहड़ में लोग पक्के मकान में निवास करते थे। ↪ यहा काले एवं लाल मृदभान्ड संस्कृति के बर्तन मिले हैं। ↪ मालवा की ताम्र पाषाणिक संस्कृतियों में सान्ड की मृणमुर्तियां मिली है।
? गणेश्वर ? ↪ राजस्थान में सीकर जिले के नीमकाथाना क्षेत्र में स्थित गणेश्वर भी ताम्र पाषाण काल का महत्वपूर्ण केन्द्र हैं। ↪ गणेश्वर से ताम्बे के तीर, भाले, मछली पकड़ने के काँटे, चुड़ियाँ, छैनी आदि मिले हैं। ↪ गणेश्वर का काल 2800 ई.पू. से 2200 ई.पू. हैं तथा यहां से हड़प्पा सभ्यता को ताँबे की आपूर्ति होती थी। ↪ गणेश्वर के लोग मुख्यतः शिकार पर तथा आंशिक रूप से कृषि पर निर्भर थे।
? मालवा ताम्र पाषाण संस्कृति ? ↪ इसकी प्रमुख विशेषता मालवा मृदभान्ड हैं जो कि समस्त ताम्र पाषाण मृदभान्डों में सर्वाधिक उत्कृष्ट माने गये हैं। ↪ नर्मदा नदी के तट पर स्थित नवदाटोली से लगभग सभी प्रकार के अन्नाज मिले हैं। भारत के अन्य किसी स्थल से इतने सारे अनाज नहीं मिले हैं। ↪ नवदाटोली भारतीय उपमहाद्वीप का सबसे बड़ा व विस्तृत उत्खनित ताम्र पाषाण युगीन ग्राम स्थल है।
❇❇ ताम्र पाषाण संस्कृति से सम्बन्धित विविध तथ्य ❇❇ ?तिथिक्रम के अनुसार भारत में ताम्र पाषाण बस्तियों की अनेक श्रृंखलाये हैं। कुछ पाक हड़प्पीय हैं, कुछ हड़प्पा संस्कृति के समकालीन है तथा कुछ हड़प्पोत्तर काल की हैं। ? ताम्र पाषाण काल में चाक पर बने काले एवं लाल मृदभान्ड सर्वाधिक प्रचलित थे। जबकि हड़प्पा सभ्यता में गैरुए रंग के मृदभान्ड प्रचलित थे। ? ताम्र पाषाण काल में पक्की ईटों का प्रयोग नहीं करते थे। ? इस काल में लोग कपड़े-वस्त्र बनाना, मृणमुर्तियां बनाना, ताँबे के औजार बनाना, व मृदभान्ड बनाने आदि में निपुण हो गए थे। ? ताम्र पाषाण के लोग लेखन कला से अनभिज्ञ थे। ? सर्वप्रथम ताम्र पाषाण के लोगों ने ही प्रायद्वीपीय भारत में बड़े गाँव बसाये। ? ताम्र - पाषाण काल में लोग पशुपालन माँस के लिए करते थे न कि दूध के लिए। ? लोहे के औजारों के अभाव में ताम्र - पाषाण काल के लोग विकसित व सघन कृषि नहीं कर सके। अतः भोजन व पोषण की कमी से उनमें बाल मृत्यु दर अधिक थी। ? ताम्र पाषाण बस्तियों के लुप्त होने का कारण वर्षा की कमी थी। ? चित्रित मृदभान्डों का सबसे पहले प्रयोग ताम्र पाषाणीय लोगों ने ही किया।
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