वाहिद और जमा

▪ इस तदरीस की दो किश्म है
▫(i) वाहिद (एकवचन)
▫(ii) जमा (बहुवचन)


▪ वाहिद-
वो इश्म है जिस से किसी एक शख्श या चीज़ का पता मालुम हो , जैसे- कलीम, किताब, मेज़ वगेरा

▪ जमा-
दो या दो से ज्यदा अफ़राद या चीजो की जमा का ईस्तमाल होता है, जैसे- खतूत, किताबे, तसवीरे, वगेरा

? इस्मे जमा ?
▪ इन लफ्ज़ो को कहते है, जो बजाय वाहिद मालुम होते हो और इस का ईस्तमाल भी वाहिद के तोर पर होता है मगर बाऐतबार मायने वो जुमले होते है और अपने अन्दाज एक बड़ी तादाद का मफुम रखते हो, जैसे- लश्कर, जमाअत, झुण्ड, मजमा, कारवा वगेरा

? जमा और इस्मे जमा का फर्क ?
▪ जमा का वाहिद होता है मगर इस्मे जमा का वाहिद नही होता है,
इस के साथ फ़ेल भी वाहिद ही के सनह में ईस्तमाल होता है
जैसे- क़ौम बरबाद हो गई
लश्कर हार गया

? तजकीर व तान्यिफ ?

▪ इस तदरीस की दो किश्म है
▫(i) हक़ीक़ी
▫(ii) गैरहक़ीक़ी

▫(i) हक़ीक़ी-
किसी जानदार इस्म के मुकाबले में इस की मादा और मादा के मुकाबिल में नर हो इस तजकि व तन्यफ को हक़ीक़ी कहा जाता है -
जैसे- लड़का-लड़की, बकरा- बकरी, वगेरा

▫ गैरहक़ीक़ी- जो इस्म बेजान हो, इस को तजकि व तन्यफ को गैरहक़ीक़ी कहते है, कुछ इस्म ऐसी भी होती है, जीन के तजकीर व तान्यिफ के लिए ज्यदा-ज्यदा अल्फ़ाज आते है-
▪ जैसे-
गुलाम      बन्दी
मामू        मुमानी
जिन         परी
खालू       खाला
जवाब      बेगम
ससुर       सास

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