भारत के तत्कालीन गवर्नर जनरल लॉर्ड वेवेल द्वारा 25 जून 1945 में भारत के विभिन्न राजनीतिक दलों का एक सम्मेलन शिमला में आयोजित किया गया था इस सम्मेलन को ही शिमला सम्मेलन के नाम से जाना जाता है
इस सम्मेलन का मुख्य उद्देश्य भारत की वैधानिक समस्या को सुलझाना था
शिमला सम्मेलन के आयोजन से जनता में ऊंची ऊंची आशाएं बंद गई
शिमला सम्मेलन 25 जून 1945 से प्रारंभ हुआ जिसे 3 दिन की बातचीत के पश्चात स्थगित कर दिया गया
यह सम्मेलन वायसराय लार्ड बिस्काउंट वेवेल ने बुलाया था जिसमें 21 नेताओं को आमंत्रित किया था
सम्मेलन में भाग लेने वाले प्रमुख नेता थे जवाहरलाल नेहरू, मोहम्मद अली जिन्ना ,अबुल कलाम आजाद ,सरदार वल्लभभाई पटेल, खान अब्दुल गफ्फार खॉ तारा सिंह और इस्माइल खान थे
इस सम्मेलन में कांग्रेस प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व अबुल कलाम आजाद ने किया था
गांधीजी ने इस सम्मेलन में भाग नहीं लिया था यद्यपि वे शिमला में उपस्थित रहे
मुस्लिम लीग के प्रतिनिधि के रूप में मोहम्मद अली जिन्ना ने भाग लिया था
11 जुलाई को मोहम्मद अली जिन्ना वेवेल से मिले और इस बात पर बल दिया कि मुस्लिम लीग को ही समस्त मुसलमानों का प्रतिनिधित्व माना जाए और वॉइस राय की सूची में मुस्लिम लीग से बाहर का कोई मुसलमान नहीं होना चाहिए
अर्थात अर्थात मोहम्मद अली जिन्ना ने इस सम्मेलन में शर्त रखी कि वॉइस राय की कार्यकारिणी परिषद में नियुक्ति हेतु मुस्लिमों सदस्यों का चयन वह स्वयं करेगी
मोहम्मद अली जिन्ना की किस शब्द को बदलने स्वीकार नहीं किया क्योंकि मैं केवल बहुत से मुसलमान कांग्रेस में थे अपितु मुसलमानों की बहुत संख्या वाले उत्तर पश्चिमी सीमा प्रांत में एक कांग्रेस मृत मंत्रिमंडल और पंजाब में संघवाद दल कार्य कर रहे थे मुस्लिम लीग के इस अड़ियल रूख के कारण 25 जून से 14 जुलाई तक चलने वाले शिमला सम्मेलन का असफल होने का मुख्य कारण यही था कांग्रेस ने भी जिंदा किस मांग को अस्वीकार कर दिया इस प्रकार वेवेल योजना असफल रही विभिन्न ने 14 जुलाई 1945 को सम्मेलन की विफलता की घोषणा की थी
वेवेल योजना की असफलता के कारण व प्रतिक्रिया
अबुल कलाम आज़ाद ने शिमला सम्मेलन की असफलता को भारत के राजनीतिक इतिहास में एक जल विभाजक की संज्ञा दी
वेवेल योजना का असफल होने का मुख्य कारण मुस्लिम लीग का अपनी शर्तों पर अडना और स्वयं वायसराय की कार्यकारिणी परिषद के सदस्य चुनाव करना
इस सफलता के लिए वेवेल और जिन्ना आंशिक रूप से उत्तरदायी थे
जैसा कि मोहम्मद अली जिन्ना ने समाचार पत्र सम्मेलन में कहा "यह वैवेल योजना हमारे लिए एक फंदा था इससे हम लोग मारे जाते
प्रस्तावित कार्यकारिणी में हमारी संख्या 1/3 रह जाती क्योंकि अन्य अल्पसंख्यक वर्ग, अनुसूचित जातियां सिक्ख, ईसाइयों के प्रतिनिधि होने थे
सबसे महत्वपूर्ण यह बात थी की पंजाब से मलिक खिजर हयात खॉ जो संघर्ष दल के थे और मुस्लिम लीगी नहीं थे वेवेल उन्हें रखने पर हठ करते थे
कांग्रेस के अध्यक्ष मौलाना अबुल कलाम आजाद में इस गतिरोध का उत्तरदायित्व मोहम्मद अली जिन्ना को दिया
कुछ हग तक वेवेल योजना की असफलता का उत्तरदायित्व वेवेल पर भी था उन्हें भारतीय नेताओं से सलाह करके अपनी परिषद की रचना करनी चाहिए थी
सम्भवत:कुछ परिवर्तनों के साथ कांग्रेसी नेता उस सूची को स्वीकार कर लेते हैं
दूसरे मुस्लिम लीग को इस योजना को कार्य करने की और उन्नति के मार्ग में रूकावट डालने की अनुमति नही देनी चाहिए
आरंभ में वेवल ने कांग्रेस अध्यक्ष को इस बात का विश्वास दिलाया गया की किसी भी दल को इस योजना में जानबूझकर बाधा डालने की अनुमति नहीं दी जाएगी लेकिन उस समय ऐसा कुछ नहीं हुआ
लेकिन शिमला सम्मेलन का एक परिणाम यह हुआ कि मोहम्मद अली जिन्ना की स्थिति और भी सुदृढ हो गई जिस का दृश्य 1945- 46 के चुनाव में स्पष्ट दिखाई देता है
कुछ आलोचकों का विचार है कि शिमला सम्मेलन चर्चिल की सरकार पर लेबर पार्टी की संभावित विजय अथवा रूस के दबाव के कारण हुआ है जैसा की क्रिप्स शिष्टमंडल अमेरिका के दबाव के कारण था
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