63. भारत का उपराष्ट्रपति- भारत का एक उपराष्ट्रपति होगा।
64. उपराष्ट्रपति का राज्य सभा का पदेन सभापति होना- उपराष्ट्रपति, राज्य सभा का पदेन सभापति होगा और अन्य कोई लाभ का पद धारण नहीं करेगा: परंतु जिस किसी अवधि के दौरान उपराष्ट्रपति, अनुच्छेद 65 के अधीन राष्ट्रपति के रूप में कार्य करता है या राष्ट्रपति के कृत्यों का निर्वहन करता है, उस अवधि के दौरान वह राज्य सभा के सभापति के पद के कर्तव्यों का पालन नहीं करेगा और वह अनुच्छेद 97 के अधीन राज्य सभा के सभापति को संदेय वेतन या भत्ते का हकदार नहीं होगा।
65. राष्ट्रपति के पद में आकस्मिक रिक्ति के दौरान या उसकी अनुपस्थिति में उपराष्ट्रपति का राष्ट्रपति के रूप में कार्य करना या उसके कृत्यों का निर्वहन- (1) राष्ट्रपति की मृत्यु, पदत्याग या पद से हटाए जाने या अन्य कारण से उसके पद में हुई रिक्ति की दशा में उपराष्ट्रपति उस तारीख तक राष्ट्रपति के रूप में कार्य करेगा जिस तारीख को ऐसी रिक्ति को भरने के लिए इस अध्याय के उपबंधों के अनुसार निर्वाचित नया राष्ट्रपति अपना पद ग्रहण करता है। (2) जब राष्ट्रपति अनुपस्थिति, बीमारी या अन्य किसी कारण से अपने कृत्यों का निर्वहन करने में असमर्थ है तब उपराष्ट्रपति उस तारीख तक उसके कृत्यों का निर्वहन करेगा जिस तारीख को राष्ट्रपति अपने कर्तव्यों को फिर से संभालता है। (3) उपराष्ट्रपति को उस अवधि के दौरान और उस अवधि के संबंध में, जब वह राष्ट्रपति के रूप में इस प्रकार कार्य कर रहा है या उसके कृत्यों का निर्वहन कर रहा है, राष्ट्रपति की सभी शक्तियां और उन्मुक्तियां होंगी तथा वह ऐसी उपलब्धियों, भत्तों और विशेषाधिकारों का जो संसद, विधि द्वारा, अवधारित करे, और जब तक इस निमित्त इस प्रकार उपबंध नहीं किया जाता है तब तक ऐसी उपलब्धियों, भत्तों और विशेषाधिकारों का, जो दूसरी अनुसूची में विनिर्दिष्ट हैं, हकदार होगा।
66. उपराष्ट्रपति का निर्वाचन- (1) उपराष्ट्रपति का निर्वाचन [संसद के दोनों सदनों के सदस्यों से मिलकर बनने वाले निर्वाचकगण के सदस्यों]द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति के अनुसार एकल संक्रमणीय मत द्वारा होगा और ऐसे निर्वाचन में मतदान गुप्त होगा। (2) उपराष्ट्रपति संसद के किसी सदन का या किसी राज्य के विधान-मंडल के किसी सदन का सदस्य नहीं होगा और यदि संसद के किसी सदन का या किसी राज्य के विधान-मंडल के किसी सदन का कोई सदस्य उपराष्ट्रपति निर्वाचित हो जाता है तो यह समझा जाएगा कि उसने उस सदन में अपना स्थान उपराष्ट्रपति के रूप में अपने पद ग्रहण की तारीख से रिक्त कर दिया है। (3) कोई व्यक्ति उपराष्ट्रपति निर्वाचित होने का पात्र तभी होगा जब वह-
(क) भारत का नागरिक है,
(ख) पैंतीस वर्ष की आयु पूरी कर चुका है, और
(ग) राज्य सभा का सदस्य निर्वाचित होने के लिए अर्हित है।
(4) कोई व्यक्ति, जो भारत सरकार के या किसी राज्य की सरकार के अधीन अथवा उक्त सरकारों में से किसी के नियंत्रण में किसी स्थानीय या अन्य प्राधिकारी के अधीन कोई लाभ का पद धारण करता है, उपराष्ट्रपति निर्वाचित होने का पात्र नहीं होगा।
स्पष्टीकरण- इस अनुच्छेद के प्रयोजनों के लिए, कोई व्यक्ति केवल इस कारण कोई लाभ का पद धारण करने वाला नहीं समझा जाएगा कि वह संघ का राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति या किसी राज्य का राज्यपाल है अथवा संघ का या किसी राज्य का मंत्री है।
67. उपराष्ट्रपति की पदावधि- (1) उपराष्ट्रपति अपने पद ग्रहण की तारीख से पांच वर्ष की अवधि तक पद धारण करेगा: परंतु-
(क) उपराष्ट्रपति, राष्ट्रपति को संबोधित अपने हस्ताक्षर सहित लेख द्वारा अपना पद त्याग सकेगा;
(ख) उपराष्ट्रपति, राज्य सभा के ऐसे संकल्प द्वारा अपने पद से हटाया जा सकेगा जिसे राज्य सभा के तत्कालीन समस्त सदस्यों के बहुमत ने पारित किया है और जिससे लोक सभा सहमत है; किंतु इस खंड के प्रयोजन के लिए कई संकल्प तब तक प्रस्तावित नहीं किया जाएगा जब तक कि उस संकल्प को प्रस्तावित करने के आशय की कम से कम चौदह दिन की सूचना न दे दी गई हो;
(ग) उपराष्ट्रपति, अपने पद की अवधि समाप्त हो जाने पर भी, तब तक पद धारण करता रहेगा जब तक उसका उत्तराधिकारी अपना पद ग्रहण नहीं कर लेता है।
68. उपराष्ट्रपति के पद में रिक्ति को भरने के लिए निर्वाचन करने का समय और आकस्मिक रिक्ति को भरने के लिए निर्वाचित व्यक्ति की पदावधि- (1) उपराष्ट्रपति की पदावधि की समाप्ति से हुई रिक्ति को भरने के लिए निर्वाचन, पदावधि की समाप्ति से पहले ही पूर्ण कर लिया जाएगा। (2) उपराष्ट्रपति की मृत्यु, पदत्याग या पद से हटाए जाने या अन्य कारण से हुई उसके पद में रिक्ति को भरने के लिए निर्वाचन, रिक्ति होने के पश्चात् यथाशीघ्र किया जाएगा और रिक्ति को भरने के लिए निर्वाचित व्यक्ति, अनुच्छेद 67 के उपबंधों के अधीन रहते हुए, अपने पद ग्रहण की तारीख से पांच वर्ष की पूरी अवधि तक पद धारण करने का हकदार होगा।
69. उपराष्ट्रपति द्वारा शपथ या प्रतिज्ञान- प्रत्येक उपराष्ट्रपति अपना पद ग्रहण करने से पहले राष्ट्रपति अथवा उसके द्वारा इस निमित्त नियुक्त किसी व्यक्ति के समक्ष निम्नलिखित प्ररूप में शपथ लेगा या प्रतिज्ञान करेगा और उस पर अपने हस्ताक्षर करेगा, अर्थात्:- ईश्वर की शपथ लेता हूं मैं, अमुक ---कि मैं विधि द्वारा स्थापित भारत के संविधान के प्रति सच्ची सत्यनिष्ठा से प्रतिज्ञान करता हूं श्रद्धा और निष्ठा रखूंगा तथा जिस पद को मैं ग्रहण करने वाला हूं उसके कर्तव्यों का श्रद्धापूर्वक निर्वहन करूँगा।
70. अन्य आकस्मिकताओं में राष्ट्रपति के कृत्यों का निर्वहन- संसद, ऐसी किसी आकस्मिकता में जो इस अध्याय में उपबंधित नहीं है, राष्ट्रपति के कृत्यों के निर्वहन के लिए ऐसा उपबंध कर सकेगी जो वह ठीक समझे।
71. राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति के निर्वाचन से संबंधित या संसक्त विषय- (1) राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति के निर्वाचन से उत्पन्न या संसक्त सभी शंकाओं और विवादों की जांच और विनिश्चय उच्चतम न्यायालय द्वारा किया जाएगा और उसका विनिश्चय अंतिम होगा। (2) यदि उच्चतम न्यायालय द्वारा किसी व्यक्ति के राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति के रूप में निर्वाचन को शून्य घोषित कर दिया जाता है तो उसके द्वारा, यथास्थिति, राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति के पद की शक्तियों के प्रयोग और कर्तव्यों के पालन में उच्चतम न्यायालय के विनिश्चय की तारीख को या उससे पहले किए गए कार्य उस घोषणा के कारण अविधिमान्य नहीं होंगे। (3) इस संविधान के उपबंधों के अधीन रहते हुए, राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति के निर्वाचन से संबंधित या संसक्त किसी विषय का विनियमन संसद विधि द्वारा कर सकेगी। (4) राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति के रूप में किसी व्यक्ति के निर्वाचन को उसे निर्वाचित करने वाले निर्वाचकगण के सदस्यों में किसी भी कारण से विद्यमान किसी रिक्ति के आधार पर प्रश्नगत नहीं किया जाएगा।
72. क्षमा आदि की और कुछ मामलों में दंडादेश के निलंबन, परिहार या लघूकरण की राष्ट्रपति की शक्ति- (1) राष्ट्रपति को, किसी अपराध के लिए सिद्धदोष ठहराए गए किसी व्यक्ति के दंड को क्षमा, उसका प्रविलंबन, विराम या परिहार करने की अथवा दंडादेश के निलंबन, परिहार या लघूकरण की-
(क) उन सभी मामलों में, जिनमें दंड या दंडादेश सेना न्यायालय ने दिया है,
(ख) उन सभी मामलों में, जिनमें दंड या दंडादेश ऐसे विषय संबंधी किसी विधि के विरुंद्ध अपराध के लिए दिया गया है जिस विषय तक संघ की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार है,
(ग) उन सभी मामलों में, जिनमें दंडादेश, मृत्यु दंडादेश है, शक्ति होगी।
(2) खंड (1) के उपखंड (क) की कोई बात संघ के सशस्त्र बलों के किसी आफिसर की सेना न्यायालय द्वारा पारित दंडादेश के निलंबन, परिहार या लघूकरण की विधि द्वारा प्रदत्त शक्ति पर प्रभाव नहीं डालेगी। (3) खंड (1) के उपखंड (ग) की कोई बात तत्समय प्रवृत्त किसी विधि के अधीन किसी राज्य के राज्यपाल द्वारा प्रयोक्तव्य मृत्यु दंडादेश के निलंबन, परिहार या लघूकरण की शक्ति पर प्रभाव नहीं डालेगी।
73. संघ की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार- (1) इस संविधान के उपबंधों के अधीन रहते हुए, संघ की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार-
(क) जिन विषयों के संबंध में संसद को विधि बनाने की शक्ति है उन तक, और
(ख) किसी संधि या करार के आधार पर भारत सरकार द्वारा प्रयोक्तव्य अधिकारों, प्राधिकार और अधिकारिता के प्रयोग तक, होगा:
परंतु इस संविधान में या संसद द्वारा बनाई गई किसी विधि में अभिव्यक्त रूप से यथा उपबंधित के सिवाय, उपखंड (क) में निर्दिष्ट कार्यपालिका शक्ति का विस्तार किसी राज्य में ऐसे विषयों तक नहीं होगा जिनके संबंध में उस राज्य के विधान-मंडल को भी विधि बनाने की शक्ति है।
(2) जब तक संसद अन्यथा उपबंध न करे तब तक इस अनुच्छेद में किसी बात के होते हुए भी, कोई राज्य और राज्य का कोई अधिकारी या प्राधिकारी उन विषयों में, जिनके संबंध में संसद को उस राज्य के लिए विधि बनाने की शक्ति है, ऐसी कार्यपालिका शक्ति का या कृत्यों का प्रयोग कर सकेगा जिनका प्रयोग वह राज्य या उसका अधिकारी या प्राधिकारी इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले कर सकता था।
मंत्रि-परिषद
74. राष्ट्रपति को सहायता और सलाह देने के लिए मंत्रि-परिषद- (1) [राष्ट्रपति को सहायता और सलाह देने के लिए एक मंत्रि-परि−ाद् होगी जिसका प्रधान, प्रधान मंत्री होगा और राष्ट्रपति अपने कृत्यों का प्रयोग करने में ऐसी सलाह के अनुसार कार्य करेगा:] [परंतु राष्ट्रपति मंत्रि-परिषद से ऐसी सलाह पर साधारणतया या अन्यथा पुनर्विचार करने की अपेक्षा कर सकेगा और राष्ट्रपति ऐसे पुनर्विचार के पश्चात् दी गई सलाह के अनुसार कार्य करेगा।] (2) इस प्रश्न की किसी न्यायालय में जांच नहीं की जाएगी कि क्या मंत्रियों ने राष्ट्रपति को कोई सलाह दी, और यदि दी तो क्या दी।
75. मंत्रियों के बारे में अन्य उपबंध- (1) प्रधान मंत्री की नियुक्ति राष्ट्रपति करेगा और अन्य मंत्रियों की नियुक्ति राष्ट्रपति, प्रधान मंत्री की सलाह पर करेगा।
(1क) मंत्रि-परिषद में प्रधान मंत्री सहित मंत्रियों की कुल संख्या लोक सभा के सदस्यों की कुल संख्या के पन्द्रह प्रतिशत से अधिक नहीं होगी।
(1ख) किसी राजनीतिक दल का संसद के किसी सदन का कोई सदस्य, जो दसवीं अनुसूची के पैरा 2 के अधीन उस सदन का सदस्य होने के लिए निरर्हित है, अपनी निरर्हता की तारीख से प्रारंभ होने वाली और उस तारीख तक जिसको ऐसे सदस्य के रूप में उसकी पदावधि समाप्त होगी या जहां वह ऐसी अवधि की समाप्ति के पूर्व ससंद के किसी सदन के लिए निर्वाचन लड़ता है, उस तारीख तक जिसको वह निर्वाचित घोषित किया जाता है, इनमें से जो भी पूर्वतर हो, की अवधि के दौरान, खंड (1) के अधीन मंत्री के रूप में नियुक्त किए जाने के लिए भी निरर्हित होगा।]
(2) मंत्री, राष्ट्रपति के प्रसादपर्यंत अपने पद धारण करेंगे। (3) मंत्रि-परिषद लोक सभा के प्रति सामूहिक रूप से उत्तरदायी होगी। (4) किसी मंत्री द्वारा अपना पद ग्रहण करने से पहले, राष्ट्रपति तीसरी अनुसूची में इस प्रयोजन के लिए दिए गए प्ररूपों के अनुसार उसको पद की और गोपनीयता की शपथ दिलाएगा। (5) कोई मंत्री, जो निरंतर छह मास की किसी अवधि तक संसद् के किसी सदन का सदस्य नहीं है, उस अवधि की समाप्ति पर मंत्री नहीं रहेगा। (6) मंत्रियों के वेतन और भत्ते ऐसे होंगे जो संसद विधि द्वारा, समय-समय पर अवधारित करे और जब तक संसद इस प्रकार अवधारित नहीं करती है तब तक ऐसे होंगे जो दूसरी अनुसूची में विनिर्दिष्ट हैं।
भारत का महान्यायवादी
76. भारत का महान्यायवादी- (1) राष्ट्रपति, उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त होने के लिए अर्हित किसी व्यक्ति को भारत का महान्यायवादी नियुक्त करेगा। (2) महान्यायवादी का यह कर्तव्य होगा कि वह भारत सरकार को विधि संबंधी ऐसे विषयों पर सलाह दे और विधिक स्वरूप के ऐसे अन्य कर्तव्यों का पालन करे जो राष्ट्रपति उसको समय-समय पर निर्देशित करे या सौंपे और उन कृत्यों का निर्वहन करे जो उसको इस संविधान अथवा तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि द्वारा या उसके अधीन प्रदान किए गए हों। (3) महान्यायवादी को अपने कर्तव्यों के पालन में भारत के राज्यक्षेत्र में सभी न्यायालयों में सुनवाई का अधिकार होगा। (4) महान्यायवादी, राष्ट्रपति के प्रसादपर्यंत पद धारण करेगा और ऐसा पारिश्रमिक प्राप्त करेगा जो राष्ट्रपति अवधारित करे।
सरकारी कार्य का संचालन
77. भारत सरकार के कार्य का संचालन- (1) भारत सरकार की समस्त कार्यपालिका कार्रवाई राष्ट्रपति के नाम से की हुई कही जाएगी। (2) राष्ट्रपति के नाम से किए गए और निष्पादित आदेशों और अन्य लिखतों को ऐसी रीति से अधिप्रमाणित किया जाएगा जो राष्ट्रपति द्वारा बनाए जाने वाले नियमों में विनिर्दिष्ट की जाए और इस प्रकार अधिप्रमाणित आदेश या लिखत की विधिमान्यता इस आधार पर प्रश्नगत नहीं की जाएगी कि वह राष्ट्रपति द्वारा किया गया या निष्पादित आदेश या लिखत नहीं है। (3) राष्ट्रपति, भारत सरकार का कार्य अधिक सुविधापूर्वक किए जाने के लिए और मंत्रियों में उक्त कार्य के आबंटन के लिए नियम बनाएगा।
78. राष्ट्रपति को जानकारी देने आदि के संबंध में प्रधानमंत्री के कर्तव्य- प्रधान मंत्री का यह कर्तव्य होगा कि वह- (क) संघ के कार्यकलाप के प्रशासन संबंधी और विधान विषयक प्रस्थापनाओं संबंधी मंत्रि-परिषद के सभी विनिश्चय राष्ट्रपति को संसूचित करे; (ख) संघ के कार्यकलाप के प्रशासन संबंधी और विधान विषयक प्रस्थापनाओं संबंधी जो जानकारी राष्ट्रपति मांगे, वह दे; और (ग) किसी विषय को जिस पर किसी मंत्री ने विनिश्चय कर दिया है किन्तु मंत्रि-परिषद ने विचार नहीं किया है, राष्ट्रपति द्वारा अपेक्षा किए जाने पर परिषद के समक्ष विचार के लिए रखे।
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