107. विधेयकों के पुर्नस्थापन और पारित किए जाने के संबंध में उपबंध-
(1) धन विधेयकों और अन्य वित्त विधेयकों के संबंध में अनुच्छेद 109 और अनुच्छेद 117 के उपबंधों के अधीन रहते हुए, कोई विधेयक संसद के किसी भी सदन में आरंभ हो सकेगा।
(2) अनुच्छेद 108 और अनुच्छेद 109 के उपबंधों के अधीन रहते हुए कोई विधेयक संसद के सदनों द्वारा तब तक पारित किया गया नहीं समझा जाएगा, जब तक संशोधन के बिना या केवल ऐसे संशोधनों सहित, जिन पर दोनों सदन सहमत हो गए हैं, उस पर दोनों सदन सहमत नहीं हो जाते हैं।
(3) संसद में लंबित विधेयक सदनों के सत्रावसान के कारण व्यपगत नहीं होगा।
(4) राज्य सभा में लंबित विधेयक, जिसको लोक सभा ने पारित नहीं किया है, लोक सभा के विघटन पर व्यपगत नहीं होगा।
(5) कोई विधेयक, जो लोक सभा में लंबित है या जो लोक सभा द्वारा पारित कर दिया गया है और राज्य सभा में लंबित है, अनुच्छेद 108 के उपबंधों के अधीन रहते हुए, लोक सभा के विघटन पर व्यपगत हो जाएगा।
108. कुछ दशाओं में दोनों सदनों की संयुक्त बैठक- (1) यदि किसी विधेयक के एक सदन द्वारा पारित किए जाने और दूसरे सदन को पारेषित किए जाने के पश्चात्-
(क) दूसरे सदन द्वारा विधेयक अस्वीकर कर दिया गया है, या
(ख) विधेयक में किए जाने वाले संशोधनों के बारे में दोनों सदन अंतिम रूंप से असहमत हो गए हैं, या
(ग) दूसरे सदन को विधेयक प्राप्त होने की तारीख से उसके द्वारा विधेयक पारित किए बिना छह मास से अधिक बीत गए हैं, तो उस दशा के सिवाय, जिसमें लोक सभा का विघटन होने के कारण विधेयक व्यपगत हो गया है, राष्ट्रपति विधेयक पर विचार-विमर्श करने और मत देने के प्रयोजन के लिए सदनों को संयुक्त बैठक में अधिवेशित होने के लिए आहूत करने के अपने आशय की सूचना, यदि वे बैठक में हैं तो संदेश द्वारा या यदि वे बैठक में नहीं हैं तो लोक अधिसूचना द्वारा देगा, परन्तु उस खंड की कोई बात धन विधेयक को लागू नहीं होगी।
(2) छह मास की ऐसी अवधि की गणना करने में, जो खंड (1) में निर्दिष्ट है, किसी ऐसी अवधि को हिसाब में नहीं लिया जाएगा, जिसमें उक्त खंड के उपखंड (ग) में निर्दिष्ट सदन सत्रावसित या निरंतर चार से अधिक दिनों के लिए स्थगित कर दिया जाता है।
(3) यदि राष्टपति ने खंड (1) के अधीन सदनों को संयुक्त बैठक में अधिवेशित होने के लिए आहूत करने के अपने आशय की सूचना दे दी है तो कोई भी सदन विधेयक पर आगे कार्यवाही नहीं करेगा, किन्तु राष्टपति अपनी अधिसूचना की तारीख के पश्चात् किसी समय सदनों को अधिसूचना में विनिर्दिष्ट प्रयोजन के लिए संयुक्त बैठक में अधिवेशित होने के लिए आहूत कर सकेगा और, यदि वह ऐसा करता है तो, सदन तदनुसार अधिवेशित होंगे।
(4) यदि सदनों की संयुक्त बैठक में विधेयक ऐसे संशोधनों सहित, यदि कोई हों, जिन पर संयुक्त बैठक में सहमति हो जाती है, दोनों सदनों के उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों की कुल संख्या के बहुमत द्वारा पारित हो जाता है तो इस संविधान के प्रयोजनों के लिए वह दोनों सदनों द्वारा पारित किया गया समझा जाएगा, परन्तु संयुक्त बैठक में-
(क) यदि विधेयक एक सदन से पारित किए जाने पर दूसरे सदन द्वारा संशोधनों सहित पारित नहीं कर दिया गया है और उस सदन को, जिसमें उसका आरंभ हुआ था, लौटा नहीं दिया गया है तो ऐसे संशोधनों से भिन्न (यदि कोई हों), जो विधेयक के पारित होने में देरी के कारण आवश्यक हो गए हैं, विधेयक में कोई और संशोधन प्रस्थापित नहीं किया जाएगा।
(ख) यदि विधेयक इस प्रकार पारित कर दिया गया है और लौटा दिया गया है तो विधेयक में केवल पूर्वोक्त संशोधन, और ऐसे अन्य संशोधन, जो उन विषयों से सुसंगत हैं, जिन पर सदनों में सहमति नहीं हुई है, प्रस्थापित किए जाएंगे और पीठासीन व्यक्ति का इस बारे में विनिश्चय अंतिम होगा कि कौन से संशोधन इस खंड के अधीन ग्राह्य हैं।
(5) सदनों की संयुक्त बैठक में अधिवेशित होने के लिए आहूत करने के अपने आशय की राष्ट्रपति की सूचना के पश्चात्, लोक सभा का विघटन बीच में हो जाने पर भी, इस अनुच्छेद के अधीन संयुक्त बैठक हो सकेगी और उसमें विधेयक पारित हो सकेगा।
109. धन विधेयकों के संबंध में विशेष प्रक्रिया- (1) धन विधेयक राज्य सभा में पुर्नस्थापित नहीं किया जाएगा। (2) धन विधेयक लोक सभा द्वारा पारित किए जाने के पश्चात् राज्य सभा को उसकी सिफारिशों के लिए पारेषित किया जाएगा और राज्य सभा विधेयक की प्राप्ति की तारीख से चौदह दिन की अवधि के भीतर विधेयक को अपनी सिफारिशों सहित लोक सभा को लौटा देगी और ऐसा होने पर लोक सभा, राज्य सभा की सभी या किन्हीं सिफारिशों को स्वीकार या अस्वीकार कर सकेगी। (3) यदि लोक सभा, राज्य सभा की किसी सिफारिश को स्वीकार कर लेती है तो धन विधेयक राज्य सभा द्वारा सिफारिश किए गए और लोक सभा द्वारा स्वीकार किए गए संशोधनों सहित दोनों सदनों द्वारा पारित किया गया समझा जाएगा। (4) यदि लोक सभा, राज्य सभा की किसी भी सिफारिश को स्वीकार नहीं करती है तो धन विधेयक, राज्य सभा द्वारा सिफारिश किए गए किसी संशोधन के बिना, दोनों सदनों द्वारा उस रूंप में पारित किया गया समझा जाएगा, जिसमें वह लोक सभा द्वारा पारित किया गया था। (5) यदि लोक सभा द्वारा पारित और राज्य सभा को उसकी सिफारिशों के लिए पारेषित धन विधेयक उक्त चौदह दिन की अवधि के भीतर लोक सभा को नहीं लौटाया जाता है तो उक्त अवधि की समाप्ति पर वह दोनों सदनों द्वारा, उस रूंप में पारित किया गया समझा जाएगा, जिसमें वह लोक सभा द्वारा पारित किया गया था।
110. धन विधेयक की परिभाषा- (1) इस अध्याय के प्रयोजनों के लिए, कोई विधेयक धन विधेयक समझा जाएगा, यदि उसमें केवल निम्नलिखित सभी या किन्हीं विषयों से संबंधित उपबंध हैं, अर्थात-
(क) किसी कर का अधिरोपण, उत्सादन, परिहार, परिवर्तन या विनियमन।
(ख) भारत सरकार द्वारा धन उधार लेने का या कोई प्रत्याभूति देने का विनियमन अथवा भारत सरकार द्वारा अपने ऊंपर ली गई या ली जाने वाली किन्हीं वित्तीय बाध्यताओं से संबंधित विधि का संशोधन।
(ग) भारत की संचित निधि या आकस्मिकता निधि की अभिरक्षा, ऐसी किसी विधि में धन जमा करना या उसमें से धन निकालना।
(घ) भारत की संचित निधि में से धन का विनियोग।
(ङ) किसी व्यय को भारत की संचित निधि पर भारित व्यय घोषित करना या ऐसे धन की अभिरक्षा या उसका निर्गमन अथवा संघ या राज्य के लेखाओं की संपरीक्षा या
(च) भारत की संचित निधि या भारत के लोक लेखे मद्धे धन प्राप्त करना अथवा ऐसे धन की अभिरक्षा या उसका निर्गमन अथवा संघ या राज्य के लेखाओं की संपरीक्षा या
(छ) उपखंड (क) से उपखंड (च) में विनिर्दिष्ट किसी विषय का आनुषंगिक कोई विषय।
(2) कोई विधेयक केवल इस कारण धन विधेयक नहीं समझा जाएगा कि वह जुर्मानों या अन्य धनीय शास्तियों के अधिरोपण का अथवा अनुज्ञप्तियों के लिए फीसों की या की गई सेवाओं के लिए फीसों की मांग का या उनके संदाय का उपबंध करता है अथवा इस कारण धन विधेयक नहीं समझा जाएगा कि वह किसी स्थानीय प्राधिकारी या निकाय द्वारा स्थानीय प्रयोजनों के लिए किसी कर के अधिरोपण, उत्सादन, परिहार, परिवर्तन या विनियमन का उपबंध करता है।
(3) यदि यह प्रश्न उठता है कि कोई विधेयक धन विधेयक है या नहीं तो उस पर लोक सभा के अध्यक्ष का विनिश्चय अंतिम होगा।
(4) जब धन विधेयक अनुच्छेद 109 के अधीन राज्य सभा को पारेषित किया जाता है और जब वह अनुच्छेद 111 के अधीन अनुमति के लिए राष्ट्रपति के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है, तब प्रत्येक धन विधेयक पर लोक सभा के अध्यक्ष के हस्ताक्षर सहित यह प्रमाण पृष्ठांकित किया जाएगा कि वह धन विधेयक है।
111. विधेयकों पर अनुमति- जब कोई विधेयक संसद के सदनों द्वारा पारित कर दिया गया है तब वह राष्ट्रपति के समक्ष प्रस्तुत किया जाएगा और राष्ट्रपति घोषित करेगा कि वह विधेयक पर अनुमति देता है या अनुमति रोक लेता है, परन्तु राष्ट्रपति अनुमति के लिए अपने समक्ष विधेयक प्रस्तुत किए जाने के पश्चात् यथाशीघ्र उस विधेयक को, यदि वह धन विधेयक नहीं है तो, सदनों को इस संदेश के साथ लौटा सकेगा कि वे विधेयक पर या उसके किन्हीं विनिर्दिष्ट उपबंधों पर पुनर्विचार करें और विशिष्टतया किन्हीं ऐसे संशोधनों के पुर्नस्थापन की वांछनीयता पर विचार करें, जिनकी उसने अपने संदेश में सिफारिश की है और जब विधेयक इस प्रकार लौटा दिया जाता है, तब सदन विधेयक पर तदनुसार पुनर्विचार करेंगे और यदि विधेयक सदनों द्वारा संशोधन सहित या उसके बिना फिर से पारित कर दिया जाता है और राष्ट्रपति के समक्ष अनुमति के लिए प्रस्तुत किया जाता है तो राष्ट्रपति उस पर अनुमति नहीं रोकेगा।
वित्तीय विषयों के संबंध में प्रक्रिया
112. वार्षिक वित्तीय विवरण-
(1) राष्ट्रपति प्रत्येक वित्तीय वर्ष के संबंध में संसद के दोनों सदनों के समक्ष भारत सरकार की उस वर्ष के लिए प्राक्कलित प्राप्तियों और व्यय का विवरण रखवाएगा, जिसे इस भाग में "वार्षिक वित्तीय विवरण" कहा गया है।
(2) वार्षिक वित्तीय विवरण में दिए हुए व्यय के प्राक्कलनों में-
(क) इस संविधान में भारत की संचित निधि पर भारित व्यय के रूंप में वर्णित व्यय की पूर्ति के लिए अपेक्षित राशियाँ।
(ख) भारत की संचित निधि में से किए जाने के लिए प्रस्थापित अन्य व्यय की पूर्ति के लिए अपेक्षित राशियाँ, पृथक-पृथक दिखाई जाएंगी और राजस्व लेखे होने वाले व्यय का अन्य व्यय से भेद किया जाएगा।
(3) निम्नलिखित व्यय भारत की संचित निधि पर भारित व्यय होगा, अर्थात:-
(क) राष्ट्रपति की उपलब्धियाँ और भत्ते तथा उसके पद से संबंधित अन्य व्यय।
(ख) राज्य सभा के सभापति और उपसभापति के तथा लोक सभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के वेतन और भत्ते।
(ग) ऐसे ऋण भार, जिनका दायित्व भारत सरकार पर है, जिनके अंतर्गत ब्याज, निक्षेप निधि भार और मोचन भार तथा उधार लेने और ऋण सेवा और ऋण मोचन से संबंधित अन्य व्यय हैं।
(घ) (i) उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों को या उनके संबंध में संदेय वेतन, भत्ते और पेंशन।
(ii) फेडरल न्यायालय के न्यायाधीशों को या उनके संबंध में संदेय पेंशन।
(iii) उस उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को या उनके संबंध में दी जाने वाली पेंशन, जो भारत के राज्यक्षेत्र के अंतर्गत किसी क्षेत्र के संबंध में अधिकारिता का प्रयोग करता है या जो भारत डोमिनियन के राज्यपाल वाले प्रांत[40] के अंतर्गत किसी क्षेत्र के संबंध में इस संविधान के प्रारंभ से पहले किसी भी समय अधिकारिता का प्रयोग करता था
(ङ) भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक को या उसके संबंध में, संदेय वेतन, भत्ते और पेंशन;
(च) किसी न्यायालय या माध्यस्थम अधिकरण के निर्णय, डिक्री या पंचाट की तुष्टि के लिए अपेक्षित राशियाँ;
(छ) कोई अन्य व्यय, जो इस संविधान द्वारा या संसद द्वारा, विधि द्वारा, इस प्रकार भारित घोषित किया जाता है।
113. संसद में प्राक्कलनों के संबंध में प्रक्रिया-
(1) प्राक्कलनों में से जितने प्राक्कलन भारत की संचित निधि पर भारित व्यय से संबंधित हैं, वे संसद में मतदान के लिए नहीं रखे जाएंगे, किन्तु इस खंड की किसी बात का यह अर्थ नहीं लगाया जाएगा कि वह संसद के किसी सदन में उन प्राक्कलनों में से किसी प्राक्कलन पर चर्चा को निवारित करती है।
(2) उक्त प्राक्कलनों में से जितने प्राक्कलन अन्य व्यय से संबंधित हैं, वे लोक सभा के समक्ष अनुदानों की मांगों के रूंप में रखे जाएंगे और लोक सभा को शक्ति होगी कि वह किसी मांग को अनुमति दे या अनुमति देने से इंकार कर दे अथवा किसी मांग को, उसमें विनिर्दिष्ट रकम को कम करके, अनुमति दे।
(3) किसी अनुदान की मांग राष्ट्रपति की सिफारिश पर ही की जाएगी, अन्यथा नहीं।
114. विनियोग विधेयक- (1) लोक सभा द्वारा अनुच्छेद 113 के अधीन अनुदान किए जाने के पश्चात, यथाशक्य शीघ्र, भारत की संचित निधि में से-
(क) लोक सभा द्वारा इस प्रकार किए गए अनुदानों की, और
(ख) भारत की संचित निधि पर भारित, किन्तु संसद के समक्ष पहले रखे गए विवरण में दर्शित रकम से किसी भी दशा में अनधिक व्यय की, पूर्ति के लिए अपेक्षित सभी धनराशियों के विनियोग का उपबंध करने के लिए विधेयक पुर्न:स्थापित किया जाएगा।
(2) इस प्रकार किए गए किसी अनुदान की रकम में परिवर्तन करने या अनुदान के लक्ष्य को बदलने अथवा भारत की संचित निधि पर भारित व्यय की रकम में परिवर्तन करने का प्रभाव रखने वाला कोई संशोधन, ऐसे किसी विधेयक में संसद के किसी सदन में प्रस्थापित नहीं किया जाएगा और पीठासीन व्यक्ति का इस बारे में विनिश्चय अंतिम होगा कि कोई संशोधन इस खंड के अधीन अग्राह्य है या नहीं।
(3) अनुच्छेद 115 और अनुच्छेद 116 के उपबंधों के अधीन रहते हुए, भारत की संचित निधि में से इस अनुच्छेद के उपबंधों के अनुसार पारित विधि द्वारा किए गए विनियोग के अधीन ही कोई धन निकाला जाएगा, अन्यथा नहीं।
115. अनुपूरक, अतिरिक्त या अधिक अनुदान- (1) यदि-
(क) अनुच्छेद 114 के उपबंधों के अनुसार बनाई गई किसी विधि द्वारा किसी विशिष्ट सेवा पर चालू वित्तीय वर्ष के लिए व्यय किए जाने के लिए प्राधिकृत कोई रकम उस वर्ष के प्रयोजनों के लिए अपर्याप्त पाई जाती है या उस वर्ष के वार्षिक वित्तीय विवरण में अनुध्यात न की गई किसी नई सेवा पर अनुपूरक या अतिरिक्त व्यय की चालू वित्तीय वर्ष के दौरान आवश्यकता पैदा हो गई है, या
(ख) किसी वित्तीय वर्ष के दौरान किसी सेवा पर, उस वर्ष और उस सेवा के लिए अनुदान की गई रकम से अधिक कोई धन व्यय हो गया है, तो राष्ट्रपति, यथास्थिति, संसद के दोनों सदनों के समक्ष उस व्यय की प्राक्कलित रकम को दर्शित करने वाला दूसरा विवरण रखवाएगा या लोक सभा में ऐसे आधिक्य के लिए मांग प्रस्तुत करवाएगा।
(2) ऐसे किसी विवरण और व्यय या मांग के संबंध में तथा भारत की संचित निधि में से ऐसे व्यय या ऐसी मांग से संबंधित अनुदान की पूर्ति के लिए धन का विनियोग प्राधिकृत करने के लिए बनाई जाने वाली किसी विधि के संबंध में भी, अनुच्छेद 112, अनुच्छेद 113 और अनुच्छेद 114 के उपबंध वैसे ही प्रभावी होंगे, जैसे वे वार्षिक वित्तीय विवरण और उसमें वर्णित व्यय या किसी अनुदान की किसी मांग के संबंध में और भारत की संचित निधि में से ऐसे व्यय या अनुदान की पूर्ति के लिए धन का विनियोग प्राधिकृत करने के लिए बनाई जाने वाली विधि के संबंध में प्रभावी हैं।
116. लेखानुदान, प्रत्ययानुदान और अपवादानुदान- (1) इस अध्याय के पूर्वगामी उपबंधों में किसी बात के होते हुए भी, लोक सभा को-
(क) किसी वित्तीय वर्ष के भाग के लिए प्राक्कलित व्यय के संबंध में कोई अनुदान, उस अनुदान के लिए मतदान करने के लिए अनुच्छेद 113 में विहित प्रक्रिया के पूरा होने तक और उस व्यय के संबंध में अनुच्छेद 114 के उपबंधों के अनुसार विधि के पारित होने तक, अग्रिम देने की;
(ख) जब किसी सेवा की महत्ता या उसके अनिश्चित रूंप के कारण मांग ऐसे ब्यौरे के साथ वर्णित नहीं की जा सकती है जो वार्षिक वित्तीय विवरण में सामान्यतया दिया जाता है, तब भारत के संपत्ति स्रोतों पर अप्रत्याशित मांग की पूर्ति के लिए अनुदान करने की;
(ग) किसी वित्तीय वर्ष की चालू सेवा का जो अनुदान भाग नहीं है, ऐसा कोई अपवादानुदान करने की, शक्ति होगी और जिन प्रयोजनों के लिए उक्त अनुदान किए गए हैं, उनके लिए भारत की संचित निधि में से धन निकालना विधि द्वारा प्राधिकृत करने की संसद को शक्ति होगी।
(2) खंड (1) के अधीन किए जाने वाले किसी अनुदान और उस खंड के अधीन बनाई जाने वाली किसी विधि के संबंध में अनुच्छेद 113 और अनुच्छेद 114 के उपबंध वैसे ही प्रभावी होंगे, जैसे वे वार्षिक वित्तीय विवरण में वर्णित किसी व्यय के बारे में कोई अनुदान करने के संबंध में और भारत की संचित निधि में से ऐसे व्यय की पूर्ति के लिए धन का विनियोग प्राधिकृत करने के लिए बनाई जाने वाली विधि के संबंध में प्रभावी हैं।
117. वित्त विधेयकों के बारे में विशेष उपबंध- (1) अनुच्छेद 110 के खंड (1) के उपखंड (क) से उपखंड (च) में विनिर्दिष्ट किसी विषय के लिए उपबंध करने वाला विधेयक या संशोधन राष्ट्रपति की सिफारिश से ही पुर्न:स्थापित या प्रस्तावित किया जाएगा, अन्यथा नहीं और ऐसा उपबंध करने वाला विधेयक राज्य सभा में पुर्न:स्थापित नहीं किया जाएगा, परन्तु किसी कर के घटाने या उत्सादन के लिए उपबंध करने वाले किसी संशोधन के प्रस्ताव के लिए इस खंड के अधीन सिफारिश की अपेक्षा नहीं होगी। (2) कोई विधेयक या संशोधन उक्त विषयों में से किसी के लिए उपबंध करने वाला केवल इस कारण नहीं समझा जाएगा कि वह जुर्मानों या अन्य धनीय शास्तियों के अधिरोपण का अथवा अनुज्ञप्तियों के लिए फीसों की या की गई सेवाओं के लिए फीसों की मांग का या उनके संदाय का उपबंध करता है अथवा इस कारण नहीं समझा जाएगा कि वह किसी स्थानीय प्राधिकारी या निकाय द्वारा स्थानीय प्रयोजनों के लिए किसी कर के अधिरोपण, उत्सादन, परिहार, परिवर्तन या विनियमन का उपबंध करता है। (3) जिस विधेयक को अधिनियमित और प्रवर्तित किए जाने पर भारत की संचित निधि में से व्यय करना पड़ेगा, वह विधेयक संसद के किसी सदन द्वारा तब तक पारित नहीं किया जाएगा, जब तक ऐसे विधेयक पर विचार करने के लिए उस सदन से राष्ट्रपति ने सिफारिश नहीं की है।
साधारणतया प्रक्रिया
118. प्रक्रिया के नियम- (1) इस संविधान के उपबंधों के अधीन रहते हुए, संसद के प्रत्येक सदन अपनी प्रक्रिया और अपने कार्य संचालन के विनियमन के लिए नियम बना सकेगा। (2) जब तक खंड (1) के अधीन नियम नहीं बनाए जाते हैं, तब तक इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले भारत डोमिनियन के विधान-मंडल के संबंध में जो प्रक्रिया के नियम और स्थायी आदेश प्रवृत्त थे, वे ऐसे उपांतरणों और अनुकूलनों के अधीन रहते हुए संसद के संबंध में प्रभावी होंगे, जिन्हें यथास्थिति, राज्य सभा का सभापति या लोक सभा का अध्यक्ष उनमें करे। (3) राष्ट्रपति, राज्य सभा के सभापति और लोक सभा के अध्यक्ष से परामर्श करने के पश्चात, दोनों सदनों की संयुक्त बैठकों से संबंधित और उनमें परस्पर संचार से संबंधित प्रक्रिया के नियम बना सकेगा। (4) दोनों सदनों की संयुक्त बैठक में लोक सभा का अध्यक्ष या उसकी अनुपस्थिति में ऐसा व्यक्ति पीठासीन होगा, जिसका खंड (3) के अधीन बनाई गई प्रक्रिया के नियमों के अनुसार अवधारण किया जाए।
119. संसद में वित्तीय कार्य संबंधी प्रक्रिया का विधि द्वारा विनियमन- संसद, वित्तीय कार्य को समय के भीतर पूरा करने के प्रयोजन के लिए किसी वित्तीय विषय से संबंधित या भारत की संचित निधि में से धन का विनियोग करने के लिए किसी विधेयक से संबंधित, संसद के प्रत्येक सदन की प्रक्रिया और कार्य संचालन का विनियमन विधि द्वारा कर सकेगी तथा यदि और जहाँ तक इस प्रकार बनाई गई किसी विधि का कोई उपबंध अनुच्छेद 118 के खंड (1) के अधीन संसद के किसी सदन द्वारा बनाए गए नियम से या उस अनुच्छेद के खंड (2) के अधीन संसद के संबंध में प्रभावी किसी नियम या स्थायी आदेश से असंगत है तो और वहाँ तक ऐसा उपबंध अभिभावी होगा।
120. संसद में प्रयोग की जाने वाली भाषा- (1) भाग 17 में किसी बात के होते हुए भी, किन्तु अनुच्छेद 348 के उपबंधों के अधीन रहते हुए, संसद में कार्य हिन्दी में या अंग्रेज़ी में किया जाएगा, परन्तु, यथास्थिति, राज्य सभा का सभापति या लोक सभा का अध्यक्ष अथवा उस रूंप में कार्य करने वाला व्यक्ति किसी सदस्य को, जो हिन्दी में या अंग्रेज़ी में अपनी पर्याप्त अभिव्यक्ति नहीं कर सकता है, अपनी मातृभाषा में सदन को संबोधित करने की अनुज्ञा दे सकेगा। (2) जब तक संसद विधि द्वारा अन्यथा उपबंध न करे, तब तक इस संविधान के प्रारंभ के पंद्रह वर्ष की अवधि की समाप्ति के पश्चात यह अनुच्छेद ऐसे प्रभावी होगा, मानो या अंग्रेज़ी में शब्दों का उसमें से लोप कर दिया गया हो।
121. संसद में चर्चा पर निर्बन्धन- उच्चतम न्यायालय या किसी उच्च न्यायालय के किसी न्यायाधीश के अपने कर्तव्यों के निर्वहन में किए गए आचरण के विषय में संसद में कोई चर्चा इसमें इसके पश्चात उपबंधित रीति से उस न्यायाधीश को हटाने की प्रार्थना करने वाले समावेदन को राष्ट्रपति के समक्ष प्रस्तुत करने के प्रस्ताव पर ही होगी, अन्यथा नहीं।
122. न्यायालयों द्वारा संसद की कार्यवाहियों की जांच न किया जाना- (1) संसद की किसी कार्यवाही की विधिमान्यता को प्रक्रिया की किसी अभिकथित अनियमितता के आधार पर प्रश्नगत नहीं किया जाएगा। (2) संसद का कोई अधिकारी या सदस्य, जिसमें इस संविधान द्वारा या इसके अधीन संसद में प्रक्रिया या कार्य संचालन का विनियमन करने की अथवा व्यवस्था बनाए रखने की शक्तियाँ निहित हैं, उन शक्तियों के अपने द्वारा प्रयोग के विषय में किसी न्यायालय की अधिकारिता के अधीन नहीं होगा।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संविधान (पैंतीसवां संशोधन) अधिनियम, 1974 की धारा 3 द्वारा (1-3-1975 से) राज्य सभा पर प्रतिस्थापित।
संविधान (छत्तीसवां संशोधन) अधिनियम, 1975 की धारा 5 द्वारा (26-4-1975 से) दसवीं अनुसूची के पैरा 4 के उपबंधों के अधीन रहते हुए शब्दों का लोप किया गया।
संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 3 द्वारा जोड़ा गया।
संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 3 द्वारा जोड़ा गया।
संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 3 द्वारा पहली अनुसूची के भाग क या भाग ख में विनिर्दिष्ट शब्दों और अक्षरों का लोप किया गया।
संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 3 द्वारा पहली अनुसूची के भाग ग में विनिर्दिष्ट राज्यों के स्थान पर प्रतिस्थापित।
संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 4 द्वारा अनुच्छेद 81 और 82 के स्थान पर प्रतिस्थापित।
संविधान (पैंतीसवां संशोधन) अधिनियम, 1974 की धारा 4 द्वारा (1-3-1975 से) "अनुच्छेद 331 के उपबंधों के अधीन रहते हुए" के स्थान पर प्रतिस्थापित।
संविधान (छत्तीसवां संशोधन) अधिनियम, 1975 की धारा 5 द्वारा (26-4-1975 से) "और दसवीं अनुसूची के पैरा 4" शब्दों और अक्षरों का लोप किया जाएगा
गोवा, दमन एवं दीव पुनर्गठन अधिनियम, 1987 (1987 का 18) की धारा 63 द्वारा (30-5-1987 से) "पांच सौ पच्चीस" के स्थान पर प्रतिस्थापित।
गोवा, दमन एवं दीव पुनर्गठन अधिनियम, 1987 (1987 का 18) की धारा 63 द्वारा (30-5-1987 से) "पांच सौ पच्चीस" के स्थान पर प्रतिस्थापित।
संविधान (इकतीसवां संशोधन) अधिनियम, 1973 की धारा 2 द्वारा "पच्चीस सदस्यों" के स्थान पर प्रतिस्थापित।
संविधान (इकतीसवां संशोधन) अधिनियम, 1973 की धारा 2 द्वारा "पच्चीस सदस्यों" के स्थान पर प्रतिस्थापित।
संविधान (इकतीसवां संशोधन) अधिनियम, 1973 की धारा 2 द्वारा अंत:स्थापित।
संविधान (बयालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1976 की धारा 15 द्वारा (3-1-1977 से) अंत:स्थापित।
संविधान (चौरासीवां संशोधन) अधिनियम, 2001 की धारा 3 द्वारा (21-2-2002 से) प्रतिस्थापित।
संविधान (सतासीवां संशोधन) अधिनियम, 2003 की धारा 2 द्वारा प्रतिस्थापित।
संविधान (बयालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1976 की धारा 16 द्वारा (3-1-1977 से) अंत:स्थापित।
संविधान (चौरासीवां संशोधन) अधिनियम, 2001 की धारा 4 द्वारा कुछ शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित।
संविधान (चौरासीवां संशोधन) अधिनियम, 2001 की धारा 4 द्वारा कुछ शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित।
संविधान (बयालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1976 की धारा 16 द्वारा (3-1-1977 से) अंत:स्थापित।
संविधान (सतासीवां संशोधन) अधिनियम, 2003 की धारा 3 द्वारा प्रतिस्थापित।
संविधान (चवालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 13 द्वारा (20-6-1979 से) छह वर्ष शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित। संविधान (बयालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1976 की धारा 17 द्वारा (3-1-1977 से) पांच वर्ष मूल शब्दों के स्थान पर छह वर्ष शब्द प्रतिस्थापित किए गए थे।
संविधान (चवालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 13 द्वारा (20-6-1979 से) छह वर्ष शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित। संविधान (बयालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1976 की धारा 17 द्वारा (3-1-1977 से) पांच वर्ष मूल शब्दों के स्थान पर छह वर्ष शब्द प्रतिस्थापित किए गए थे।
संविधान (सोलहवां संशोधन) अधिनियम, 1963 की धारा 3 द्वारा खंड (क) के स्थान पर प्रतिस्थापित।
संविधान (पहला संशोधन) अधिनियम, 1951 की धारा 6 द्वारा अनुच्छेद 85 के स्थान पर प्रतिस्थापित।
संविधान (पहला संशोधन) अधिनियम, 1951 की धारा 7 द्वारा प्रत्येक सत्र के स्थान पर प्रतिस्थापित।
संविधान (पहला संशोधन) अधिनियम, 1951 की धारा 7 द्वारा प्रत्येक सत्र के स्थान पर प्रतिस्थापित।
संविधान (पहला संशोधन) अधिनियम, 1951 की धारा 7 द्वारा और सदन के अन्य कार्य पर इस चर्चा को अग्रता देने के लिए शब्दों का लोप किया गया।
संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा पहली अनुसूची के भाग क या भाग ख में विनिर्दिष्ट शब्द और अक्षरों का लोप किया गया।
संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा ऐसे किसी राज्य के स्थान पर प्रतिस्थापित।
देखिए, विधि मंत्रालय की अधिसूचना संख्या एफ.46/ 50-सी, तारीख 26 जनवरी, 1950, भारत का राजपत्र, असाधारण, पृष्ठ 678 में प्रकाशित समसामयिक सदस्यता प्रतिशेध नियम, 1950।
संविधान (बावनवां संशोधन) अधिनियम, 1985 की धारा 2 द्वारा (1-3-1985 से) अनुच्छेद 102 के खंड (1) के स्थान पर प्रतिस्थापित।
संविधान (तैंतीसवां संशोधन) अधिनियम, 1974 की धारा 2 द्वारा उपखंड (ख) के स्थान पर प्रतिस्थापित।
संविधान (तैंतीसवां संशोधन) अधिनियम, 1974 की धारा 2 द्वारा अंत:स्थापित।
संविधान (बावनवां संशोधन) अधिनियम, 1985 की धारा 3 द्वारा (1-3-1985 से) (2) इस अनुच्छेद के प्रयोजनों के लिए के स्थान पर प्रतिस्थापित।
संविधान (बावनवां संशोधन) अधिनियम, 1985 की धारा 3 द्वारा (1-3-1985 से) अंत:स्थापित।
अनुच्छेद 103, संविधान (बयालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1976 की धारा 20 द्वारा (3-1-1977 से) और तत्पश्चात संविधान (चवालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 14 द्वारा (20-6-1979 से) संशोधित होकर उपरोक्त रूंप में आया।
संविधान (चवालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 15 द्वारा (20-6-1979 से) कुछ शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित।
संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा "पहली अनुसूची के भाग क में विनिर्दिष्ट राज्य के तत्स्थानी प्रांत" के स्थान पर प्रतिस्थापित।
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