Significance & Deficiencies of Civil Disobedience Movement
6 अप्रैल 1930 को गांधी जी द्वारा नमक कानून का उल्लंघन करने से सविनय अवज्ञा आंदोलन प्रारंभ हुआ था
यह सविनय अवज्ञा आंदोलन अपने पहले और मुख्य चरण में 5 मार्च 1931 तक चला
सविनय आंदोलन प्रारंभ में तो सफल रहा लेकिन धीरे-धीरे यह आंदोलन अंत में समाप्त हो गया और इसका परिणाम असफल रहा
लेकिन इस आंदोलन में बहुत बड़े भाग पर जनता को राष्ट्रीय आंदोलन से जोड़ दिया
जिसमें पहली बार महिलाओं ने सक्रिय होकर अंग्रेजों की नीतियों का विरोध किया
सरकार की नीतियों नमक कर व अन्य करो का विरोध किया
इस आंदोलन से जनता अधिक क्रियाशील निडर और जागरूक हो गई थी
इस आंदोलन की अभूतपूर्व सफलता को देखकर अंत में लार्ड इरविन ने महात्मा गांधी को समझौते के लिए आमंत्रित किया था
इसी के फलस्वरुप 5 मार्च 1931 को गांधी इरविन समझौता हुआ था जिसके कारण महात्मा गांधी ने इस आंदोलन को स्थगित कर दिया था
इस दौर में विपिन चंद्र की दृष्टि में आम जनता की भागीदारी की दृष्टि से यह आंदोलन बहुत ही बेमिसाल था
इस आंदोलन में लगभग 90000 लोग जेल गए थे
ब्रिटेन से खरीदे गए कपड़ों की मात्रा में दो तिहाई की कमी हुई थी, शराब और लगान से होने वाली सरकारी आय में भी भारी गिरावट आई थी
विपिन चंद्र इस दौर के आंदोलन की दो मुख्य उपलब्धियों पर जोर देते हैं
पहली इस आंदोलन को समर्थन गरीब और निरक्षर लोगों से प्राप्त हुआ था कस्बों और गांव दोनों ही स्थानों पर वह वास्तव में अद्भुत और अपूर्व था
दूसरी भारतीय महिला के लिए यह आंदोलन उस समय तक के आंदोलनों में सबसे अधिक मुक्ति दाई था और कहा जा सकता है कि इसी के जरिए उन्होंने जन जीवन में अपना स्थान बनाया
आंदोलन के शुरुआती दौर में भारत के व्यवसायी वर्ग का व्यापक समर्थन भी आंदोलन को मिला था इस समर्थन की जड़े कितनी गहरी थी इसका अनुमान पैट्री के इस कथन से लगाया जा सकता है अनेक साधारण गंभीर और समझदार व्यापारी आंदोलन जारी रखने के लिए बिल्कुल तैयार हैंभले ही इसमें उनकी बर्बादी निश्चित है
सविनय अवज्ञा आंदोलन की कमियां बिपिन चंद्र पाल की उपलब्धियों के साथ सुमित सरकार द्वारा इस आंदोलन में कुछ कमजोरियां भी देखने को मिलती है
सुमित सरकार ने इन कमजोरियों का उल्लेख इस प्रकार किया है कमजोरिया
पश्चिमोत्तर सीमा प्रांत और दिल्ली जैसी इक्का-दुक्का जगह को छोड़कर पूरे सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान मुसलमानों की भागीदारी बहुत कम रही थी
असहयोग आंदोलन के विपरीत सविनय अवज्ञा आंदोलन के साथ किसी बड़े श्रमिक आंदोलन का आरंभ नहीं हुआ था
विरोध के शुद्धत: बुद्धिजीवी रूपों (जैसे वकीलो का अपनी वकालत छोड़ना और राष्ट्रीय स्कूल व कॉलेज स्थापित करने के लिए विद्यार्थियों का सरकारी स्कूल कॉलेजों का बहिष्कार करना )में कमी आई थी
सुमित सरकार के अनुसार अवज्ञा आंदोलन के चरण सुमित सरकार ने सविनय अवज्ञा आंदोलन के इतिहास को 2 चरणों में विभाजित किया है प्रथम चरण अप्रैल 1930 से सितंबर अक्टूबर 1930 तक द्वितीय चरण सितंबर 1930 से फरवरी 1931 तक
प्रथम चरण
प्रथम चरण अप्रैल 1930 से सितंबर अक्टूबर 1930 तक थे
इस चरण में गांधीवादी आंदोलन और कार्यक्रम के पीछे जनता की लामबंदी अपनी चरम सीमा पर पहुंची थी
रजनी पाम दत्त के शब्दों में देशभर में जनांदोलन की ऐसी जबरदस्त लहर चल पड़ी कि दोनों तरफ के नेता आश्चर्यचकित रह गए और सारी धमकियों और दमन के बावजूद साम्राज्यवादी खेमे में पराजय बोध और पस्तहिम्मती के हालत पैदा होने लगी थे
द्वितीय चरण
सितंबर 1930 के बाद से स्थिति में परिवर्तन आने लगा और यही से आंदोलन का दूसरा चरण आरंभ होता है
बदलती हुई परिस्थितियों का संकेत भारत के पूंजीपति वर्ग में आंदोलन के प्रति उत्साह में आई कमी और उसके समर्थन से पीछे हटने की प्रगति में देखने को मिलता है
अगर व्यापारी पीछे हट रहा था तो जनता जरुरत से ज्यादा आगे बढ़ने को उतावली थी
सुमित सरकार के अनुसार- "साथ ही दूसरी लहर के भी चिह्न दिखाई दे रहे थे जो लगान की ना अदायगी और आदिवासी आंदोलन का अनियंत्रित और खतरनाक रूप धारण कर रही थी
यह स्थिति गांधी और कांग्रेस को स्वीकार नहीं हो सकती थी क्योंकि वह अनुशासित और नियंत्रित जनांदोलन के पक्षधर थे
इसी दौर में लंदन में पहली गोलमेज परिषद का समापन हो गया था
वहां से लौट कर उदारवादी नेता तेज बहादुर सप्रु और जयकर इस प्रयास में लग गए कि कांग्रेस और सरकार के मध्य समझौता करा दिया जाए लेकिन इनके प्रयासों को कोई सफलता नहीं मिली
फिर अचानक 17 फरवरी को गांधीजी ने वायसराय लार्ड इरविन से मुलाकात करना स्वीकार किया
इन मुलाकात और वार्ता का परिणाम ही 1931 को 5 मार्च का गांधी इरविन समझौता था
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