स्वतंत्रता संघर्ष का तृतीय चरण(Third phase of freedom struggle)
स्वतंत्रता संघर्ष का तृतीय चरण
(Third phase of freedom struggle)
गांधी जी भारत के उन चमकते हुए सितारों में से एक थे
जिन्होंने राष्ट्रीय स्वतंत्रता के लिए अपना पूरा जीवन अर्पित कर दिया था राष्ट्रीय एकता के लिए गांधीजी ने अपने जीवन का बलिदान कर दिया
इसी कारण इस युग को गांधी युग के नाम से भी जाना जाता है
इस युग में कांग्रेस का उद्देश्य (The purpose of Congress) था की पूर्ण स्वराज्य ही प्राप्त करना है
संभव हो तो अंग्रेजी साम्राज्य (English empire) के भीतर ही और आवश्यक हो तो उसके बाहर भी और
यह घोषणा 1930 में कांग्रेस के मंच से स्पष्ट शब्दों में व्यक्त कर दी गई थी
इस युग में Mahatma Gandhi ही प्रमुख नेता थे
इन्होने भारतीय राजनीति में एक नई विचारधारा का सुप्रभात किया था कांग्रेस नें छुपकर षड्यंत्रों की नीति की निंदा की थी और अन्याय का स्पष्ट और सामने से विरोध करने का आह्वान किया था
उन्होंने सत्याग्रह सत्य के प्रति आग्रह अर्थात सरकार के प्रति अहिंसात्मक असहयोग की नीति अपनाई थी
गांधी जी के नेतृत्व में कांग्रेस आंदोलन एक सार्वजनिक आंदोलन बन गया था कांग्रेस संगठन को अधिक सुंदृढ बनाया गया और उसे अधिक जनतांत्रिक बनाया गया
कांग्रेस का उद्देश्य भारतीय समाज ( Indian society) का सर्वांगीण विकास था
महात्मा गांधी इस उद्देश्य से लोगों को पांच व्रत लेने को कहते थे
चरखा कातना ,अस्पृश्यता मिटाना मादक वस्तु निषेद ,हिंदू मुस्लिम एकता,स्त्रियों के प्रति समानता का व्यवहार व्रतों का ही अहिंसा द्वारा ही प्रचार करना था
प्रथम विश्व युद्ध 1914 से 18 के फलस्वरुप आत्म निर्णय की भावनाओं को बहुत शक्ति मिली युद्ध में कांग्रेस ने राजभक्ति का प्रर्याप्त परिचय दिया था महात्मा गांधी ने स्थान स्थान पर जाकर लोगों को सेना में भर्ती और युद्ध के लिए प्रयत्न करने की प्रेरणा दी थी लोग उन्हें सरकार का भर्ती करने वाला सार्जेंट के नाम से पुकारते थे
स्वतंत्रता संग्राम में महात्मा गांधी जी के नेतृत्व के उदय का कारण एक और जहां वस्तुगत परिस्थितियां जन राष्ट्रीय आंदोलन के लिए जमीन तैयार कर रही थी वहीं दूसरी ओर वह नेतृत्व भी मंच पर अवतरित हो गया था जो इन परिस्थितियों का पूरा लाभ उठा सकता था
यह नेतृत्व था गांधी जी व उनके सहयोगियों का
1915 तक गांधी जी का भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन ( Indian National Movement) से दूर दूर तक कोई रिश्ता नहीं था
1919 के अंत तक वही गांधी राष्ट्रीय संघर्ष की मुख्यधारा के निर्विवाद नेता के रुप में स्थापित हो गए थे
गांधी जी का यह उदय एक चमत्कार से कम नहीं था
देश में यह चमत्कार क्यों कब और कैसे संभव हो सका
इसका अब भी इतिहासकारों के लिए रहस्य हैं और गहन शोध का विषय बना हुआ है
सुमित सरकार ने इस चमत्कार की व्याख्या करते हुए गांधीजी के नेतृत्व के उदय में निम्न कारकों के योगदान को महत्वपूर्ण बताया है
01. दक्षिण अफ्रीका में 1893 से 1914 तक एक वकील और राजनीतिज्ञ के रूप में उनका अनुभव सुमित के शब्दों में निम्न प्रकार है-दक्षिण अफ्रीका ने गांधीजी को अंतरराष्ट्रीय ख्याति भी प्रदान की थी दक्षिण अफ्रीका में रहे जिन भारतीयो के संबंध अभी तक भारत के विभिन्न भागों में स्थित अपने घरों तक सीमित है वह समस्त भारत में गांधीजी का नाम फैलाने में सहायक हुए
02. सत्य व अहिंसा पर आधारित गांधीवादी पद्धति उदय का प्रमुख कारण थी इस पद्धति की मुख्य विशिष्टता यह थी कि यह नियंत्रित जनभागीदारी को भारत के सामाजिक रुप से निर्णायक वर्गों के हितों और भावनाओं से वस्तुनिष्ठ ढंग से जोड़ता था अतः गांधीवादी पद्धति व्यापारी वर्गों को साथ कृषकों के अपेक्षतया समृद्ध अथवा स्थानीय प्रभुता संपन्न भागों को भी स्वीकार्य थी
03. सुमित सरकार के अनुसार गांधी जी के आकर्षण का एक तीसरा और अत्यंत महत्वपूर्ण पक्ष उनके सामाजिक आदर्शों में निहित था इन सामाजिक आदर्शों का अंतर्तत्व आधुनिक सभ्यता का विरोध इसकी सुस्पष्ट व्याख्या 1909 की रचना हिंद स्वराज में प्राप्त होती
04. गांधीजी की राजनीतिक शैली में एक कृषि प्रधान देश में जिसकी आबादी का 80% से अधिक गांव में रहता था किसानों ने गांधी जी को लोकप्रिय बनाने में सहायता दी इसी शैली में सम्मिलित था-विशेष श्रेणी में यात्रा करना आसान Hindustani में बोलना 1921 के पश्चात केवल लंगोटी पहन कर रहना और तुलसीदास के रामचरित मानस के बिंब विधान को प्रयुक्त करना जो उतरी भारत के हिंदू जनमानस में गहन रूप से पैठा हुआ था
05. Sumit Sarkar के अनुसार अफवाहों ने भी गांधी रूपी चमत्कार के घटित होने में सहायता प्रदान की थी सुमित सरकार के अनुसार ऐसा प्रतीत होता है कि अपने दैन्य और आशा के कारण भारत के विभिन्न वर्गों के लोगों ने अपने मन में गांधीजी की अपनी-अपनी छवियां बसा ली थी
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