स्वदेशी आंदोलन से हुए लाभ(Benefits from Swadeshi movement)

स्वदेशी आंदोलन से हुए लाभ


(Benefits from Swadeshi movement)


बहिष्कार व स्वदेशी आंदोलन अपने तत्कालीन लक्ष्य की पूर्ति करने में असफलरहा
क्योंकि इस अवसर पर बंगाल का विभाजन समाप्त नहीं किया गया था
फिर भी आंदोलन के दूरस्थ लाभ अवश्य प्राप्त हुए
इस आंदोलन के परिणाम स्वरुप विदेशी वस्तुओं के आयात में कमी हुई और भारतीय उद्योगों को प्रोत्साहन मिला
1907-1908 के बीच आंदोलन के सभी बड़े नेता या तो गिरफ्तार कर लिए गए या उन्हें निर्वासित कर दिया गया
इस प्रकार यह आंदोलन नेतृत्व विहीन हो गया
जब सरकार ने बंगाल विभाजन विरोधी आंदोलन का दमन करने का प्रयास किया गया ?तब उसके परिणाम स्वरुप उग्र राष्ट्रीयता का उदय हुआ
इस प्रकार स्वदेशी आंदोलन उपनिवेशवाद के खिलाफ पहला सशक्त राष्ट्रीय आंदोलन था
जो भावी संघर्ष का बीज बोकर ही खत्म हुआ था
1905 में कांग्रेस के बनारस अधिवेशन की अध्यक्षता करते हुए गोपाल कृष्ण गोखलेने भी स्वदेशी और बहिष्कार आंदोलन को समर्थन जताया
उग्रवादी दल के नेता बाल गंगाधर तिलक, विपिन चंद्र पाल, लाला लाजपत राय और अरविंद घोष ने पूरे देश में इस आंदोलन को फैलाना चाहते थे
1906 में कलकत्ता मे कांग्रेस अधिवेशनकी अध्यक्षता करते हुए दादा भाई नौरोजी ने पहली बार स्वराज्य की मांग प्रस्तुत की थी
बंग भंग के बाद राष्ट्रीय आंदोलन में उग्रवादी विचार के नेताओं की पकड़ मजबूतहोने लगी
 जहां उदारवादी नेता हिंसा का विरोधकरते थे,वहीं उग्रवादी हिंसा के समर्थकथे
कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन मैं दोनों के मध्य वैचारिक भेद उभर कर सामने आया
लेकिन दादा भाई नौरोजी के प्रयासों से यह मतभेद दबा दिया गया
स्वदेशी आंदोलन के चलाने के तरीके को लेकर उग्रवादी और उदारवादी नेताओं के मध्य चल रहे मतभेद के कारण 1907 में कांग्रेस के सूरत अधिवेशन में उग्रवादी नेता अपने को कांग्रेस से अलग कर लिए थे
बहिष्कार और स्वदेशी आंदोलन ने विभाजन के विरुद्ध विशाल जनमतइकट्ठा किया
इसके फलस्वरुप ब्रिटीश सरकार ने अरुंडेल के नेतृत्व में एक कमेटी का गठन किया था

अरुंडेल कमेटी 1906
‼तत्कालीन वायस राय मिंटो द्वितीय द्वारा अगस्त 1914 में अरुण्डेल कमेटी का गठन किया गया
‼इस कमेटी का गठन राजनीतिक सुधारों के विषय में सलाह लेनेके लिए किया था
‼अरुंडेल कमेटी ने विभाजित बंगाल को पुनः सयुक्तकरने की आवश्यकता पर बल दिया
‼इसके फलस्वरुप ब्रिटिश सरकार ने विवश होकर बंगाल विभाजन को 1911 में रद्दकर दिया

दिल्ली दरबार 1911
‼दिसंबर 1911 में ब्रिटिश सम्राट जॉर्ज पंचम का दिल्ली आगमन हुआ था
‼12 दिसंबर 1911 को दिल्ली में एक राज दरबार का आयोजन किया गया था
‼यहां पर वॉयस राय हार्डिंग द्वित्तीय ने सम्राट की ओर से घोषणा की बंगाल विभाजन रद्दकिया जाएगा और
‼भारत की राजधानी कलकत्ता से हटाकर दिल्लीबनाई जाएगी
‼इस प्रकार 1912 में कलकत्ता के स्थान पर भारत की राजधानी दिल्ली बन गई थी

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