स्वराज पार्टी की स्थापना(Establishment of Swaraj Party)
स्वराज पार्टी की स्थापना
(Establishment of Swaraj Party)
महात्मा गांधी की नीतियों से असंतुष्ट होकर श्री देशबंधु गुलाल चितरंजन दास और पंडित मोतीलाल नेहरू ने एक स्वराज्य दल का गठन इलाहाबाद में 1923 मैं किया
स्वराज पार्टी की स्थापना का मुख्य उद्देश्य व्यवस्थापिका सभाओं में प्रवेश करके सरकार की गलत नीतियों की आलोचना करना, उसके दोषों को उजागर करना था
यह दल विधान परिषदों में भाग लेने में विश्वास करता था
उनकी योजना यह थी की विधान परिषद के कार्य में आंतरिक रुप से रुकावट डाली जाए
1923 के चुनाव में स्वराज्य दल को मध्य प्रांत और बंगाल में पूर्ण बहुमत मिल गया
उन्होंने अपने विरोध से मंत्री के कार्य में बाधा डाल कर उन्हें कार्य नहीं करने देना था
इसके अतिरिक्त असहयोग आंदोलन प्रारंभ होने से पूर्व विधान परिषदों का बहिष्कार करने का निर्णय लिया गया था
लेकिन असहयोग आंदोलन की समाप्ति के बाद कांग्रेस के सामने हैं प्रश्न यह था कि 1919 के एक्ट द्वारा घोषित विधान परिषद के चुनाव में भाग लिया जाए अथवा नहीं
चितरंजन दास और मोतीलाल नेहरू और विट्ठल भाई ने इन सभाओं में प्रवेश कर असहयोग करने की बात रखी थी अथार्थ परिषदों के चुनाव में हिस्सा लेने के पक्ष में थे यह लोग परिवर्तनवादी कहलाए
लेकिन डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद राजगोपालाचारी वल्लभभाई पटेल डॉक्टर अंसारी एन जी रंगा आयंगर चक्रवर्ती आदि नेताओं ने परिषदों में प्रवेश करने की नीति का विरोध किया अथार्थ यह लोग परिषद के चुनाव का बहिष्कार करना चाहते थे यह लोग अपरिवर्तनवादी कहलाये
दिसंबर 1922 में चितरंजन दास की अध्यक्षता में गया में अधिवेशन हुआ इस अधिवेशन में परिषद में प्रवेश न लेने का प्रस्ताव पारित हुआ जिसके कारण चितरंजन दास ने त्याग पत्र दे दिया लेकिन परिवर्तनवादियों ने हार नहीं मानी
फल स्वरुप इस प्रस्ताव (परिषद में जाने के प्रस्ताव)के समर्थकों ने मार्च 1923 में इलाहाबाद में अपने समर्थकों का अखिल भारतीय सम्मेलन बुलाया और एक नई राजनीतिक पार्टी स्वराज्य पार्टी की स्थापना की
यह पार्टी कांग्रेस खिलाफ स्वराज्य पार्टी कहलाए इस पार्टी में तय किया गया कि नई पार्टी कांग्रेस के अंदर ही चुनाव लड़ेगी
इस स्वराज्य पार्टी के अध्यक्ष सी आर दास और महासचिव मोतीलाल नेहरु थे
अब परिवर्तन वादियों और स्वराज वादियों में बढ़ती हुई कटुता को दूर करने के लिए सितंबर 1923 में मौलाना अब्दुल कलाम आजाद की अध्यक्षता में दिल्ली में कांग्रेस का विशेष अधिवेशन बुलाया गया
इस अधिवेशन में स्वराज पार्टी को परिषदों का चुनाव लड़ने की अनुमति कांग्रेस ने दे दी थी
1924 में गांधी जी का स्वास्थ्य खराब होने के कारण उन्हें सजा पूर्ण करने से पूर्व भी जेल से छोड़ दिया गया था,महात्मा गांधी जी ने स्वराज जल के राजनीतिक कार्यक्रम का समर्थन किया और स्वराज वादियो ने उनके रचनात्मक कार्यों का
नवंबर 1923 के चुनाव में स्वराज पार्टी को मध्यप्रांत और बंगाल में पूर्ण बहुमत प्राप्त हुआ इसी के साथ, इस पार्टी को केंद्रीय और प्रांतीय परिषदों के चुनाव में उल्लेखनीय सफलता प्राप्त हुई
सेंट्रल लेजिस्लेटिव असेंबली की 101 निर्वाचित सीटों में से 42 सीटों पर इनकी जीत हुई बंगाल में यह सबसे बड़े दल के रूप में उभरे और मुंबई और उत्तर प्रदेश में भी इन्हें अच्छी सफलता मिली
मद्रास और पंजाब में जातिवाद और सांप्रदायिकता की लहर के कारण इन्हें कुछ खास सफलता प्राप्त नहीं हुई
केंद्रीय विधान मंडल में स्वराज वादियों के नेता मोतीलाल नेहरु से बंगाल विधानमंडल में इन के नेता चितरंजन दास थे
प्रारंभिक स्वराज्य की प्रमुख सफलताएं निम्नलिखित ती 01. यह बजट को प्रत्येक वर्ष अस्वीकृत कर देते थे परिणाम स्वरुप वायस राय को अपने विशेषाधिकार द्वारा इसे पारित करना पड़ता था इस तरह उन्होंने नए विधान मंडलों का असली चरित्र उजागर किया 2. स्वराज वादियो ने उत्तरदाई शासन की स्थापना करने के लिए गोलमेज सम्मेलन बुलाने का सुझाव दिया 3. इनकी मांगों के परिणाम स्वरुप 1924 में सरकार ने 1919 के अधिनियम की समीक्षा के लिए मुंडी मैन कमेटी की नियुक्ति की 5. 1925 में विट्ठल भाई पटेल को सेंट्रल लेजिस्लेटिव असेंबली का अध्यक्ष बनाने में सफलता मिली 6. 1925 में मोतीलाल नेहरू ने स्क्रीन कमेटी की सदस्यता स्वीकार की जो सेना के तीव्र भारतीय करण के लिए नियुक्त की गई थी
1922 से 1928 तक कांग्रेस लगभग शान्ति रही इसीलिए माहौल गर्म बनाए रखने की जिम्मेदारी स्वराज पार्टी की रही
उन्होंने परिषदों में ब्रिटिश सरकार की भारत विरोधी नीतियों पर लगभग रोक लगा दी थी
धीरे धीरे स्वराज वादियो ने परिषद में सरकार को असहयोग की नीति छोड़कर सहयोग की नीति अपना ली
1925 में चितरंजन दास की मृत्यु से स्वराज दल को बड़ा धक्का लगा 1926 में कांग्रेस ने स्वराज वादियों को परिषद से बाहर आने का आदेश दिया क्योंकि सरकार उनके साथ सहयोग नहीं कर रही थी
1926 के चुनाव में स्वराज पार्टी को आशा के अनुरूप सफलता नहीं मिली केंद्र में से 40 सीटों पर और मद्रास में आधी सीटों पर सफलता मिली
लेकिन बाकी प्रांतों विशेषकर उत्तर प्रदेश मध्य प्रांत और पंजाब में इसे भारी हार का सामना करना पड़ा
मुस्लिम ताकतों का विधान मंडलों में प्रतिनिधित्व बढ़ गया स्वराज जी इस बार विधान मंडलों में भी राष्ट्रीय मोर्चा बनाने में नाकामयाब रहे
लेकिन इस बार भी कई मौकों पर भी स्थगन प्रस्ताव लाने में कामयाब हो गए
स्वराज पार्टी के कार्य का प्रमुख उदाहरण है कि सरकार ने 1928 में सार्वजनिक सुरक्षा विधेयक बिल पारित किया है जिसके तहत किसी भी स्वाधीनता संग्राम समर्थक गैर भारतीयों को वह देश में निकाल सकती थी
स्वराज पार्टी ने विरोध किया और बिल पास नहीं हो सका जब बिल पुनः पेश करने की कोशिश की गई तो परिषद के अध्यक्ष विट्ठल भाई पटेल ने उसे पेश करने की अनुमति तक नहीं दी थी
उन्होंने इस विधेयक को भारतीय गुलामी विधेयक नंबर एक की संज्ञा दी
लाहौर कांग्रेस अधिवेशन में पारित प्रस्ताव हो और सविनय अवज्ञा आंदोलन छिड़ने के कारण 1930 में स्वराज्य ने विधानमंडल का दामन छोड़ दिया इस प्रकार स्वराज पार्टी का अंत हो गया
गांधी दास पैक्ट(नवंबर 1924)
नवंबर 1924 ई. मे खराब स्वास्थ्य के कारण गांधीजी को फरवरी 1924 में जेल से रिहा कर दिए गए थे
नवंबर 1924 में गांधीजी ,चितरंजन दास और मोतीलाल नेहरू ने एक संयुक्त वक्तव्य दिया जो गांधी दास पेक्ट के नाम से जाना जाता है
इसमें कहा गया कि असहयोग अब राष्ट्रीय कार्यक्रम नहीं रहेगा स्वराज पार्टी को अधिकार दिया गया कि वह कांग्रेस के नाम और कांग्रेस के अभिन्न अंग के रूप में विधानसभाओं के अंदर कार्य करें
गांधीजी के जिम्मे ऑल इंडिया स्पिनर एसोसिएशन को संगठित करने और संपूर्ण देश में चरखे और करघे का प्रचार करने का कार्य दिया गया
इस पेक्ट की मुख्य बातों की पुष्टि बेलगांव अधिवेशन 1924 में की गई जिसके अध्यक्ष स्वयं महात्मा गांधी जी थे
इंडियन इंडिपेंडेंस लिंग
डॉक्टर एम अंसारी की अध्यक्षता में मद्रास में आयोजित कांग्रेस के अधिवेशन में पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त करना भारत की जनता का लक्ष्य निर्धारित किया गया था
इस मांग को तेज करने के लिए इंडिया इंडिपेंडेंस नामक संस्था की स्थापना की गई
जवाहरलाल नेहरू श्रीनिवास सुभाष चंद्र बोस दूसरे कई नेताओं ने लीग का नेतृत्व किया
इंडियन इंडिपेंडेंस लीग 1929 में वर्ष भर पूर्ण स्वाधीनता के लिए जनमत बनाने में जुटी रही
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