हड़प्पा सभ्यता- Harappan civilization

हड़प्पा सभ्यता- Harappan civilization


♦इस सभ्यता के लिए तीन नामों का प्रयोग होता है -
सिन्धु सभ्यता, सिन्धु घाटी की सभ्यता और हड़प्पा सभ्यता।
♦ हड़प्पा के टीलो की ओर सर्वप्रथम ध्यानाकर्षण चाल्स मैसन ने 1826 ई. में किया।
♦ सर्वप्रथम इस सभ्यता का उत्खनन हड़प्पा नामक स्थान पर 1921 ई. में हुआ। इसी स्थान के नाम पर इसका नाम हड़प्पा सभ्यता रखा गया है।
♦ विकसित हड़प्पा सभ्यता का मूल केन्द्र पंजाब व सिन्ध में था। किन्तु गुजरात , राजस्थान, हरियाणा व पश्चिमी उतरप्रदेश तक के क्षेत्र में भी सभ्यता का विस्तार हुआ।
♦ सर्वप्रथम 1921 ई. में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के महानिदेशक सर जान मार्सल के निर्देशन में रायबहादुर दयाराम सहानी ने पंजाब (वर्तमान पाकिस्तान) के मोण्टगोमरी जिले में रावी नदी के तट पर स्थित हड़प्पा नामक स्थान का अन्वेषण किया।
♦जाॅन मार्शल ने इसे सर्वप्रथम सिन्धु सभ्यता का नाम दिया।
♦ इस सभ्यता के अब तक 350 से अधिक स्थल प्रकाश में आ चुके हैं। इनमें से सर्वाधिक 200 स्थल गुजरात में प्राप्त हुए हैं।
♦ रेडियो कार्बन 14 (C-14) के विश्लेषण के आधार पर डीपी अग्रवाल द्वारा हड़प्पा सभ्यता की तिथि 2300 ई.पू. से 1750 ई.पू. मानी गयी हैं। यह मत सर्वाधिक मान्य प्रतीत होता है।

? हड़प्पा सभ्यता का विस्तार ?
▪हड़प्पा सभ्यता का विस्तार उत्तर में जम्मू से लेकर दक्षिण में नर्मदा तक और पश्चिम में मकरान के समुन्द्र तट से लेकर उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले तक है। इसका क्षेत्रफल 13 लाख वर्ग किमी हैं।
▪ सर्वाधिक पश्चिमी पुरास्थल सुत्कागेंडोर (बलूचिस्तान) और पूर्वी पुरा स्थल आलमगीरपुर है। सर्वाधिक उत्तरी पुरा स्थल माँडा तथा दक्षिणी छोर दैमाबाद है।

? सिन्धु सभ्यता का विस्तार ?
▪सिन्धु सभ्यता में कम से कम 4 प्रजातियाँ थी। प्रोटो आस्ट्रेलाइड, भूमध्य सागरीय, अल्पाइन, मंगोलायड।
▪हड़प्पा के लोग मुख्यतः भूमध्य सागरीय थे।
▪हड़प्पा सभ्यता के निर्माता संभवतः द्रविड़ थे।

 मुख्य स्थल 
♦हड़प्पा ➖               1921➖दयाराम सहानी ➖    मोण्टगोमरी
♦मोहनजोदड़ो ➖  1922 ➖राखलदास बनर्जी ➖लरकाना
♦सुत्कागेंडोर ➖     1927➖आर. एल. स्टाइन ➖बलूचिस्तान
♦चन्हूदड़ो ➖           1931 ➖ एन.जी. मजूमदार ➖सिन्ध
♦कोटदीजी ➖        1935 ➖ धुर्ये                             ➖सिन्ध
♦रोपड़ ➖                1953 ➖यज्ञदत्त शर्मा ➖ पंजाब (भारत)
♦राखीगढ़ी ➖                    सूरजभान, रफीक ➖ जीना (हरियाणा)
♦बनावली ➖          1973➖रविन्द्र सिंह बिष्ट ➖हिसार
♦धौलावीरा ➖    1990-91 ➖रविन्द्र सिंह बिष्ट ➖कच्छ
♦लोथल ➖              1957 ➖एस. आर. राव ➖ अहमदाबाद
♦सुरकोटड़ा ➖      1972 ➖ जगपति जोशी ➖कच्छ
♦रंगपुर ➖               1933 ➖माधोस्वरूप वत्स ➖अहमदाबाद
♦कालीबंगा ➖       1953 ➖ अमलानन्द घोष ➖हनुमानगढ़

 स्थलों के बारे में विशेष तथ्य 
▪हड़प्पा के आवास के दक्षिण में एक कब्रिस्तान हैं जिसे कब्रिस्तान आर. 37 नाम दिया गया है।
▪ऋग्वेद के हरियुपिया का समीकरण हड़प्पा से किया गया है।
▪हड़प्पा से कर्मचारियों के आवास, पीतल की इक्का गाड़ी, स्त्री के गर्भ से निकलता हुआ पौधा, ईटों के वृत्ताकार चबूतरे, गेहूँ और जौ के दाने, एक बर्तन पर मछुआरा का चित्र, हड़प्पा से लकड़ी के ताबूत में शवाधान का साक्ष्य।
▪सर्वाधिक अभिलेख युक्त मुहरें हड़प्पा से प्राप्त हुई है जबकि सर्वाधिक मुहरें मोहनजोदड़ो से मिली है।
▪मोहनजोदड़ो का शाब्दिक अर्थ ? मृतकों का टीला।
▪मोहनजोदड़ो से विशाल स्नानागार, सबसे बड़ी ईमारत अन्नागार, ग्रिड पैटर्न पर आधारित समान्तर सड़कें, काँस्य नर्तकी व प्रस्तर की योगी, मोहनजोदड़ो में किसी प्रकार कोई कब्रिस्तान नहीं है, मकान पक्की ईटों से निर्मित, सूत का कपड़ा व धागा।
▪चन्हूदड़ो पाक् हड़प्पा संस्कृति, जिसे झूकर व झांगर संस्कृति कहते हैं, के अवशेष मिले हैं।
▪चन्हूदड़ो एकमात्र स्थल है, जहाँ से वक्राकार ईटें मिली है।
▪चन्हूदड़ो से किसी प्रकार का दुर्ग के अवशेष नहीं मिले हैं।
▪चन्हूदड़ो से अलंकृत हाथी के खिलौने, बिल्ली का पीछा करते हुए कुत्ते के पद चिन्ह।
लोथल हड़प्पा सभ्यता का प्रमुख बन्दरगाह था। लोथल में गढ़ और नगर दोनों एक ही रक्षा प्राचीर से घिरे हैं। लोथल के पूर्वी भाग में जहाज की गोदी (डाॅक-यार्ड) मिली है, जिसका आकार 214×36 मीटर हैं। यहा6से चावल का प्रथम साक्ष्य और फारस की मुहर भी मिली है।
▪कालीबंगा से प्राक हड़प्पा एवं हड़प्पा काल के अवशेष मिले हैं। प्राक् हड़प्पा काल के जुते हुए खेत के साक्ष्य मिले हैं। यहाँ से बेलनाकार मुहरें मिली है। युगल समाधि और प्रतीकात्मक समाधि भी मिली है। प्रत्येक घरों में कुएँ, मातृदेवी की कोई मूर्ति नही मिली है।
▪बनावली में जल निकासी प्रणाली का अभाव था। खिलौने के रूप में हल आकृति मिली है। जौ के अवशेष, तिल व सरसों के ढेर, ताँबे के बाणाग्र। सेलखड़ी व पकाई मिट्टी की मुहरें।
▪सुरकोटड़ा हड़प्पा सभ्यता के पतन को दर्शाता हैं। अन्तिम स्तर से घोड़े की अस्थियाँ, विशेष प्रकार की कब्रगाह तथा तराजू का पलड़ा मिला है।
▪रंगपुर से न तो कोई मुद्रा और न ही कोई मातृदेवी की मूर्ति मिली हैं। यहाँ से कच्ची ईटों का दुर्ग मिला है तथा रोजदी से हाथी के अवशेष मिले हैं।
▪कोटदीजी से प्राप्त मुख्य अवशेष - बाणाग्र, काँस्य की चुड़ियाँ, हथियार। यहाँ से पत्थर के बाणाग्र और किले बन्दी के साक्ष्य भी मिले हैं।
▪ धौलावीरा एवं राखीगढ़ी भारत में खोजे गए सबसे बड़े हड़प्पाकालीन नगर हैं। हड़प्पा, मोहनजोदड़ो व गनेड़ीवाल धौलावीरा से बड़े है लेकिन ये तीनों पाकिस्तान में है। धौलावीरा चौथा सबसे बड़ा हड़प्पाकालीन नगर हैं। धौलावीरा से खेल का स्टेडियम तथा सूचना पट्ट, साईन बोर्ड के साक्ष्य मिले हैं। यहाँ से बाँध निर्माण (जल संग्रहण) व नहर प्रणाली के साक्ष्य भी मिले हैं।
▪रोपड़ की खुदाई में हड़प्पा से लेकर गुप्त व मध्य काल तक की संस्कृति के 5 स्तरीय क्रम मिले हैं।
▪माँडा चिनाब नदी के दांये तट पर अखनूर के पास स्थित है

 भवन निर्माण व नगर नियोजन 
? हड़प्पा सभ्यता की सबसे प्रभावशाली विशेषता उसकी नगर योजना एवं जल निकासी प्रणाली हैं। नगर योजना जाल पद्धति (ग्रीड पैटर्न) पर आधारित है।सड़कें व गलिया योजनानुसार निर्मित की गई। नगर की प्रमुख सड़क को प्रथम सड़क कहा जाता था। नगर में प्रवेश पूर्वी सड़क से होता था। जहाँ ये प्रथम सड़क से मिलती थी उसे ओक्सफोर्ड सर्कस कहा जाता था। सड़कें मिट्टी की बनी होती थी। मोहनजोदड़ो की सबसे चौड़ी सड़क 10 मीटर से कुछ ज्यादा चौड़ी थी। नालियाँ - जल निकासी प्रणाली सिन्धु सभ्यता की अद्वितीय विशेषता थी। नालियाँ ईटों व पत्थरों से ढकी हुई होती थी। घरों से जल निकासी मोरिया द्वारा होती थी, जो मुख्य नालियों में गिरती थी।

हड़प्पा सभ्यता का सामाजिक, राजनैतिक, धार्मिक व राजनैतिक जीवन बहुत ही उत्तम अवस्था में था। हड़प्पा की लिपि को अभी तक पढने में सफलता नहीं मिली है। यह भावचित्रात्मक लिपि हैं तथा उनकी लिखावट क्रमशः दाँयी ओर से बाँयी ओर जाती हैं। हड़प्पा लिपि के 64 मूल चिन्ह एवं 250 से 400 तक चित्राक्षर हैं। अधिकांश लिपि के नमूने सेलखड़ी की मुहरों पर मिले हैं। हड़प्पा सभ्यता में माप तौल में मानकीकृत व्यवस्था थी जो 16 के अनुपात में थी। हड़प्पा सभ्यता की मुहरों पर सर्वाधिक अंकित पशु एक श्रृंग पशु है। कुछ मुहरों पर देवताओं के चित्र भी अंकित है।

0 Comments

Leave a Reply Cancel

Add Comment *

Name*

Email*

Website