जन्म- 9 सितम्बर 1880 स्थान - जयपुर परिवार- जैन परिवार मे
प्रसतावना:- अर्जून लाल सेठी ने ई.1905मे जैन शिक्षा प्रचारक समिति तथा उसके अधिन विद्धालय छात्रावास एवं पुस्तकाल्य का संचालन किया ।इन संस्थाओ में सेठिजी ने क्रांतिकारियों को प्रशिक्षित करने का काम किया । उनका सम्बन्ध रास बिहारी बोस , शचिन्द्र सान्य एवं मास्टर अमिचंद जैसे क्रंतिकारियों से हो गया। इन क्रांतिकारियो द्वारा भारत भर मे सशस्त्र क्रांति की योजनाएं बनायी जाती थी । राजस्थान मे ईस क्रांति का जिम्मा केसरीसिंह बारहठ ,खरवा ठाकुर गोपालसिंह खरवा ,ब्यावर के सेठ दामोदर दास राठी और जयपुर के अर्जुन लाल सेठी को सौंपा गया । सेठी का यह कार्य था कि वे अपने विद्धालय में नवयुवकों को क्रांति के लिए तैयार करे । प्रतापसिंह बारहठ, माणकचन्दं (शोलापुर) और विष्णूदत (मिर्जापुर) ने वर्द्धमान विद्धालय में ही क्रांति का प्रशिक्षण प्राप्त किया ।
देश भर में सशस्त्र क्रांति के आयोजन के लिये धन की पूर्ति करने हेतू वर्द्धमान विद्धालय के चार छात्रो ने विष्णूदत्त के नेत्रित्व मे बिहार के आरा जिले में निमेज के एक जैन मंहत पर डाका डाला । मंहत मारा गया किंतु धन कि प्राप्ति नही हुई । इस काण्ड के साथ सेठी का नाम भी जुड गया । उन्हें जयपुर मे नजर बंद राखा गया । उसके बाद उन्हें मद्रास प्रेसीडेन्सी की वैलुर जेल भेज दिया गया । सात वर्ष बाद ई.1920 में उन्हे छोडा गया । जब सेठीजी जेल से छुटकर राजस्थान लौट रहे थे। तब बालगंगाधर तिलक ने दो हजार लोगों के साथ पूना रेल्वे स्टेशन पर उनका भव्य स्वागत किया । छात्रों ने बग्घी के घोडे खोलकर उनकी बग्घी हाथो से खींचा । वैलुर आने के बाद सेठिजी ने अजमेर को अपनी कर्मभुमि बनाया । ई.1920-21में असहयोग आंदोलन में भाग लेने पर उन्हे सागर जेल भेज दिया गया । डेढ वर्ष बाद जेल रिहाई होने पर वे पुन: अजमेर आ गये । इस बार गांधिजी से उनका गहरा मतभेद हो गया ।ई.1934 में गांधिजी अजमेर आये तथा सेठी से गले मिलकर रू पडे ।गांधीजी की प्रेरणा से अब उन्होने हिन्दू मूस्लिम एकता का काम आरंभ किया ।23दिसम्बर 1945 को उनका निधन हो गया । उनका देहांत हो जाने पर उनकी ईच्छानुसार उन्हें दफनाया गया ।
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