नाम – इंदिरा गांधी
जन्म – 19 नवंबर 1917
जन्मस्थान – इलाहाबाद (उत्तर प्रदेश)
समाधि स्थल - शक्ति स्थल
पिता – पंडित जवाहरलाल नेहरु
माता – कमला जवाहरलाल नेहरु
उपलब्धि – देश की पहली महिला प्रधानमंत्री (1966, 1967, 1971, 1980)
इंदिरा गाँधी का परिचय ( Introduction of Indira Gandhi )
भारत की प्रथम और अब तक एक मात्र महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी। एक ऐसी महिला जो न केवल भारतीय राजनीति पर छाई रहीं बल्कि विश्व राजनीति के क्षितिज पर भी वह विलक्षण प्रभाव छोड़ गईं। यही वजह है कि उन्हें लौह महिला के नाम से संबोधित किया जाता है। वे भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस का केंद्र बिंदु भी थी। इंदिरा गाँधी जिन्होंने 1966 से 1977 और बाद में फिर से 1980 से 1984 में उनकी हत्या तक उन्होंने देश की सेवा की। श्रीमती इंदिरा गांधी का जन्म नेहरु खानदान में हुआ था। वह भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु की इकलौती पुत्री थीं। नेहरु के प्रधानमंत्री रहते ही उन्होंने सरकार के अन्दर अच्छी पैठ बना ली थी। एक राजनैतिक नेता के रूप में इंदिरा गांधी को बहुत निष्ठुर माना जाता है।
प्रधानमंत्री के तौर पर उन्होंने प्रशासन का जरुरत से ज्यादा केन्द्रीयकरण किया। उनके शासनकाल में ही भारत में एकमात्र आपातकाल लागू किया गया और सारे राजनैतिक प्रतिद्वंदियों को जेल में ठूस दिया गया। भारत के संविधान के मूल स्वरुप का संसोधन जितना उनके राज में हुआ, उतना और किसी ने कभी भी नहीं किया। उनके शासन के दौरान ही बांग्लादेश मुद्दे पर भारत-पाक युद्ध हुआ और बांग्लादेश का जन्म हुआ। पंजाब से आतंकवाद का सफाया करने के लिए उन्होंने अमृतसर स्थित सिखों के पवित्र स्थल ‘स्वर्ण मंदिर’ में सेना और सुरक्षा बलों के द्वारा ‘ऑपरेशन ब्लू स्टार’ को अंजाम दिया। इसके कुछ महीनों बाद ही उनके अंगरक्षकों ने उनकी हत्या कर दी। आज इंदिरा गांधी को सिर्फ इस कारण नहीं जाना जाता कि वह पंडित जवाहरलाल नेहरु की बेटी थीं बल्कि इंदिरा गांधी अपनी प्रतिभा और राजनीतिक दृढ़ता के लिए ‘विश्वराजनीति’ के इतिहास में हमेशा जानी जाती रहेंगी।
इंदिरा गांधी का प्रारंभिक जीवन ( Early life of Indira Gandhi )
इंदिरा गांधी का जन्म 19 नवंबर 1917 को उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में एक संपन्न व राजनीतिक रूप से प्रभावशाली परिवार में हुआ था। उनका पूरा नाम था-‘ इंदिरा प्रियदर्शिनी ’। उन्हें एक घरेलू नाम भी मिला था जो इंदिरा का संक्षिप्त रूप ‘इंदु’ था। उनके पिता का नाम जवाहरलाल नेहरु और दादा का नाम मोतीलाल नेहरु था। इंदिरा, जवाहरलाल नेहरु की अकेली बेटी थी ( उसे एक छोटा भाई भी था, लेकिन वो बचपन में ही मारा गया ) पिता एवं दादा दोनों वकालत के पेशे से संबंधित थे और देश की स्वतंत्रता में उनका महत्वपूर्ण योगदान था। माता का नाम कमला नेहरु था।
उनका ‘इंदिरा’ नाम उनके दादा पंडित मोतीलाल नेहरु ने रखा था। जिसका मतलब होता है कांति, लक्ष्मी, एवं शोभा। इस नाम के पीछे की वजह यह थी कि उनके दादाजी को लगता था कि पौत्री के रूप में उन्हें मां लक्ष्मी और दुर्गा की प्राप्ति हुई है। इंदिरा बेहद खूबसूरत दिखने के कारण पंडित नेहरु उन्हें ‘प्रियदर्शिनी’ के नाम से संबोधित किया करते थे। चूंकि जवाहरलाल नेहरु और कमला नेहरु स्वयं बेहद सुंदर तथा आकर्षक व्यक्तित्व के मालिक थे, इस कारण सुंदरता उन्हें अपने माता-पिता से प्राप्त हुई थी। इन्दिरा को उनका ‘गांधी’ उपनाम फिरोज गांधी से विवाह के बाद मिला था। (इनका महात्मा गाँधी से कोई संबंध नही था).
इंदिरा जी का जन्म ऐसे परिवार में हुआ था जो आर्थिक एवं बौद्धिक दोनों दृष्टि से काफी संपन्न था। उनके परिवार की बहुत संपत्ति थी। इंदिरा का बचपन बहुत नाराज़ और अकेलेपन से भरा पड़ा था। उनके पिता राजनैतिक होने के वजह से कई दिनों से या तो घर से बाहर रहते और या तो जेल में बंद रहते (हमेशा स्वतंत्रता आंदोलन में व्यस्त रहे), उनकी माता को बिमारी होने की वजह से वह पलंग पर ही रहती थी। और बाद में उनकी माता को जल्दी ही ट्यूबरकुलोसिस की वजह से मृत्यु प्राप्त हुई। और इंदिरा का अपने पिताजी के साथ ज़्यादा संबंध नही था। ज्यादातर वे पत्र व्यवहार ही रखते थे।
इंदिरा गांधी की शिक्षा ( Indira Gandhi's education )
पंडित नेहरु शिक्षा का महत्त्व काफी अच्छी तरह समझते थे। यही कारण था ज्यादातर उन्हे घर पर ही पढाया जाता था। बाद में एक स्कूल में उनका दाखिला करवाया गया। वो दिल्ली में मॉडर्न स्कूल, सेंट ससिल्लिया और सेंट मैरी क्रिस्चियन कान्वेंट स्कूल, अल्लाहाबाद की विद्यार्थी रह चुकी है। साथ ही एकोले इंटरनेशनल, जिनेवा, एकोले नौवेल्ले, बेक्स और पुपिल्स ओन स्कूल, पुन और बॉम्बे की भी विद्यार्थिनी रह चुकी है।
1934-35 में अपनी स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद इंदिरा ने शांतिनिकेतन में रवीन्द्रनाथ टैगोर के बनाए गए ‘विश्व-भारती विश्वविद्यालय’ में प्रवेश लिया। एक साल बाद उन्होंने वह विश्वविद्यालय अपनी माता के अस्वस्थ होने की वजह से छोड़ दिया और 1937 में उन्होंने ऑक्सफोर्ड में दाखिला लिया। इसके बाद उन्होने खुद को लंदन के बैडमिंटन स्कूल में डाला। इंदिरा ने वहा दो बार एंट्रेंस की एग्ज़ॅम दी क्यूंकी लैटिन भाषा में उनकी ज्यादा पकड़ नही थी। ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय में, वो इतिहास, राजनितिक विज्ञानं और अर्थशास्त्र में अच्छी थी लेकिन लैटिन में इतनी अच्छी नहीं थी, जो आवश्यक विषय था।
यूरोप में रहते उन्हे किसी बड़ी बीमारी ने घेर लिया था कई डॉक्टर से उन्होने इलाज कराया क्यूंकी वे जल्द से जल्द ठीक होना चाहती थी ताकि फिर से अपनी पढाई पर ध्यान दे सके। जब नाज़ी आर्मी तेज़ी से यूरोप की परास्त कर रही थी उस समय इंदिरा वहा पढ़ रही थी। इंदिरा जी ने पुर्तगाल से इंग्लैंड आने के कई प्रयास भी किये लेकिन उनके पास 2 महीने का ही स्टैण्डर्ड बचा हुआ था। लेकिन 1941 में आखिर वे इंग्लैंड आ ही गयी। और वहा से अपनी पढाई पूरी किये बिना ही भारत वापिस आ गयी। बाद में उनके विश्वविद्यालय ने आदरपूर्वक डिग्री प्रदान की. 2010 में, ऑक्सफ़ोर्ड ने 10 आदर्श विद्यार्थियों में उनका नाम लेकर उन्हें सम्मान दिया। इंदिरा ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय में एशिया की एक आदर्श महिला थी।
बचपन से ही इंदिरा गांधी को पत्र पत्रिकाएं तथा पुस्तकें पढ़ने का बहुत शौक था जो स्कूल के दिनों में भी जारी रहा। इसका एक फायदा उन्हें यह मिला कि उनके सामान्य ज्ञान की जानकारी सिर्फ किताबों तक ही सीमित नहीं रही बल्कि उन्हें देश दुनिया का भी काफी ज्ञान हो गया और वह अभिव्यक्ति की कला में निपुण हो गयी।
इसके बावजूद वह पढ़ाई में कोई विशेष दक्षता नहीं दिखा पायीं और औसत दर्जे की छात्रा ही रहीं। अंग्रेजी के अतिरिक्त अन्य विषयों में वह कोई विशेष दक्षता नहीं प्राप्त कर सकीं। लेकिन अंग्रेजी भाषा पर उन्हें बहुत अच्छी पकड़ थी। इसकी वजह थी पिता पंडित नेहरू द्वारा उन्हें अंग्रेजी में लिखे गए लंबे-लंबे पत्र। चुकि पंडित नेहरु अंग्रेजी भाषा के इतने अच्छे ज्ञाता थे कि लॉर्ड माउंटबेटन की अंग्रेजी भी उनके सामने फीकी लगती थी।
इंदिरा गाँधी की शादी ( Indira Gandhi's marriage )
ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में अध्ययन के दौरान इनकी मुलाकात पारसी युवक फिरोज़ गाँधी से अक्सर होती थी, जो लंदन स्कूल ऑफ इकॉनॉमिक्स में अध्ययन कर रहे थे। फ़िरोज़ को इंदिरा इलाहाबाद से ही जानती थीं। भारत वापस लौटने पर दोनों का प्रेम विवाह 16 मार्च 1942 को आनंद भवन, इलाहाबाद, में हुआ।
हालाँकि पिता पंडित मोतीलाल नेहरू पहले इस हादी के खिलाफ थे। और उन्होने अपनी बेटी को बहुत समझने का कोशिश किए. लेकिन इंदिरा की जिद मे आडी रही। तब कोई भी रास्ता निकलता न देखकर नेहरू जी ने अपनी हामी भर दी।
शादी के बाद 1944 में उन्होंने राजीव गांधी और इसके दो साल के बाद संजय गांधी को जन्म दिया। शुरूआत में तो उनका वैवाहिक जीवन ठीक रहा लेकिन बाद में उसमें खटास आ गई और कई सालों तक उनका रिश्ता हिचकोलें खाता रहा। इसी दौरान 8 सितंबर 1960 को जब इंदिरा अपने पिता के साथ एक विदेश दौरे पर गई हुईं थीं तब फिरोज गांधी की मृत्यु हो गई।
स्वतन्त्रता में इंदिरा गाँधी की भागीदारी ( Indira Gandhi's participation in independence )
इंदिरा गांधी को परिवार के माहौल में राजनीतिक विचारधारा विरासत में प्राप्त हुई थी। उनके पिता और दादा भारत के स्वतंत्रता आन्दोलन के प्रमुख नेताओं में से एक थे। इस माहौल का असर इंदिरा पर भी पड़ा। उन्होंने युवा लड़के-लड़कियों के मदद से एक वानर सेना बनाई, जो विरोध प्रदर्शन और झंडा जुलूस के साथ-साथ संवेदनशील प्रकाशनों तथा प्रतिबंधित सामग्रीओं का परिसंचरण भी करती थी। लन्दन में अपनी पढाई के दौरान भी वो ‘इंडियन लीग’ की सदस्य बनीं। इंदिरा ऑक्सफोर्ड से सन 1941 में भारत वापस लौट आयीं। आने के बाद वे भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन में शामिल हो गयीं। स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान उन्हें सितम्बर 1942 में गिरफ्तार कर लिया गया जिसके बाद सरकार ने उन्हें मई 1943 में रिहा किया।
विभाजन के बाद फैले दंगों और अराजकता के दौरान इंदिरा गाँधी ने शरणार्थी शिविरों को संगठित करने तथा पाकिस्तान से आये शरणार्थियों व चिकित्सा संबंधी देखभाल करने का महत्वपूर्ण कार्य किया। उनके लिए प्रमुख सार्वजनिक सेवा का यह पहला मौका था।
इंदिरा गाँधी की राजनैतिक जीवन की शुरुआत ( Indira Gandhi's political life begins )
जवाहरलाल नेहरू को अंतरिम सरकार के गठन के साथ कार्यवाहक प्रधानमंत्री बना दिए थे। इसके बाद नेहरू की राजनैतिक सक्रियता और अधिक बढ़ गई। इसके साथ-साथ, उम्रदराज़़ हो रहे पिता की आवश्यकताओं को देखने की जिम्मेदारी भी इंदिरा पर ही पड़ गयी। वह पंडित नेहरु की विश्वस्त, सचिव और नर्स बनीं। पिता की मदद करते-करते उन्हें राजनीति की भी अच्छी समझ हो गयी थी। कांग्रेस पार्टी की कार्यकारिणी में इन्हें सन 1955 में ही शामिल कर लिया गया था। पंडित नेहरू इनके साथ राजनैतिक परामर्श करते थे और उन पर अमल भी करते थे।
इंदिरा गाँधी कांग्रेस अध्यक्ष कब और कैसे बनी
धीरे-धीरे पार्टी में उनका कद काफी बढ़ गया। 42 वर्ष की उम्र में 1959 में वह कांग्रेस पार्टी की अध्यक्ष भी बन गईं। इस पर कई आलोचकों ने दबी जुबान से पंडित नेहरू को पार्टी में परिवारवाद फैलाने का दोषी ठहराया था पर पंडित नेहरु की शक्शियत इतनी बड़ी थी की इन बातों को ज्यादा तूल नहीं मिला। फिर 27 मई 1964 को नेहरू के निधन के बाद इंदिरा चुनाव जीतकर शास्त्री सरकार मे सूचना और प्रसारण मंत्री बन गईं।
इंदिरा गाँधी कब और कैसे बनी देश की पहली महिला प्रधानमंत्री
11 जनवरी 1966 को भारत के दूसरे प्रधानमंत्री श्री लालबहादुर शास्त्री की असामयिक मृत्यु के बाद कांग्रेस अध्यक्ष के. कामराज ने इंदिरा का नाम प्रधानमंत्री पद के लिए सुझाया पर वरिष्ठ नेता मोरारजी देसाई ने भी प्रधानमंत्री पद के लिए स्वयं का नाम प्रस्तावित कर दिया। कांग्रेस संसदीय पार्टी द्वारा मतदान के माध्यम से इस गतिरोध को सुलझाया गया और इंदिरा गाँधी भारी मतों से विजयी हुई। 24 जनवरी 1966 को श्रीमती इंदिरा गांधी भारत की तीसरी और प्रथम महिला प्रधानमंत्री बनीं।
इंदिरा जी के प्रधानमंत्री बनते ही वैचारिक मत-भेद होने के कारण पार्टी दो समूहो मे बॅट गया। समाजवादी का नेतृत्व इंदिरा गाँधी ने संभाला और रूढ़िवादी का मेरारजी देसाई ने 1967 के चुनाव मे 545 सीटो मे कांग्रेस को 297 मे जीत मिली। इन्हे बेमन से देसाई जी को उप-प्रधानमंत्री बनाना पढ़ा। मोरारजी देसाई के नेतृत्व में एक खेमा इंदिरा गाँधी का निरंतर विरोध करता रहा जिसके परिणाम स्वरुप सन 1969 में कांग्रेस का विभाजन हो गया। समाजवादी और साभयवादी दलो के साझे से इंदिरा ने दो वर्षो से शासन चलाया।
पार्टी और देश में अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए इंदिरा गाँधी ने लोकसभा भंग कर मध्यावधि चुनाव की घोषणा कर दी जिससे विपक्ष भौचक्का रह गया। इंदिरा गाँधी ने ‘ग़रीबी हटाओं’ नारे के साथ चुनाव में उतरीं और धीरे-धीरे उनके पक्ष में चुनावी माहौल बनने लगा और कांग्रेस को बहुतमत प्राप्त हो गया। कुल 518 में से 352 सीटें कांग्रेस को मिलीं।
(1975 -1977) इंदिरा गाँधी की सरकार मे आपातकाल (Emergency) कब और कैसे लगा
इस चुनाव में इंदिरा गाँधी को भारी सफलता मिली थी और उन्होंने विभिन्न क्षेत्रों में विकास के नए कार्यक्रम भी लागू करने की कोशिश की थी पर देश के अन्दर समस्याएं बढती जा रही थीं। महँगाई के कारण लोग परेशान थे। युद्ध के आर्थिक बोझ के कारण भी आर्थिक समस्यांए बढ़ गयी थीं।
इसी बीच सूखा और अकाल ने स्थिति और बिगाड़ दी। उधर अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में पेट्रोलियम बढती कीमतों से भारत में महँगाई बढ़ रही थी और देश का विदेशी मुद्रा भंडार पेट्रोलियम आयात करने के कारण तेजी से घटता जा रहा था। कुल मिलकर आर्थिक मंदी का दौर चल रहा था जिसमें उद्योग धंधे भी चौपट हो रहे थे। बेरोज़गारी भी काफ़ी बढ़ चुकी थी और सरकारी कर्मचारी महँगाई से त्रस्त होने के कारण वेतन-वृद्धि की माँग कर रहे थे। इन सब समस्याओं के बीच सरकार पर भ्रस्टाचार के आरोप भी लगने लगे।
साथ ही इंदिरा गाँधी ने दो बार विपक्षी द्वारा संचालित राज्यो को सविधान की धारा 356 के तहत ‘अराजक’ घोषित कर उन पर राष्ट्रपति शासन लागू करवा दी। जिस कारण पक्ष के भी कुछ नामी नेता और विपक्ष के नेता सरकार के खिलाफ हो गये।. राज नारायण जो की राई बरेली से चुनाव लड़ते थे और हर जाते थे। वे हमेशा इंदिरा के खिलाफ रहते थे।
राज नारायण ने एक चुनाव याचिका दायर की और 12 जून 1975 मे इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इंदिरा गाँधी के चुनाव रद्द कर दिया और उन्हें छह वर्षों के लिए चुनाव लड़ने से भी प्रतिबंधित कर दिया। इंदिरा ने इस फैसले के ख़िलाफ़ सर्वोच्च न्यायालय में अपील की और न्यायालय ने 14 जुलाई का दिन तय किया पर विपक्ष को 14 जुलाई तक का भी इंतज़ार गवारा नहीं था। जय प्रकाश नारायण और समर्थित विपक्ष ने आंदोलन को उग्र रूप दे दिया।
इन परिस्थितियों का मुकाबला करने के लिए 26 जून, 1975 को प्रातः देश में राष्ट्रपति द्वारा आपातकाल की घोषणा कर दी गई और जयप्रकाश नारायण, मोरारजी देसाई और अन्य हजारों छोटे-बड़े नेताओं को गिरफ़्तार करके जेल में डाल दिया गया। सरकार ने अखबार, रेडियो और टी.वी. पर सेंसर लगा दिया। मौलिक अधिकार भी लगभग समाप्त हो गए थे।
इंदिरा गाँधी की सत्ता मे वापसी
इसके बाद 1977 मे चुनाव हुए. शायद इंदिरा गाँधी स्थिति का सही मूल्याकंन नहीं कर पायी थीं। अब जनता का समर्थन विपक्ष को मिलने लगा जिससे विपक्ष अधिक सशक्त होकर सामने आ गया। ‘जनता पार्टी’ के रूप में एकजुट विपक्ष और उसके सहयोगी दलों को 542 में से 330 सीटें प्राप्त हुईं जबकि इंदिरा गाँधी की कांग्रेस पार्टी मात्र 154 सीटें ही हासिल कर सकी। इस नतीजे के बाद इंदिरा के आत्मविश्वास को गहरा आघात पहुँचा. यहाँ तक की इंदिरा और संजय के गिरफ्तारी के आदेश भी मिल गये थे।
मोरारजी देसी के नेतृत्व में जनता पार्टी ने 23 मार्च 1977 को सरकार बनायी पर यह सरकार शुरुआत से ही आतंरिक कलह से जूझती रही और अंततः अंतर्कलह के कारण अगस्त 1979 में यह सरकार गिर गई। परंतु इंदिरा अभी भी निलंभित थी जिस कारण चरण सिंह को प्रधानमंत्री का कमान सोपा गया। जनता पार्टी के शासनकाल में इंदिरा गाँधी पर अनेक आरोप लगाए गए और कई कमीशन जाँच के लिए नियुक्त किए गए। उन पर देश की कई अदालतों में मुक़दमे भी दायर किए गए और सरकारी भ्रष्टाचार के आरोप में श्रीमती गाँधी कुछ समय तक जेल में भी रहीं।
जनता पार्टी सरकार चलाने में असफल रही और देश को मध्यावधि चुनाव का भार झेलना पड़ा। दूसरी ओर इंदिरा गाँधी के साथ हो रहे व्यवहार के कारण जनता को इंदिरा गाँधी के साथ सहानुभूति बढ़ रही थी। इंदिरा गाँधी ने आपातकाल के लिए जनता से माफ़ी मांगी जिसके परिणामस्वरूप उनकी पार्टी को 592 में से 353 सीटें प्राप्त हुईं और इंदिरा गाँधी पुनः प्रधानमंत्री बन गईं।
एक नजर में इंदिरा गांधी की जानकारी
सन 1966 में भारत के द्वितीय प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री की अकस्मात् मृत्यु के बाद श्रीमती इंदिरा गाँधी भारत की प्रधानमंत्री चुनी गयीं।
1967 के चुनाव में वह बहुत ही कम बहुमत से जीत पायीं और प्रधानमंत्री बनीं।
सन 1971 में एक बार फिर भारी बहुमत से वे प्रधामंत्री बनी और 1977 तक रहीं।
1980 में एक बार फिर प्रधानमंत्री बनीं और 1984 तक प्रधानमंत्री के पद पर रहीं।
1972 में इंदिराजी ने पाकिस्तान से व्दिपक्षीय ‘शिमला समझौता’ करके अपना मुस्तद्देगिरी का दर्शन कराया।
ऑपरेशन ब्ल्यू स्टार ( Operation Blue Star )
1983 में नयी दिल्ली में अलिप्तवादी राष्ट्र की परिषद के सातवें शिखर सम्मेलन हुआ। इस परिषद् के पैसे ही असम्बद्ध राष्ट्र आंदोलन का नेतृत्व इंदिरा गांधी इनके तरफ सौपा गया। पाकिस्तान ने चिढानेसे पंजाब के शिख अतिरेकी पंजाब के स्वतंत्र ‘खलिस्तान’ नाम के राष्ट्र निर्माण करणे के लिये नुक़सानदेह कार्यवाही की जा रही थी। सितम्बर 1981 में भिंडरावाले का आतंकवादी समूह हरिमन्दिर साहिब परिसर के भीतर तैनात हो गया।
आतंकवादियों का सफाया करने के प्रयास में इंदिरा गाँधी ने सेना को धर्मस्थल में प्रवेश करने का आदेश दिया। इस कार्यवाई के दौरान हजारों जाने गयीं और सिख समुदाय में इंदिरा गाँधी के विरुद्ध घोर आक्रोश पैदा हुआ। सैनिकी कार्यवाही करके देशद्रोही अतिरेकी को मारना पडा। इस घटने से कुछ लोगो को गुस्सा आया. इसका परिणाम 31 अक्टूबर 1984 में सतवंत सिंग और बेअंत सिंग इन अंगरक्षकों ने गोली मारके उनकी हत्या की।
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