शहीद हेमू कालाणी का जन्म और बचपन - 23 मार्च 1924 को हेमू कालाणी का जन्म अविभाजित भारत के
सिंध प्रदेश के सक्खर जिले में हुआ था।हेमू के पिता का नाम श्री
वेसुमल एवं दादा का नाम मेघराम कालाणी था। Hemu Kalani
हेमू बचपन से साहसी तथा विद्यार्थी जीवन से ही क्रांतिकारी
गतिविधियों में सक्रिय रहे। Hemu Kalani हेमू कालाणी जब मात्र
7 वर्ष के थे तब वह तिरंगा लेकर अंग्रेजो की बस्ती में अपने दोस्तों
के साथ क्रांतिकारी गतिविधियों का नेतृत्व करते थे।
1942 में 19 वर्षीय किशोर क्रांतिकारी ने अंग्रेजो भारत छोड़ो नारे के साथ अपनी टोली के साथ सिंध प्रदेश में तहलका मचा दिया था और उसके उत्साह को देखकर प्रत्येक सिंधवासी में जोश आ गया था।Hemu Kalani हेमू समस्त विदेशी वस्तुओ का बहिष्कार करने के लिए लोगो से अनुरोध किया करते थे। शीघ्र ही सक्रिय क्रान्तिकारी गतिविधियों में शामिल होकर उन्होंने हुकुमत को उखाड़ फेंकने के संकल्प के साथ राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम के क्रियाकलापों में भाग लेना शूरू कर दिया।अत्याचारी फिरंगी सरकार के खिलाफ छापामार गतिविधियों एवं उनके वाहनों को जलाने में हेमू सदा अपने साथियों का नेतृत्व करते थे।
Hemu Kalani हेमू ने अंग्रेजो की एक ट्रेन, जिसमे क्रांतिकारियों का दमन करने के लिए हथियार एवं अंग्रेजी अफसरों का खूखार दस्ता था। उसे सक्खर पुल में पटरी की फिश प्लेट खोलकर गिराने का कार्य किया था जिसे अंग्रेजो ने देख लिया था। 1942 में क्रांतिकारी हौसले से भयभीत अंग्रजी हुकुमत ने Hemu Kalani हेमू की उम्र कैद को फाँसी की सजा में तब्दील कर दिया। पुरे भारत में सिंध प्रदेश में सभी लोग एवं क्रांतिकारी संघठन हैरान रह गये और अंग्रेज सरकार के खिलाफ विरोध प्रकट
शिक्षा शहीद हेमू कालानी का जन्म 23 मार्च 1923 को सिंध इलाके के सवचार स्थान पर हुआ था जो अब पाकिस्तान में है। इनके पिता पेसूमल कालानी एक व्यापारी तथा माता श्रीमती जेठीबाई धार्मिक महिला थी। प्राथमिक कक्षाओं की शिक्षा के उपरांत हाई स्कूल की शिक्षा उसने 1942 में तिलक विद्यालय से उत्तीर्ण की थी। हेमू कालानी के चाचाजी श्री मंघाराम कालानी कांग्रेस के कार्यकर्ता थे। हेमू बचपन से ही उनके कार्यकलापों से प्रभावित थे और उन्ही के कारण हेमू के अन्दर स्वतंत्रता की भावना जागृत हुई। जिस प्रकार शहीद भगतसिंह अपने चाचा अजीतसिंह से प्रभावित हुए उसी प्रकार हेमू पर उनके चाचा मंघाराम जी कालानी का प्रभाव पडा। यह एक संयोग है कि हेमू कालानी की जन्मतिथी तथा शहीद भगतसिंह की पुण्यतिथी एक ही है,23 मार्च। जिस समय भगतसिंह शहीद हुए हेमू की उम्र 8 वर्ष थी। होश संभालते ही हेमू ने क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लेना प्रारंभ कर दिया था। वह प्रारंभ में स्वराज सेना में सम्मिलित होकर इस छात्र संगठन का नेता बन गया। बच्चों के साथ तिरंगा लेकर मार्च करना उसकी दिनचर्या थी। वह अपने साथियों को विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार की शिक्षा देता था। हेमू और उसके साथी स्वदेशी के प्रयोग पर बल देते थे। इन्कलाब जिंदाबाद तथा भारत माता की जय के साथ प्रभातफेरी निकालते थे। इस प्रकार हेमू में स्वतंत्रता की भावना कूट कूट कर भरी हुई थी।
भारत छोडो आन्दोलन 8 अगस्त 1942 को गांधी जी ने अंग्रेजों के विरुध्द भारत छोडो आन्दोलन तथा करो या मरो का नारा दिया। इससे पूरे देश का वातावरण एकदम गर्म हो गया। गांधी जी का कहना था कि या तो स्वतंत्रता प्राप्त करेंगे या इसके लिए जान दे देंगे। अंग्रेजों को बारत छोड कर जाना ही होगा। जनता तथा ब्रिटिश सरकार के बीच लडाई तेज हो गई। अधिकांश कांग्रेसी नेता पकड पकड कर जेल में डाल दिए गए। इससे छात्रों,किसानों,मजदूरों,आदमी,औरतों व अनेक कर्मचारियों ने आन्दोलन की कमान स्वयं सम्हाल ली। पुलिस स्टेशन,पोस्ट आफिस,रेलवे स्टेशन आदि पर आक्रमण प्रारंभ हो गए। जगह जगह आगजनी की घटनाएं होने लगी। गोली और गिरफ्तारी के दम पर आंदोलन को काबू में लाने की कोशिश होने लगी। हेमू कालानी सर्वगुण संपन्न व होनहार बालक था,जो जीवन के प्रारंभ से ही पढाई लिखाई के अलावा अच्छा तैराक,तीव्र साईकिल चालक तथा अच्छा धावक भी था। वह तैराकी में कई बार पुरस्कृत हुआ था। सिंध प्रान्त में भी तीव्र आन्दोलन उठ खडा हुआ तो इस वीर युवा ने आंदोलन में बढ चढकर हिस्सा लिया।
गौरवपूर्ण बहादुरी का कृत्य अक्टूबर 1942 में हेमू को पता चला कि अंग्रेज सेना की एक टुकडी तथा हथियारों से भरी ट्रेन उसके नगर से गुजरेगी तो उसने अपने साथियों के साथ इस ट्रेन को गिराने की सोची। उसने रेल की पटरियों की फिशप्लेट निकालकर पटरी उखाडने तथा ट्रेन को डिरेल करने का प्लान तैयार किया। हेमू और उनके दोस्तों के पास पटरियों के नट बोल्ट खोलने के लिए कोई औजार नहीं थे अत: लोहे की छडों से पटरियों को हटाने लगे,जिससे बहुत आवाज होने लगी। जिससे हेमू और उनके दोस्तों को पकडने के लिए एक दस्ता तेजी से दौडा। हेमू ने सब दोस्तो को भगा दिया किन्तु खुद पकडा गया और जेल में डाल दिया गया।
स्वतन्त्रता संग्राम योगदान जब वे किशोर वयस्क अवस्था के थे तब उन्होंने अपने साथियों के साथ विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार किया और लोगों से स्वदेशी वस्तुओं का उपयोग करने का आग्रह किया. सन् १९४२ में जब महात्मा गांधी ने भारत छोड़ो आन्दोलन चलाया तो हेमू इसमें कूद पड़े। १९४२ में उन्हें यह गुप्त जानकारी मिली कि अंग्रेजी सेना हथियारों से भरी रेलगाड़ी रोहड़ी शहर से होकर गुजरेगी. हेमू कालाणी अपने साथियों के साथ रेल पटरी को अस्त व्यस्त करने की योजना बनाई. वे यह सब कार्य अत्यंत गुप्त तरीके से कर रहे थे पर फिर भी वहां पर तैनात पुलिस कर्मियों की नजर उनपर पड़ी और उन्होंने हेमू कालाणी को गिरफ्तार कर लिया और उनके बाकी साथी फरार हो गए. हेमू कालाणी को कोर्ट ने फांसी की सजा सुनाई. उस समय के सिंध के गणमान्य लोगों ने एक पेटीशन दायर की और वायसराय से उनको फांसी की सजा ना देने की अपील की. वायसराय ने इस शर्त पर यह स्वीकार किया कि हेमू कालाणी अपने साथियों का नाम और पता बताये पर हेमू कालाणी ने यह शर्त अस्वीकार कर दी. २१ जनवरी १९४३ को उन्हें फांसी की सजा दी गई. जब फांसी से पहले उनसे आखरी इच्छा पूछी गई तो उन्होंने भारतवर्ष में फिर से जन्म लेने की इच्छा जाहिर की. इन्कलाब जिंदाबाद और भारत माता की जय की घोषणा के साथ उन्होंने फांसी को स्वीकार किया
शहादत की ओर हेमू कालानी को कठोर यातनाएं दी गई। किया। हेमू को जेल में अपने साथियों का नाम बताने के लिए काफी प्रलोभन और यातनाये दी गयी लेकिन उसने मुह नही खोला और फासी पर झुलना ही बेहतर समझा। फाँसी की खबर सुनकर हेमू कालाणी Hemu Kalani का वजन आठ पौंड बढ़ गया। नन्हे वीर हेमू की माँ ने अपने आंसुओ को रोकना चाहा लेकिन ममतामयी आँखों से असू छलक आये। ममता और निडरता का नजारा देख दुसरे अन्य कैदी रो दिए किन्तु हेमू की आँखों में एक अनोखी चमक थी। माँ की चरण वन्दना करते हुए हेमू ने कहा माँ मेरा सपना पूरा हुआ, अब जननी भारत को आजाद होने से कोई नही रोक सकता। 21 जनवरी 1943 को इस किशोर क्रांतिकारी को फांसी दे दी गयी और भारत की आजादी में शहीद होने वालो में एक नाम ओर जुड़ गया।संसद के प्रवेश द्वार पर अमर शहीद हेमू कालाणी की प्रतिमा देश की आहुति देने वाले भारत के सच्चे सपूत हेमू कालाणी के प्रति सच्ची श्रुधान्जली है। भारत को स्वतंत्र कराने में देश के नन्हे क्रांतिकारी हेमू कालाणी Hemu Kalani का नाम गौरवान्वित एवं अजर अमर रहेगा। 18 अक्टूबर 1983 को देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी एवं शेर-ए-सिंध शहीद हेमू कालाणी की माताजी जेठी बाई कालाणी की उपस्थिथि में नन्हे क्रांतिकारी हेमू कालाणी पर डाक टिकिट जारी किया गया था। गुलामी की जंजीरों में जकड़ी भारत माता को आजाद कराने में दो नन्हे क्रांतिकारियों को कभी नही भुलाया जा सकता है। ये दोनों नन्हे क्रांतिकारी थे-खुदीराम बोस और हेमू कालाणी Hemu Kalani।
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