खिलाफत आंदोलन 1919 से 1922 तक( Khilafat movement from 1919 to 1922)

खिलाफत आंदोलन 1919 से 1922 तक


( Khilafat movement from 1919 to 1922)


खिलाफत का प्रश्न तुर्की के सुल्तान से संबंध रखता था तुर्की का सुल्तान संपूर्ण मुस्लिम जगत का धर्मगुरु खलीफा था  प्रथम विश्व युद्ध में उसने इंग्लैंड के विरुद्ध जर्मनी का साथ दिया था  तुर्की के इस कार्य ने भारतीय मुस्लिम समुदाय को धर्म संकट में डाल दिया था राज भक्ति मांग करती थी कि वह अंग्रेजों का साथ दें और धर्म भक्ति का तकाजा था कि वह अंग्रेजों का विरोध करें  इस संकट से उन्हें इंग्लैंड के प्रधानमंत्री लाँयड जार्ज के इस आश्वासन ने उबारा की खलीफा के रूप में तुर्की के सुल्तान की स्थिति का सम्मान किया जाएगा लेकिन जब युद्ध समाप्त हुआ तो तुर्की के साथ उसी तरह का व्यवहार हुआ जैसा अन्य पराजिता राष्ट्र के साथ होता है प्रथम विश्व युद्ध के बाद ब्रिटेन और तुर्की के मध्य होने वाली सेवर्स की संधि से तुर्की के सुल्तान के समस्त अधिकार छीन गए थे उसके साम्राज्य के मुस्लिम बहुल परदेस भी  सुल्तान से छीन ले गए थे  यह तुर्की के सुल्तान के साथ सरासर धोखा था संसार भर के मुसलमान तुर्की के सुल्तान को अपना खलीफा मानते थे प्रथम विश्व युद्ध में भारतीय मुसलमानों ने तुर्की के खिलाफ अंग्रेजों की इस शर्त पर सहायता की थी कि वह भारतीय मुसलमानों के धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप न करें और साथ ही उनके धर्म स्थलों की रक्षा करें लेकिन युद्ध में इंग्लैंड की विजय के बाद सरकार अपने वादे से मुकर गई इन सभी कार्यों की तीव्र प्रतिक्रिया भारतीय मुसलमानों में हुई भारतीय मुसलमान ब्रिटिश सरकार से नफरत करने लगे और ऐसे मौकों को हिंदू मुस्लिम एकता के लिए उपयुक्त समझा गया इस कारण मुसलमानों ने ब्रिटिश सरकार के विरोध आंदोलन चलाया जिसे खिलाफत आंदोलन कहा गया इस खिलाफत आंदोलन की शुरुआत 31अगस्त 1919 में मौलाना शौकत अली और मौलाना मोहम्मद अली के नेतृत्व में की गई थी महात्मा गांधी ने कांग्रेस द्वारा इसका पूर्ण समर्थन किया इस खिलाफत आंदोलन की दो मांग थी 1-टर्की का विभाजन रद्द कर दिया जाए
2-खलीफा के पद की पुनः स्थापना की जाए गांधी जी ने खिलाफत आंदोलन को हिंदू मुस्लिम एकता का सुनहरा अवसर माना इसके विरोध में सितंबर 1919 में एक खिलाफत कमेटी का गठन किया गया 23 नवंबर 1919 को अखिल भारतीय खिलाफत कमेटी का पहला सम्मेलन दिल्ली में फजलुल हक की अध्यक्षता में हुआ अगले ही दिन 24 नवंबर 1919 को महात्मा गांधी को अखिल भारतीय खिलाफत कमेटी का अध्यक्ष चुना गया गांधी जी ने सुझाव दिया कि ब्रिटिश अन्याय का उत्तर असहयोग आंदोलन और स्वदेशी नीति को अपनाकर दिया जाए गांधीजी का पूरा विश्वास था कि सम्राट की सरकार ने खिलाफत के मामले में कपट नैतिकता और अन्याय पूर्वक काम किया है उनकी यह मान्यता थी कि अगर मैं मुसलमानों को अपना भाई मानता हूं तो यह मेरा कर्तव्य है कि अगर मुझे उनका पक्ष न्याय संगत प्रतीत होता है तो मैं उनके संकट की इस घड़ी में अपनी पूरी क्षमता से उनकी मदद करूं महात्मा गांधी के सुझाव पर अखिल भारतीय खिलाफत कमेटी द्वारा असहयोग और स्वदेशी की नीति अपनाई गई 1918-19 के मध्य भारत में खिलाफत आंदोलन मौलाना मोहम्मद अली ,शौकत अली ,हकीम अजमल खां ,हसरत मोहानी, और अबुल कलाम आजाद के सहयोग से जोर पकड़ा महात्मा गांधी के कहने पर एक शिष्टमंडल डॉक्टर अंसारी की अध्यक्षता में वॉयस राय से मिलने इंग्लैंड गया मार्च 1920 में मौलाना शौकत अली और मोहम्मद अली के नेतृत्व में एक शिष्टमंडल इंग्लैंड गया लेकिन यह दोनों ही दल अपने लक्ष्य की प्राप्ति में असफल रहे 20 जून 1920 को इलाहाबाद में हुई हिंदू मुस्लिम की संयुक्त बैठक में असहयोग आंदोलन के अस्त्र को अपनाए जाने का निर्णय लिया गया लेकिन 31 अगस्त 1920 का दिन खिलाफत दिवस के रुप में मनाने का निर्णय लिया गया सितंबर 1920 में कलकत्ता के विशेष अधिवेशन में लाला लाजपत राय की अध्यक्षता में असहयोग आंदोलन को स्वीकार कर लिया गया लेकिन इस आंदोलन का सबसे प्रमुख विरोध सी.आर.दास ने किया था उनका विरोध विधान परिषदों के बहिष्कार को लेकर था कांग्रेस के अन्य नेताओं जैसे जिन्ना, एनी बेसेंट ,बिपिन चंद्र पाल और जी. एस. खापर्डे ने इसका विरोध किया और कांग्रेस को छोड़ दिया दिसंबर 1920 में नागपुर के कांग्रेस के वार्षिक अधिवेशन से असहयोग आंदोलन का प्रस्ताव अंतिम रुप से पारित कर दिया गया गांधी जी ने इस समय घोषणा की कि 1 वर्ष में आजादी मिल जाएगी अबुल कलाम आजाद ने इस आंदोलन के प्रचार में अपनी पत्रिका अल- हिलाल के माध्यम से सहयोग दिया 1924 में खिलाफत आंदोलन समाप्त हो गया जब तुर्की के कमाल पाशा के नेतृत्व में बनी सरकार ने खलीफा के पद को समाप्त कर दिया था

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का नागपुर अधिवेशन( दिसंबर 1920)​

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नागपुर अधिवेशन में असहयोग Andolan का प्रस्ताव पुन: पारित कर दिया गया इस तरह कलकत्ता अधिवेशन की पुष्टि हो गई थी इसी समय कांग्रेस के संविधान में दो महत्वपूर्ण संशोधन किए गए थे
1-प्रथम संशोधन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के संविधान का जो लक्ष्य ब्रिटिश साम्राज्य के भीतर स्वशासन की था उसके स्थान पर स्वराज का लक्ष्य प्रस्तावित किया गया
2-दूसरा कांग्रेस संगठन में क्रांतिकारी परिवर्तन किए गये और रचनात्मक कार्यक्रम तैयार किये गये इसके प्रमुख कार्यक्रम थे
1- सभी वयस्को को कांग्रेस की सदस्यता प्रदान करना
2-300सदस्यो वाली अखिल भारतीय कांग्रेस समिति का गठन करना
3-जिला तालुका और ग्राम स्तर पर कांग्रेस का एक संस्तर बनाना
4-भाषायी आधार पर प्रांतीय कांग्रेस समितियों का पुनर्गठन
5-स्वदेशी विशेष हाथ की कताई और बुनाई को प्रोत्साहन  देना
6- हिंदुओं में अस्पष्टता का निवारण
7-हिंदू मुस्लिम एकता का संवर्धन तथा यथासंभव हिंदी का प्रयोग

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