?1236 ईस्वी से 1246 ईस्वी के बीच शम्शी राजवंश के चार राजकुमार सिंहासन पर बैठाए गए और बाद में उनकी हत्या कर दी गई
?नासिरुद्दीन इल्तुतमिश का पोत्र और शम्शी वंश का पांचवा और अंतिम शासक था
?शासक बनने से पूर्व वह बहराइच का हाकिम था इस दौरान उसने अपनी कुशलता का परिचय दे दिया था
?नासिरुद्दीन महमूद धार्मिक स्वभाव का था वह खाली समय में कुरान की नकल करता था
?27 मई 1246ईस्वी को हरे राज महल (कैसरे-सन्ज) में नासिरुद्दीन महमूद का सिंहासनारूढ़ हुआ,2 दिन पश्चात वह केसरे-फिरोज नामक शाही महल में दरबार में उपस्थित हुआ और जनता ने उसके प्रति निष्ठा प्रकट की
?सुल्तान नसीरुद्दीन संत स्वभाव का था राजनीतिक और प्रशासनिक कार्य में उसकी रुचि बहुत कम थी
? का अधिकतम समय नासिरुद्दीन महमूदधार्मिक कार्य और नमाज पढ़ने में व्यतीत होता था वह कुरान की नकल करता था और उसी को बेचकर अपने परिवार का भरण पोषण करता था
?उसे हस्त लिपि का शौक था वह अपने समय का श्रेष्ठ सुलेखक था
?इतिहासकार मिनहाज उद्दीन सिराज के अनुसार नासिरुद्दीन दिल्ली का आदर्श सुल्तान था उसने अपनी रचना "तबकात -ए -नासिरी"उसे ही समर्पित की
?नासिरुद्दीन महमूद के काल में मिनहाज उल सिराज मुख्य काजी के पद पर था,नासिरुद्दीन महमूद नाम मात्र का शासक था
?सत्ता प्राप्त करने के बाद उसने यह अनुभव किया कि इससे पूर्व जिन सुल्तानों की हत्या हुई थी उन्होंने तुर्की सरदारों की शक्ति का विरोध किया था
?उस के समय में तुर्क सरदार शक्तिशाली थे जिसका नेता बलबन था अतः उसने अपने शासन की बागडोर बलबन के हाथों में सौंप दी जिससे तुर्की अमीरों के वैमनस्यता का सामना उसे नहीं करना पड़ा
?फलत:राज्य शक्ति के लिए जो संघर्ष सुल्तान और तुर्की सरदारों के मध्य चल रहा था वह समाप्त हो गया
?नासिरुद्दीन की स्थिति का वर्णन करते हुए इतिहासकार इसामी ने लिखा है कि--वह बिना उनकी (तुर्की अधिकारियों) पूर्व आज्ञा के अपनी कोई राय व्यक्त नहीं करता थ, वह बिना उनकी आज्ञा के हाथ-पैर नहीं हिलाता था, वह बिना उनकी जानकारी के न पानी पीता था और ना सोता था
?डॉक्टर के.ए.निजामी ने लिखा है कि-- वह आत्म समर्पण पूर्ण था। नासिरुद्दीन के शासनकाल में कुछ समय को छोड़कर शासन सत्ता पूर्ण रूप से और उसके नायब बलबन के हाथों में थी
??बलबन का उत्कर्ष??
?सत्ता प्राप्त करने के बाद नासिरुद्दीन ने अपनी सारी शक्ति चालीसा के दल के नेता बलबन के हाथों में सौंप दी।आरंभ में बलबन "अमीर- ए -हाजिब"था
?सुल्तान पर अपना प्रभाव स्थापित करने और अपनी स्थिति को अधिक सुदृढ़ करने के लिए 1249 ईस्वी में उसने अपनी पुत्री का विवाह नासिरुद्दीन से किया
?इस समय उसे "नाइब- ए-ममलिकात" का पद देकर कानूनी रूप से शासन के संपूर्ण अधिकार सौंप दिए गए और उसे उलूग खां(1249)की उपाधि प्रदान की। इस समय वास्तविक शक्ति बलबन के हाथों में ही थी
?शासन व्यवस्था पर नियंत्रण रखने के लिए बलबन के सभी संबंधियों को उच्च स्थान प्रदान किया गया
?बलबन का छोटा भाई किश्लू खॉ "अमीर -ए -हाजिब" बनाया गया
?बलबन का एक संबंधी शेर खां को लाहौर और भटिंडा का सूबेदार बनाया गया ।अबूबक्र वजीर के पद पर बना रहा वह बलवन के गुट का सदस्य था
?बलबन की सुल्तान से निकटता और उसके बढ़ते हुए प्रभाव से अन्य तुर्की सरदार ईर्ष्या करने लगे थे
?उनका मुख्य प्रतिद्वंदी बिहार का सूबेदार कुतलुग खॉ था।जो चिहलगानी गुलामों में वरिष्ठ था
?ईजुईद्दिन बलबन किश्लू खां(जो बलबने बुजुर्ग और बलबने जर 'सफेद बालों वाला भी कहलाता था'।) कुतलुग खां का मुख्य समर्थक था
?इसके अतिरिक्त भारतीय मुसलमानों का एक दल बनाया गया जो बलबन के प्रमुख विरोधी थे इस का नेता इमामुद्दीन रेहान था
?इमामुद्दीन रेहान और अन्य अमीरों ने बलबन के विरुद्ध षड्यंत्र रचा और सुल्तान को अपने पक्ष में कर लिया
?सुल्तान ने बलबन को उसके पद से हटा दिया और उसे हांसी जाने की आज्ञा दी बाद में उसे नागौर भेज दिया गया बलबन ने दोनों अवसरों पर सुल्तान की आज्ञा का पालन बुद्धिमत्तापूर्ण किया
?इमामुद्दीन रेहान वकीलदार बना और संपूर्ण शासन पर उसका अधिकार हो गया।वह 1252 से 1253 के बीच सल्तनत का नायब रहा
?अन्य पदों पर बलबन के संबंधियों को हटाकर उनके स्थान पर नए लोगों को नियुक्त किया गया वजीर का पद अबूबक्र के स्थान पर जुनैदी को प्रदान किया गया
?शेर खां के स्थान पर अर्सला खां को भटिंडा और मुल्तान का सूबेदार बनाया गया मिनहाज उल सिराज को मुख्य काजी के पद पर रखा था उसे हटा कर उसके स्थान पर शमशुद्दीन को मुख्य काजी बनाया गया
?लेकिन रेहान बहुत दिनों तक अपनी स्थिति को सुदृढ़ नहीं कर सका। तुर्की सरदार एक भारतीय मुसलमान की सत्ता को सहन नहीं कर सके और वे पुनः बलवन के पक्ष में हो गए
?1254 ईस्वी में बलबन ने अपनी सेना और समर्थकों को तबरहिंद में एकत्र कर दिल्ली की ओर कुच किया। सुल्तान दिल्ली से सूनम की ओर कुच किया लेकिन सभी तुर्की सरदार अब बलबन के पक्ष में हो गए थे
?सुल्तान युद्ध के लिए तत्पर नहीं था अंत में सुल्तान और विद्रोही मलिक इस बात के लिए सहमत हो गए कि रेहान को हटाकर बलबन को पून:नायब का पद दिया जाए
?इस प्रकार बलबन को पून: नायब का पद प्रदान किया गया और रेहान को पहले बदायूं और बाद में बहराइच भेजा गया जहां उसकी मृत्यु हो गई
रैहान को धर्मच्युत (धर्म परिवर्तित मुसलमान), शांति का अपहरणकर्ता और षड्यंत्रकारी कहा गया है।
?नायब का पद प्राप्त करने के बाद बलबन की शक्ति में और वृद्धि हो गई
?इसी समय बलबन सुल्तान नासिरुद्दीन से छत्र(सुल्तान के पद का प्रतीक) प्रयोग करने की अनुमति मांगी जिसे सुल्तान ने स्वीकार कर लिया
??नायब के रूप में बलबन का कार्य??
?पुन:नायब का पद प्राप्त करने के बाद बलबन का प्रमुख कार्य अपनी स्थिति को सुदृढ़ करना था इसके लिए उसने 3 सूत्री नीति अपनाई
1. विरोधी तुर्क अमीरों का दमन
2. मंगोलों के आक्रमण से रक्षा
3. हिंदू राजाओं की शक्ति का रोकना
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1. विरोधी अमीरों का दमन
बलबन के तीन प्रमुख प्रतिद्वंद्वी है-इमामुद्दीन रेहान, कुतलुग खां और किश्लू खां
बलबन के पुनः नायब बनने के बाद रेहान को पहले बदायूं और बाद में बहराइच भेजा गया जहां कुछ दिन पश्चात उसकी हत्या कर दी गई
1255 ईस्वी में कुतलुग खां और किश्लू खां ने दिल्ली में विद्रोह किया
कुतलुग खां जिसने नासिरुद्दीन महमूद की माता "मलिका-ए-जहां" से विवाह कर लिया था
उसे अवध की इक्ता प्राप्त थी जहां वह स्वतंत्र शासक की भांति व्यवहार करता रहा वहां से वह लखनौती स्थानांतरित हुआ था।जहॉ उसकी मृत्यु हो गई
किश्लू खॉ को रेहान ने मुल्तान और उच्छ का शासक बनाया था वह भी बलबन से ईर्ष्या रखता था
जब बलबन ने शक्ति ग्रहण की तो किश्लू खॉ नें विद्रोह कर खुरासान के हलाकू खां का आधिपत्य स्वीकार कर लिया
1259ई. मे किश्लू खॉ की मृत्यु हो गई इस प्रकार बलबन के सभी विरोधियों का अंत हो गया
2. मंगोल आक्रमण से रक्षा
उत्तर पश्चिम में मंगोल आक्रमणों और विद्रोही सरदारों के विद्रोह ने दिल्ली सल्तनत की स्थिति को दुर्बल बना दिया था
मुल्तान और सिंध पर दिल्ली का अधिकार अस्थिर रहा
1249 ईस्वी में बनिहान के शासक सैफुद्दीन कार्लुग ने मुल्तान पर अधिकार कर लिया लेकिन शीघ्र ही उसे मुल्तान छोड़ना पड़ा
किश्लू खॉ ने मंगोल नेता हलाकू खां और अवध के सूबेदार कुतलुग खां के सहयोग से दिल्ली पर अधिकार करने का प्रयास किया लेकिन बलबन ने उसके इस प्रयास को विफल कर दिया
इस प्रकार बलबन ने अपनी कूटनीति प्रशासन चातुर्य और सैन्य संचालन से दिल्ली सल्तनत की मंगोल आक्रमण से रक्षा की
3. हिंदू राजाओं की शक्ति को रोकना
इल्तुतमिश के कमजोर उत्तराधिकारियों की दुर्बलता का लाभ उठाकर हिंदू राजाओं ने अपनी शक्ति को पुन: सुदृढ़ करने का प्रयास करने लगे
लेकिन बलबन ने अपने सैन्य संचालन से उनके इस प्रयास को विफल बना दिया
पूर्व में बंगाल के तुर्क शासक और कामरुप व उड़ीसा के हिंदू राजा आपस में संघर्ष रहे थे
इस समय उड़ीसा में गंग वंशीय नृसिंह प्रथम का शासन था जिसने बंगाल पर कई आक्रमण किया
?????????? 1-बंगाल--बलबन को बंगाल में कठिन परिस्थितियों का सामना करना पड़ा वहां दो बार विद्रोह हुआ जिसे दबा दिया गया
अंत में कड़ा के इक्तेदार अर्सला खां ने बंगाल पर अधिकार कर एक स्वतंत्र शासक की भांति व्यवहार करने लगा
बंगाल पर पूर्ण नियंत्रण स्थापित नहीं हो सका इस प्रकार नासिरुद्दीन के समय में बंगाल दिल्ली सल्तनत के प्रभुत्व से निकल गया था
2-बुंदेलखंड और बघेलखंड----बुंदेलखंड में चंदेल शासक त्रैलोक्य वर्मा ,वीर वर्मा और हम्मीर वर्मा का शासन था ।इनका राज्य विस्तार कालपी से चुनार तक था बलबन ने 1248 ईस्वी में बुंदेलखंड क्षेत्र पर आक्रमण कर चंदेलों के उत्तर की ओर विस्तार को रोक दिया
3-मालवा----1251 ई.मे बलबन ने ग्वालियर, चंदेरी, नारनौल और मालवा को रौंद डाला लेकिन ग्वालियर पर अधिकार नहीं कर सका उस समय ग्वालियर का शासक चाहरदेव था
4-राजपूताना--- राजपूताना क्षेत्र के चौहान और गुहिल वंश के शासक इस क्षेत्र पर अपना प्रभाव बढ़ाने का प्रयास कर रहे थे बलबन ने 1258 ईस्वी में रणथंबोर पर आक्रमण किया लेकिन राजपूतों को नियंत्रित नहीं कर सका
5-मेवातीयों का दमन--- मेवाती ,मेवात क्षेत्र के भट्टी राजपूत थे वह सरकारी रसद और खजाना लुटाते थे और मुसलमान राहगीरों से सामान छीन लेते थे बलबन ने क्रूरतापूर्वक मेवातीयों का दमन किया, 1260 ईस्वी में मेवाती नेता मलका को बंदी बनाकर अनेक यातनाएं दी गई
6-दोआब और कटेहर के विद्रोह---दिल्ली के निकट दोआब क्षेत्र में राजपूतों ने विद्रोह किया
दोआब में स्थित तलसंदा के दुर्ग जो एक हिंदू राजा के नियंत्रण में था। विद्रोह का केंद्र था
बलबन ने 1247-48 ईस्वी में दुर्ग पर आक्रमण का अधिकार कर लिया और विद्रोह को दबा दिया
कटेहरों ने बदायूं व सम्भल क्षेत्र में विद्रोह किया ।
1254ई. में बलबन ने कटेहरों पर आक्रमण कर उनका दमन किया
??नासिरुद्दीन की मृत्यु और शम्शी वंश का अंतिम??
?1265 ईस्वी में नासिरुद्दीन की अचानक मृत्यु हो गई।वह शम्शी वंश का अंतिम शासक था
?उसकी मृत्यु के साथ ही इल्तुतमिश की मृत्यु के बाद से चला आ रहा सुल्तान और अमीरों के मध्य का संघर्ष भी समाप्त हो गया और बलवंत सर्व सत्ताधारी सुलतान बन गया
?नासिरुद्दीन की मृत्यु के बारे में इतिहासकारों में मतभेद है
तारीख ए मुबारक शाही के अनुसार--सुल्तान बीमारी से मरा था
इसामी ने अपनी पुस्तक फतूहुस्सलातीन में लिखा है कि--बलबन ने नासिरुद्दीन को विष देकर मरवा दिया था
फरिश्ता के अनुसार-- बलबन ने इल्तुतमिश के कई वंशजों का वध कर दिया जिससे कोई अन्य उसके विरुद्ध सिंहासन पर दावेदार ना बन सके
इब्नबतूता ने लिखा है कि-- अंत में नायब( बलबन) ने उसे (नासिरुद्दीन) को मार डाला और स्वयं सुल्तान बन गया
?नासिरुद्दीन का कोई पुत्र नहीं था इसलिए अगला शासक बलबन बना
?उसने द्वितीय इल्बारी वंश की स्थापना की
?नासिरुद्दीन अपनी साधारण आदतों के कारण दरवेश राजा के नाम से जाना जाता था
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