एक राष्ट्र/राज्य पूर्ण रूप से तभी विकसित माना जाता है, जब वह अपनी स्वास्थ्य, शिक्षा और अर्थव्यवस्था के साथ-साथ भविष्य की चुनौतियों से भी निपटने के लिए तैयार रहता है अर्थात भविष्य की आपदाओं से होने वाले नुकसान को काफी हद तक नियंत्रित करने में सक्षम होता है। आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 के अनुसार- सूखा, बाढ़, चक्रवाती तूफान, भूकंप, भूस्खलन, वनों में लगने वाली आग, ओलावृष्टि और ज्वालामुखी फटने जैसी स्थितियों में जान-माल की हानि आपदा कहलाती है। यहां हमने बिहार में आपदा : एक चुनौती निबंध में इसी से जुड़ी जानकारी को सम्मिलित किया है -
बिहार में प्रमुख आपदाएं -
बिहार मुख्य रूप से बाढ़, सूखा, भूकंप एवं आंशिक रूप से चक्रवाती तूफान जैसी आपदाओं से त्रस्त है। बिहार का उत्तरी भाग जहां हिमालय से आने वाली नदियों में अचानक जल वृद्धि के कारण बाढ़ प्रभावित है, तो दक्षिणी भाग में फसलों के लिए उपयुक्त वर्षा न होने एवम सिंचाई की उचित व्यवस्था न होने के कारण सूखा की मार झेलता है।
कभी-कभी पूर्वी बिहार का कुछ भाग बंगाल की खाड़ी में आने वाले चक्रवाती तूफान से प्रभावित होता है। बिहार भूकंपीय क्षेत्र में स्थित है इसलिए भूकंप का भी काफी प्रभाव पड़ता है। अर्थात हम यह कह सकते हैं कि बिहार को आपदा के रूप में मुख्य रूप से बाढ़, सुखा तथा आंशिक रूप से चक्रवाती तूफान एवं भूकंप का सामना करना पड़ता है।
इसमें भी सबसे ज्यादा नुकसान बिहार को बाढ़ से झेलना पड़ता है, जहां उत्तरी बिहार सहित लगभग 60% भूभाग बाढ़ के दिनों में जलमग्न हो जाता है। बिहार में बाढ़ का मुख्य कारण हिमालयी नदियां हैं जो नेपाल के रास्ते बिहार में प्रवेश करती हैं जिनमें कोसी गंडक गंगा इत्यादि नदियां शामिल है। कोसी नदी बहुत ज्यादा मार्ग बदलती है जो बिहार में बाढ़ का मुख्य कारण मानी जाती है, इसलिए कोसी नदी को बिहार का शोक भी कहा जाता है।
बिहारमेंआपदाकाकारण
हिमालय से नदियों का निकलना
बिहार का भूभाग नेपाल की तुलना में ढाल होना।
बिहार का भूकंप क्षेत्र में स्थित होना।
बंगाल की खाड़ी से नजदीक होना।
नहरों का अभाव
बिहार में आपदा से होने वाले नुकसान
बाढ़:-
बहुत लोगो का बेघर हो जाना
आधारिक अवसंरचना का ध्वस्त हो जाना
मिट्टी की गुणवता में कमी आना
जल जमाव से बीमारियों का फैलना।
शैक्षणिक संस्थानों के प्रभावित होने से शिक्षा व्यवस्था का डगमगाना
वनों का नष्ट होना
फसलों को नुकसान
यातायात बाधित होना
भूकंप:- भूकंप से भी बिहार को काफी ज्यादा नुकसान होता है, चाहे वह 1934 का भूकंप हो जिसमें लगभग 10000 लोग बेघर हो गए और काफी लोग भुखमरी का शिकार हुए या 1988 का इत्यादि।
सुखा:- दक्षिणी बिहार में फसलों के लिए उपयुक्त वर्षा न होने एवं सिंचाई व्यवस्था सुदृढ़ न होने के कारण दक्षिणी बिहार में सूखे की मार झेलनी पड़ती है जिससे फसलें बर्बाद हो जाती है और खाद्य सामग्री की कीमतें बढ़ जाती है जिससे गरीब तबके के लोगों को भोजन के लिए संघर्ष करना पड़ता है।
समाधान:-
निम्नलिखित कदम उठाकर बिहार में आपदाओं से होने वाले नुकसान को कुछ हद तक कम किया जा सकता है-
दक्षिणी बिहार को नहरों के माध्यम से उतरी बिहार की नदियों से जोड़ देना।
चुकी बिहार की अधिकांश नदियां नेपाल से होकर आती है अतः नेपाल सरकार के साथ मिलकर बांध का निर्माण करना, ताकि पानी को रोका जा सके।
बाढ़ के पानी को जल्दी बंगाल की खाड़ी में निकालने के लिए एक दूसरे को आपस में जोड़ देना
लोगों को आपदाओं के प्रति जागरूक करना एवं प्रशिक्षित करना।
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