शिक्षा मनोविज्ञान (Education psychology) में बुद्धि के ऊपर सर्वाधिक कार्य किया गया है।
17वीं शताब्दी से ही दर्शन के साथ मनोविज्ञान के अध्ययन पर बुद्धि के स्वरूप संरचना प्रकार व सैद्धांतिक आधार की चर्चा प्रारंभ हो गई थी।
जहाँ तक बुद्धि शब्द की परिभाषा का प्रश्न है तो मनोविज्ञानिकों ने इसे तीन श्रेणियों में विभक्त किया है। 1. समायोजन(Adjustment) 2. सीखने की क्षमता( Learning ability) 3. अमूर्त चिंतन( Abstract thinking)
अंग्रेजी में बुद्धि को construct के नाम से जाना जाता है। व्यक्तिगत विभिन्नता के आधार पर हर व्यक्ति में बुद्धि का स्तर अनुवांषिकी एवं पर्यावरणीय कारकों के प्रभाव के कारण अलग अलग होता है।
ई.एल. थार्नडाइकने बुद्धि के तीन प्रकार बताए हैं १• सामाजिक बुद्धि २• अमूर्त बुद्धि ३• मूर्त बुद्धि
१• सामाजिक बुद्धि (Social Intelligence) सामाजिक बुद्धि से तात्पर्य वैसी मानसिक क्षमता, जिसके सहारे व्यक्ति अन्य व्यक्तियों को ठीक ढंग से समझता है व व्यवहार कुषलता दिखा पाता है।
ऐसे लोगों का सामाजिक संबंध बहुत ही अच्छा होता है व समाज में उनकी बहुत इज्जत होती है। जैसे अच्छे नेता, शिक्षक इत्यादि।
२• अमूर्त बुद्धि (Abstract Intelligence) - अमूर्त बुद्धि से तात्पर्य वैसी मानसिक क्षमता जिसके सहारे व्यक्ति शाब्दिक तथा गणितीय संकेतों व चिन्हों को आसानी से समझ पाता है व उनकी उचित व्याख्या कर पाता है ऐसे व्यक्ति जिनमें अभूर्त बुद्धि अधिक होती हैं सफल कलाकार, पेंटर व गणितज्ञ होते हैं।
३• मूर्त बुद्धि (Concrete Intelligence)
मूर्त बुद्धि से तात्पर्य ऐसी मानसिक क्षमता जिसके सहारे व्यक्ति ठोस वस्तुओं का महत्व समझता हैं तथा उसका उपयोग ठीक ढंग से विभिन्न परिस्थितियों में करता है ऐसे बुद्धि वाले व्यक्ति सफल व्यापारी बन सकते हैं।
विभिन्न मनोवैज्ञानिकों ने बुद्धि को इस प्रकार परिभाषित किया है -==== १• मन के अनुसार ‘‘नवीन परिस्थितियों को झेलने की मस्तिष्क की नमनीयता।’’ २• बंकिन्घमके अनुसार ‘‘सीखने की योग्यता ही बुद्धि है।’’ ३• बर्टके अनुसार ‘‘बुद्धि अच्छी तरह निर्णय करने, समझने एवं तर्क करने की योग्यता है। ४• वुडवर्थके अनुसार ‘‘बुद्धि कार्य करने की एक विधि है।’’
इन परिभाषाओं से स्पष्ट है कि बुद्धि में अतीत के अनुभवों का प्रयोग नवीन परिस्थितियों में समायोजन, परिस्थिति को समझना तथा क्रिया को व्यापक रूप से समझना ही बुद्धि है। बुद्धि के विषय में एक मत यह विकसित हो रहा है कि बुद्धि नामक कोई भी तथ्य नहीं है। प्रत्येक व्यक्ति की अपनी क्षमता होती है। एक व्यक्ति एक क्षेत्र में अपनी योग्यता तथा क्षमता का लाभ उठाता है तो दूसरा व्यक्ति दूसरे क्षेत्र में लाभ उठाता है।
बुद्धि के अनेक सिद्धांत प्रतिपादित किये गये है जो उसके स्वरूप पर पर्याप्त प्रकाश डालते है। इसके प्रमुख सिद्धांत है- 1. एक खण्ड का सिद्धांत। 2. दो खण्ड का सिद्धांत। 3. तीन खण्ड का सिद्धांत 4. बहु खण्ड का सिद्धांत। 5. मात्रा सिद्धांत। 6. वर्ग घटक सिद्धांत। 7. क्रमिक महत्व का सिद्धांत
१• एक खण्ड का सिद्धांत:- इस सिद्धातं के प्रतिपादक बिनेट और टर्मन है। उन्होंने बुद्धि को एक अखण्ड और अविभाज्य इकाई माना है। उनका मत है कि व्यक्ति की विभिन्न मानसिक योग्यताएं (Mental abilities) एक इकाई के रूप में कार्य करती है।
२• दो खण्ड का सिद्धांत:- इस सिद्धातं का प्रतिपादक स्पीयरमैन है। उनके अनुसार प्रत्येक व्यक्ति में दो प्रकार की बुद्धि होती है- सामान्य तथा विशिष्ट।
३• तीन खण्ड का सिद्धांत:- यह सिद्धातं भी स्पीयरमैन के नाम से संबंधित है। उसने इसका नाम सामूहिक खण्ड दिया। उसने बुद्धि का एक खण्ड और बनाया।
४• बहुखण्ड का सिद्धांत:- स्पीयरमैन के बुद्धि के सिद्धातं पर आगे कार्य करके गिलफर्ड ने ‘‘बहुखण्ड का सिद्धांत’’ प्रतिपादित किया।
५• मात्रा सिद्धांत:- इस सिद्धातं का प्रतिपादक Thorndike है। इनका मत है कि मस्तिष्क का गुण स्नायु तन्तुओं की मात्रा पर निर्भर रहता है।
६• वर्ग घटक सिद्धांत:- जी. थामसन ने बुद्धि को अनेक विशिष्ट योग्यताओं तथा विशेषताओं का समूह माना है, एक ही वर्ग में अनेक प्रकार की विशेषताएं होती है।
७• क्रमिक महत्व का सिद्धांत:- बर्ट तथा टर्मन ने मानसिक योग्यताओं को क्रमानुसार महत्व दिया है। यह क्रम इस प्रकार है->> १• सामान्य। २• स्मरण, चिन्तन, तर्क, कल्पना। ३• विशेष मानसिक योग्यता
बुद्धि सिद्धान्त :=महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
१• नवीन परिस्थितियों से अनुकूलन ही बुद्धि है उक्त परिभाषा है?>>>रोस ने २• वुडवर्थ के अनुसार बुद्धि की परिभाषा है ? >>>> बुद्धि कार्य करने की एक विधि है|
३• बुद्धि अमूर्त विचारों के बारे में सोचने की योग्यता है - ये कथन किसका है
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