भारत के प्रमुख लोक नृत्य(India's leading folk dance)
हजोंग➖
यह नृत्य मेघालय के हजोंग जनजातीय क्षेत्र में प्रचलित है
इस नृत्य को स्त्री पुरुष एक साथ करते हैं
यह नृत्य फसल की कटाई से पूर्व अच्छी फसल की कामना और वर्ष भर की खुशहालीके लिए करते हैं
परब➖
यहनृत्य बस्तर (छत्तीसगढ़) के राज मुडिया जनजाति क्षेत्र में प्रचलित है
यह नृत्य अविवाहित युवक युक्तियोंद्वारा किया जाता है
यह नृत्य चेत्र मास के शुक्ल पक्ष में फसल की कटाईके समय होता है
सरहुल➖
यह नृत्य मध्यप्रदेश की ओराव जनजाति वाले क्षेत्र में प्रचलित है *
स्त्री पुरुषों* के समूह द्वारा किसी पहले से पूजित पेड़के चारों ओर सारी रात यह नृत्य चलता है
यह नृत्य अत्याधिक तेज गतिसे किया जाता है
चैत्र मास की पूर्णिमा की रात को फसल की कटाई के बाद यह नृत्य किया जाता है
कुड➖
यह नृत्य जम्मू कश्मीर राज्य के जम्मू क्षेत्रमें प्रचलित है
यह नृत्य विशिष्ट ध्वनि संरचनाके लिए विख्यात है
इस नृत्य को स्त्री पुरुष बच्चे नए -नए वस्त्र पहनकर सामूहिक रुप से करते हैं
यह नृत्य मक्का की फसल की कटाईके अवसर पर किया जाता है
बाना➖
मध्यप्रदेश के मालवा क्षेत्र में यह नृत्य प्रचलित है
इस नृत्य में पुरुष 1 मीटर ऊंचे बाँस को पैरों में बांधकरयह नृत्य करते हैं
यह नृत्य बसंत ऋतु के स्वागत में किया जाता है
सम्भलपूरी➖
उड़ीसा के संभलपुर क्षेत्रमें यह नृत्य किया जाता है
इस नृत्य को विभिन्न धार्मिक उत्सव पर आयोजित किया जाता है
मूल रूप से संभलपुर क्षेत्र का नृत्यअब लगभग सारे उड़ीसा में आश्विन मास में महिलाओंद्वारा किया जाता है
यह नृत्य पश्चिमी उड़ीसा के सामाजिक धार्मिक जीवन को दर्शाता है
इसमें पदताल और लय के बदलते स्वरूप का संगम है
जोरिया➖
राजस्थान में भील जनजातिवाले क्षेत्रों में इस नृत्य को किया जाता है विवाह के अवसर पर इस नृत्य को किया जाता है
ढोल शहनाई और नगाड़े की लयपर स्त्री पुरुष दोनों मिलकर सम्मिलितरुप से इस नृत्य को करते हैं
बच्चा नगमा➖
कश्मीर घाटीमें यह नृत्य किया जाता है
इस नृत्य को कभी भी करसकते हैं
यह नृत्य 20 वर्ष तक के युवकोंद्वारा किया जाता है
छपेली➖
कुमाऊं (उत्तराखंड) में यह नृत्य प्रचलित है यह नृत्य सगाई के अवसरपर किया जाता है
माता पिता की उपस्थिति में उन युवक युवतियोंद्वारा यह नृत्य किया जाता है जिनका आपस में विवाह तयहो चुका है
पैका➖
बिहार में मुंडा जनजातिवाले क्षेत्रों में यह नृत्य किया जाता है
यह नृत्य विवाहोत्सव और दशहरेके दिन किया जाता है
यह एक युद्ध नृत्य हैं
लेकिन अब यह विवाह उत्सव और विजय दशहरा पर मुंडा जनजातिके युवकों द्वारा किया जाता है
इस नृत्य में हाथों में ढाल तलवार औरSteeds(लकडी का घोडा) लेकर ढोल नगाड़ा शहनाई रणभेरी तथा मंडल आदि वाद्य यंत्रों की लय पर किया जाता है
इस नृत्य की भाव-भंगिमाएं सम्मानीय अतिथियों को संरक्षणदेने के लिए
उन के मार्ग में आने वाली बाधाओं को दूरकरने से जुड़ी है
रिखपंद➖
अरुणाचल प्रदेश में सुबनसिरी क्षेत्र में यह नृत्य प्रचलित है
यह नृत्य अपातनी नायक अपने पूर्वज के साथ निशी जनजाति के लोगों द्वारा इस क्षेत्र में बसने की याद के अवसर पर किया जाता है
निशी जनजाति की महिलाओं द्वारा अपने पति के प्रति निवेदन के बहाने पूर्वजों को स्मरण करने के लिए यह नृत्य किया जाता है
सोलकिया➖
यह नृत्य मिजोरम राज्यमें प्रचलित है
खुशी के अवसरोंपर इस नृत्य को किया जाता है
पहले यह नृत्य शत्रु दल के सरदार का सिर काट कर लाए जाने पर विजय शोभा यात्राके समय किया जाता था
तब इस नृत्य को पिवी तथा लाखर जनजाति द्वारा किया जाता था
अब इस नृत्य को सभी जनजातियां खुशी के अवसर पर करती हैं
गुरवटयुल➖
आंध्रप्रदेश में कर्वा जाति के क्षेत्र में यह नृत्य किया जाता है
यह नृत्य शिव की आराधनामें किया जाता है
पूरूषो द्वारा अपने सिर पर भालू की खाल की टोपी पहन कर यह नृत्य किया जाता है
पूक्कावडी➖
केरल के त्रिचूर क्षेत्र में यह नृत्य प्रचलित है
यह नॄत्य हमेशाकिया जाता है
इस नृत्य में फूलों से सुसज्जित किसी मंदिर के मांडल को नृतकों द्वारा सिर या कंधे पर लादकर चलतेहुए इस नृत्य को किया जाता है
मुचि➖
यह नृत्य उड़ीसा में प्रचलित है
यह नृत्य अविवाहित युक्तियां विशेष रूप से छात्राओं द्वारा शारीरिक सौष्ठव को निखारनेके लिए किया जाता है
यह नृत्य स्कूलों में शारीरिक शिक्षा के तहतकिया जाता है
यह नृत्य खेल कूद से सम्बन्धित है
जादूर➖
झारखंड में आरोंव जनजाति वाले क्षेत्र में इस नृत्य का प्रचलन है
स्त्री पुरुष द्वारा मिलकर यह नृत्य किया जाता है
बसंत ऋतु के स्वागतमें इस नृत्य का प्रचलन है
स्रा परब➖
झारखंड बिहार पश्चिम बंगाल उड़ीसा छत्तीसगढ़ में ""संथाल तथा हो" जनजातीय क्षेत्र में इस नृत्य का प्रचलन अधिक है
यह नृत्य 10 प्रकार के पदातिको वाला है
यह नृत्य स्त्री पुरुष द्वारा मिलकरकिया जाता है
वसंत ऋतु के स्वागतमें इस नृत्य का आयोजन किया जाता है
दलखई➖
उड़ीसा के पश्चिमी क्षेत्रमें यह नृत्य प्रचलित है
यह नृत्य विवाहित स्त्रियों द्वारा अपने भाइयों की दीर्घायु की कामना हेतु किया जाता है
बसंत ऋतु की विदाई और शरद ऋतु के स्वागत में अश्विन मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी को यह नृत्य किया जाता है
घुमरा➖
यह नृत्य उड़ीसा में प्रचलित है
इन नृत्यों में धुनों का कम से कम प्रयोग होता है
यह नृत्य पुरुषो द्वारा पैरों में घुंघरु बांधकर गोधी नामक पशु की खाल से मढे मिट्टी के वाद यंत्र की लय पर किया जाता है
यह नृत्य किसी भी समयकर सकते हैं
टप्पेट्टई➖
यह नृत्य तमिलनाडु में प्रचलित है
इस नृत्य को कभी भी कियाजा सकता है
टप्पेट्टई नामक ताल वाद्य यंत्र जो हाथ और डंडेदोनों से बजाया जाता है
इस वाद्य यंत्र की लय पर स्त्री पुरुष दोनोंद्वारा यह नृत्य किया जाता है
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