राजस्थान ने शुर वीरा व् वीरांगना रीं भूमि कहिज्ये इ भूमि री गाथा
रा अनेक भंडार भरयोड़ा है इन र् मायने स्यु मेवाड़ री महाराणी
पद्मावती री जीवनी रो अंश
पद्मिनी या पद्मावती का जन्म:- सिंहला(श्रीलंका) पिता का नाम:- गंधर्वसेन माता का नाम:- चम्पावती पद्मिनी के पास एक सुन्दर तोता भी था जिसका नाम था – हीरामणि। मलिक मोहम्मद ज्यासी के महाकाव्य ‘पद्मावत’ के कुछ पंक्ति जिसमें रानी पद्मिनी के विषय में उन्होंने बताया था – तन चितउर, मन राजा कीन्हा । हिय सिंघल, बुधि पदमिनि चीन्हा ॥ गुरू सुआ जेइ पंथ देखावा । बिनु गुरु जगत को निरगुन पावा ?॥ नागमती यह दुनिया-धंधा । बाँचा सोइ न एहि चित बंधा ॥ राघव दूत सोई सैतानू । माया अलाउदीन सुलतानू ॥ प्रेम-कथा एहि भाँति बिचारहु । बूझि लेहु जौ बूझै पारहु ॥
इस कविता के अनुसार रानी पद्मिनी / पद्मावती चित्तोड़ के राजा राणा रतन सिंह की पत्नी थी और समकालीन सिंहली (श्रीलंका का एक द्वीप) राजा की बेटी थी।
रानी पद्मिनी को उनके अपार दिव्य सौन्दर्य के लिए जाना जाता था और आज भी उनके सुन्दर्य के विषय में इतिहास में उल्लेख है।?
सन 12वीं – 13 वीं शताब्दी में राजपूत राजा ‘रावल रतन सिंह’ का राज चित्तोड़ में था। वो सिसोदिया राजवंश के थे और रानी पद्मिनी से विवाह के पूर्व उनकी पहले से ही 13 पत्नियां थी।
वो एक पराक्रमी योधा थे और विवाह के बाद रानी पद्मावती से बहुत प्रेम करने लगे इसलिए उसके बाद उन्होंने कभी भी विवाह नहीं किया। वो बहुत ही अच्छे और साहसी थे और उन्होंने हमेशा अपने राज्य के लोगों से प्यार किया और उनका ख्याल रखा।
उनकी सभा में बहुत सारे बुद्धिमान व्यक्ति और अच्छे कलाकार थे। वे कला का सम्मान करते थे और अच्छे कलाकारों को पुरस्कृत भी करते थे।
उनका एक संगीतकार था जिसका नाम था ‘राघव चेतन’। सभी लोग, प्रजा यह बात तो जानते थे कि वह एक अच्छा संगीतकार था पर कोई भी नहीं जनता था की वह जादू मन्त्र भी जनता था और अपने प्रतिद्वंद्वियों को हारने के लिए जादू और तंत्र विद्या का उपयोग करता था।
पर गलती से वह जादू करते हुए रेंज हांथों पकड़ा गया और इसके कारण राजा रावल रतन सिंह को यह बात बहुत बुरी लगी। उन्होंने उसे गधे पर बैठा कर राज्य सारा घुमाने का आदेश दिया। उसके बाद वह राज्य छोड़ कर चले गया पर उसने बदला लेने का सोचा।
वहां से भागने के बाद राघव चेतन दिल्ली के सुलतान, अलाउद्दीन खिलजी के पास पहुँचा और उसने खिलजी को भड़काया और रानी पद्मिनी के सौन्दर्य का बखान करके चित्तोड़ पर आक्रमण करने का एक कारण बताया।
जब अलाउद्दीन बादशाही फौज के साथ चित्तौड़ के करीब आया, तो रावल रतनसिंह की फौजी टुकड़ियों ने महलों से बाहर निकलकर कई छोटी-बड़ी लड़ाईयाँ लड़ी
आखिरकार थक-हारकर अलाउद्दीन ने रावल रतनसिंह को खत लिखा कि "हमें हमारे कुछ आदमियों समेत किले में आने देवें, जिससे हमारी बात रह जावे, फिर हम चले जायेंगे"
रावत रतनसिंह ने ये प्रस्ताव स्वीकार कर अलाउद्दीन को 100-200 आदमियों समेत दुर्ग में आने दिया
अलाउद्दीन ने अपनी नाराज़गी छिपाकर रावल रतनसिंह से दोस्ताना बर्ताव किया
रानी पद्मिनी को पाने के लालसा में सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी राजा रावल रतन सिंह के राज्य में मेहमान के तौर पर गए। वहां उसने दिव्य सुंदरी रानी पद्मिनी को देखने का निवेदन किया पर रानी ने इसको पूरी तरीके से नकार दिया क्योंकि उनकी संप्रदाय का आधार पर पति को छोड़ कर किसी भी अन्य पुरुष को मुहँ दिखाना नियम के विरुद्ध था।
तब राजा रावल रतन सिंह ने रानी पद्मिनी से निवेदन किया और समझाया की दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के शक्ति और पराक्रम के विषय में बताया और समझाया की उनकी बात को मना करना सही नहीं होगा।
बहुत समझाने के बाद रानी मान तो गयी पर उनकी एक शर्त थी की उनके चहरे को सुल्तान आईने में देखेंगे ना की सीधे और वो भी 100 दासियों और राजा रावल रतन सिंह के सामने। अल्लुद्दीन खिलजी उनकी बात मान जाते हैं। (रानी पद्मिनी के सही इतिहास को कुछ कवि लोगों ने तोड़-मरोड़कर कई खयाली किस्से लिखकर राजपूताना की तवारीख को खराब किया | इनमें से सबसे गलत किस्सा अलाउद्दीन का रानी के प्रतिबिम्ब को देखना है | पं. गौरीशंकर ओझा, कविराज श्यामलदास जैसे इतिहासकार भी इन खयाली किस्सों को गलत बताते हैं)
जब रुखसत का समय हुआ, तो रावल रतनसिंह सुल्तान अलाउद्दीन को दुर्ग से बाहर पहुंचाने गए इस समय अलाउद्दीन रावल रतनसिंह का हाथ पकड़कर दोस्ती की बातें करता हुआ दुर्ग से बाहर चलने लगा और मौका देखकर अपनी छुपी हुई फौज को बाहर निकालकर रावल का अपहरण कर अपने डेरों में ले गया किले वालों ने अलाउद्दीन के डेरों पर जाकर कई बार बातचीत कर रावल रतनसिंह को छुड़ाने की कोशिश की, पर हर बार अलाउद्दीन ने रानी पद्मिनी के बदले रावल को छोड़ने की बात कही
गोरा-बादल ने चित्तौड़ के सभी सर्दारों से सलाह-मशवरा किया कि किस तरह रावल रतनसिंह को छुड़ाया जावे आखिरकार गोरा-बादल ने एक योजना बनाई
अलाउद्दीन को एक खत लिखा गया कि, रानी पद्मिनी एक बार रावल रतनसिंह से मिलना चाहती हैं, इसलिए वह अपनी सैकड़ों दासियों के साथ आयेंगी अलाउद्दीन इस प्रस्ताव से बड़ा खुश हुआ
कुल 800 डोलियाँ तैयार की गईं और इनमें से हर एक के लिए 16-16 राजपूत कहारों के भेष में मुकर्रर किए(बड़ी डोलियों के लिए 4 की बजाय 16 कहारों की जरुरत पड़ती थी)
इस तरह हजारों राजपूतों ने डोलियों में हथियार वगैरह भरकर अलाउद्दीन के डेरों की तरफ प्रस्थान किया, गोरा-बादल भी इनके साथ हो लिए
(कवि लोग खयाली बातें लिखते हैं कि इन डोलियों में सच में दासियाँ और रानी पद्मिनी थीं, तो कुछ कवि लोगों के मुताबिक रानी पद्मिनी की जगह उनकी कोई सहेली थी..... हालांकि ये बातें समझ से परे हैं)
गोरा-बादल कई राजपूतों समेत सबसे पहले रावल रतनसिंह के पास पहुंचे जनाना बन्दोबस्त देखकर शाही मुलाज़िम पीछे हट गए
गोरा-बादल ने फौरन रावल रतनसिंह को घोड़े पर बिठाकर दुर्ग के लिए रवाना किया
अलाउद्दीन ने हमले का अादेश दियासुल्तान के हजारों लोग कत्ल हुए
गोरा-बादल भी कईं राजपूतों के साथ वीरगति को प्राप्त हुए
फरवरी, 1303 ई.
अलाउद्दीन खिलजी ने अपनी फौज को तन्दुरुस्त कर चित्तौड़ के किले पर हमला किया
इस समय अमीर खुसरो भी अलाउद्दीन के साथ था
रानी पद्मिनी के नेतृत्व में चित्तौड़ के इतिहास का पहला जौहर हुआ | अपने सतीत्व की रक्षा के लिए 1600 क्षत्राणियों ने जौहर किया | यह मेवाड़ के इतिहास में पहला शाका के नाम से जाना गया
18 अगस्त, 1303 ई.
6 महीने व 7 दिन की लड़ाई के बाद रावल रतनसिंह वीरगति को प्राप्त हुए और अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ दुर्ग फतह कर कत्लेआम का हुक्म दिया, जिससे मेवाड़ के हजारों नागरिकों को अपने प्राण गंवाने पड़े
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