राजपूत काल में महिलाओं का योगदान । राजस्थान की क्षत्राणियां

जहाँ शौर्य, पराक्रम और प्रतिष्ठा की बात आती है तो राजस्थान के राजपूत योद्धाओं के साथ-साथ राजपूत काल में महिलाओं के योगदान को भी भुलाया नहीं जा सकता है, इसी को ध्यान में रखते हुए हमने यहां पर राजस्थान की वीर क्षत्राणियों (रूठी रानी (रानी सुहावा देवी), रमाबाई, धीरबाई भटियानी, पन्ना धाय, श्रृंगार देवी, हंसाबाई, हाडी रानी, रानी कर्मावती, भारमली, महारानी जसवंत दे, कृष्णा कुमारी, रानी पद्मिनी, चंन्द्र कुँवरी बाई, सलह कँवर, महारानी महामाया) के बारे में विस्तृत जानकारियां उपलब्ध कराइए जो आपके ज्ञानवर्धन के साथ-साथ भविष्य में होने वाले एग्जाम में भी सहयोग करेगी

रूठी रानी (रानी सुहावा देवी)


यों तो रूठी रानी के नाम से उमा दे को जाना जाता है पर भीलवाड़ा जिले के मेनाल में रूठी रानी का महल स्थित है जिसके लिए माना जाता है कि यह महल रानी सुहावा देवी का है रानी सुहावा देवी अजमेर नरेश पृथ्वीराज द्वितीय चौहान शासक की पत्नी थी, जो अपने पति से रूठकर इस स्थान पर रही तथा उन्हें भी रूठी रानी के नाम से जाना जाता है 12 वीं शताब्दी में रानी सुहावा देवी ने इस स्थान पर सुहावेश्वर महादेव मंदिर का निर्माण करवाया था

रूठी रानी का महल -  यह महल जयसमंद झील (उदयपुर) के किनारे स्थित है यह पूर्व में मेवाड़ महाराणा जयसिह (1681 - 1700 ई ) द्वारा निर्मित हवा महल का था

रूठी रानी (Umade Bhattiyani)


जैसलमेर के राव लूणकरण की पुत्री और मालदेव की पत्नी थी इसका नाम उमा दे था इसका विवाह 1536 में माल देवके साथ हुआ।
विवाह वाली रात मालदेव नशे में चूर होने के कारण वह उमादे के पास न जाकर दासी के पास गया, जिससे उमादे पहली रात ही रूठ गई विवाह के प्रथम दिन के पश्चात उमादे ने मालदेव का मुख कभी नहीं देखा ।


उमादे को ही राजस्थान के इतिहास में रूठी रानी के नाम से जाना जाता है यह माना जाता है कि विवाह के अवसर पर लूणकरण ने मालदेव की हत्या का षड्यंत्र रचा था, जिस की सूचना लूणकरण की रानी द्वारा अपने पुरोहित राघवदेव के माध्यम से मालदेव को दी गई थी और इसी कारण मालदेव और उमादे के मध्य विवाह हुआ,

उमा दे को मनाने के लिए मालदेव ने अपने भतीजे ईश्वरदास व अपने कवि आसा बारहठ को मनाने भेजा था और उमादे साथ चलने के लिए तैयार हो गई थी, लेकिन आसा बारहट ने उमादे को एक दोहा सुनाया

माण रखे तो पीव तज, पीव रखे तज माण!, दो दो गयंद न बंधही, हैको खंभु ठाण!!


इस दोहे को सुनकर उमादे का आत्म सम्मान जागा और वह जोधपुर नहीं गई और वह अजमेर तारागढ़ चली गई रूठी रानी ने अपना वक्त अपने पुत्र राम के साथ अजमेर के तारागढ़ के किले मे बिताया, अजमेर मे शेरशाह के आक्रमण की संभावना थी तो उमादे अजमेर से कोसाना ओर वहा से गुंदोज व अंत में केलवा चली गई

मालदेव की 1562 मे मालदेव की मृत्यु के उपरांत उमादे मालदेव कि पगडी  के साथ ही सती हो गई थी, उमादे की सुविधा के लिए मालदेव ने तारागढ़ के किले में पैर से चलने वाली रहट का निर्माण करवाया पति की वस्तु के साथ सती होना अनुमरण कहलाता है।

रमाबाई 


महाराणा कुंभा की पुत्री थी, रमाबाई एक प्रख्यात संगीतज्ञ थी इनको साहित्य में वागेश्वरीनाम से संबोधित किया गया, जो इनकी संगीत पटुता का परिचायक है, इनका विवाह जूनागढ़ के यादव राजा मंडलिक के साथ हुआ था, राजा मंडलिक मुग़ल शाह बेगड़ा से युद्ध में हारा था । युद्ध के बाद इसने मुस्लिम धर्म स्वीकार कर लिया था जावर प्रशस्ति से स्पष्ट है कि रमाबाई संगीत शास्त्र में सिद्धहस्त थी रमाबाई ने जावर में रामकुंड तथा राम मंदिर का निर्माण करवाया, जावर को उस समय योगिनी पट्टन के नाम से जाना जाता था।

जयतल्ल देवी  -  चित्तौड़ के शासक तेजसिह की महारानी थी, जिन्होंने चित्तौड़ के किले में श्याम पार्श्वनाथ मंदिर का निर्माण करवाया था।

धीरबाई भटियानी -  


जैसलमेर के भाटी राजवंश की पुत्री और मेवाड़ के महाराणा उदय सिंह की रानी थी, धीर बाई जी को रानी भटियाणी के नाम से भी जाना जाता है, धीर बाई के प्रभाव में उदयसिंह ने राणा प्रताप के स्थान पर जगमाल को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया था।

पन्नाधाय  


चित्तौड़गढ़ के पास स्थित माताजी की पांडोली गांव के निवासी हरचंद हकला की पुत्री थी और सूरजमल चौहान की पत्नी थी, मेवाड़ की स्वामी भक्त पन्ना धाय ने अपने पुत्र चंदन का बलिदान देकर महाराणा उदयसिंह को दासी पुत्र बनवीर से बचाया,

पन्ना धाय उदय सिंह को लेकर कुंभलनेर पहुंची वहां के किलेदार आशा देवपुरा ने उन्हें अपने पास रखा, स्वामी भक्ति के लिए अपने पुत्र के बलिदान का यह अनुपम उदाहरण है ।

श्रृंगार देवी 


मारवाड़ी के महाराजा राव जोधा की पुत्री थी, मेवाड़ के महाराणा कुंभा के समय रणमल की हत्या के उपरांत मेवाड़ और मारवाड़ में उत्पन्न संघर्ष का हल महाराणा कुंभा की दादी हंसा बाई के प्रयासों से हुआ तथा मेवाड़ मारवाड़ में मैत्री संधि हो गई, इस संधि को आँवल - बाँवल की संधि के नाम से जाना जाता है, इस संधि के द्वारा मेवाड़ व मारवाड़ की सीमा का निर्धारण कर दिया गया और जोधा ने श्रृंगार देवी का विवाह महाराणा कुंभा के पुत्र रायमल के साथ कर दिया, श्रृंगार देवी ने हीं घोसुंडी की प्रसिद्ध बावडी का निर्माण करवाया था।

हंसाबाई 


मारवाड़ के राठौड़ राव चुडा की पुत्री व राठौर रणमल की बहन जिनका विवाह मेवाड़ महाराणा लाखा सिहं से इस शर्त पर हुआ था की उनसे उत्पन्न पुत्र ही मेवाड का राजा होगा, इस शर्त के आधार पर मेवाड़ के राजा महाराणा लाखा के बाद हंसा बाई से उत्पन्न पुत्र मोकल महाराणा बने।

मोकल के पक्ष में राजपाट त्यागने की भीष्म प्रतिज्ञा महाराणा लाखा के बड़े पुत्र चूडा ने की, अपना राज्याधिकार छोड़ा इस विवाह के बाद हंसा बाई और राठौर के षड्यंत्र से मेवाड़ की आंतरिक स्थिति शोचनीय हो गई, भीष्म प्रतिज्ञा के कारण चूड़ा को राजस्थान का भीष्म पितामह भी कहा गया।

हाडी रानी 


राजस्थान की वीर प्रसूता भूमि बूंदी के जागीरदार संग्राम सिंह की रूपवती पुत्री सलह कँवर वीर हाड़ी रानी के नाम से विख्यात हुई, सलह कँवर का विवाह सलूंबर के चूड़ावत सरदार राव रतनसिंह से हुआ,

नववधू के कंगन, डोरे व मोड भी नहीं खुले थे विवाह के दो दिन पश्चात राव रतनसिंह को मेवाड़ महाराणा राजसिह की तरफ से औरंगजेब की सेना को परास्त करने हेतु रणक्षेत्र में जाने का आदेश मिला, इस आकस्मिक आदेश और नववधू के रूप लावण्य ने राव रतन सिह को दिग्भ्रमित कर दिया।

रतन सिंह का मन कमजोर होते हुए देख नई नवेली हाड़ी रानी ने सोचा कि हो सकता है कि मेरी याद इन्हें युद्ध भूमि में असहाय बना दे, यह सोचकर रानी ने अपने पति के मन की कमजोरी को खत्म करने के लिए अपना सिर तलवार से काट कर निशानी के रुप में राव रतनसिंह को दे दिया, रावरतन सिह इस निशानी को देखकर स्तब्ध रह गया और मुगल सेना पर टूट पड़ा अंत में मुगल सेना की हार हुई प्रसिद्ध कवि मेघराज मुकुलने इन्ही वीर हाड़ी रानी पर सेनानी कविता लिखी, जिसमें "चुंडावत मांगी सैनाणी, सिर काट दे दियो क्षत्राणी" लिखा है

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राणा राव नरबद की पुत्री वह महाराणा सांगा की प्रीति पात्र महारानी, जिनके विशेष आग्रह पर राणा सांगा ने रणथंबोर का इलाका अपने बड़े पुत्र रत्नसिह के स्थान पर विक्रमादित्य और उदयसिह को दिया तथा बूंदी हाड़ा सूरजमल को उन का संरक्षक नियुक्त किया।

कर्मावती ने बाबर से इस बात के लिए संपर्क किया था, कि अगर बाबर उसके पुत्र विक्रमादित्य को चित्तौड़ का शासक बनाने में सहायता करेगा तो उसे रणथंबोर का किला दे दिया जाएगा, लेकिन इसके पूर्व भी 1530 में बाबर की मृत्यु हो गई, महाराणा सांगा की मृत्यु के बाद विक्रमादित्य के समय गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह ने 1533 में चित्तोड़ पर आक्रमण किया।

तब रानी कर्मावती ने हुमायूं को राखी बंद भाई बना कर सहायता मांगी, लेकिन सहायता ना मिलने पर उसने सुल्तान से संधि कर ली लेकिन 1534 35 में सुल्तान ने पुन: चित्तोड़ पर आक्रमण किया इस युद्ध मे कर्मावती में वीरता से सामना किया और रावत बाघसिह और राणा सज्जा, सीहा के वीरगति प्राप्त करने पर जोहर किया इस युद्ध को चित्तौड़ का दूसरा जौहर कहा जाता है इस युद्ध के समय विक्रमादित्य और उदय सिह को बूंदी भेज दिया गया  वहां देवलिया के रावत बाघ सिहको महाराणा का प्रतिनिधि बनाया गया।

भारमली -


सोभाग्य देवी (महाराणा कुंभा की माता) की दासी और मारवाड़ के राठौड़ रणमल की प्रेमिका थी, महाराणा कुंभा के समय जब मेवाड़ के प्रशासन में रणमल का अत्याधिक हस्तक्षेप था तो मेवाड़ के सामंतों ने रणमल की प्रेमिका को अपनी और मिला कर षणयंत्र के द्वारा रणमल की हत्या करवा दी, इसी ने भेद खोला की मेवाड़ पर राठोरो का अधिकार हो जाएगा, इस भेद का पता चलने पर महाराणा कुंभा ने 1438 ई. में राठौर रणमल कि महुआ पवार से हत्या करवा दी थी, उसके बाद चूडा ने मंडोर पर अपना अधिकार कर लिया था ।

महारानी जसवंत दे/महामाया   


महाराजा जसवंत सिंह की रानी जो बूंदी के हाड़ा शासक छत्रसाल सिंह की पुत्री थी, इन्हें महारानी करमेती, उदयपुरी रानी के नाम से भी जाना जाता था। श्यामलदास (वीर विनोद) के अनुसार धरमत के युद्ध के से जसवन्त सिह की घायल अवस्था में वापसी पर महारानी ने जोधपुर किले का द्वार बंद करवा दिया था, क्योंकि राजपूत युद्ध भूमि से या तो विजयी होकर आता है या उसकी मृत्यु का समाचार आता है।

बाद में महाराजा द्वारा यह विश्वास दिलाए जाने पर कि वह शक्ति एकत्रीकरण के लिए वापस आए हैं, किले के द्वार खोले गए (अपनी मां के कहने पर किले के द्वार खोले थे), किंतु उंहें चांदी के पात्र के स्थान पर लकड़ी के पात्रों में खाना परोसा गया था, फ्रांस के मशहूर लेखक बर्नियर ने अपनी पुस्तक भारत यात्रा में महारानी जसवंत दे महारानी महामाया का उल्लेख किया है

कृष्णा कुमारी 


मेवाड़ के महाराणा भीमसिंह की पुत्री कृष्णा कुमारी का विवाह जोधपुर के महाराजा भीमसिह से तय हुआ था, लेकिन भीमसिह की मृत्यु हो गई और बाद में जयपुर के जगतसिह से विवाह होना तय हुआ, लेकिन मानसिह बीच में आ गया, जोधपुर के मानसिह ने राजकुमारी का विवाह जोधपुर में ही किए जाने पर जोर दिया ।

इस प्रकार जयपुर व जोधपुर में विवाद की स्थिति उत्पन्न हो गई, गिंगोली का युद्ध 1807 में अमीर खां पिंडारी के सहयोग से जयपुर के महाराणा जगतसिंह ने जोधपुर के मानसिह को पराजित किया, अमिर खाँ पिंडारी के हस्तक्षेप के उपरांत 1810 में कृष्णा कुमारी को जहर दे दिया गया, जो मेवाड़ ही नहीं बल्कि राजपूताने के इतिहास का कलंक है

रानी पद्मिनी  


इनकी कथा का प्रवचन मलिक मोहम्मद जायसी के पद्मावत नामक हिंदी ग्रंथ से आरंभ होना माना जाता है, पद्मावत के अनुसार पद्मनी सिहंलद्विप (श्री लंका) के राजा गोवर्धन गंधर्व सेन व रानी चंपावती की पुत्री थी, उसके पास मानव बोली की नकल करने वाला हिरामन तोता था, हीरामन ही रतन सिह व पदमनी के विवाह का माध्यम बना

रतन सिंह के दरबार में राघव (चेतन काला) चेतन तांत्रिक ब्राह्मण था, इसकी पद्मिनी की ओर कुदृष्टि के कारण देश से बाहर निकाल दिया था, राघव चेतन ने बदला लेने के लिए दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी से पद्मिनी की सुंदरता का वर्णन किया। अलाउद्दीन ने पदमनी को प्राप्त करने के लिए चित्तौड़ दुर्ग पर 8 वर्षों तक डेरा डाला, लेकिन दुर्ग को जीत ना सका।

अलाउद्दीन का षड्यंत्र


अंत में रावल रतनसिह के पास संदेश भेजा कि वह सिर्फ दर्पण में रानी का चेहरा देखना चाहता है लेकिन दर्पण में चेहरा देखते ही रानी को प्राप्त करने की लालसा और तीव्र हो गई रावल रतनसिह जब अलाउद्दीन को विदा करने आया तो अलाउद्दीन ने रावल रतनसिह को कैद कर लिया और रावल रतन सिंह के बदले पद्मनी को मांगा ।

रानी पद्मनी ने 1600 पालकियो सहित सुल्तान के खेमे की ओर कुच किया पालकियों में वीर राजपूत योद्धा थे, 1600 डोलियो में पद्मनी की सहेलियों के भेष में राजपूत सैनिक बिठाये गए थे और उन्हें सुल्तान के खेमे तक पहुंचाया गया। पालकियो में कुल 11200 योद्धा मौजूद थे जैसे ही 1600 पालकिया दिल्ली के शाही महलों में पहुंचे तो वीर राजपूतो के घमासान मार काट के बाद रावल रतनसिंह एवं रानी पदमनी को मुक्त करवाकर चित्तौड़ ले आए ।

अलाउद्दीन ने चित्तोड़ पर पुन:आक्रमण किया, सुल्तान की सेना ने मजनिको से किले की चट्टानों को तोड़ने का लगभग 8 महीने तक अथक प्रयत्न किया पर उन्हें कोई सफलता ना मिली, स्त्रियां दुश्मनों से सुरक्षित नहीं रह सकती थी तो जोहर प्रणाली से राजपूत महिलाओं और बच्चों को धधकती हुई अग्नि में अर्पण कर दिया गया । इस कार्य के बाद किले के फाटक खोल दिए गए राजपूतो ने केसरिया धारण किया तथा महिलाओं ने जोहर किया जो मेवाड़ का प्रथम शाका कहलाता है,

इस युद्ध में रानी पद्मिनी के चाचा और भाई गोरा बादल का शौर्य बड़ा प्रशसनीय रहा इस प्रकार चित्तौड़ अलाउद्दीन के हाथ में आ गया लेकिन वह पद्मनी को पा ना सका

इतिहासकारो के अनुसार रानी पदमनी 


चित्र हरण कथा को समाप्त करके मलिक मोहम्मद जायसी ने चित्तौड़ को शरीर रावल रतन सिंह को हृदय पद्मनी को बुद्धि और aladdin को माया की उपमा दे कर लिखा है कि जो इस प्रेम कथा के तत्व को समझ सके वह इसे इसी दृष्टि से देखें

विक्रमी संवत 1422 में सम्यकत्वकौमुदी की निवृत्ति में जिसे गुणेश्वर सूरी के शिष्य तिलक सूरी ने लिखा उस में राघव चेतन को सुल्तान द्वारा सम्मानित किए जाने का उल्लेख किया है पद्मावत बनने के लगभग 70 वर्ष के बाद अकबर महान के अंतिम वर्षों में हाजी उद्दवीर ने पद्मिनी वर्णन तथा जहांगीर के प्रारंभिक वर्षों में मुहम्मद कासिम फरिश्ता ने अपनी पुस्तक तारीख ए फरिश्ता पद्मावत के आधार पर लिखी

अधिकांश इतिहासकार रानी पदमनी को ऐतिहासिक चरित्र नहीं मानते हैं एक मात्र डॉ दशरथ शर्मा ही ऐसे इतिहासकार है जो रानी पदमनी को ऐतिहासिक पात्र मानते हैं

चंन्द्र कुँवरी बाई 


मेवाड़ के महाराणा अमरसिह द्वितीय की पुत्री चंद्रकुँवरी बाई का विवाह देवारी समझौते के तहत आमेर के सवाई जयसिंह से इस शर्त पर किया गया था कि राजकुमारी से उत्पन्न पुत्र ही आमेर का शासक होगा, राजकुमारी चंद्रकुँवरी ने राजकुमार माधोसिह को जन्म दिया, किंतु इसके पूर्व सवाई जयसिंह की एक अन्य रानी से ईश्वरी सिह का जन्म हो चुका था, इस प्रकार इस विवाह ने जयपुर में उत्तराधिकार संघर्ष को अवश्यम्भावी बना दिया, मराठो के आगमन का कारण भी यही थी ।

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