18th century Rajasthan administrative system ( राजस्थान प्रशासनिक व्यवस्था )
18th century Rajasthan administrative system
18 वीं शताब्दी के अंत तक राजस्थान की प्रशासनिक एवं राजस्व व्यवस्था
अतिलघुतरात्मक (15 से 20 शब्द)
प्र 1. रेख से आप क्या समझते हैं?
उत्तर- राजपूत शासकों द्वारा अपने सामंतों से राजकीय मांगों का हिसाब रेख के आधार पर किया जाता था। जो जागीर की वार्षिक अनुमानित आय पट्टे में दर्ज होती थी उसी के आधार पर रेख तय होता था।
प्र 2. बांह पसाव ?
उत्तर- मेवाड़ रियासत में जब सामंत दरबार में उपस्थित होता था तो वह झुककर महाराणा की अचकन छूता था तो सामंत का अभिवादन स्वीकार कर महाराणा सामंत के कंधे पर हाथ रखता था। यह प्रक्रिया बांह पसाव कहलाती थी।
प्र 3. खालसा भूमि से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर- जिस भूमि पर राज्य का सीधा नियंत्रण होता था उसे खालसा भूमि कहा जाता था। इस भूमि में लगान निर्धारण व वसूल करने का कार्य राज्य के अधिकारियों द्वारा किया जाता था।
प्र 4. तलवार बंधाई क्या है ?
उत्तर- यह नया सामंती उत्तराधिकार शुल्क था। इसके तहत नव सामंत तलवार बंधाई का दस्तूर शासक की उपस्थिति में करें और नए सामंत
प्र 5. नेग ?
उत्तर- राजस्थान के सामंतशाही समाज में सामाजिक, धार्मिक तथा उत्सव पूर्ण अवसरों पर शासकों को सा मंत द्वारा और सामंत को उसके अनुसामंत द्वारा नेग अर्थात आर्थिक भेंट प्रदान की जाती थी।
प्र 6. फरमान ?
उत्तर- फरमान मुगल बादशाह द्वारा जारी शाही आदेश होते थे। कभी यह सार्वजनिक तो कभी विशेष रूप से मनसबदारों के लिए होते थे।
लघूतरात्मक ( 50 से 60 शब्द )
प्र 7. राजस्थान में सामंती व्यवस्था के सामाजिक प्रभाव की आलोचनात्मक विवेचना कीजिए ।
उत्तर- राजस्थान में सामंती व्यवस्था होने से राजस्थान के रीति-रिवाजों पर इसकी गहरी छाप रही है। इस व्यवस्था के प्रभाव से यहां बाल विवाह, वृद्ध विवाह, अनमेल विवाह का भी प्रचलन रहा है। शासकों - सामंतों की कन्या के साथ दहेज में लड़कियां वस्तुओं की भांति भेंट दी जाती थी। इसके अलावा सती प्रथा, कन्या वध प्रथा, सागड़ी प्रथा, बेगार प्रथा, ऊंच नीच का भेदभाव, जौहर प्रथा, लड़कों व लड़कियों का क्रय-विक्रय आदि रिवाज भी एक सामाजिक बुराई के रूप में सामंती व्यवस्था के प्रभाव से उत्पन्न हुए।
प्र 8. मध्यकालीन राजस्थान की राजस्व व्यवस्था में किन्हीं पांच लाग - बागों के बारे में बताइए ।
उत्तर- भू राजस्व के अतिरिक्त कृषकों से कई अन्य प्रकार के कर वसूल किए जाते थे, उन्हें लाग-बाग कहा जाता था-
राली लाग- प्रतिवर्ष काश्तकार अपने कपड़ों में से एक गद्दा या राली बना कर देता था जो जागीरदार या उसके कर्मचारियों के काम आती थी।
बकरा लाग- प्रत्येक काश्तकार से जागीरदार एक बकरा स्वयं के खाने के लिए लेता था। कुछ जागीदार बकरे के बदले प्रति परिवार से ₹2 वार्षिक लेते थे।
अंग लाग- प्रत्येक किसान के परिवार के प्रत्येक सदस्य से जो 5 वर्ष से ज्यादा आयु का होता था, प्रति सदस्य ₹1 लिया जाता था जिसे अंग लाड कहा जाता था।
खर गढी लाग- सार्वजनिक निर्माण या दुर्ग के भीतर निर्माण कार्यों के लिए गांव से बेगार में गधों को मंगवाया जाता था, परंतु बाद में गधों के बदले खर गढी लाग वसूल की जाने लगी।
चंवरी लाग - किसानों के पुत्र या पुत्री के विवाह पर 1 से ₹25 तक चंवरी लाग के नाम पर लिए जाते थे।
प्र 9. मध्यकालीन राजस्थान की सामंती संस्कृति की विद्यमानता ने राज्य के विकास पर प्रतिकूल प्रभाव डाला। आलोचनात्मक विवेचना कीजिए? ( निबन्धात्मक )
उत्तर- सामंती संस्कृति की विद्यमानता ने राज्य के विकास पर प्रतिकूल प्रभाव डाला, जिसे निम्नलिखित बिंदुओं के तहत स्पष्ट किया जा सकता है
1. अपने अपने क्षेत्रों में कूप मंडूकता को बनाए रखना- सामंत प्रायः रूढ़िवादी और परंपरावादी होते थे। परिवर्तित परिस्थितियों में इन्हें अपने जागीर की प्रगति पसंद न थी। अपनी जागीर के लोगों को बाहरी लोगों के प्रभाव से बचाने के लिए न तो यातायात के साधनों का विकास करते थे और ना अपनी जागीर से किसी को अपनी भूमि बेच कर अन्यत्र जाने देते थे। इस प्रकार लोगों को एक सीमित दायरे में संकुचित कर विकास को अवरुद्ध किया।
2. कृषि व्यवस्था का ह्रास- ब्रिटिश इंडिया में नई वैज्ञानिक तकनीकों द्वारा कृषि का आधुनिकीकरण एवं वाणिज्यिकरण हुआह बड़ी बड़ी सिचाई परियोजनाएं, कृषि फार्म, कल्टीवेटर आदि का विकास हुआ। लेकिन सांमतों ने इस और ध्यान ही नहीं दिया एवं कृषि को परंपरागत बनाए रखने का प्रयास कर विकास को अवरूद्ध किया।
3. अत्यधिक आर्थिक शोषण एवं विद्रोह - बदलते हुए समय के साथ-साथ सामंतों को अपनी शानो शौकत को पूरा करने के लिए जब धन की आवश्यकता पड़ती थी तो वे अपने किसानों पर अत्यधिक कर लगा देते थे व बेगार लेते थे जिससे जगह-जगह कृषक विद्रोह हुई। इससे एक और राज्य की कृषि व्यवस्था चौपट हुई तो दूसरी ओर कृषि आधारित उद्योगों एवं शांति व्यवस्था के ना होने पर व्यापार वाणिज्य की अवनति हुई।
4. व्यापार वाणिज्य एवं परिवहन संचार को हतोत्साहित करना- सामंती व्यवस्था ने कूप मंडूकता बनाए रखते हुए परिवहन- संचार का विकास ही नहीं होने दिया, जिससे व्यापार- वाणिज्य चौपट हो गया। व्यापारियों से अनेक प्रकार के सामंती कर वसूल किए जाते थे। कभी-कभी सामंतों द्वारा व्यापारियों के काफिलों को लूटा भी जाता था। ऐसी स्थिति में विकास की आशा नहीं की जा सकती।
5. व्यवसाय- उद्योग को प्रोत्साहन नहीं - सामंतो ने कभी भी व्यवसायियों को नए उद्योग लगाने के लिए न तो कभी धन उपलब्ध कराया और ना ही उन्हें प्रोत्साहन दिया। इसलिए यहां के व्यवसायियों को देश के अन्य भागों में पलायन करना पड़ा। वहां जाकर उन्होंने अपनी प्रतिभा का लोहा समस्त देशवासियों को मनवाया।
6. फिजूलखर्ची को अत्यधिक बढ़ावा - सामंतों का श्रेणीकरण होने से उनमें पारस्परिक द्वेष उत्पन्न हुआ। वह एक दूसरे को हमेशा नीचा दिखाने में उलझे रहे थे। विवाह आदि के अवसर पर एक दूसरे से अधिक खर्च करना अपनी शान समझते थे जिसका सीधा बाहर कृषकों एवं व्यापारियों पर पड़ता था।
7. विलासितापूर्ण जीवनयापन- प्रारंभ में मुगल एवं बाद में ब्रिटिश सरंक्षण प्राप्त होने पर शासक व सामंत दोनों का ही जीवन विलासिता पूर्ण हो गया क्योंकि अब सैनिक सेवा की आवश्यकता नहीं रही। यह विलासिता ब्रिटिश काल में और बढ़ गई। सामंतों की हवेलियों में नृत्य और संगीत की झंकार एवं शराब के प्यालों टकराहट सुनाई देती थी। ऐसे में उन से राज्य के विकास की अपेक्षा नहीं की जा सकती थी।
प्र 10. अकबर की राजपूत नीति का उल्लेख कीजिए तथा यह बताइए कि इस नीति ने मुगल राजपूत संबंधों को कहां तक प्रभावित किया? ( निबन्धात्मक )
उत्तर- अकबर ने मुगल राजपूत संबंधों की जो बुनियाद रखी थी, वह कमोबेश आखिर तक चलती रही। आर पी त्रिपाठी के अनुसार अकबर शाही संघ के प्रति राजपूतों की केवल निष्ठा चाहता था। इसके लिए चार बातें आवश्यक थी-
राजपूत शासकों को खिराज की एक निश्चित रकम अदा करनी होगी।
उन्हें अपनी विदेश नीति का निर्धारण ,आपसी युद्ध और संधि करने का अधिकार नहीं होगा लेकिन उनके आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं किया जाएगा।
आवश्यकता पड़ने पर वे निश्चित संख्या में केंद्र को सशक्त सैन्य बल उपलब्ध करवाएंगे।
उन्हें स्वयं को साम्राज्य का अभिन्न अंग समझना होगा ना कि व्यक्तिगत इकाई।
एक मोटे तौर पर अकबर ने राजपूतों के साथ जो संबंध निर्धारित किए व उनके जो प्रभाव रहे उस में निम्नलिखित बिंदु थे -
यह नीति सुलह ए कुल (सभी के साथ शांति एवं सुलह) पर आधारित थी। सुलह न किए जाने वाले शासकों को शक्ति के बल पर जीता। जैसे मेवाड़, रणथंभौर आदि को जीता।
अधीनस्थ शासकों को उनकी वतन जागीर दी गई। उसको आंतरिक मामलों में पूर्ण स्वतंत्रता प्रदान की गई तथा बाहरी आक्रमणों उसे पूर्ण सुरक्षा की गारंटी दी गई।
प्रशासन संचालन एवं युद्ध अभियान में सम्मिलित किया एवं योग्यता अनुरूप उन्हें मनसब प्रदान किया।
टीका प्रथा शुरू की। राज्य के नए उत्तराधिकारी की वैधता टीका प्रथा द्वारा की जाती थी। जब कोई राजपूत शासक अपना उत्तराधिकारी चुनता था तो मुगल सम्राट उसे टीका लगाता था तब उसे मान्यता मिलती थी।
सभी राजपूत शासकों के टकसालों की जगह मुगली प्रभाव की मुद्रा शुरू की गई।
सभी राजपूत राज्य अजमेर सुबे के अंतर्गत रखे गए।
अकबर के समय ही अधिकांश राजपूताना मुगल शासन के अधीन हो गया था।
Specially thanks to Post and Quiz makers ( With Regards )
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