कोशिका विभाजन सामान्य भाषा में हम जानते हैं कि कोशिका विभाजन एक प्रकार का केंद्र विभाजन (कैरिओं काइनेसिस) ही होता है केंद्र के विभाजित होने के बाद कोशिका द्रव्य विभाजित होता है इन दोनों को मिलाकर कोशिका विभाजन कहते हैं
कोशिका विभाजन निम्न चार चरणों में संपन्न होता है
प्रोफेस ( प्रथमावस्था )
मेटाफेस ( मध्याअवस्था )
एनाफेज ( अंत्यावस्था )
टेलोेफेस ( पश्चावस्था )
प्रोफेस = इसके अंदर मुख्य घटनाएं निम्न है केंद्रक झिल्ली टूट जाने से केंद्र का सारा मैटेरियल कोशिका द्रव्य में आ जाता है तारक काय ध्रुव की ओर चले जाते हैं अर्ध गुणसूत्र का निर्माण हो जाता है और तारक तंतु बनने शुरू हो जाते हैं
मेटाफेस = अर्ध गुणसूत्र मध्य रेखा पर व्यवस्थित हो जाते हैं जैसे कोई परेड कर रहा हो ठीक उसी प्रकार दिखाई देते हैं
एनाफेज = अब गुणसूत्र दोनों ध्रुवों की और गतिशील हो जाते हैं इनका मुंह ध्रुव की ओर होता है और सारे मुद्दे पर लिखा से दूर चले जाते हैं तथा ध्रुव के पास पहुंच जाते हैं
टेलोेफेस = यह अवस्था प्रोसेस से बिल्कुल उल्टी होती है अर्थात केंद्रक झिल्ली का निर्माण हो जाता है सभी अर्ध गुणसूत्र गुणसूत्र तंतुओं में बदल जाते हैं इस प्रकार एक कोशिका में दो केंद्रक बन जाते हैं
अब कोशिका द्रव्य के विभाजन की बारी आती है जंतुओं में तो कोशिका संकुचित होकर दो पुत्री कोशिकाओं में बदल जाती है परंतु पादप कोशिका में एक कोशिका पट्टी का निर्माण मध्य भाग में हो जाता है जो सैलूलोज की बनी होती है यह पट्टी कोशिका को दो भागों में विभाजित कर देती है
जीवो में दो प्रकार का कोशिका विभाजन पाया जाता है
समसूत्री
अर्धसूत्री विभाजन
समसूत्री विभाजन ( Mitosis ) - ऐसा विभाजन जिसमें गुणसूत्रों की संख्या व उस पर जीनो का विन्यास समान हो समसूत्री विभाजन कहलाता है समसूत्री विभाजन से संतति कोशिकाओं में जीनो का नियमित वितरण होता है
अर्धसूत्री विभाजन ( Meiosis division ) - इसके द्वारा युग्मक बनते हैं तथा एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में जाते हैं अतः सभी कोशिकाएं पुरानी कोशिकाओं के विभाजन से उत्पन्न होती हैं कायिक कोशिका समसूत्री विधि से तथा जनन कोशिका अर्धसूत्री विधि से उत्पन्न होती है रुडोल्फ विरचौ ने सन 1855 यह मत प्रतिपादित किया कि नई कोशिकाएं पूर्ववर्ती कोशिकाओं से बनती है
कोशिका विभाजन का इतिहास ( History of cell division )
नगेली 1846 प्रतिपादित किया की नई कोशिकाएं पूर्ववर्ती कोशिका से बनती है
रुडोल्फ विरचौ 1859 उपरोक्त मत का समर्थन किया तथा ओमनिस सैलूला ए सैलूला का प्रतिपादन किया
स्ट्रॉस बर्गर 1870 पादप कोशिकाओं में कोशिका विभाजन का वर्णन किया
फ्लैमिंग 1882 प्राणी कोशिका में कोशिका विभाजन का वर्णन किया तथा माइटोसिस शब्द का प्रयोग किया
होवार्ड तथा पैले 1953 कोशिका चक्र की विभिन्न अवस्थाओं की खोज की थी
कोशिका विभाजन की प्रैक्टिकल उदाहरण शरीर का बढ़ना वृक्ष की नई डाली आना ट्यूमर की गांठ बन जाना त्वचा का निर्मोचन
कोशिका चक्र की परिभाषा ( Definition of cell cycle )
जीवो के शरीर में विभाजित होते रहने वाली कायिक कोशिकाओं में वृद्धि और विभाजन का नियमित चक्र चलता है इस चक्र को कोशिका चक्र कहते हैं अर्थात कोशिका के पूरे जीवन काल को कोशिका चक्र कहते हैं
कोशिका विभाजन से बनी संतति कोशिकाएं कोशिका चक्र शुरू करती है संतति कोशिका विभाजित होने वाली जनक कोशिका से छोटी होती है नियमित रूप से विभाजित होने वाली कोशिकाओं की कोशिका चक्र की अवधि 10 से 30 घंटे के बीच होती है जैसे त्वचा तथा रुधिर की कोशिकाएं
कोशिका चक्र को दो अवस्थाओं में बांटा गया है
अंतरा अवस्था या इंटरफेस तथा
विभाजन अवस्था
1 इंटरफेस ( Interface ) - अंतरावस्था दो कोशिका विभाजन के बीच की अवस्था है जिसमें कोशिका विभाजन के लिए तैयारी करती है इसी अवस्था में गुणसूत्र लंबे तथा महीन होकर क्रोमेटिंन जाल बनाते हैं इस अवस्था में केंद्रक और कोशिका द्रव्य दोनों में उपापचय की क्रियाएं चरम सीमा पर होती है एवं कोशिका उन सभी आवश्यक पदार्थों का संश्लेषण एवं संग्रह करती है जो कोशिका विभाजन के समय आवश्यक होते हैं इसमें तीन अवस्थाएं होती है
G1 अवस्था या प्रारंभिक वृद्धि काल = यह डीएनए संश्लेषण के बीच की अवधि है इस अवस्था में कोशिका विभाजन चक्र के पूर्ण समय का 30 से 50% स्तनधारीओं में समय लगता है इस अवस्था में आर एन ए का संश्लेषण होता है
2. S अवस्था या डीएनए संश्लेषण अवस्था - यह अवस्था कोशिका की कुल समय का 30 से 40% समय लगाती है अर्थात लगभग 8 घंटे इसमें डीएनए तथा हिस्टोन के संश्लेषण के फलस्वरूप डीएनए की पुनरावृति होती है इस समय डीएनए के दोनों रज्जू एक दूसरे के इतने समीप होते हैं कि दोनों रज्जु को पहचानना असंभव होता है
( इसी समय डी एन ए की मात्रा दुगनी हो जाती है अतः इस अवस्था में क्रोमेटिन तंतुओ की 2 प्रतियां हो जाती हैं जिन्हें क्रोमेटिड्स / अर्ध गुणसूत्र कहते हैं )
क्रोमेटिन और क्रोमेटिड्स में कितना छोटा सा अंतर है लेकिन यह अंतर कभी-कभी महंगा साबित होता है प्रत्येक गुणसूत्र के दोनों क्रोमेटिड्स सेंट्रोमेयर पर जुड़े होते हैं
3. G2 अवस्था अथवा द्वितीयक वर्धन काल - यह अवस्था कोशिका की अवधि का 10 से 20%( स्तनधारीओं में लगभग 4 घंटे की) होती है इस अवस्था में विभाजन के लिए आवश्यक पदार्थों का संश्लेषण होता है तथा डी एन ए की मात्रा भी सामान्य कायिक कोशिका से दुगनी रहती है
विशेष बात सभी कोशिकाओं में माइक्रोटिक प्रेरक जींस का एक समूह होता है जिसे कोशिका चक्र जीन कहते हैं जब तक यह जीन सक्रिय नहीं होते तब तक कोशिका G1 अवस्था में ही बनी रहती है
विशेष उद्दीपन प्राप्त होते ही यह जीन सक्रिय हो जाते हैं और कोशिका एस अवस्था में प्रवेश करती है कैंसर कोशिकाओं में यह जीन सदैव सक्रिय रहते हैं इसलिए कैंसर कोशिकाएं बिना रुके विभाजित होती रहती हैं
कोशिका विभाजन के समय घटने वाली विशेष घटनाएं
M अवस्था अथवा कोशिका विभाजन अवस्था
विभाजन के लिए तैयार कोशिका में निम्नलिखित विशेषता पाई जाती है
1 विभाजन के लिए तैयार कोशिका अन्य कोशिकाओं की अपेक्षा बड़ी दिखाई देने लगती है
2 इसमें डी एन ए की मात्रा सामान्य द्वीगुणित कोशिका के डीएनए से दुगनी होती है
3 केंद्रक पदार्थ के अधिक होने के कारण विभाजन के लिए तैयार कोशिका में न्यूक्लियोप्लाज्मिक सूची / कैरीयोप्लाज्मिक सूचकांक बढ़ जाता है कैरीयोप्लाज्मिक सूचकांक Np= Vn / ( Vc - Vn )
Np = कैरीयोप्लाज्मिक सूचकांक Vn = केंद्रक का आयतन Vc = कोशिका द्रव्य का आयतन
G0 अवस्था में यह सूचकांक स्थिर रहता है किंतु विभाजन के लिए तैयार कोशिका में अथवा विभाजित हो रही कोशिका में यह सूचकांक अधिक होता है
समसूत्री विभाजन का महत्व ( Importance of mitosis )
समसूत्री विभाजन के कारण ही कहीं कट लग जाता है तो कोशिकाएं विभाजित होकर उस घाव को भर देती हैं इसी कोशिका विभाजन के कारण ही हमारे शरीर में नई कोशिकाएं बनती हैं और जीवो का एक खास गुण वृद्धि होता है अर्थात प्रत्येक जीव बढ़ता है चाहे वह पौधा हो या जंतु इसी समसूत्री विभाजन के कारण वृक्ष में नई डाली आ जाती है
समसूत्री विभाजन के कारण ही हमारे शरीर में लाखों रुधिर कणिकाएं प्रतिदिन बनती भी है और प्रतिदिन मर भी जाती हैं यदि समसूत्री विभाजन नहीं होता तो हमारे रुधिर कणिकाएं एक बार मृत होने के बाद सारा रुधिर ही नष्ट हो जाता
सरल जीव में इसी समसूत्री विभाजन के कारण नए अंग आ जाते हैं जिसे पुनरुदभवन कहते हैं जैसे छिपकली की नई पूछ का आ जाना
छोटे बच्चों में कोशिका विभाजन की दर तेज होती है इसलिए उनके घाव जल्दी भर जाते हैं जबकि जैसे-जैसे उम्र बढ़ती जाती है कोशिकाओं के विभाजन की दर कम होती जाती है
कोशिका विभाजन जीवो के लिए एक वरदान तो है परंतु इसके अपने ही नुकसान हैं अब सवाल यह आता है कि इतनी महत्वपूर्ण चीज नुकसानदायक कैसे हो सकती है
जवाब बड़ा सिंपल है सभी कोशिकाएं जीवन भर तो विभाजित हो नहीं सकती इसलिए कोशिकाओं में कुछ ऐसे एंजाइम या कारक होते हैं सक्रिय जीन होते हैं जो कोशिका विभाजन को नियंत्रित करते रहते हैं
अभी वैज्ञानिकों को इस प्रकार के जीन का पूर्ण ज्ञान नहीं है कभी-कभी यह जीन अधिक सक्रिय हो जाते हैं जिसके कारण कोशिका विभाजन निरंतर चलता रहता है इसी अवस्था को हम कैंसर कहते हैं
कैंसर ( Cancer )
यदि कोशिका लगातार विभाजित होती रहे तो उस स्थान पर गांठ बन जाएगी और शरीर की खुद की कोशिका ही शरीर को मारने का कार्य करेगी
वैसे तो कैंसर दो प्रकार के होते हैं
1 लोकल कैंसर ( Local cancer )- इसका इलाज गामा किरणों से तथा कुछ रासायनिक दवाओं से या ऑपरेशन द्वारा कर दिया जाता है
2 मालिगनेंट कैंसर ( Malignant cancer )- अथवा दुर्दम कैंसर इसका कोई भी इलाज नहीं होता शरीर में कोई एक कोशिका कैंसर जनित हो जाती है फिर यह कोशिका पूरे शरीर में फैल फैल कर घूम घूम कर कैंसर पैदा करती है इस प्रकार के कैंसर का कोई भी इलाज कभी भी संभव नहीं हो सकता इस प्रकार के कैंसर का एक और नाम दिया जा सकता है इसे स्वयं प्रतिरक्षा रोग अर्थात ऑटोइम्यून डिजीज कहते हैं
ब्लड कैंसर या ल्यूकेमिया इसी प्रकार का 1 दुर्दम कैंसर है मुंह में होने वाला ल्यूकोप्लैकिया इसी प्रकार का एक भयावह बीमारी है
ऑटोइम्यून बीमारियां या तो रसायनों द्वारा उत्पन्न होती हैं अथवा शरीर की स्वयं की कमी द्वारा यह किसी विषाणु / वायरस या जीवाणु द्वारा उत्पन्न नहीं होती है
संबंधित प्रश्न
Q= निम्नलिखित में से कौन सा एक रोग ना तो जीवाणुओं द्वारा और ना ही विषाणु द्वारा होता है A कैंसर ल्यूकेमिया ल्यूकोरिया विटिलिगो ल्यूकोप्लैकिया B कैंसर ल्यूकेमिया ल्यूकोडरमा ल्यूकोप्लैकिया विटिलिगो ✔ C कैंसर ल्यूकेमिया ल्यूकोरिया ल्यूकोप्लैकिया D कैंसर ल्यूकेमिया ल्यूकोरिया विटिलिगो ल्यूकोप्लैकिया
Specially thanks to Post and Quiz makers ( With Regards )
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