गोदावरी नदी के महत्वपूर्ण तथ्य | दक्षिण भारत की गंगा

भारत की नदी है। यह नदी दक्षिण भारत में पश्चिमी घाट से लेकर पूर्वी घाट तक प्रवाहित होती है। नदी की लंबाई लगभग 900 मील (लगभग 1465 कि.मी.) है। यह नदी नासिक त्रयंबक गाँव की पृष्ठवर्ती पहाड़ियों में स्थित एक बड़े जलागार से निकलती है। मुख्य रूप से नदी का बहाव दक्षिण-पूर्व की ओर है। ऊपरी हिस्से में नदी की चौड़ाई एक से दो मील तक है, जिसके बीच-बीच में बालू की भित्तिकाएँ हैं। 

समुद्र में मिलने से 60 मील (लगभग 96 कि.मी.) पहले ही नदी बहुत ही सँकरी उच्च दीवारों के बीच से बहती है। बंगाल की खाड़ी में दौलेश्वरम् के पास डेल्टा बनाती हुई यह नदी सात धाराओं के रूप में समुद्र में गिरती है। गोदावरी नदी महाराष्ट्र, तेलंगाना, छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश में बहती है, प्रमुख नगर नासिक, नांदेड, निज़ामाबाद, राजामुन्द्री है,  

गोदावरी नदी की मुख्य धाराएँ 

गोदावरी की सात शाखाएँ मानी गई हैं-

  1. गौतमी
  2. वसिष्ठा
  3. कौशिकी
  4. आत्रेयी
  5. वृद्ध गौतमी
  6. तुल्या
  7. भारद्वाजी

मुख्य नादियाँ

गोदावरी नदी के तट पर ही त्र्यंबकेश्वर, नासिक, पैठण जैसे प्रसिद्ध तीर्थस्थल हैं। इसे 'दक्षिणीगंगा' भी कहते हैं। इसका काफ़ी भाग दक्षिण भारत में हैं। इसकी कुल लंबाई 1465 किमी है, जिसका 48.6% भाग महाराष्ट्र, 18.8 % तेलंगाना, 4.5% भाग आंध्र प्रदेश, 10.0% भाग मध्य प्रदेश, 10.9 % भाग छत्तीसगढ़, 14% कर्नाटक और 5.7% उड़ीसा में पड़ता है। इसमें मुख्य नादियाँ जो आकर मिलती हैं, वे हैं– पूर्णा, क़दम, प्रांहिता, सबरी, इंद्रावती, मुजीरा, सिंधुकाना, मनेर, प्रवर

इसके मुहानों में काफ़ी खेती होती है और इस पर कई महत्त्वपूर्ण बांध भी बने हैं।

गोदावरी नदी पर बनी परियोजनाऐ

  • पोचम्पाद परियोजना, Karnataka
  • जायकवाड़ी परियोजना, Maharashtra

गोदावरी नदी का धार्मिक उल्लेख

वराह पुराण ने भी कहा है कि गौतम ही जाह्नवी को दण्डक वन में ले आये और वह गोदावरी के नाम से प्रसिद्ध हो गयी। गोदावरी नदी के तट पर ही त्र्यंबकेश्वर, नासिक, पैठण जैसे प्रसिद्ध तीर्थस्थल हैं। इसे 'दक्षिणी गंगा' भी कहते हैं।

पौराणिक उल्लेख

पुराणों में गोदावरी नदी का विवरण निम्न प्रकार प्राप्त होता है-

  • महाभारत, वनपर्व में सप्त गोदावरी का उल्लेख है- ‘सप्तगोदावरी स्नात्वा नियतो नियतो नियताशान:।’
  • ब्रह्मपुराण के 133वें अध्याय में तथा अन्यत्र भी गोदावरी (गौतमी) का उल्लेख है।
  • श्रीमद्भागवत में गोदावरी की अन्य नदियों के साथ उल्लेख है- 'कृष्णवेण्या भीमरथी गोदावरी निर्विन्ध्या’।'
  • विष्णुपुराण में गोदावरी से सह्य पर्वत से निस्सृत माना है-'गोदावरी भीमरथी कृष्णवेण्यादिकास्तथा। सह्मपादोद्भवा नद्य: स्मृता: पापभयापहा:।'
  • महाभारत, भीष्मपर्व में गोदावरी का भारत की कई नदियों के साथ उल्लेख है- 'गोदावरी नर्मदा च बाहुदां च महानदीम्।'
  • गोदावरी नदी को पांडवों ने तीर्थयात्रा के प्रसंग में देखा था- 'द्विजाति मुख्येषुधनं विसृज्य गोदावरी सागरगामगच्छत्।'
  • महाकवि कालिदास के 'रघुवंश' में गोदावरी का सुंदर शब्द चित्र खींचा है- 'अमूर्विमानान्तरलबिनोनां श्रुत्वा स्वनं कांचनर्किकणीम्, प्रत्युद्ब्रजन्तीव खमुत्पतन्य: गोदावरीसारस पंक्तयस्त्वाम्’;’ ‘अत्रानुगोदं मृगया निवृतस्तरंग वातेन विनीत खेद: रहस्त्वदुत्संग निपुण्णमुर्घा स्मरामि वानीरगृंहेषु सुप्त:।'

अन्य जानकारी- 

कालिदास ने इस उल्लेख में गोदावरी को 'गोदा' कहा है। ‘शब्द-भेद प्रकाश’ नामक कोश में भी गोदावरी का रूपांतर ‘गोदा’ दिया हुआ है।

वैदिक साहित्य में अभी तक गोदावरी की कहीं भी चर्चा नहीं प्राप्त हो सकी है। 

बौद्ध ग्रन्थों में बावरी के विषय में कई दन्तकथाएँ मिलती हैं। 

ब्रह्मपुराण में गौतमी नदी पर 106 दीर्घ पूर्ण अध्याय है। इनमें इसकी महिमा वर्णित है। वह पहले महाकोसल का पुरोहित था और पश्चात पसनेदि का, वह गोदावरी पर अलक के पार्श्व में अस्यक की भूमि में निवास करता था और ऐसा कहा जाता है कि उसने श्रावस्ती में बुद्ध के पास कतिपय शिष्य भेजे थे। 

पाणिनि के 'संख्याया नदी-गोदावरीभ्यां च' वार्तिक में 'गोदावरी' नाम आया है और इससे 'सप्तगोदावर' भी परिलक्षित होता है। रामायण, महाभारत एवं पुराणों में इसकी चर्चा हुई हैं। वन पर्व ने इसे दक्षिण में पायी जाने वाली एक पुनीत नदी की संज्ञा दी है और कहा है कि यह निर्झरपूर्ण एवं वाटिकाओं से आच्छादित तटवाली थी और यहाँ मुनिगण तपस्या किया करते थे। 

रामायण के अरण्य काण्ड वा. रा. ने गोदावरी के पास के पंचवटी नामक स्थल का वर्णन किया है, जहाँ मृगों के झुण्ड रहा करते थे और जो अगस्त्य के आश्रम से दो योजन की दूरी पर था। ब्रह्म पुराण में गोदावरी एवं इसके उपतीर्थों का सविस्तार वर्णन हुआ है। तीर्थंसार ने ब्रह्मपुराण के कतिपय अध्यायों से लगभग 60 श्लोक उद्धृत किये हैं, जिससे यह प्रकट होता है कि आज के ब्रह्मपुराण के गौतमी वाले अध्याय 1500 ई. के पूर्व उपस्थित थे। 

वामन काणे के लेख के अनुसार ब्रह्म पुराण ने गोदावारी को सामान्य रूप में गौतमी कहा है। ब्रह्मपुराण में आया है कि विन्ध्य के दक्षिण में गंगा को गौतमी और उत्तर में भागीरथी कहा जाता है। गोदावरी की 200 योजन की लम्बाई कही गयी है और कहा गया है कि इस पर साढ़े तीन करोड़ तीर्थ पाये जाते हैं। दण्डकारण्य को धर्म एवं मुक्ति का बीज एवं उसकी भूमि को (उसके द्वारा आश्लिष्ट स्थल को) पुण्यतम कहा गया है।

गोदावरी नदी का नामकरण

कुछ विद्वानों के अनुसार, इसका नामकरण तेलुगु भाषा के शब्द 'गोद' से हुआ है, जिसका अर्थ मर्यादा होता है। एक बार महर्षि गौतम ने घोर तप किया। इससे रुद्र प्रसन्न हो गए और उन्होंने एक बाल के प्रभाव से गंगा को प्रवाहित किया। गंगाजल के स्पर्श से एक मृत गाय पुनर्जीवित हो उठी। इसी कारण इसका नाम गोदावरी पड़ा। 

गौतम से संबंध जुड जाने के कारण इसे गौतमी भी कहा जाने लगा। इसमें नहाने से सारे पाप धुल जाते हैं। गोदावरी की सात धारा वसिष्ठा, कौशिकी, वृद्ध गौतमी, भारद्वाजी, आत्रेयी और तुल्या अतीव प्रसिद्ध है। पुराणों में इनका वर्णन मिलता है। इन्हें महापुण्यप्राप्ति कारक बताया गया है- सप्तगोदावरी स्नात्वा नियतो नियताशन: । महापुण्यमप्राप्नोति देवलोके च गच्छति ॥

ब्रह्मगिरि पर उतरी गंगा बहुत-से पुराणों में एक श्लोक आया है- 'मध्य के देश सह्य पर्वत के अनन्तर में हैं, वहीं पर गोदावरी है और वह भूमि तीनों लोकों में सबसे सुन्दर है। वहाँ गोवर्धन है, जो मन्दर एवं गन्धमादन के समान है।

ब्रह्म पुराण में वर्णन आया है कि किस प्रकार गौतम ने शिव की जटा से गंगा को ब्रह्मगिरि पर उतारा, जहाँ उनका आश्रम था और किस प्रकार इस कार्य में गणेश ने सहायता दी।

नारद पुराण में आया है कि जब गौतम तप कर रहे थे तो बारह वर्षों तक पानी नहीं बरसा और दुर्भिक्ष पड़ गया, इस पर सभी मुनिगण उनके पास गये और उन्होंने गंगा को अपने आश्रम में उतारा। वे प्रात:काल शालि के अन्न बोते थे और मध्याह्न में काट लेते थे और यह कार्य वे तब तक करते चले गये जब तक पर्याप्त रूप में अन्न एकत्र नहीं हो गया। शिवजी प्रकट हुए और ऋषि ने प्रार्थना की कि वे (शिवजी) उनके आश्रम के पास रहें और इसी से वह पर्वत जहाँ गौतम का आश्रम अवस्थित था, त्र्यम्बक नाम से विख्यात हुआ।
 

Specially thanks to Post Author - भरतराज सैन


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