Homosexuality ( समलैंगिकता )

Homosexuality


समलैंगिकता 


 

समलैंगिकता की परिभाषा ( Definition of homosexuality )- जब समान लिंग वाले 2 व्यक्ति आपस में योन और रोमांस पूर्वक संबंध स्थापित करते हैं तो उसे समलैंगिकता कहते हैं

समलैंगिकता संबंधित शब्द ( Homosexuality Related Words )


गे - पुरुष से पुरुष का संबंध होने पर उसे गे या पुरुष समलिंगी कहा जाता है

लैसबियन - यदि दो महिलाएं मिलकर अपने संबंध स्थापित करती है तो उसे लैसबियन या महिला समलिंगी कहते हैं

उभय लिंगी - जो लोग महिला और पुरुष दोनों से प्रति आकर्षित होते हैं उन्हें उभय लिंगी कहते हैं

 LGBT समुदाय - यह सभी समुदाय जैसे समलिंगी, लिंगपरिवर्तित और उभयलिंगी मिलाकर LGBT समुदाय बनाता है और यह सभी देशों में पाए जाते हैं

कोठरी के भीतर - जो लोग अपने समलैंगिक संबंधों को छुपाते हैं और सोचते हैं कि पता लगने पर पता नहीं क्या हो जाएगा इस गुप्त संबंध को कोटरी के भीतर कहा जाता है

गर्व होना- इसमें लैंगिक संबंध रखने वाले व्यक्ति अपने संबंधों को छुपाते नहीं है और वह अपने आप को गौरवान्वित महसूस करते हैं ना कि लज्जित महसूस करते हैं इसे गर्व होना आया गर्व करना कहा जाता है

रिपैरेटिव चिकित्सा- वैज्ञानिक और चिकित्सक मानते हैं कि समलैंगिक व्यवहार को नहीं बदल जा सकता है इसलिए इसे मानसिक रोग मानते हैं लेकिन कुछ इसको मानसिक रोग नहीं मानते हैं कुछ धार्मिक समुदाय समलैंगिकों के उपचार करने का प्रयासरत है इसे ही रिपैरेटिव चिकित्सा कहते है

समलैंगिकता के कारण ( Reason Of homosexuality )


1. अनुवांशिक और जन्म से पूर्व हार्मोन में गड़बड़ी और वातावरण के कारण
2. बिना किसी दवाब के अपने मर्जी से
3. सामाजिक और राजनीतिक घटनाएं
4. घरेलू हिंसा
5. मानसिक बीमारी

भारत में समलैंगिकता ( Homosexuality in India )


समलैंगिकता पर 24 साल 1994 से चल रही बहस पर 6 सितंबर 2018 को सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय पीठ ने धारा 377 के अंतर्गत समलैंगिक संबंधों को अब अपराध नहीं माना जाएगा देश की सर्वोच्च अदालत ने सहमति से समलैंगिक यौन संबंध को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया ।

समलैंगिकता को अपराध नहीं मानने वाला भारत दक्षिण एशिया का दूसरा देश हैं इससे पहले नेपाल ने इसे अपराध की श्रेणी से बाहर किया था और अपने संविधान में सितंबर 2015 में ही से लागू कर दिया था

भारत समलैंगिक संबंधों को वैध मानने वाले 126 वां देश बन गया है।

आईपीसी की धारा 377 में 'अप्राकृतिक यौन अपराध' का जिक्र है, जिसमें कहा गया है कि जो भी प्रकृति की व्यवस्था के उलट जाकर किसी पुरुष, महिला या पशु के साथ सेक्स करता है तो उसे उम्र कैद या दस साल तक की कैद और जुर्माने की सजा हो सकती है.

भारत में समलैंगिकता का इतिहास ( History of Homosexuality in India )


धारा 377 जिसे अप्राकृतिक अपराध के नाम से भी जाना जाता है, को भारत में औपनिवेशिक शासन द्वारा 1857 के विद्रोह के बाद उन्होंने अपने धार्मिक और सांस्कृतिक मूल्यों के आधार पर अपने लिए कानून बनाया, क्योंकि तब ईसाइयत मैं समलैंगिकता अपराध माना जाता था, जबकि इससे पहले समलैंगिक गतिविधियों पर भारत में दंडित नहीं किया जाता था।

16वीं शताब्दी में यूरोप व अमेरिका ने समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया, परंतु दुर्भाग्य से 1860 में लार्ड मैकाले द्वारा लाए गए आईपीसी के कानून की इस धारा को हटाने में भारतीय समाज को 157 साल लग गए।

समलैंगिकता अपराध क्यों नहीं है ( Homosexuality is not crime )


 सुप्रीम कोर्ट ने 157 साल पुरानी भारतीय दंड संहिता आईपीसी की धारा 377 को आंशिक रूप से निरस्त करते हुए अपने ऐतिहासिक फैसले में कहा है कि जब दो वयस्क चाहे वह किसी भी लिंग के हो आपसी सहमति से एकांत में संबंध बनाते हैं तो अपराध नहीं माना जा सकता।

धारा 377 पुराने ढर्रे पर चल रही सामाजिक व्यवस्था पर आधारित है, जबकि समलैंगिकता एक मानसिक विकार न होकर स्वाभाविक अवस्था है। अतः धारा 377 हमारे मूल अधिकार 14,( समता का अधिकार) 15, (धर्म नस्ल जाति लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव का निषेध) 21,( दैहिक स्वतंत्रता का श्रम संरक्षण) में प्रदत अधिकारों का हनन करती है।

समलैंगिकता पर की गई याचिकाएं ( Petitions made on homosexuality )


2 जुलाई 2009 को नाज फाउंडेशन ( Naz Foundation ) की याचिका पर दिल्ली हाईकोर्ट ने फैसला दिया था कि दो वयस्कों के बीच आपसी सहमति से एकांत में समलैंगिक संबंध बनता है तो उसे आईपीसी की धारा 377 के तहत अपराध नहीं माना जाएगा।

लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने 11 दिसंबर 2013 के फैसले में समलैंगिकता के मामले में उम्रकैद की सजा बहाल रखने का फैसला लिया और दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को खारिज कर दिया और कहा कि जब तक धारा 377 रहेगी समलैंगिकता को वैद्य नहीं ठहराया जा सकता।

2013 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के साथ ही करीब साडे 4 साल तक सहमति से बना समलैंगिक यौन संबंध कानूनी रहने के बाद फिर गैरकानूनी हो गया। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने 6 सितंबर 2018 को दिए गए ऐतिहासिक फैसले से समलैंगिकता अपराध के दायरे से बाहर हो गई।

दुनिया में समलैंगिकता को लेकर स्थिति 


समलैंगिक समुदाय के अधिकारों पर सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि दुनिया के दूसरे देशों में भी लंबे समय तक चर्चा होती रही अब सुप्रीम कोर्ट द्वारा भारत में समलैंगिकों को मान्यता देने के बाद भारत उन 125 देशों में शामिल हो गया है जहां समलैंगिकता को कानूनी मान्यता प्राप्त है। हालांकि अभी भी 72 देशों में इसे अपराध की श्रेणी में रखा है।

इस्लामिक तथा पड़ोसी देशों की स्थिति 


ईरान सऊदी अरब और सूडान जैसे देशों में समलैंगिकता को लेकर मृत्यु दंड का प्रावधान है। भारत के पड़ोसी देशों पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, इंडोनेशिया, मॉरीशस और सिंगापुर जैसे देशों में भी समलैंगिकता अपराध है।

पड़ोसी देश चीन में 2002 में समलैंगिकता को वैद्य किया है। रूस में भी समलैंगिकों के अधिकारों के लिए कोई कानून नहीं है।

समलैंगिकता तथा संबंधित मुद्दे 


सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद देश में समलैंगिक संबंधों को कानूनी मान्यता तो मिल गई है लेकिन इसके अलावा कई कानूनी अड़चनें भी है जिसके लिए समलैंगिक अधिकारों की सुरक्षा का दावा करने वाले लोगों को और भी मजबूती से लड़ाई लड़नी होगी जैसे----

अभी तक कानून के लिहाज से समलैंगिकों को शादी का अधिकार नहीं है। बच्चों को गोद लेने का अधिकार नहीं है 

निष्कर्ष ( Conclusion )


भारतीय समाज में समलैंगिकों के सामाजिक मुद्दों की लगातार अनदेखी होती रही है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद एलजीबीटी समुदाय के लोगों के बीच खुशी का माहौल है, तथा इस फैसले के बाद इस समुदाय को समाज के मुख्यधारा से जुड़ने का मौका मिलेगा साथ ही देश के सामाजिक ताने-बाने के साथ लोगों के बीच एलजीबीटी समुदाय के प्रति उनकी मानसिकता में बदलाव आएगा।

समलैंगिक यौन संबंधों को सुप्रीम कोर्ट की कानूनी मान्यता के बाद अब यह सवाल उठना बंद हो जाएगा की धारा 377 संविधान के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करती है। लेकिन बराबरी का हक पाने के लिए लंबी लड़ाई लड़ने के बाद अभी भी इस समुदाय को सामाजिक मान्यता पाने के लिए बहुत दूर तक चलना होगा।


Specially thanks to Post makers ( With Regards )

Godawari


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