Land Resources : भूमि संसाधन

Land Resources


भूमि संसाधन


भूमि एक प्राकृतिक संसाधन है जिसका अनेक कार्यों के लिए उपयोग होता है पर्यावरण की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए इसका उचित उपयोग आवश्यक है देश का भू-राजस्व विभाग भू-उपयोग सबंधी अभिलेख रखता है भू-उपयोग सवर्गों का योग कुल प्रतिवेदित क्षेत्र के बराबर होता है जोकि भौगोलिक क्षेत्र से भिन्न है

भारत की प्रशासकीय इकाइयों के भौगोलिक क्षेत्र की सही जानकारी देने का दायित्व भारतीय सर्वेक्षण विभाग पर है भू-राजस्व तथा सर्वेक्षण विभाग दोनों में मूलभूत अन्तर यह है कि भू-राजसव द्वारा प्रस्तुत क्षेत्रफल, प्रतिवेदित क्षेत्र पर आधारित है जोकि कम या अधिक हो सकता है, जबकि कुल भौगोलिक क्षेत्र भारतीय सर्वेक्षण विभाग के सर्वेक्षण पर आधारित है और यह स्थाई होता है

भू-उपयोग वर्गीकरण ( Land use classification )


भारत के 328.726 मिलीयन हेक्टेयर भौगोलिक क्षेत्र में से केवल 305.51 मिलियन हेक्टेयर (92.94%) क्षेत्र के बारे में ही भूमि उपयोग आंकड़े प्राप्त है भारत का वर्तमान भूमि उपयोग प्रतिरूप स्थलाकृति, जलवायु, मिट्टी, मानव, क्रियाओं और प्रौद्योगिकी आदानो ऐसे अनेक कारकों का प्रतिफल है

भारत-भूमि उपयोग प्रतिरूप ( India-land use model )



  • सकल बोया गया क्षेत्र 43.41%

  • वन आच्छादित 22.57%

  • अकृषित उद्देश्य के उपयोग के अंतर्गत 7.92%

  • वर्तमान परती भूमि 7.03%

  • बंजर भूमि 6.29%

  • कृषित अवशिष्ट भूमि 4.41%

  • परती भूमि 3.82%

  • चरागाह भूमि 3.45%

  • वन फसल 1.10%


वनो के अधीन क्षेत्र ( Area under forest )


वर्गीकृत वन क्षेत्र तथा वनों के अंतर्गत वास्तविक क्षेत्र दोनों प्रथक् हैं सरकार द्वारा वर्गीकृत वन क्षेत्र का सीमांकन इस प्रकार किया जाता है जहां वन विकसित हो सकते हैं भू-राजस्व अभिलेखों में इसी परिभाषा को सतत अपनाया गया है इस प्रकार इस सवर्ग के क्षेत्रफल में वृद्धि दर्ज हो सकती है किंतु इसका अर्थ यह नहीं है कि वहां वास्तविक रूप से वन पाए जाएंगे।

वनों के वर्गीकरण तथा वृक्षारोपण कार्यक्रम के फलस्वरूप हमारे देश में वन क्षेत्र में कुछ वृद्धि हुई है वन प्रदेश में वर्ष 1950-51 से 1970-71 के बीच विशेष वृद्धि हुई है

वर्ष 1950-51 में वन प्रदेश केवल 4.0 करोड हेक्टेयर था, जो वर्ष 1970-71 में बढ़कर 6.60 करोड हेक्टेयर हो गया अर्थात 20 वर्षों की अवधि में वन क्षेत्र में डेढ़ गुना से भी अधिक वृद्धि हुई। इस अवधि में इसकी कुल भूमि में प्रतिशत मात्रा भी 14.24% से बढ़कर 21.25% हो गई। वन रिपोर्ट 2013 के अनुसार देश में वनों के अधीन 69.78 मिलीयन हेक्टेयर क्षेत्र है जो देश की कुल भूमि का 21.23% है

अन्य कृषि रहित भूमि ( Other non-agricultural land )


यह वह भूमि है जिस पर कृषि नहीं की जाती है परंतु इसमें परती भूमि को सम्मिलित नहीं किया जाता है इस भूमि में निरंतर कमी आ रही है इस प्रकार की भूमि के अग्रलिखित उपसर्ग हो सकते हैं

स्थाई चरागाह तथा अन्य चराई भूमि देश के कई भागों में इस प्रकार की भूमि को साफ करके कृषि योग्य बनाया जा सकता है
वृक्षों, फसलों तथा उपवनों के अधीन भूमि इस वर्ग में ऐसी भूमि सम्मिलित की गई है जिस पर बाग व अनेक प्रकार के पेड़ पाए जाते हैं जिनसे फल आदि प्राप्त होते हैं

वर्तमान समय में देश की बढ़ती हुई जनसंख्या की खाद्यान्न पूर्ति के लिए इस भूमि के बहुत से भाग पर कृषि होने लगी है
कृषि योग्य परन्तु बंजर भूमि यह वह भूमि है जो किसी भी काम के लिए प्रयोग नहीं की जाती है आधुनिक तकनीक की सहायता से उत्तम बीज, खाद तथा सिंचाई की व्यवस्था करके कृषि के लिए इसका प्रयोग किया जा सकता है बढ़ती हुई जनसंख्या के सन्दर्भ में भारत के लिए इस भूमि का बड़ा महत्व है

पंजाब, हरियाणा तथा उत्तर प्रदेश में इस भूमि का काफी विस्तार मिलता है पिछले कुछ वर्षों में इस भूमि में सुधार करने के प्रयास किए गए हैं इन प्रयत्नों के फलस्वरूप बंजर भूमि के विस्तार में पर्याप्त कमी आई है

परती भूमि ( Fallow land )


यह वह भूमि है जिस पर पहले कृषि की जाती थी परन्तु अब इस भूमि पर कृषि नहीं की जाती है ऐसी भूमि पर निरंतर कृषि करने से भूमि की उपजाऊ शक्ति कम हो जाती है और ऐसी भूमि पर कृषि करना आर्थिक दृष्टि से लाभदायक नहीं रहता। अतः इसे कुछ समय के लिए खाली छोड़ दिया जाता है इससे भूमि में फिर से उर्वरा शक्ति का विकास होता है और वह कृषि के लिए उपयुक्त हो जाती है परती भूमि दो प्रकार की होती है

वर्तमान परती भूमि वह भूमि है जिसमें पहले कृषि की जाती थी परंतु उपजाऊ शक्ति के कम होने से इसे वर्तमान समय में खाली छोड़ दिया गया है इस भूमि के विस्तार में परिवर्तन आता रहता है

वर्तमान परती भूमि के अतिरिक्त परती भूमि यह भूमि पिछले कई वर्षों से परती पडी है जमींदारों की स्वार्थपूर्ण नीति, कृषकों की निर्धनता, भूमि की उर्वरता का हास, जल का अभाव, नदियों का मार्ग परिवर्तन, जलवायु में परिवर्तन आदि कारणों से यह भूमि एक लम्बी अवधि से परती चली आ रही है उत्तम बीज, पर्याप्त खाद, सिंचाई आदि की उचित व्यवस्था करके इस भूमि के विस्तार को कम किया जा सकता है

कृषित भूमि ( Cultivated land )


यह वह भूमि है जिस पर वास्तविक रूप से कृषि की जाती है इसे कुल या सकल बोया गया क्षेत्र भी कहते हैं भारत में लगभग आदि भूमि पर कृषि की जाती है जो विश्व में सर्वाधिक भाग है भारत की कुल भूमि का 43.41% भाग कृषित है कृषि भूमि के निम्नलिखित दो पहलू हैं

1. निवल बोया गया क्षेत्र
यह वह भूमि है जिस पर फसलें उगाई व काटी जाती हैं यह निवल बोया गया क्षेत्र कहलाता है स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद इसमें पर्याप्त वृद्धि हुई है इस वृद्धि के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं

  • रेह तथा उसर भूमि को उपजाऊ बनाना।

  • बेकार खाली पड़ी भूमि को कृषि योग्य बनाना।

  • कृषि भूमि को परती भूमि के रूप में न छोड़ना।

  • चरागाह है तथा बागों के लिए उपयोग की गई भूमि को कृषि के लिए प्रयोग करना।

  • सबसे अधिक कृषित भूमि पंजाब तथा हरियाणा में पाई जाती है जहां 80% भूमि पर कृषि की जाती है


2. एक से अधिक बार बोया गया क्षेत्र
भारत में कुल कृषित क्षेत्र का लगभग 25% भाग ऐसा है जिस पर वर्ष में एक से अधिक बार फसल प्राप्त की जाती है इससे यह स्पष्ट होता है कि हम अपनी भूमि का उचित उपयोग नहीं कर रहे, क्योंकि 75% भूमि पर वर्ष में केवल एक ही फसल ली जाती है

कृषि के लिए अनुपलब्ध भूमि ( Unavailable land for agriculture )


इसके अंतर्गत निम्नलिखित दो प्रकार की भूमि सम्मिलित की जाती है

1. गैर-कृषि प्रयोजनों में लगाई गई भूमि - इस वर्ग के अन्तर्गत वह भूमि आती है, जो कृषि के अतिरिक्त अन्य कार्यों के लिए कारखानों, नगरों तथा अन्य बस्तियों के विकास के लिए प्रयोग की जाती है इस वर्ग की भूमि में निरंतर वृद्धि हो रही है इसका कारण यह है कि भारत में तीव्र गति से उद्योग, यातायात तथा नगरीकरण का विकास हो रहा है

2. बंजर तथा कृषि रहित क्षेत्र- यह वह भूमि है जो बंजर व कृषि के लिए अयोग्य है भारत में तकनीकी विकास के साथ-साथ इस भूमि में कमी आ रही है बहुत सी बंजर भूमि को सिंचाई, खाद तथा उत्तम बीजों के प्रयोग से कृषि योग्य बनाया जा रहा है

Specially thanks to Post and Quiz makers ( With Regards )

गुरजीत सिंह 


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